ईश्वर का रूप
ईश्वर का रूप
एक समय की बात है एक छोटा-सा बच्चा अपनी माँ से हमेशा एक ही प्रश्न किया करता था कि
भगवान कैसे दिखते हैं ?
माँ हर बार अलग-अलग उत्तर देती थी कि भगवान हमें किसी भी रूप में मिल सकते हैं।
हो सके वह अच्छे रूप में तुम्हे दिखे या एक छोटे से बच्चे या बूढ़े के रूप में । भगवान का एक रूप
नहीं होता है ,उनके अनेक रूप होते हैं।माँ - "भगवान हमारी परीक्षा भी लेते है।"
बेटा बोलता है -"कैसी परीक्षा माँ ?"
माँ - "भगवान हम से किसी भी प्रकार का प्रश्न पूछते है और हमे उसका सही -सही उत्तर देना पड़ता है। भगवान को सच्चे लोग बहुत पसंद है।"
बेटा -- "अच्छा माँ मैं समझ गया।"
माँ - "बेटा तुम मुझसे बार-बार यह प्रश्न क्यों पूछते हो ?"
बेटा बोला - "माँ ,मैं एक बार भगवान के साथ बैठ कर एक रोटी खाना चाहता हूँ।"
एक दिन वह बच्चा स्कूल से लौटते वक्त भगवान की खोज में नदी किनारे घूमने निकल पड़ा तभी
उसने देखा एक बूढी औरत चुपचाप बैठी थी। बच्चे ने उस बूढी औरत को भगवान समझा
और बोला ,मैं आपके साथ मिल कर एक रोटी खाना चाहता हूँ। बूढी औरत उस बच्चे की बात
सुन कर खुश हुई और उससे गले से लगा ली और बोली मैं दो दिनों से भूखी बैठी थी ,मुझ से
मिलने या मेरे बारे में जानने के लिए कि मैं जिंदा हूँ भी या नहीं कोई भी मेरे घर से नहीं आया।
बूढी औरत उस बच्चे से यह भी कहती है कि मेरी 'बहु' से कहा सुनी हो गई थी तो मैं घर छोड़-कर
बिना बताये आ गई हूँ।
बच्चा समझ गया की बूढी औरत जो कि उसके लिए भगवान थी वह उस से प्रश्न पूछ रही है।
बच्चा उस बूढी औरत से कहता है कि घर में तो छोटी-मोटी लडाई
होती ही रहती है तो क्या ऐसे में हमें घर छोड़ देना चाहिए ? आपके बच्चे आपके लिए परेशान
हो रहे होंगे। किसी भी मुसीबत का सामना हमें डट कर करना चाहिए वरना हम अपने जीवन में
कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे। बच्चे ने अपने स्कूल बैग से खाने का डब्बा निकाला और दोनों मिल
कर रोटी खाई और बच्चे की बात सुन कर वहऔरत अपने घर चले गई। बच्चा जब अपने
घर पहुँचता है तो उसके चेहरे पर अलग ही खुशी दिखाई दे रही होती है। बेटे की खुशी देखकर
माँ ने उससे पूछा -" बेटे आज तुम बहुत खुश हो ! क्या बात है? आज कोई सवाल नहीं पूछोगे ?"
पूछने पर पता चला कि आज बच्चे ने भगवान के साथ मिलकर वह रोटी खाई जो की माँ ने उसे
टिफ़िन में दी थी और उसने यह भी बताया की भगवान उसकी तरह मासूम दिखते है साथ ही उधर
बूढी औरत भी अपने घर पहुंच कर अपने घर वाले को बताती है कि उसने आज भगवान के
साथ बैठ कर रोटी खाई उसका बेटा यह सुन कर खुश हुआ कि माँ सही सलामत अपने घर
आ गई थी क्योंकि उसका बेटा उसे दो दिनों से ढूंड रहा होता है। दोनों अपने - अपने घर
बहुत खुश थे मनो उन्हें भगवान का दर्शन ही हो गया हभगवान हमें किसी भी रूप में मिल सकते हैं उनका एक रूप नहीं हैं हजारों रूप हैं बस हम
पहचान पाते है कि नहीं यह हम पर निर्भर करता हैं।
वैसे तो भगवान कभी भी अपने बच्चों से ये नहीं कहते कि आप लोग मेरी तलाश करो। भगवान
केवल यही चाहते है कि सभी लोग अच्छे से अपना कर्तव्य करे और जिसके पास जितना है उस
मे खुश और संतुष्ट रहे किसी भी इंसान से अपेक्षा न रखे। कर्म ही सबसे बड़ा फल है। जिस तरह खाना खाने के लिए मुँह चलना पड़ता है उसी तरह जीवन में आगे बढ़ने के लिए कर्तव्य करने
पड़ते हैं।