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आखिर किसका कुसूर ?

आखिर किसका कुसूर ?

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पुष्प सुबह-सुबह बनारस की ट्रैन से लखनऊ के लिए रवाना हुआ, मगर दिल तो अब भी उसका बेचैन था।खिड़की पर बैठा बस वो जल्द से जल्द लखनऊ पहुँच जाना चाहता था। बस चलता वो उड़कर पहुँच जाता अपनी धनक के पास, उससे माफी माँगने, उसको वापस अपने साथ ले जाने के लिए।

"मैं आ रहा हूँ धनक तुम्हारे पास, अपनी सभी गलतियों का पश्चाताप करने, मुझे यकीन है कि तुम अपने पुष्प को माफ कर दोगी। हाँ थोड़ा सा नखरा, थोड़ा गुस्सा दिखाओगी। हो सकता है मुझसे अपना मुँह भी फेर लो, लेकिन तुम मुझे माफ जरुर कर दोगी।" इतना सोचते ही मन ही मन मुस्कुराता हुआ उसने अपनी आँखें बंद कर ली।

"धनक....देखो धनक तुम ऐसे मुझे तड़पा नहीं सकती, मैं नाराज हो जाऊँगा और फिर लाख मनाने पर भी नहीं मानूँगा।

ठीक है तो तुम कोई जवाब नहीं दोगी ! है ना, हम्म... ओके ! धनक मैं जा रहा हूँ और फिर वापस कभी लौट के नहीं आऊँगा।"

"नहीं पुष्प तुम मुझे छोड़कर मत जाओ, मैं कभी तुम्हारे साथ ऐसा मजाक नहीं करूँगी।" धनक ने पुष्प को पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए कहा कि तभी पुष्प नें अपना झूठा गुस्सा दिखाते हुए उससे अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

फिर धनक ने भी अपनी पकड़ को और मजबूत करते हुए पुष्प से बोली, "मैं नहीं रह पाऊँगी तुम्हारे बिना, प्लीज मुझे छोड़कर मत जाओ पुष्प ! आई लव यू पुष्प, आई रियली रियली लव यू।" फिर दोनों नें कसकर एक-दूसरे को अपनी बाँहों में भर लिया।

जहाँ एक ओर पुष्प और धनक एक-दूसरे के प्यार में ऐसे खोये थे कि ना उन्हें खुद का होश था और ना समय का; कि एकाएक फोन की रिंगटोन बजने लगी- "नैनों की जो बात नैना जाने है, सपनों के रास्तों रहना जाने है,

नैनों की जो बात नैना जाने है।"

कि अचानक धनक का ध्यान उसके फोन पर बजने वाले रिंगटोन पर गया। फिर धनक नें जल्दी से खुद को पुष्प की बाँहों से छुड़ाया और फोन उठाकर एक तरफ कोने में जाकर बात करने लगी। पुष्प को भी दूर खड़ी धनक की बातों से बात गंभीर होने का एहसास हो रहा था लेकिन जब धनक वापस आयी तो उसने पुष्प से कहा कि "घर से फोन आया है, पापा ने अर्जेंटली बुलाया है, मुझे जाना होगा।"

मगर पुष्प ने भी बात की गंभीरता को नजर अंदाज करते हुए धनक की बाँहों में अपनी बाँहों का हार डाल दिया। पर क्यों ? मतलब हम अभी-अभी तो मिले हैं, अभी तो प्यार का परवान भी अपने चरम पर नहीं पहुँचा और तुम जा रही हो। प्लीज थोड़ी देर और रुक जाओ।" पुष्प ने एक झटके से धनक को अपनी ओर खींचा।

प्लीज पुष्प बात की गंभीरता को समझो, पापा नें अर्जेंटली बुलाया है और पापा कभी इस तरह फोन करके मुझे नहीं बुलाते। कुछ बात तो होगी ना पुष्प, वरना रुक सकती तो रूक जाती, धनक ने दोबारा अपने आपको छुड़ाते हुए कहा।

"अभी ना जाओ छोड़कर कर दिल अभी भरा नहीं, अभी ना जाओ छोड़कर कर दिल अभी भरा नहीं।"

फिर पुष्प नें गाते हुए धनक का हाथ पकड़कर उसे नचाने लगा। "प्लीज पुष्प समझो ना, मैं कल जल्दी आ जाऊँगी।" कहते हुए धनक ने जल्दी से खुद को छुड़ाया और सामान लेकर अपने घर की ओर चल दी।

जब धनक घर पहुँची तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। धनक के घर पर कुछ लोग आए थे और साथ में उसके माँ-पापा उनके आवभगत करने में जुटे थे कि तभी उनमें से कोई महिला उठकर आई और धनक के सिर पर उसका डुपट्टा डालकर अपने साथ सबके बीच में ले गई। धनक को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि चल क्या रहा है। वो पूरे माहौल को समझने में लगी थी कि तभी उस महिला की आवाज ने धनक का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट किया।

"देखिए भाई साहब, हमें तो पहले से ही आपकी बेटी पसंद थी, आपकी बेटी के बारे में बहुत सुना था, बस एक बार धनक को देखने की इच्छा थी और आज देख भी लिया। तो भाईसाहब बस आप यूँ समझिए कि बात हमारी तरफ से पक्की।

धनक को अब भी कुछ समझ नहीं आ रहा था, या समझना वो चाहती ही नहीं थी। बस उसकी आँखों के सामने सिर्फ एक ही चेहरा घूम रहा था और वो था पुष्प का, धनक पुष्प से बेइंतहा प्यार करती थी, बस उसको खोने से अब डरने लगी थी कि तभी धनक का ध्यान, धनक के पापा ने खींचा। वो उस महिला से बोले कि काश आप अपने बेटे को भी ले आती तो दोनों बच्चे एक-दूसरे से मिल लेते, एक-दूसरे को जान और समझ लेते।

अब धनक की अपने पापा की बातें सुनकर ऐसी हालत हो गई कि "काटो तो खून नहीं" सारा खून उसका सूख गया था, चेहरा पीला पड़ने लगा। डर के मारे उससे वहाँ से उठा भी नहीं जा रहा था। बस उसके दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि वो पुष्प को क्या कहेगी ? कि तभी धनक उस महिला की बात सुन अपने उधेड़बुन सवालों से बाहर आई।

"देखिए भाईसाहब, मेरा बेटा हमारे साथ नहीं बल्कि विदेश में रहता है, तो हमने सोचा पहले हम मिलकर तसल्ली कर ले फिर उसे भी आपसे मिलवा देंगे।"

"मगर फिर भी उसका नाम और उसकी फोटो ही सही मिल जाता तो हम भी थोड़ा सहज हो जाते।" धनक की माँ ने उस महिला की बात पर कहा।

"जी बहन जी, मैं फोटो तो जरूर दिखाती, लेकिन मैं चाहती हूँ कि आप सब उसे सामने से देखे तो सही रहेगा। वैसे मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि उसका नाम विश्व है। वैसे तो विश्वजीत है, पर हम सभी उसे विश्व नाम से बुलाते हैं।"

धनक बिना कुछ बोले वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली जाती है और पुष्प की तस्वीर देखकर रोने लगती है।

"पुष्प लगता है मैं तुम्हें खो दूँगी, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती, तो मैं किसी और से शादी कर सकती हूँ। मैंने तो हमेशा से ही तुम्हारी दूल्हन बनने का सपना संजोए हैं। फिर मैं कैसे....? किसी और की दूल्हन बन जाऊँ।" इतना कहते ही धनक तकिये से मुँह दबाकर जोर-जोर से रोने लगी कि तभी धनक का फोन बज उठता है।

"नैनों की जो बात नैना जाने है

सपनों के रास्तों रहना जाने है।"

जब धनक ने फोन उठाकर देखा तो उसके फोन पर पुष्प का नंबर फ्लैश हो रहा था, जिसे देखकर धनक के हाथ-पैर सुन्न हो गये। उसने जल्दी से फोन काट दिया, तभी पुष्प ने दोबारा धनक को फोन लगाया, लेकिन इस बार भी फोन काट दिया। पुष्प के तीसरी बार फोन मिलाने पर और धनक ने फोन तीसरी बार काटने के बाद, धनक ने फोन बंद कर दिया, और फिर तकिया के ऊपर अपना मुँह दबाकर लेट गयी।

उसके कुछ देर बाद धनक के कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई। धनक की माँ उसे खाना खाने के बुलाने आई थी मगर धनक ने बिना दरवाजा खोले बोल दिया कि "माँ मुझे अभी भूख नहीं है। बाद में जब भूख लगेगी तब खुद लेकर खालूँगी।" और फिर से पुष्प की तस्वीर के साथ रोते-रोते सो गई।

अगले दिन जब धनक ने दरवाजा खोला तो देखा घर में काफी चहल-पहल थी। फिर माँ को खोजते हुए रसोई में पहुँची, तो धनक की माँ पकवान बनाने में व्यस्त थी। सौंधी-सौंधी खाने की खुशबू धनक को अपनी ओर खींच रही थी। सब कुछ उसकी पसंद का बना था। जब धनक ने माँ से पूछा कि "माँ ये सब क्या चल रहा है ?" तो उसकी माँ ने कहा- "बेटा तुम्हारी दीदी और जीजा जी आ रहे हैं, और साथ ही एक खुशखबरी लेकर..."

"खुशखबरी ! कैसी खुशखबरी....? माँ।" धनक नें चौंकते हुए पूछा क्योंकि उसे डर था कि कहीं उसका रिश्ता तो नहीं पक्का हो गया, क्योंकि ये रिश्ता तो उसकी दीदी और जीजा जी के जान पहचान वालों ने उन लड़के वालों को बताया था।

"अरे हाँ रे ! बहुत ही बड़ी खुशखबरी है, और ऐसी खुशखबरी अगर तुम सुनोगी तो तुम भी खुशी से नाचने लगोगी।"

अब तो धनक को पक्का विश्वास हो गया कि बात तो उससे ही जुड़ी है और या फिर हो सकता है कि सच में कहीं उसकी शादी की बात....

धनक अपने विचारों की मझधार में उलझी फँसी पड़ी थी कि तभी उसकी माँ ने धनक के मुँह में मिठाई का एक टुकड़ा खिलाते हुए कहा- "बधाई हो गुड़िया रानी, तू मासी बनने वाली है।" जिसे सुनकर धनक एकदम से चौंक उठी। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि अभी-अभी माँ ने जो कहा है उसने सही सुना है...

तो धनक ने अपनी माँ से फिर से पूछा- "एक बार जरा फिर से कहना माँ ! क्या कहा अभी आपने।"

"धनक तू मासी और मैं नानी बनने वाली हूँ।" धनक की माँ ने उसे सीने से लगाते हुए कहा।

"माँ मतलब गीतू दीदी माँ बनने वाली हैं और मैं मासी ! अरे वाह.. मतलब मेरा प्रमोशन हो गया।" धनक ने नाचते हुए कहा।

"देखा मैंने कहा था ना, तू जब ये खबर सुनेगी तो खुशी से नाचने लगेगी, अच्छा अब ये बता कि तुझे आज कॉलेज नहीं जाना क्या ?" धनक की माँ उसके कान पकड़कर कहा, "जा जल्दी से तैयार हो जा और हाँ आज जल्दी घर आ जाना।"

'अच्छा माँ अब कान तो छोड़ो तभी तो जाऊँगी, और हाँ मै पक्का जल्दी घर आ जाऊँगी। दीदी आ रही हैं तो उनके स्वागत की तैयारियाँ भी तो करनी हैं।"

धनक अपनी दीदी की खुशी में इतनी पागल हो गई कि वो अपने दर्द के बारे में भूल ही गई। ये तक भी भूल गई कि उसका फोन अब तक बंद है और उसनें अभी तक पुष्प से एक बार भी बात नहीं की है।

धनक जल्दी से कॉलेज पहुँची तो सबसे पहले पुष्प को खोजने लगी, ताकी वो उसे अपनी मासी बनने की खबर सुना सके, लेकिन जब धनक, पुष्प को खोजते हुए क्लासरूम में पहुँची तो पुष्प गुस्से में भरा बैठा था। जब उसने धनक को आते हुए देखा तो वहाँ से उठकर क्लासरूम के बाहर चला गया। पुष्प का ऐसा बर्ताव धनक को खल सा गया और उसे कल की सारी बात याद दिला गई। जिसके कारण उसकी सारी खुशी चकनाचूर हो गई। फिर तुरंत ही भागकर पुष्प के पास जा पहुँची जहाँ वो दोनों अकसर छुप-छुपकर मिलते थे। धनक ने दौड़कर पुष्प को पीछे से पकड़कर उसे अपनी बाहों में भर लिया लेकिन पुष्प अब भी गुस्से के गुबार से भरा हुआ था, जो निकलने को आतुर था। उसने झटके से खुद को छुड़ाया और दूर जा खड़ा हुआ। धनक ने अपने कान पकड़े और मासूम सा चेहरा बनाकर उसके सामने खड़ी हो गई मगर पुष्प अब भी गुस्से की आग में जल रहा था। उसने धनक को बिना देखे ही दूसरी तरफ अपना रूख कर लिया।

धनक ने फिर बोलना शुरू किया- "पुष्प पहले तो कल के लिए सॉरी। मैंने तुम्हारा फोन नहीं उठाया, बार-बार काटती रही और फिर...."

"लेकिन तुम ये भी तो सोचो कि कोई बात होगी ना, तभी तो ऐसा किया ना..."

"क्या बात है बोलो, ऐसी क्या बात हो गई कि तुमने मेरा फोन भी उठाना जरूरी नहीं समझा और तो और फोन काटकर फोन ही बंद कर दिया, क्यों बोलो ?" पुष्प नें उस पर गरजते हुए एक साथ सारा गुबार निकाल दिया।

पुष्प मेरे यहाँ से जाने के बाद, जब मैं घर पहुँचीं तो... मेरे घर पर कुछ लोग आए थे और घर पर हुई सारी बात उसने रोते हुए पुष्प को सुना दी। एक पल के पुष्प सब सुनकर सुन्न रह गया और फिर दूसरे ही पल थोड़ा संभलने के बाद उससे बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया।

धनक ने घर आने के बाद पुष्प को बहुत बार फोन लगाया मगर पुष्प ने हर बार फोन काट दिया और ये पुष्प और धनक की कॉलेज में आखिरी मुलाकात थी।

फिर ट्रेन के हार्न से पुष्प की आँख खुल गई, ट्रेन लखनऊ स्टेशन पर खड़ी थी। पुष्प बहुत खुश था बस उसने बैग उठाते हुए इतना ही कहा धनक मैं आ रहा हूँ तुम्हारे पास और बैग लेकर ट्रेन से नीचे उतर गया।

पुष्प ट्रेन से नीचे उतरकर धनक के घर जाने के लिए रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी एक ऑटों में धनक के घर का पता बताकर बैठ गया। पुष्प बड़ा ही बेसब्र हो रहा था, धनक से मिलने के लिए, उसे अपनी बाँहों में भरने के लिए, इसलिए वो बार-बार ऑटो वाले को झकझोर रहा था, ऑटो तेज चलाने के लिए।

"सुनो जरा तेजी से चलाओ ऑटो, मुझे कहीं पर जल्दी पहुँचना है, किसी से मिलना है, जरा तेज चलाओ ऑटो, चाहो तो उसके लिए थोड़े ज्यादा पैसे ले लेना।"

ऑटो वाले ने भी पुष्प की बेताबी भाँपकर उस पर तंज कसा, "क्यों भाई ऐसी भी क्या बेताबी; कि आपसे इंतजार भी नहीं हो रहा। कौनों गर्लफ्रैंड का चक्कर है..?"

"तुमसे मतलब, तुम अपना काम करो समझे ! और बस तेजी से ऑटो चलाओ।"

कुछ ही देर में पुष्प धनक के घर के बाहर पहुँच गया था और पुष्प ऑटो ही में बैठे-बैठे अपनी कल्पनाओं में लगा हुआ था। "मैं (धनक) तुम्हारे घर पहुँचते ही तुम्हें कसकर अपने गले से लगा लूँगा, तुम्हें इतना प्यार दूँगा कि तुम सब कुछ भूलकर मुझे माफ कर दोगी।"

पुष्प अपने ही ख्यालों में ऐसा गुम था कि उसे ऑटो वाले की आवाज भी उस तक नहीं पहुँच रही थी कि तभी उसे ऑटो वाले नें जोर से झकझोरा तो वो अपने ख्यालों से बाहर आया। पुष्प, धनक के घर के बाहर खड़ा था, और वो वहाँ की हवाओं में अपनी धनक की मौजूदगी को महसूस कर रहा था और कल्पना कर रहा था कि जब वो उसके सामने होगा, तो कैसे रिएक्ट करेगा। झट से उसे अपनी बाहों में भर लूँगा या फिर उसके सामने घुटने के बल बैठकर अपने कान पकड़ लूँगा।

"लेकिन अगर तुम ना हुई तो... या फिर तुमने नहीं तुम्हारे माँ या पापा में से किसी ने खोला तो...तो क्या कहूँगा मैं उनसे, कैसे फेस करूँगा उनको; कितना गुस्सा होंगे वो मुझसे !, मैंने क्या कुछ नहीं किया था तुम्हारे साथ...कितना परेशान किया था तुमको, कितना जलील किया था तुम्हें, क्या कुछ नहीं कहा, तुम्हें चरित्रहीन की पदवी तक दे डाली।

उस वक्त मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं तुमको जानता ही नहीं और फिर अपने घर वालों के बहकावे में आकर तुम्हें जलील करते हुए अपने घर से निकाल दिया। ये भी नहीं सोचा कि तुम मेरे बच्चे की माँ बनने वाली हो, फिर भी तुम पर दया नहीं आई मुझको, कितना बेगैरत कैसे हो गया था मैं ! और आज उसी गलती की माफी माँगने के लिए तुम्हारे घर के दरवाजे पर खड़ा हूँ। तुम्हें और अपनी बच्ची को अपने साथ ले जाने।"

मुझे आज भी याद है वो कॉलेज का दिन, जब तुमने मुझे ये बताया कि तुम्हारी शादी पक्की हो गई है और फिर मैं वहाँ से बिना कुछ बोले चला आया। तुम्हारी पूरी बात भी नहीं सुनी थी।

बहुत गुस्से में था, तुम पर नहीं अपने-आप पर; क्योंकि जब तुम मुझसे कहती कि चलो मैं तुम्हें अपने घर पर सबसे मिलवाती हूँ और अपने रिश्ते के बारे में बता दूँगी लेकिन हर बार मना करता रहा, कि अभी नहीं, बाद में; क्योंकि डरता था कि कहीं तुम्हारे पापा हमारे रिश्ते की सच्चाई जानकर मना न कर दें इसलिए टालता रहा कि जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँगा तब खुद आकर तुम्हारे पापा से तुम्हारा हाथ माँगूगा और अगर मना कर देंगे तो भगाकर ले जाऊँगा तुम्हें अपनी दूल्हन बनाने।

लेकिन जब तुमने मुझे बताया कि कल तुम्हारा रिश्ता पक्का हो गया है तो मै बहुत डर गया था कि कहीं तुमको खो न दूँ।

लेकिन जब तुम मुझे बार-बार फोन मिला रही थी तो मैं ये सोचकर काटता रहा कि क्या कहूँ मैं तुमसे, क्या बात करूँ. पहले सोचा कि तुमको कह दूँ कि चलो भाग चलते हैं फिर सोचा कि नहीं... मैं तुमको लेकर कैसे भाग सकता हूँ और कहाँ तुमको लेकर जाऊँगा। फिर सोचा तुमसे कुछ कहने से पहले माँ से बात कर लूँ। ये सोचकर मैं माँ से बात करने गया तो माँ ने ये कहकर मना कर दिया कि तुमसे पहले तुम्हारे बड़े भाई की शादी होगी, फिर तुम्हारी। फिर तुम जिसे पसंद करते हो मिलवा देना उसको मुझसे। मुझे पसंद आ गई तो तुम्हारी बात बन जाएगी लेकिन तब तक के लिए तुम चुप रहोगे। मैं बहुत खुश था कि कम से कम माँ मानी तो...

लेकिन फिर तभी तुमने मैसेज में बताया कि तीन दिन बाद तुम्हें लड़के वाले देखने आ रहे हैं और यहाँ पर कल भैया विदेश से वापिस लौट रहे थे क्योंकि माँ ने बताया था कि भैया की भी शादी तय हो गई है और भैया के लौटने के बाद ही उस लड़की को देखने हम सबको जाना है।

एक तरफ मेरा तुम्हारे बारे में सोच-सोचकर बुरा हाल हुआ जा रहा था तो दूसरी ओर घर में एक नयी खुशियाँ दस्तक दे रही थीं पर पता नहीं क्यों एक डर बैठ गया था मेरे मन में तुमको खो देना का धनक ! क्योंकि जिस दिन तुमको लड़के वाले देखने आ रहे थे उसी दिन मुझे भी भैया और माँ के साथ उस लड़की को देखने जाना था

और लाख चाहकर भी अपने घरवालों को मना नहीं कर पाया कि मुझे नहीं जाना है और तुम्हें भूल जाने का मन पक्का कर लिया पर किस्मत में क्या लिखा है किसे पता ?

मैं, भाई और माँ के साथ तुम्हारे घर के बाहर हक्का बक्का सा खड़ा था, क्यों ? "मैं ये नहीं सोच पाया कि तुम्हारे घर भी उसी दिन लड़के वालों का आना जिस दिन ही हमें किसी लड़की वालों के घर जाना दोनों ही कड़ियाँ आपस में एक दूसरे से कहीं न कहीं जुड़ी हैं, ये मैं क्यों नहीं समझ पाया, कि जिस दिन तुम्हारा रिश्ता पक्का हुआ उसी दिन भैया का भी...

उफ्फ...मैंने ये क्यों नहीं सोचा कि माँ नें जिस लड़की को भैया के लिए पसंद किया है कहीं वो मेरी पसंद तो नहीं !"

कुछ ही पल में हम तीनों तुम्हारे घर में, तुम्हारे सामने बैठे थे. और तुम भी मुझे उन सबके साथ में देखकर हतप्रभ थी और शायद तुमने मुझे दोषी भी मान लिया था कि शायद...

माँ नें जब उनसे हम दोनों का परिचय कराया तब मैं अपनी कशमकश से बाहर आया।

" भाईसाहब ! ये है विश्व.. विश्वजीत मेरा बड़ा बेटा और ये पुष्प... पुष्पेंद्र, विश्व का छोटा भाई और मेरा सबसे छोटा और लाडला बेटा।

तभी मैंने भैया की ओर चोर नजरों से देखा, वो भी तुम्हें चोर निगाहों से देख रहे थे और उनकी नजरें भी साफ-साफ कह रही थी कि वो भी तुम्हें मन ही मन पसंद करने लगे हैं।

और तुम भी मुझे शिकायती नजरों से देख रही थी कि जैसे अभी अपना सारा गुस्सा निकाल दोगी और मैं भी यही चाहता था कि तुम अपना सारा गुस्सा निकाल दो. मगर तुम भी चुप रही और मैं भी... और हम दोनों ही एक दूसरे को देखकर भी अनदेखा कर रहे थे। धनक तुम उस दिन गजब की खूबसूरत लग रही थी। ऐसा लग रहा कि मानो अप्सरा जमीन पर उतर आई हो। तुमने भी मेरी पंसदीदा रंग की साड़ी पहनी थी मगर मैं भी क्या करता, तुमको देखकर भी तुम्हारी खूबसूरती की तारीफ नहीं कर सकता था।

फिर अगले हफ्ते की तारीख में ही सगाई और फिर शादी तय हो गई, क्योंकि भैया को वापिस भी लौटना था। उसके बाद हम लोग घर आ गये लेकिन मैंने भी तुमसे कई दिनों तक बात भी नहीं की और देखते ही देखते सगाई का दिन भी आ गया।

अब मुझसे और चुप नहीं रहा जा रहा था, लेकिन तुम चुप थी ये सोचकर मैं भी चुप रह गया।

मगर जब तुमने भैया से सगाई करने से इंकार कर दिया और ये बताया कि तुम मुझसे प्यार करती हो तो सच बताऊँ मेरी आँखें चमक उठी थीं और दौड़कर मैं तुम्हें अपनी बाँहों में भर लेना चाहता था मगर हमारे रिश्ते का सच जानकर उन सबकी खुशियाँ गुस्से में बदल गई और मैं भी मजबूर हो घर वापिस आ गया।

लेकिन हम दोनों ही जानते थे कि हम दोनों एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं इसलिए हमने भागकर मंदिर में शादी कर ली। फिर मै तुम्हें अपने साथ घर ले आया लेकिन माँ और भाई ने तुम्हें अपना न सके। रोज तुम पर इल्जाम लगाए जाते कि तुम मेरे बड़े भैया में इंट्रेस्टेड हो। पहले तो मैं भी यकीन नहीं करता, मगर फिर जो इन्होने मुझे अपनी नजरों से जो दिखाया तो मैं भी उनकी ही नजरों से तुम्हें परखने लगा और जैसा-जैसा दिखाते गये मैं देखता चला गया।

तुम्हारी एक नहीं सुनी, तुम्हारा पक्ष सुनने की भी कोशिश नहीं की, बहुत समझाया तुमने, मगर मैं अपने परिवार के बहकावे में आ चुका था इसलिए तुम्हारा पक्ष नहीं सुन सका और तुम्हें जलील करने लगा, एक दिन तो तुम पर हाथ भी उठा दिया था, मगर फिर भी तुम सब सहती रही, हमारे प्यार के लिए। धनक उस समय तुम्हारा कोई कुसूर नहीं था, बल्कि असली कुसूरवार तो मैं था जिसने अपनी ही धनक पर विश्वास नहीं किया। अपनी धनक पर इल्जाम लगाए कि तुम चरित्रहीन हो। उस धनक को कहा मैनें जिससे मैं बेइंतहा प्यार करता हूँ।

मगर अब जो हुआ सो हुआ, मैं तुम्हें मनाकर एक नये सिरे से एक नयी जिंदगी की शुरूआत करूँगा। हम फिर से अपना एक नया बसेरा बसाएँगे। मैं फिर से तुम्हारा दिल जीतकर अपने प्रति विश्वास तुम्हारे दिल में जगाऊँगा, ये मेरा वादा है तुमसे ! और देखो आज मैं तुम्हारे घर के बाहर खड़ा हूँ।

फिर पुष्प नें अपनी आँखों से बहते अश्रु पोछे और चल पड़ा अपनी धनक को मनाने। पुष्प, धनक के दरवाजे की घंटी बजाने वाला ही था कि तभी धनक ने दरवाजा खोल दिया। एक पल के लिए दोनों ही बस खामोश रहे। जैसे दोनों की आँखें बोल रही हों, आपस में बात कर रही हों, एक दूसरे से मिलने के लिए तड़प रही हों। जैसे कह रही हों, "हाँ पुष्प अच्छा हुआ तुम आ गये, मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थी. रोज मैं इसी वक्त ऐसे ही दरवाजा खोलकर तुम्हारा इंतजार करती थी कि आज तुम आओगे अपनी धनक के पास, कि आज तुम आओगे अपनी धनक को मनाने, आज आओगे मुझे अपने साथ ले जाने हमेशा-हमेशा के लिए। कितनी बार सोचा मैंने कि तुमको कॉल करूँ और सब बता दूँ, लेकिन फिर सोचा तुम आज भी मेरी बात पर विश्वास नहीं करोगे जैसे उस वक्त नहीं किया था, कितनी बार सोचा कि भागकर तुम्हारे पास आ जाऊँ। तुम्हें अपने गले से लगा लूँ लेकिन फिर से तुम्हारा चेहरा याद आ जाता कि कैसे तुमने मेरा अपमान करके, मेरी पवित्रता का अपमान करके, मेरे प्रेम को गाली दी थी, मेरा पक्ष तो तुमने एक बार भी नहीं सुना, एक बार भी तुमने मेरा सच जानने की कोशिश भी नहीं की और निर्णय ले लिया। तुम्हें तो बस अपने माँ और भाई पर यकीन था, मुझ पर नहीं तो फिर.....तो फिर आज क्यों आए हो यहाँ पर...."

नहीं धनक ऐसा मत कहो, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं उस समय कुछ भी समझ नहीं पा रहा था कि सच क्या है और झूठ क्या ? मैं बस वही देख रहा था जो मुझे दिखाया जा रहा था।

और तुम वही सुन रहे थे जो तुम सुनना चाह रहे थे, है ना पुष्प....

नहीं धनक ऐसा कुछ भी नहीं था....

सब झूठ था, तुम्हारा प्यार, तुम्हारा मुझ पर विश्वास सब झूठ था, लेकिन मैंने तुमसे सच्चा प्यार किया था, मैं तो तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली थी। तुमने तो उस अजन्मे बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा, तुमने तो उसको भी...

नहीं धनक मैंने ऐसा कभी भी नहीं सोचा कि वो मेरा अंश नहीं है. मुझे इस पर पूरा यकीन था कि वो मेरा और तुम्हारा ही है. मगर मैं....

मगर क्या पुष्प.. बोलो ! मगर तुमने मुझ पर इतना घटिया आरोप लगाया कि मैं..., उससे मैं टूट गई थी, मुझसे एक बार तो पूछा होता।

प्लीज धनक मुझे माफ कर दो, मैं अब दोबारा तुम पर अविश्वास नहीं दिखाऊँगा. प्लीज धनक मेरे साथ वापिस चलो। मैं तुम्हें अपने साथ ले जाने आया हूँ।

नहीं पुष्प, अब और नहीं, प्लीज तुम वापिस चले जाओ और रही विश्वास अविश्वास की बात, क्योंकि जो एक बार अविश्वास दिखाता है, वो बार-बार अविश्वास दिखाता है, इसलिए प्लीज तुम यहाँ से चले जाओ।

नहीं धनक मै यहाँ जाने के लिए नहीं, तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए आया हूँ।

पुष्प और धनक की केवल आँखें ही बात कर रही थीं, मगर जुबान पर तो जैसे ताला पड़ा हुआ था। शब्द गले में अटके पड़े थे। बस दोनों एक दूसरे को अश्रुपूरित आँखों से देख रहे थे कि तभी...

"कौन है...?" कहकर धनक की माँ ने पुकारा तो दोनों अपनी अवस्था में वापिस लौट आए। धनक अपने आँसू पोंछकर बिना कोई जवाब दिये अंदर चली गई। तभी उसकी माँ ने जब पुष्प को देखा तो उनके होश उड़ गये। वो वहीं जम गई लेकिन जब धनक के पापा, धनक की माँ का नाम पुकारते हुए पहुँचते हैं तो वो भी वहीं जम जाते हैं, फिर पुष्प दोनों के सामने हाथ जोड़कर नमस्ते करता है तो धनक के पापा गुस्से में अपना आपा खो देते हैं। वो झल्लाते हुए बोले तुम अब यहाँ क्या लेने आए हो, अभी कुछ बचा है कहने को जो आज पूरा करने आए हो।

तुम्हे पता भी है मेरी बेटी किस-किस दौर से गुजरी है, हमने उसे कैसे संभाला है वो हम ही जानते हैं और आज थोड़ी बेहतर हुई तो तुम फिर आ गये उसे उसी हालत में पहुँचाने के लिए..

पुष्प उन दोनों के आगे घुटनों के बल बैठ गया और माफी माँगने लगा।

अब माफी माँगकर क्या होगा ? एक बार तो हम अपनी बेटी खोते खोते बचे थे, अब फिर से अपनी बेटी तुम्हें देकर, तुम चाहते हो कि पूरी तरह से अपनी बेटी से हाथ धो दें, धनक की माँ ने रोते हुए कहा।

नहीं पापा, मैं अब कभी ऐसा नहीं होने दूँगा, अब कभी फिर से ऐसा नहीं होगा। पुष्प उनके आगे गिड़गिड़ाने लगा।

तुम्हें पता भी है उस घर से निकलने के बाद उसकी हालत क्या हो गई थी। जो बेटी हम सबको जिंदगी मुस्कुरा कर जीना सिखाती थी, उसी बेटी को अपनी खुद की जिंदगी से नफरत हो गई थी। उसे इतना भी होश नहीं था कि वो माँ बनने वाली है और तुम्हारे कारण... तुम्हारे कारण वो अपने अजन्मे बच्चे के साथ खुदकुशी करने चली थी।

वो तो हम दोनों उस दिन एक शादी से लौट रहे थे कि तभी हमारी नजर एक विक्षिप्त जैसी स्त्री पर पड़ी। उसके बिखरे हुए बाल, इतनी बिगड़ी हालत ठीक से चला जा नहीं रहा था वो रेल की पटरियों के बीचों-बीच चली जा रही थी कि तभी ट्रेन की आवाज सुनी कि तभी हम उसे रोकने के लिए पहुँचे, तो देखा वो स्त्री कोई और नहीं मेरी बेटी धनक थी। वो बिल्कुल बेखबर थी, इतनी बेखबर कि उसे होश ही नहीं था कि सामने उसके मम्मी-पापा खड़े हैं। बार-बार मुझसे छोड़ो-छोड़ो की गुहार लगा रही थी कह रही थी कि मुझे मर जाने दो, अब जीकर क्या करूँगी, मुझे मर जाने दो, छोड़ो मुझे.... धनक की माँ इतना कहकर फूट-फूटकर रोने लगी।

कि तभी धनक के पिता ने अपने हाथों को देखते हुए कहा और जो बाप अपनी बेटी पर बचपन से हाथ तक नहीं उठाया था, तुम्हारी वजह से उसे होश में लाने के लिए अपने ही हाथों से उसे मारना पड़ा।

माहौल पूरा गमगीन था, पुष्प की आँखें भी अब बरस रही थीं। अपनी धनक की ऐसी हालत के बारे में जानकर जिसका जिम्मेवार वो खुद था, आज उसे खुद पर ही बहुत गुस्सा आ रहा था। वो बोला..

पापा मुझे माफ कर दीजिए, मैं अपने परिवार के बहकावे में आ गया था, प्लीज पापा...

परिवार !, क्या पुष्प केवल वही तुम्हारा परिवार था, मेरी बेटी क्या तुम्हारे परिवार का हिस्सा नहीं थी, क्या वो तुम्हारा परिवार नहीं थी... धनक के पापा नें गुस्से से भड़कते हुए कहा। तुम नहीं जानते क्या कुछ नहीं गुजरा है उस पर, कितना रोयी है वो तुम्हारे लिए, हर दिन वो तुम्हारा इसी तरह दरवाजा खोलकर इंतजार करती थी, लेकिन तुमने तो एक बार भी उसके बारे में नही पूछा, एक बार भी उससे मिलने नहीं आए ! क्यों पुष्प क्यों ? आखिर कुसूर क्या था उसका, यही कि वो तुमसे सच्चा प्यार करती थी।

क्या तुमने उसका पक्ष सुना, उसकी सच्चाई जानने की कोशिश की, नहीं ना.. तो अब क्यों आए हो, जाओ न अपनी माँ और भाई के पास उनका ही पक्ष सुनो फिर आकर कोई और इल्जाम लगा देना उस पर..

पुष्प ने हाथ जोड़कर माफी माँगने लगा और कहा मम्मी मुझे माफ कर दीजिए, मैं आज सुनूँगा अपनी धनक का पक्ष और फिर फैसला करूँगा। प्लीज आप धनक को बुला दीजिए। धनक भी वहीं दरवाजे के पीछे खड़ी सब सुन रही थी, मगर बाहर नहीं आना चाहती थी। पुष्प नें जब दोबारा पुकारा-

धनक... प्लीज धनक बाहर आ जाओ, वरना मैं चला जाऊँगा और फिर कभी लौटकर नहीं आऊँगा. ठीक वैसे ही जैसे पुष्प हमेशा बुलाता था अपनी धनक को, जब वो उससे छुपने का प्रयास करती थी।

वो जैसे ही जाने के लिए मुड़ा धनक ने पहले की ही तरह उसे आकर पीछे से पकड़ लिया और कहा

" पुष्प क्या आज फिर तुम मुझे अकेला छोड़कर चले जाओगे, क्या आज भी मेरा पक्ष सुने बिना ही पहले की तरह निर्णय पर पहुँच जाओगे।

पुष्प हमारी शादी के बाद, मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर में तो आ गयी, मगर उस घर में अपनी जगह नहीं बना पायी। शुरूआत में तो तब भी सही था, जब तक तुम्हारी नौकरी नहीं लगी थी. तुम्हारी नौकरी लगते ही तुम्हारे भैया के रंग ही बदल गये। जो भैया तुम्हारी नौकरी लगने से पहले मुझे अनदेखा करके वो स्थान छोड़कर चले जाते थे, वो भैया तुम्हारे नौकरी पर जाते ही मेरे कमरे में आ जाते... कहते-कहते धनक का गला रूँध गया। मगर फिर भी उसने आगे बताया फिर वो मुझे इधर-उधर छूते, मेरा हाथ पकड़ लेते और जब उन्हें धकेलती तो वो मेरे साथ... बदसलूकी करते और मुझे मारते, लेकिन जब तुम घर आते तो फिर से पहले जैसे अनदेखा करने लगते, लेकिन जब वो तुम्हें ये बताते कि मैं.... मैं उनमें इंट्रेस्टेड हूँ, मुझ पर क्या गुजरती, ये तो तुम सोच भी नहीं सकते थे और पुष्प ये सब वो इसलिए करते क्योंकि...

क्योंकि तुमने उनसे सगाई तोड़ दी थी, जो उनके इगो को हर्ट कर गया था, है ना... पुष्प नें धनक की बात को बीच में काटते हुए कहा।

धनक ने हाँ में सिर हिलाया, तो पुष्प ने धनक को अपनी बाजुओं में समेट लिया। फिर धनक ने कहा- फिर एक दिन तुम्हारे भैया आकर मुझसे अपने प्यार का इजहार करने लगे और जब मैंने मना किया तो वो अपना आपा खो बैठे और मेरे साथ... फिर जब मैंने उन्हें धक्का मारा तो उनके सिर पर चोट और कुछ खरोचें...

और फिर उन्होनें वो मुझे दिखाये ये कहकर कि तुमने उन पर.... छी.. हाऊ डिस्कस्टिंग ! और माँ ने भी उनका ही साथ दिया। खुद एक औरत होकर दूसरी औरत के साथ जो अन्याय हुआ वो सब चुपचाप घर में होने दिया, रोका नहीं उन्होंने। कैसे सब वो अपने घर में बर्दाश्त करती रहीं, मुझे तक नहीं बताया ? और अपने बड़े बेटे का ही पक्ष लेती रहीं, उनको ही बचाती रहीं, कैसी माँ है वो ? उन्हें सिर्फ अपना बड़ा बेटा ही दिखा, किसी और की बेटी नहीं, एक स्त्री का अपमान नहीं। ये तो छोड़ो उनका अपना छोटा बेटा, यानी मैं, मेरी खुशियाँ, ये सब नहीं दिखा। अपने बड़े बेटे के मोह में इतनी अंधी हो गयी, कि सही गलत की पहचान भूल गई। पुष्प नें गुस्से से मुट्ठी भींचते हुए कहा। ये भूल गई कि तुम मेरे बच्चे की माँ बनने वाली हो।

धनक और पुष्प एक दूसरे की बाहों में फूट-फूटकर रो रहे थे। सारा मन का मैल दोनों की अश्रुओं से धुल रहा था कि तभी पुष्प ने धनक के अश्रु पोंछकर कहा, "बस धनक अब और नहीं रोओगी क्योंकि अब जिसकी गलती है, उसके रोने की बारी है, अब उसे सजा मिलेगी जो सच में गुनाहगार है और हम तीनों अपनी फिर से एक नयी गृहस्थी बसाएँगें, जिसमें अब गलतफहमियों की कोई जगह नहीं होगी, कोई होगा तो बस प्यार.."

और फिर तीनों चल पड़ते हैं एक नये सफर की ओर, एक नये सिरे से अपनी जिंदगी की शुरूआत करने की ओर..


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