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Ashish Vatsa

Drama Inspirational

2.5  

Ashish Vatsa

Drama Inspirational

जानकी

जानकी

7 mins
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प्राचीनकाल से ही एक धारणा चलती आ रही है कि हर किसी के नाम का महत्त्व उसके व्यक्तित्व पर कमोवेश परता ही है। इसी कारण लोग पहले अपने संतानों के नाम देवी देवताओं के नाम पर रखा करते थे। ताकि उनका संतान देवी देवताओं के तरह हो और उसे पुकारने के संग प्रभु स्मरण भी हो जाए।

एक मल्लाह परिवार में पैदा हुए पहली बेटी संतान का नाम उन्होंने बड़े प्रेम से "जानकी" रखा।

जानकी मतलब सीता जनकनंदिनी । और सीता, एक राजा की प्रिय पुत्री तो जरूर परंतु एक भी स्त्री जिनका जीवन संघर्षों से भरा था। धारणाओं के अनुसार इस मलाह के घर जन्मी बेटी के जीवन मे भी वात्सल्य प्रेम और संघर्षों का होना संभावित प्रतीत होता है।

तो आइए देखते है इस जानकी की कहानी को।

यह कहानी बिहार के मिथिलांचल में जन्मी एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसका जीवन कहीँ न कहीं जनकनंदिनी जानकी के तरह ही संघर्षों से भरा है।

जानकी का जन्म एक ग़रीब मल्लाह रामदेव साहनी के परिवार में होता है जहाँ जानकी के संग उनकी माँ मंजू और एक छोटी बहन बड़े सुख से रहते है। रामदेव पास के ही गांव में मछली का व्यवसाय करता है और उससे होने वाले उपार्जन से अपने परिवार का निर्वहन करता है। भले ही वह एक मलाह है परंतु उसकी संगति कुछ शिक्षित लोगो से भी होती है जिसकी वजह से वह शिक्षा के महत्व को समझता है और हमेशा जानकी को पढ़ने हेतु प्रेरित करता है। जानकी भी अपने परिवार की परिस्थिति को समझते हुए खूब मन लगाकर पढ़ाई करती है और अच्छे अंक प्राप्त कर हमेशा अपने परिवार का मान बढ़ाती है।।

सब कुछ ठीक चल रहा होता है, जानकी भी कक्षा नौ में आ जाती है और समय के साथ परिपक्व हो पढ़ाई के साथ माँ के कामों में अब अच्छा खासा हाथ बटा देती है।

पर कहते है न हर तूफान के आने से पहले एक खामोशी आती है जानकी के जीवन मे भी कुछ ऐसा ही होता है।

एक दिन रामदेव काम खत्म कर जब बाजार से लौटता रहता है तभी वह अचानक एक सड्क हादसे के चपेट में आ जाता है । आस पास के लोग उसे नजदीकी अस्पताल ले जाते है।

वहां उसका इलाज़ शुरू हो जाती है, पर पैसो के अभाव में रामदेव को वापस घर आना परता है और कुछ दिनों बाद ही रामदेव की मौत हो जाती है ।

एक ग़रीब मल्लाह परिवार में जन्मी जानकी के लिए इस परिस्थिति में पिता का जाना शायद सर्वस्व खो जाने के बराबर है।

जानकी के बड़े चाचा शम्भू कलकत्ता में रहते है जो इस खबर को सुनने के बाद फौरन घर आते है। रामदेव के जाने के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी अब बड़े भाई शंभु पर ही आ जाती है । रामदेव के श्राद्ध के आये रिस्तेदार और गांववालो से परामर्श ले वह ये निर्णय करता है कि वह अपने साथ जानकी की माँ और छोटी बहन को कोलकाता ले जाएगा।

और गांव में बचे रामदेव के हिस्स की कुछे जमीन को बेच किसी अपने बिरादरी के नेक लड़के से जानकी विवाह करा देगा। शम्भू के इस फैसले पर जानकी की माँ भी तैयार हो जाती है। शम्भू मंजू को जानकी से बात करने को बोलती है और इधर गांववाले भी जानकी के लिए एक लड़के का नाम् शम्भू को सुझाते है।

मंजू जानकी के सामने ये सारी बाते रखती है पर जानकी विवाह करने से मना कर देती है, उसे लगता है कि कहीं न कहीं वह सपना जिसे जानकी ने अपने पिता के आंखों में देखा था वह इस हालात के आँधी में बिखर रही है। वह अपने माँ के सामने हाथ जोड़कर विवाह न करने और पढ़ाई जारी रखने की विनती करती है। उसकी माँ हालात के सामने विवश होती है और वह जानकी के बातो को मानने को तैयार नही होती है। अगले दिन ही गांववाले एक परिवार को जानकी के घर उसके विवाह के सिलसिले में बात करने भेजते है। दरवाजे पर आए उन मेहमानों को देख जानकी खुद को अंदर से पूरी टूटी हुई महसूस करने लगती है। वह विवश होकर विवाह के लिए हामी भर देती है

परंतु जब उस् रात सोने वक्त जब वह अपने पिता के द्वारा कहे गए बातों को वो फिर से याद करती है तो अचानक रात में उठ वह उस लड़के के घर चली जाती है और छिपकर उस लड़के को विवाह से मना करने के लिए विनती करती है ! लड़के द्वारा कारण पूछने पर, वह अपने आगे पढ़ने की इक्षा तथा अपने परिवार का किसी और पर आश्रित न होकर खुद से उसके दायित्व को निभाने की बात बताती है। जानकी के दृढ़निश्चयता से वह लड़का प्रभावित होता है और वह जानकी से विवाह हेतु अपने परिवार से मना करने को तैयार हो जाता है।

अगले दो दिन बाद जब शम्भु को लड़के वाले द्वारा रिस्ता मना करने का खबर मिलता है तो थोड़ा निराश होता है। यह बात गाँव मे भी फैल जाती है, कुछ लोग जो उस रात घर से जानकी को निकलते देखते है वो मनग्रहन्त कहानी बनाकर जानकी और उसके परिवार का अपमान करते है । उनका कहना होता है कि जानकी के किसी के साथ प्रेम संबंध है, वो रात किसी से मिलने भी गयी थी ये बात लड़के वाले को पता चल गया होगा इसीलिए मना कर दिया होगा। इन बातों से जानकी काफी दुखी होती है पर वह आँसुओ के घूँट पी रह जाती है। यह सब सुन शम्भू भी पूरी तरह टूट जाता है और वापस कोलकाता जाने की सोचता है।

पर जानकी उसके पास जाकर रोने लगती है और कहती है, पीताजी के जाने के बाद में आप ही हम दोनों बहनों के लिए सब् कुछ है आप को पिता मानकर मैं आपसे कुछ मांगना चाहती हूं शम्भू जब उससे पूछता है तो वह कहती है आप अभी मेरी शादी न कराए, माँ और छोटी को कोलकाता ले जाकर आप उनका खर्च उठाएंगे ही आप वही पैसा हमे यहां भेज दे हम उससे यहां घर भी चला लेंगे और पढ़ाई भी कर लेंगे और हां अभी आप मुझे एक सिलाई मशीन ख़रीद दे मैं भी उससे कुछ उपार्जन कर लुंगी । जानकी के आँखों में ललक देख शम्भू की आंखे भर आती है और वह जानकी के बातों में हामी भर देता है।

शम्भू बापस चला जाता है जानकी फिर से अपना पढ़ाई शुरू करती है वो सुबह स्कूल जाती है और शाम को सिलाई के काम के साथ कुछ बच्चों को भी पढ़ाने लगती है। कुछ लोगो को जानकी का ये सब करना सही नही लगता पर इन सबको दरकीनार कर धीरे धीरे वह अपने परिवार का निर्वहन अपने पिता के तरह की करने लगती है। फिर एक साल बाद वह दसवीं के परीक्षा में अच्छे अंक से पास कर कॉलेज में प्रवेश लेती है और वहां से जब उसकी पढ़ाई पूरी होती है तभी बिहार सरकार में उसका मध्य विद्यालय में उसका शिक्षक के रूप में चयन होता है । वह अपने गाँव जहाँ से वो खुद पढ़ी है वहीं वो शिक्षिका के रूप में नियुक्त होती है। जानकी को उसके गाँव के लोग अब गिने चुने योग्य लोगो मे गिना करते है । उसकी माँ मंजू के पास हर दिन अच्छे घर के रिश्ते आते है पर जानकी सबको मना करती है। और एक दिन जानकी वापस उस लड़के के पास जाती है और उसके समक्ष अपने शादी का प्रस्ताव रखती है। पर वह लड़का उसे शादी करने को मना करता है । जानकी द्वारा कारण पूछने पर वह बताता है कि वह शादीशुदा है पर कम उम्र में गर्भवती होने के कारण प्रसव के दौरान उसकी पत्नी मर गई पर ऊसकी एक बेटी है। जानकी जब उस लड़के के आंखों में उसके हालात की विवशता देखती है तो वह दुखी होती है और यह सब जानते हुए भी वह उससे अपने विवाह का प्रस्ताव रखती है। वह कहती है कि मेरे इस जीवन का श्रेय तुम्हे जाता है, अगर उस रात तुम मेरे बातों को नही मानते तो न जाने मैं आज कहाँ होती। और उसके परिवार से आज्ञा ले और अपने माँ को बताकर जानकी उससे विवाह कर लेती है।

इस जानकी की कहानी में कोई रावण नही है जिसका दस मुख हो यहाँ है तो केवल विषम परिस्थितियाँ जिसने इस जानकी को दसों दिशाओं से घेरा है।

यहाँ कोई ऐसा बाण नही जो रावण के नाभि को भेद उसको खत्म करे यहां है तो केवल संघर्ष जिसने इस जानकी को जीवनदान दिया है...।


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