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Aarti Ayachit

Others

2.5  

Aarti Ayachit

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ससुराल में पहला दिन

ससुराल में पहला दिन

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मुझे लगता है कि वर्तमान में जमाना बदल गया है और इस बदलते हुए जमाने की सोच ने हर लड़के और लड़की को शादी से पूर्व मिलने, एक दूसरे से व्‍यक्तिगत रूप से बात करने की छूट देना शुरू कर दी है, जो काफी तारीफ़ के काबिल है। यह वैसे देखा जाए, तो सही भी है, आखिरकार पति-पत्‍नी बनना ही है, साथ में जिंदगी बिताना ही है, "उम्र भर के लिए तो जी हाँ दोस्‍तों पहले से जब जान-पहचान रहेगी", तो नई-नवेली बहु को ससुराल में पहले दिन कदम रखते ही किसी भी प्रकार की झिझक नहीं होगी, "जैसे कि मुझे हुई थी"। मैं जब ससुराल आई थी, बहुत ही सहमी-सहमी सी आई थी और जी हॉं परिवार में सबका स्‍वभाव समझने में भी समय लग गया। मैं ठहरी कामकाजी, तो घर और कार्यालय के बीच में तारतम्‍य बैठाना भी जरूरी था, क्‍योंकि " सभी के सहयोग से ही तो ग्रहस्‍थी चलती है न।"

मन ही मन सोच रही थी कि अभी तो परम्‍परागत शादी की रस्‍मों से कहीं निजात पाई थी, कि ससुराल में आकर दूसरी रस्‍में शुरू। इन्‍ही रस्‍मों के दौरान एक रस्‍म होती है, जिसमें दुल्‍हा-दुल्‍हन को छलनी सिर के ऊपर रखकर नहलाया जाता है और फिर दूसरी रस्‍में होती हैं। मैं एकदम नयी-नयी इस घर में ज्‍यादा जानती नहीं थी किसी को और ना ही स्‍वभाव पहचानती थी। "सास-ससुर, शादीशुदा ननंद, बीच वाले देवर-देवरानी और एक छोटा देवर, जिसकी शादी होनी थी, इन सबके बीच मेरे पति सबसे बड़े बेटे और मैं घर की बड़ी बहु।" ननंद से मेरी मुलाकात पहली बार ही होने के कारण बात करने में भी झिझक होती, ऊपर से उमर में भी बड़ी, साथ ही ओहदे में भी।

 जी हॉं मेरे दोस्‍तों आप यह सोच रहे होंगे कि मैं यह सब क्‍यों जिक्र कर रही हूँ, क्‍यों कि हर नई-नवेली बहु अपने ससुराल में कदम रखते ही थोड़ी सहमी-सहमी ही रहती है और मन में रहता है संकोच कि अपना निर्वाह यहॉं हो पाएगा या नहीं, मेरा स्‍वभाव घर के सदस्‍य समझ पाएंगे या नहीं। "इसी असमंजस में शादी की रस्‍में अलग और मेरा सोचना है कि हर बहु का हाल ऐसा ही होता होगा, जैसा कि मेरा हुआ।" इन सब रस्‍मों के बीच आफत यह होती है कि अपनी पेटी में से जरूरत का सामान निकालकर देगा कौन भला ? "इसीलिये बहु की यदि शादी से पहले घर के सदस्‍यों से जान-पहचान रहे तो शायद यह परेशानी नहीं होगी।" वो तो "इनकी ममेरी बहन यानि मेरी ननंद से मेरी अच्‍छी पहचान हो गयी थी", सो उसने मेरी ससुराल में काफी सहायता कर दी थी।

 

शादी के बाद दोस्‍तों हमारे यहां मायके और ससुराल में सत्‍यनारायण की पूजा बहुत ही अहम मानी जाती है। जब ससुराल में पूजा सम्‍पन्‍न हुई, घर में पधारे हुए सभी मेहमानों को केले के पत्‍तल पर हमारे घर के आंगन में खाना परोसा गया, "साथ ही सास द्वारा मुझे भी आदेशित किया गया" कि मैं भी जो मीठे व्‍यंजन बने हैं, उन्‍हें घर आए मेहमानों को आग्रह के साथ परोसूं, तो साहब शुरू हो गयी यहां से "शादी के बाद बड़ी बहु के नाम से मेरी जीवन-यात्रा।" एक बात यहां विशेष हुई कि मेरा शुरू से स्‍वभाव रहा है कि कहीं भी नई जगह पर जाती हूँ तो सब अच्‍छी तरह जांच परख लेती हूँ, नौकरी जो करती थी तो आदत थी। मैने देखा नंदोई जी को पालक की सब्‍जी पर तेल की बघार पिसी लाल मिर्च डालकर ऊपर से डाली गई, फिर समझ में आया कि ससुराल में सभी तीखा-चटपटा खाना पसंद करते है। "मैने यह पहली बार ही देखा, फिर जब मायके में पूजा हुई और नंदोई जी की फरमाईश पर वही पालक की सब्‍जी मेरी मॉं ने बनवाई, तो खाना परोसते वक्‍त मैने अपने परीक्षण के अनुसार मॉं को चुपचाप ही बताया वही बघार बनाने के लिए " और सब्‍जी पर परोसने के लिए तो सभी मेहमान मेरी तारीफ करने लगे जनाब, कि आते ही बहु ने सब समझ लिया है, आपका घर-संसार अच्‍छा ही चलेगा। और "वो दिन एक यादगार बन गया, आज भी सब याद करते है।"

 


 

 

 



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