कल्पना
कल्पना
रिमझिम हल्की हल्की बूंदे
धरा आँगन में लगी बरसने
चारों ओर सूरज की लालिमा
बिखऱ गई ै
पंछियों के कलरव से मादक सा
संगीत लगा उभरने
चौतरफा हरियाली छा गई
जग ने जैसे सौंदर्य की चादर
ओढ़ ली
वन उपवन सब पनप गए
फूलों की खुशबु आई
हर ओर मादकता छाई
ऐसे उन्मुक्त मौसम में
मन जैसे भटक गया...
कल्पना कर उठा चंचल मन
एक प्यारी तितली बन जाऊ
फूल फूल पर में तो यूँ मंडराऊं
सुंदर सी में सब को ही ललचाऊँ
अपने भाग्य पर में तो इठलाऊँ
हवाओं के संग में भी बल खाऊँ
थोडा सा चल में भी तो इतराउँ
एक नन्ही प्यारी तितली बन जाउँ