सपनों का घर
सपनों का घर
नेपाल के पहाड़ी इलाक़े में एक गाँव था। उस गाँव के पास ही एक छोटी-सी पहाड़ी थी। पहाड़ी का ऊपरी हिस्सा समतल था, लेकिन पहाड़ी पर चढ़ने के लिए पगडण्डी को छोड़कर कोई सही रास्ता नहीं था। गाँव के कई लोग सुबह शाम टहलने के लिए पहाड़ी पर जाते थे। उस पहाड़ी से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा अध्भुत नजर आता था। और सभी लोगों का सपना था कि काश ! इस पहाड़ी पर हमारा घर होता। लेकिन घर बनाने का सामान ले जाने की सुविधा नहीं होने के कारण वहां घर बनाना बहुत ही मुश्किल था।
उसी गाँव में एक बूढ़ा आदमी रहता था। वह बूढ़ा आदमी भी टहलने के लिए सुबह शाम पहाड़ी पर जाता था और हमेशा ही पहाड़ी पर जाते हुए अपने हाथो में कभी ईंटे तो कभी कुछ और घर बनाने का सामान ले जाता था। सभी लोग उसे देखकर हँसते थे कि क्या यह थोड़ा-थोड़ा सामान ले जाकर कभी पहाड़ी पर अपना घर बना पाएगा ? लेकिन वह बूढ़ा बिना किसी की बातें सुने रोज सुबह शाम अपना काम करता था । और साथ ही उसने उसके घर वालों को भी कह दिया था कि जो भी पहाड़ी पर जाएं अपने साथ कुछ न कुछ सामान जरूर लेकर जाएं। घर के सदस्य भी मुखिया की बात कैसे टालते वह भी अपने साथ कुछ न कुछ सामान रोज लेकर जाते।
इस तरह कुछ महीनों में उस पहाड़ी पर इतना सामान इक्कट्ठा हो चूका था कि वहां एक अच्छा सा घर बन जाए। उस बूढ़े आदमी में उस सामान से वहां एक प्यारा सा घर वहां बना लिया और खुद वहां रहने लगा। अब जब भी गाँव वाले उस पहाड़ी पर जाते उस घर को देख कर उसकी तारीफ़ करते और सोंचते काश ! हम भी अपना सपना पूरा करने के लिए धीर-धीरे सामान इक्कट्ठा करते तो आज यहाँ हमारा भी सुन्दर घर होता।