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Rohit Verma

Abstract Others

5.0  

Rohit Verma

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स्त्री

स्त्री

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स्त्री की चंचलता की बात करते है स्त्री होना असान बात नहीं क्योंकि बेटी बनने से लेकर और मां बनने तक ये धर्म बखूबी रूप से एक स्त्री ही निभा सकती है आज समाज में स्त्री को उच्च दर्जा मिला है स्त्री की शक्ति मिलकर एक साथ कार्य करती है तो ये नायिका बन जाती है .स्त्री को काफी मानसिक उत्ताव - चढ़ाव का सामना करना पड़ता है स्त्री अगर संघर्ष करती है तो वह सफलता के मार्ग तक पहुंच जाती है स्त्री को दुःख तब नहीं होता जब साथ देने वाला कोई नहीं तब होता है जब साथ निभाने वाला कोई नहीं।

वर्तमान समय में हमने कई प्रकार के स्त्री अत्याचार के बारे में सुना होगा।

स्त्री ने आज संसार में नई प्रकार की छवि बनाई है हर कोई स्त्री प्रेम चाहता है स्त्री प्रेम फूल की तरह खूबसरत है बस केवल इसको देखने की जरूरत है स्त्री को सब पाने में ही लगे हुए है स्त्री नहीं न हम और न ही तुम।

आज जो संसार में सुख भोग रहे है वह स्त्री की ही एक देन है स्त्री और पुरूष का उत्तेजित भाव मनुष्य को नष्ट कर देता है मां जो अपने बच्चे को किस प्रकार अपने गर्भ में रखती है वह हम नहीं समझ सकते .

स्त्री की खूबसूरती ही पुरुष लोगो को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है आदमी के दुख में साथ स्त्री।

पुरूष दिल और स्त्री दिल अलग- अलग रूप से कार्य करते है क्योंकि ये दोनों ही अलग है. लेकिन आज भी बाहरी दुनिया की बनावट में स्त्री की कई प्रकार के मानसिक बदलाव देखने को मिलते है .आज भी कई घरों में लड़की और स्त्री को उच्च दर्जा नहीं मिल पाता लेकिन वह पूरे घर को ढाल कर चलती है स्त्री आपको अच्छा मार्गदर्शन और बुरा मार्गदर्शन दोनों ही दिखा सकती है।

आज भी कहीं घरों में आर्थिक बोझ उठा कर चल रही है

स्त्री प्रेम से पुरुष नाकामी और कामयाबी दोनों ही देख सकता है।

आज हम बाहरी पहनावे में ज़्यादा ही आकर्षित होने लगे है लेकिन हम अपने संसार के पहनावे को भूलने लगे है।

स्त्री के प्रेम भाव को समझना है तो स्त्री को आंतरिक रूप से समझना होगा।

धर्म के उत्ताव - चढ़ाव ,गरीब स्थिति स्त्री की खुशी कमजोर कर देता है।

पुरुष स्त्री का तन देखता है और स्त्री पुरुष का प्रेम देखती है।

स्त्री को अपने नाजुक भाव से निकलना होगा और मनुष्य भाव में आना होगा ताकि बराबर की ज़िंदगी जीने का हक मिल सके।

स्त्री के चक्कर में पुरुष मानसिक दबाव का सामना कर रहा है वह समाज के साथ चलने में असमर्थन हैं।

स्त्री प्रेम हर कोई चाहता है लेकिन स्त्री क्या चाहती है ये कोई नहीं जानता है।

स्त्री को बस थोड़े से पंख देने की जरूरत है जिससे वह समाज में थोड़ा - सा उड़ सके।

मजबूरी की आग में तन के बाजार में खड़ी हो जाती है वह स्त्री कहलाती है, कितनों ने खिलौना समझा, कितनो ने कतपुतली समझा पर स्त्री प्रेम कोई नहीं समझा।

स्त्री दुर्गा रूप भी होती है मुसीबत के समय वह दुर्गा रूप धारण कर लेती है स्त्री के भी कुछ सपने होते है लेकिन वह अपने सपने को त्याग देती है स्त्री पहले अपने घर की बिटियाँ होती है और बाद में वह पराये घर की सदस्य बन जाती है उसको डर रहता है कि वह किस तरह परिस्थितियो को सभालेगी लेकिन वह कर्तव्यपूर्वक इस कार्य को कर लेती है।

स्त्री हर किसी की खुशी को देखकर चलती है कि कोई उसकी वजह से परेशान तो नहीं और खुद की खुशी बिल्कुल भूल ही जाती है।

स्त्री सपने तो देखती है लेकिन उसके सपने को बिल्कुल कुचल दिया जाता है स्त्री भावुक होती है और डर का अभाव उसमे भी रहता है स्त्री से प्रेम करो क्योंकि वह प्रेम की मूरत है.

स्त्री माटी की मूरत है जिसे हर कोई तोड़ने की कोशिश कर रहा है पुरुष घर का मुखिया होता है आधा हक स्त्री का भी होता है स्त्री अकेले भी लड़ना जानती है क्योंकि वह समाज में चलना सीख जाती है हम पुरुषों को स्त्रियों से सीखना चाहिए और सीख लेनी चाहिए।

स्त्री को हमेशा अपनी इज्जत का डर रहता है क्योंकि वह उछल ना जाए।

स्त्री बिना ये समाज नहीं .हर पुरुष की कामयाबी के पीछे स्त्री को उच्च दर्जा मिला है.

स्त्री एक बर्फ की तरह है और पुरुष एक आग की तरह अगर ये दोनों मिल जाए तो पुरुष का ज्वाला रूप ठंडा हो सकता है।

स्त्री को कुछ लोग गलत भी समझते है और अच्छा भी समझते है क्योंकि हर प्रकार की स्त्रियाँ इस समाज में रहती है ।

कम शिक्षा ही स्त्री का सबसे कमजोर भाग रहा है उच्च शिक्षा ही धन का मार्ग है . जिस घर में स्त्रियों का आदर करना सिखाया जाता है वह घर कहलाता है न तो स्वर्ग जैसा घर नर्क बनने में देर नहीं लगती ।

स्त्री का दिल जीतना इतना असान नहीं कुछ संभाव भी शामिल होते है स्त्री एक नशा भी है जीतना चढ़ जाए वह उतर नहीं पाता।

स्त्री और पुरूष दोनों ही कितने प्रेम जाल में आ जाते है पता भी नहीं चलता अगर आपको स्त्री प्रेम चाहिए तो थोड़ा समय निकाल कर इनको समझना चाहिए।

लेकिन जिस पुरुष का अगर एक स्त्री पर दिल सा जाए तो वह पूर्ण रूप से भुला नहीं पाता और आगे बढ़ने में सक्षम नहीं होता.लेकिन अगर स्त्री को अगर किसी एक पुरुष पर दिल आ जाए तो वह भुलाने के लिए दिल पर पत्थर रख कर आगे बढ़ती है ।

स्त्री सुख और दुःख दोनों ही कर्तव्य रूप से चलती है क्योंकि उसके परिवार का बोझ होता है . जो स्त्री समय होते हुए भी अपनों के लिए समय निकलती है वह स्त्री हथोड़े समान होती है ।

अब यह समय आ चुका है जब स्त्री को पुरुष के बराबर चलने की जरूरत है वह सब कार्य जो पुरुष करते है वह स्त्री भी कर सके।


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