अमानवीयता 3 (सत्य घटना)
अमानवीयता 3 (सत्य घटना)
१०-११ महीने की कड़ी मशक्कत, दौड़ भाग, और भयंकर हलचल के बाद मानो एक दम शांति सी पसर गयी...
लगा इतने दिनो से एक तूफान मे जूझ रहे थे, जहाँ खुद को टिकाना भी मुश्किल था वहां परिवार को बचाने की भरसक कोशिश की, पर जब खुद के पैर ही नहीं टिक पा रहे थे तो हाथों की पकड़ तो ढीली होनी ही थी |
तूफान थमा तो देखा वो चली गयी….!!!!
नहीं रोक सके....
अब गहरे सन्नाटों के सिवा कुछ नहीं……………
अक्सर बुरे वक़्त मे अपनों की कुछ खास जरूरत होती है, यूँ ही नहीं मौत गमी मे इतने रिवाज बना दिए गए | ये तो परिवार को संबल देने के लिए होते है ताकि वो उस दुख से उबर पाए, लोग मिलने आते है ताकि सांत्वना दे आए |
बस समय के साथ लोगो की सोच और व्यवहार बदल गए है लोग हमदर्दी की जगह पैनी निगाहें, कड़वे ताने ले कर आते है |
दरअसल हुआ यूं कि मम्मी के जाने के बाद उनके अंतिम संस्कारों के लिए पूरा परिवार अपने शहर लौट आया था |
मम्मी को गए २ दिन ही हुए थे, रिश्तेदारों का तांता लगा हुआ था- कोई ढाढस बंधा रहा था, तो कोई अफसोस जता रहा था, कोई हैरान था तो कोई आँसू बहा रहा था |
इतने लोगो के बीच मे- गहरे दुख के बाद भी अकेलापन नहीं था, वो डर नहीं था जो वहां उस बेगाने शहर में था |
पर कहते नहीं ना कि सभी दिन एक से नहीं होते, ऐसे ही सभी लोग भी एक से नहीं होते |
भीड़ मे एक चेहरा मम्मी की दूर की रिश्तेदार का था- जिन्हे दुख तो पता नहीं था या नहीं पर हाँ जख्मों को कुरेदने की बहुत जल्दी थी |
"है री!! मारने के लिए ले गए थे क्या उसे वहां?" यकीन नहीं आया मुग्धा को जो उसने सुना, संभल ही रही थी कि फिर आवाज आई, “इससे तो यहीं छोड़ जाते उसे”
५० लोगो से भरे हुए उस गमगीन कमरे मे समझ नहीं आया कि 2 दिन पहले गुज़री सास की मौत का दुख मनाए या इन ऊट पटांग सवालों का जवाब दे या ये की उसने अपनी सास को नहीं मारा है या ये बताये की कैंसर किसी के करने से नहीं होता, किसी के हाथ में नहीं होता, या ये की उसने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रहने दी |
जी आया कि पूछ ले, "अगर मैं छोड़ जाती तो आप नहीं बोलती की बुढ़ापे मे सास ससुर को छोड़ कर चली गई अपनी मौज मस्ती के लिए"
या ये कि "और अगर आपको उनकी इतनी चिंता थी तो मुझे क्यों नहीं याद पड़ता पीछे एक साल मे जब से उनकी तबीयत का पता चला है एक बार भी आपका फ़ोन आया या आप आए उनका हाल चाल पूछने या ये पूछने की बहू तेरे बच्चे ने खाना खाया?....
…..क्यों नहीं एक बार भी आपने मुझे फोन कर के पूछा कि डॉक्टर ने क्या बताया, कोई काम मुझे भी बता दे…
…क्यों नहीं आपने कहा कि बहू कुछ दिन इन्हे यहीं छोड़ जा, मैं ध्यान रख लूँगी |"
और सच मानिए आज से पहले मुझे पता भी नहीं था कि आप कौन है| अपनी ४ साल की शादी में ना तो मुझे ये याद कि आप कौन है और ना ये पता कि क्या मैं आपसे कभी मिली हूँ…?
पर आज जरूर जानना चाहती हूं कि आप कौन है?
हाँ मैंने जवाब नहीं दिया उस वक़्त क्योंकि ना वो माहोल ऐसा था और ना ही मेरी मनःस्थिति पर अब मैं आपकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती....
नफरत है मुझे आपसे क्योंकि कईं महीने नींद मे आपके शब्द मेरे कानो मे गूंजते थे....
मुझे दुख आपकी बहू के लिए है... और भगवान का हाथ जोड़ती हूँ कि मैं आपकी बहू नहीं हूँ |
आपकी असंवेदनशीलता और किसी पर ऊँगली उठाने की जल्दी मे आप भूल गयी कि कौन किस परिस्थिति से गुज़र रहा है.....
सच कहा है बड़ो ने कभी कभी बोलने से पहले सोच लेना चाहिए |