दस्तक
दस्तक
मनीषा बहुत देर से अपने कमरे में बैठी योजना बना रही थी कि भतीजी के मुंडन की पार्टी में क्या-क्या होना चाहिए। अभी तक उसे लगता था कि भाई और उसकी पत्नी को दुनियादारी का अनुभव नहीं है। अतः अभी भी हर काम का दायित्व उस पर ही है। हलांकि उसकी सहेली अचला ने कई बार समझाया था कि यह तुम्हारी भूल है। उन्हें उनकी ज़िंदगी जीने दो। तुमने भाई को उसके पैरों पर खड़ा कर अपना दायित्व पूरा कर लिया। अब उसे खुद सब करने दो। तुम अब अपने जीवन पर ध्यान दो लेकिन मनीषा मानती ही नहीं थी।
वह अपनी योजना बताने भाई के कमरे की तरफ बढ़ी। दस्तक देने ही जा रही थी कि भाभी की आवाज़ सुनाई पड़ी।
"परी के मुंडन में जो होना है वह मेरी पसंद का होगा। तुम दीदी को समझा देना। बेवजह दखल ना दें।"
मनीषा ने अपना हाथ रोक लिया। कुछ पल चुप रहने के बाद मुस्कुराई। एक जबरन ओढ़े गए बोझ से उसे छुट्टी मिल गई थी।