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अधूरी दास्तान

अधूरी दास्तान

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भीड़ के बीच से एक गोरे चिट्ठे की जूतों की आवाज न चाहते हुए भी भीड़ में उपस्थित सभी लोगों को बड़ी ही साफ साफ सुनाई दे रही थी। भीड़ के बीच से रास्ता बनाते हुए किसी तरह बेचारा प्रखर प्लेटफार्म की तरफ भागा चला जा रहा था, हर बार की तरह इस बार भी पर्याप्त समय होने के बावजूद इसे देर हो गयी थी। अब प्रखर प्लेटफार्म के काफी करीब पहुँच गया था।

ट्रेन की सीटी भी अब उसके कानों को कुरेद रही थी, साँसे ऊपर चढ़ी हुई थीं, धड़कनें राजधानी एक्सप्रेस से भी तेजी से धक-धक कर रही थीं। बहरहाल बेचारा किसी तरह माघ के महीने में भी जेठ वाली गर्मी का पसीना लिए ट्रेन के करीब पहुँच गया।

ट्रेन अब धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म को छोड़ने के करीब पहुँच गई थी। प्रखर ने अपने नामानुकूल बड़ी ही प्रखरता से किसी तरह गॉर्ड के पहले लगे लगभग आखिरी डिब्बे को आखिरकार पकड़ ही लिया। अब जाकर प्रखर ने राहत की साँस ली लेकिन उस बेचारे को क्या पता था कि अभी एक खूबसूरत समस्या उसका उत्सुकता से इन्तजार कर रही थी।

ट्रेन पर चढ़कर लड़के ने बैग को ऊपर वाली सीट पर (सामान रखने वाली जगह) रखा और अपने पैंट की दायीं तरफ की जेब से हाँफ़ते हुए रुमाल निकाला और पसीना पोंछकर सीट की खोज में आगे बढ़ने लगा। छुट्टियों का सीजन होने की वजह से भीड़ भी ठसाठस भरी थी, बमुश्किल निराश मन में आशा की एक किरण का संचार तब हुआ जब एक चार लोगों की सीट पर एक छोटा बच्चा बैठा दिख गया।

प्रखर को लगा यहाँ कुछ जुगाड़ बन सकता है वहाँ बैठे सहयात्रियों से आँखों में विनम्रता तथा सहानुभूति का भाव लिए विनती करने लगा। सहयात्रियों में एक अधेड़ उम्र की महिला भी थी, जो की प्रखर की सज्जनता से भावविह्वल होकर खिड़की की तरफ अपनी शक्ति से अधिक खिसक गयी।

अब जाकर प्रखर ने राहत की साँस ली,अब उसके चेहरे पर मन्द सी मुस्कान बिखर गई, जब उसने सामने बैठी एक कन्या को देखा। हालांकि वह एक सभ्य परिवार का एक शालीन लड़का था उसकी छवि उसके दोस्तों में सख्त लौंडे की थी पर आज लड़का पिघल गया था। आज विज्ञान के उस नियम की यथार्थता शत प्रतिशत सिद्ध हो रही थी जिसमे कहा गया था कि "हर एक पदार्थ का एक निश्चित मेल्टिंग पॉइंट होता है।" आज शायद प्रखर को भी उसकी निगाहों ने मेल्टिंग पॉइंट तक पहुँच दिया।

अब उसने सामने बैठी कन्या पर जब कॉन्सन्ट्रेट किया तो देखा कि वो किसी उपन्यास को पढ़ने में इतनी मशगूल थी कि उसको अपने चेहरे पर आ रहे बालों (लटों, जो बाद में पता चला) को हटाने का भी होश नहीं था। गोराई को साहब ये आलम था कि अगर कस के चेहरे पर उंगलियों से रगड़ भी दे तो लाल हो जाय, निगाहें एकदम समंदर सी गहरी और सबसे खूबसूरत चीज उसके ऊपर के होठों और नाक के बीच के हिस्से में स्थित वो काला तिल। हाय प्रखर के मन मे अब बुद्धत्व का भाव आ रहा था उसे लगा वो तर गया इस जन्म मरण के कुचक्र से।

वो ये सोचते हुए खोया ही था कि बगल में बैठे एक अंकल ने सारी शांति को तोड़ते हुए उसे हिला कर पूछा बेटा कहाँ तक जाओगे ? हालांकि अंकल पर गुस्सा तो अपार आया, क्योंकि अगर अंकल कुछ देर और धैर्य रखते तो शायद प्रखर का पिंडदान भी हो गया होता खैर भारतीय परम्परा का सम्मान करते हुए उसने अंकल से बोला, जी अंकल मुझे दिल्ली जाना है। अब अंकल ने पुनः एक कदम बढ़ते हुए मेरी बढ़ी हुई दाढी को देखकर बोला जॉब तो करते नहीं होंगे, जरूर पढ़ाई करते होंगे,क्या पढ़ रहे हो ?

मैंने सोचा वाह अंकल लड़की के सामने सारा टशन तो खत्म कर दिया अब क्या बताने को रह गया ? लेकिन मन को समेट कर बोला, अंकल तैयारी कर रहा हूँ और अब उनके दूसरे प्रश्न दागने से पहले ही मैंने लपककर बोला दिया, सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा हूँ। अब जाकर कन्या ने मेरी तरफ एक बार निगाहें कीं और इस तरह से मुझे देखा जैसे मानों कि मेरा स्कैन कर रही हो।

इसी बहाने से उसने अपनी लटों को भी उसकी सही जगह पर समेट दिया और उपन्यास लगभग बन्द करके मेरी और अंकल की बातों पर गौर करना शुरू किया। ट्रेन भी इतनी देर में अगले स्टेशन तक पहुँच चुकी थी और मुझे अत्यधिक शारीरिक दौड़-भाग के कारण ज़ोरों की प्यास भी लग गयी थी। मैंने उतरकर पानी की बोतल लेने का निश्चय किया,अभी मैं उतरने के लिए उठा ही था कि उस लड़की ने मुझे पीछे से आवाज दी, सुनिए।

अरे बाप रे, केवल चेहरे पर फिदा मैं (प्रखर) अब आवाज पर तो मन्त्रमुग्ध ही हो गया। उसे आज ऐसा अहसास हो रहा था जैसे वो श्रेया घोषाल को लाइव सुन रहा हो लेकिन वास्तविक पटल पर वापस आ कर अंदर से आत्मतृप्ति के भाव से बोला, जी कहिये। लड़की ने बोला, अगर आप नीचे उतर रहे हो तो मेरे लिए भी एक चिप्स का पैकेट और एक बिसलेरी की बोटल लेते आइये और ये रहे पैसे उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए अपना वाक्य पूरा किया।

प्रखर के अंदर का पुरुषत्व उसे झकझोरने लगे उसे शर्म सी महसूस हुई और उसने अपनत्व और आदेशात्मक भाव से बोला,अरे आप रख लीजिए मैं लाता हूँ। अब लड़की के चेहरे पर भाव बदल गए शायद वह हर मामले में प्रखर से बीस ही थी। उसने बोला, क्यों नहीं लेंगे,आप कौन सा कमाते हैं। तर्क सुन कर लगा कि कह दूँ कि ईश्वर ने आपको "ब्यूटी विथ ब्रेन" का अद्भुत तोहफा दिया है पर अंदर के डर ने जुबान पर हावी होकर उसे खुलने नहीं दिया।

प्रखर ने पहली ही मीटिंग में लड़की से तर्क वितर्क करना उचित नहीं समझा और अनमने मन से पैसे लेकर नीचे की तरफ अपने कदमों को धकेल दिया। नीचे उतर कर भगवान को पहले शुक्रिया बोला फिर एक वेंडर के यहाँ से 2 बिसलेरी की बॉटल और एक चिप्स का पैकेट लेकर फिर से ट्रेन की तरफ चल दिया। एक बॉटल से ढक्कन को निकाल कर पानी पीते हुए, दूसरी बॉटल और चिप्स का पैकेट लड़की की तरफ बढ़ा दिया और खुद सामने की सीट पर फिर से बैठ गया।

लड़की ने पैकेट को भी बड़ी नज़ाकत के साथ खोला जैसे उसमे भी जान हो और ज़्यादा तेज खोलने पर उसे चोट भी लग सकती हो। एक चिप्स खाते हुए उसने मेरी उसे ताड़ती निग़ाहों को पकड़ कर चिप्स का पैकेट मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने मना किया, पर उसके देने में हक़ का भाव था तो मैं आज्ञाकारी लड़का मना न कर सका।

अब तक ट्रेन को चलते हुए काफी रात हो चुकी थी सो सब ने सोने की व्यवस्था को नियोजित करना शुरू कर दिया। वो ऊपर वाली बर्थ पर चली गयी। अब वो भी मुझे उन्हीं चोर निग़ाहों से देखने लगी थी, जिन निग़ाहों से मैं उसे ताड़ रहा था। खैर, सब अपनी व्यवस्था की जगहों पर सो गए और मैंने भी बैठकर ही अपनी आंखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, काफी कोशिश के बाद भी नींदे कोसों दूर थीं, कुछ देर मोबाइल निकाल कर गाने भी सुने पर फिर भी मन में एक उथल-पुथल सी मची थी।

लगभग 2 घण्टे की कड़ी मशक्कत के बाद शारीरिक थकावट ने आराम की आवश्यकता महसूस की और मुझे नींद आ गयी। सपनों मैं गोते लगा ही रहा था कि एक कर्कश और तीव्र आवाज से मेरी आँख खुल गयी। वो आवाज चाय वाले की थी। मैंने अपनी आंखों को भींचते हुए सबसे पहले उसकी सीट की तरफ देखा तो मैं स्तब्ध रह गया। निराशा ने मुझे अंदर से व्यथित कर दिया। काफी पूछताछ के बाद पता चला कि वो तो 5 बजे ही मुरादाबाद में उतर गई। खैर अपने को समेट कर धैर्य के साथ अपने बैग से ब्रश निकालने के लिए चैन खोल ही था कि एक नोट (पर्ची) मिली जो कि सेफ्टी पिन के माध्यम से बैग में नत्थी थी, मैंने जब निकाल कर पढ़ा तो दुख का भाव अपने चरम पर पहुँच गया।

उसमे लिखा था "मैं जानती हूँ कि आप पहली नजर में ही मुझे पसंद करने लगे हैं और मैं भी आप से पहली बार में ही इम्प्रेस हो गयी थी, पर मुझे माफ़ कीजिएगा। हम कभी एक नहीं हो सकते क्योंकि मैं एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार से हूँ और आप एक हिंदू परिवार से (मैंने आपके गले की रुद्राक्ष की माला और हाथों में बंधा रक्षा सूत्र देखा)। इसलिए हम आपस में मेलजोल न बढायें वही हम दोनों के लिए उचित है। बाकी आई लव यू।

बस ये कहानी यहीं तक थी, आज भी प्रखर दिल्ली उसी ट्रेन से जाता है कि शायद वो फिर टकरा जाए पर किस्मत को शायद मंजूर नहीं।

बस इतनी सी थी ये दास्तान...


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