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सब कुछ लौटकर वापस यहीं आता है

सब कुछ लौटकर वापस यहीं आता है

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सविता भाभी आपकी बहू बहुत सुंदर है, आपके तो भाग्य है। जब सविता जी को ऐसा उनकी पड़ोसन नें कहा तो वो अपने बहू के रूप पर गर्व से फूली नहीं समायी।

सविता जी का बेटा भी अपनी पत्नी के रूप पर बिल्कुल लट्टू हो चला था। कुछ ही महीनों में सविता जी की बहू गर्भवती हो गई तो सविता जी ने उसकी सेवा में दिन-रात एक कर दिया। कभी उसे खुद से पानी लेने के लिए भी नहीं उठने देती, सबकुछ वो खुद करती। धीरे-धीरे बहू को भी आराम करने की आदत हो गई। वो अब कोई भी काम खुद से नहीं करना चाहती थी। फिर नौ महीने बाद सविता जी की बहू नें एक बहुत ही खूबसूरत और स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया।

उसके पुत्र के जन्म के कुछ महीनों पश्चात जब उनकी बहू तन और मन से हुष्ट-पुष्ट हो गई। लेकिन घर के काम अब भी सविता जी ही करती थी। क्योंकि उनकी बहू काम से बचने के बहाने अपने पुत्र में लगी रहने का दिखावा करने लगी। 

सविता जी सबकुछ खूब समझती थी, मगर कुछ कह नहीं पाती। क्योंकि अगर कुछ कहती तो उनकी बहू उनके ही पुत्र को उनके खिलाफ भड़का देती। धीरे-धीरे वो दोनों सविता जी से कटने लगे। लेकिन सविता जी अपने पौत्र के लाड़ प्यार में कोई कमी नहीं रखती। घर के काम के साथ-साथ अपने पौत्र की देखभाल भी अब वही करने लगी। सविता जी अपने पौत्र के शिशु अवस्था से लेकर बाल्यावस्था तक के खूब आनंद लेती, क्योंकि उन्हें अपने पौत्र के रूप में उनका पुत्र फिर से एक बच्चे के रूप में मिल गया।

लेकिन अब सविता जी की बूढ़ी हड्डियों में भी जान नहीं बची थी, और अब वो ज्यादातर बीमार रहने लगी और खुद भी बिस्तर पर आ गई। लेकिन सविता जी की बहू को उनकी देखभाल करना बोझ लगने लगा था। इसलिए अब वो सविता जी से छुटकारा पाना चाहती थी। फिर उसने धीरे-धीरे सविता जी के पुत्र को भी राज़ी कर लिया। लेकिन सविता जी का पौत्र अब बाल्यावस्था से किशोरावस्था में पहुँच चुका था। तो उसे अपने माता-पिता के किये गये कृत्य से बहुत दुख होता कि उसके माता-पिता अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं। जब वो उन्हें समझाता कि वो दादी के साथ ऐसा ना करें तो वो उसे फटकार कर अंदर भगा देते। लेकिन सविता जी अब टूट चुकी थी, और जिल्लत सहने की शक्ति उनमें नहीं थी। इसलिए वो अपना सबकुछ पुत्र को सौंपकर इस वृद्धावस्था में गंभीर बीमारी में वृद्धाश्रम चलीं गई। एक सुकून की मौत पाने के लिए। या फिर यूँ कहूँ उनके पुत्र और वधू नें उनका सबकुछ हड़पकर उन्हें वहीं मरने के लिए वृद्धाश्रम छोड़ आए, ताकी खुद चैन और ऐशो आराम की जिंदगी जी सकें। लेकिन जो बोया है उसे अब खुद काटने का वक्त आ चुका था। कहते हैं इस पृथ्वी में गुरूत्वाकर्षण की शक्ति के कारण आप जो भी ऊपर फेंकोगो वो आपके पास लौटकर जरूर आएगा, अर्थ है कि अब तक आपनें जो भी किया है, सबकुछ आपको सूद समेत वापस जरूर मिलेगा। 

सविता जी का पौत्र भी अब किशोरावस्था से युवावस्था में पहुँच चुका था, यानी उसने जिंदगी की एक सीढ़ी और चढ़ ली थी। और उसके माता-पिता जिंदगी की आखिरी सीढ़ी पर खड़े थे, अर्थात अब वो भी वृद्धावस्था में पहुँच चुके थे। वक्त का पहिया खुद को पुनः दोहराने लगा था। दोनों लोग खुद को अब सविता जी की जगह रखकर सोचने लगे थे। क्योंकि जो उनके साथ उन्होनें किया, अब वही उनके साथ होने वाला था।

लेकिन सविता जी का पौत्र था बहुत समझदार, उसने वो गलती अपने माता-पिता के साथ बिल्कुल भी नहीं दोहराई। क्योंकि वो जानता था कि आज वो जिस अवस्था में है कल वो भी इसी अवस्था में पहुँचेगा, और वक्त फिर से खुद को पुनः दोहराएगा। लेकिन अपने माता-पिता की गलती का उन्हें एहसास भी करवाना चाहता था। उसने फर्जी पेपर बनवाकर उनका सबकुछ अपने नाम करवा उन्हें वृद्धाश्रम जाने का फैसला सुनाया। उसके माता-पिता के आंखों के सामने सबकुछ एक बार फिर से घूम गया। वो अपनी गलतियों का अंजाम जान चुके थे। एक बार फिर से वो अपने पुत्र के पैरों पर गिर पड़े और रहम की भीख माँगने लगे।

फिर उनके पुत्र नें जो कहा उसे सुन उन्हें अपनी गलती का भान हुआ। लेकिन अब कुछ भी नहीं हो सकता था। सविता जी तो जिंदगी की आखिरी सीढ़ी भी पार कर चुकी थी। और इस दुनिया से विदा हो चुकी थीं. 

जब उनके पुत्र नें बताया कि ये सब उसने उनकी गलती का भान कराने के लिए किया था और आप दोनों मेरे लिए अब भी पूज्य हैं तो उसके माता-पिता पश्चाताप और खुशी के आसुु़ओं में खुद के पापों को धो रहे थे।


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