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Shyam Kunvar Bharti

Crime Drama

3.2  

Shyam Kunvar Bharti

Crime Drama

पगली औरत

पगली औरत

5 mins
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कड़कड़ाती ठंड मे वो ठिठुरती हुई एक फटी - सी मैली चादर अपने बदन पे लपेट कर ठंड से बचने की नाकाम कोशिश करती हुई बाज़ार के एक कोने में नीम के पेड़ के नीचे सोने की कोशिश कर रही थी |

लगभग साढ़े दस बजे की जाड़े की सदद रात थी| ठंडी हवाएंं हड्डियांं कंपा रही थी | बाज़ार की सारी दुकाने बंद हो चुकी थी | हर तरफ सन्नाटा फैला हुआ था| मगर वो पागल औरत उस भीषण सदी में अकेली ठिठुर रही थी | सारे कपड़े फटे पुराने , बाल आपसा मे चिपक गए थे, मालूम होता था वो पगली कई दिनों से नहाई नहीं थी, उसके बदन से बड़ी बदबू आती थी | आम औरतों की तरह उसे अपने शरीर का कोई होश न था |

जब भी किसी दुकान पर खाने पीने की चीज़ें मांंगने वो जाती थी, बदबू से दुकानदार उसे दूर भगा देते |

खाने के बाद वो अपना हाथ मुंंह भी नहीं धोती थी |

हमेशा उसके हाथ मुंंह मे गंदा और जूठा लगा रहता था |

अभी हाल मे ही वो न जाने कहाँँ से भटक कर इधर आई थी, अपना कोई नाम, पता भी नहीं बताती थी। बस चुपचाप रहती थी|

अभी वह अपनी फटी चादर को फैलाकर पैरो को ढकने की कोशिश कर ही रही थी कि तभी एक काला साया, काला कंबल अपने पूरे शरीर पर ओढ़े हुये, उसकी तरफ बढ़ने लगा। उसने अपना मुंंह भी कंबल मे छिपा रखा था, वो पगली कुछ समझ पाती, इससे पहले ही उस साये ने उसे अपनी दोनों बाहो मे उठा लिया और वह चीखने न पाये, उसका मुंंह अपने एक हाथ से ढक दिया।

और बगल मे उगी झाड़ियो के बीच ले गया |

उस काली अंधेरी सदद रात मे उस हवशी दरिंदे ने अपना मुंंह काला कीया और चुपचाप वहाँँ से निकल गया |

वो पागल औरत दर्द से छटपटाती रही, मगर वहाँँ उसकी कोई तकलीफ देखने - सुनने वाला नहीं था |

डर के मारे फिर कोई दरिंदा न आ जाए, वो पगली उस पेड़ के नीचे न जाकर दूर एक लॉन के बरामदे मे जाकर सो गई जहाँँ एक बल्ब की रोशनी भी फैली हुई थी |

कई महीनो के बाद लोगो ने देखा कि उस पगली का पेट बढ़ने लगा है, बाजार मे तरह तरह की कानाफूसी जोरों से चलने लगी | अंततः उसने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया |

यह खबर बिजली की तरह पूरे बाजार मे फैल गई |

कुछ पत्रकारो ने फोटो के साथ उसकी खबर छाप दी ।

लोग उसे देखने आने लगे मगर वो बस एक तमाशा बनी रही, किसी ने उसकी हालत सुधारने के बारे कोई पहल न की |

कुछ लोगो ने उसकी हालत देखकर पास के एक सरकारी अस्पताल मे भर्ती करा दिया था |

अपने बच्चे को वो पगली किसी को हाथ न लगाने देती थी | बाजार मे घूम - घूमकर वो अपने बच्चे के लिए दूध मांगती थी, उसकी छाती से दूध उतरता ही नहीं था |

एक दिन एक दुकान के पास एक बड़ी - सी कार आकर रुकी, उसमे से एक सभ्य पुरुष उतरकर दुकान से मिठाइयाँँ ले रहा था, मिठाइयाँ लेने के बाद उसने दो कप चाय ली, एक उसने अपनी पत्नी को दी जो उसकी गाड़ी मे अंदर बैठी हुई थी, दूसरी चाय लेकर वह खुद पीने लगा।

तभी वो पगली अपने बच्चे को अपनी गोद मे लिए उस दुकान पर आकर खड़ी हो गई और अपने हाथ दुकान की तरफ फैला दिए। दुकानदार ने उसे एक समोसा और एक प्याली मे दूध दिया| समोसा उसने अपने साड़ी के छोर मे बांध लिया और वही बैठकर अपने बच्चे को दूध पिलाने लगी।

उस सभ्य पुरुष की नजर उस पगली और उसके सुंदर बच्चे पर पड़ी, उसने तुरंत उत्सुकतावश उस दुकानदार से उस पगली के बारे मे पूछा।

उनको उस पगली के बारे मे जितना जानता था बता दिया | उस पगली की कहानी सुनकर वो पुरुष काफी दुखी हुये, उन्होने अपनी पत्नी के पास जाकर कुछ बात की और दुकानदार से आकर बोले,

"भाई साहब, मै इस बच्चे को गोद लेना चाहता हूँ और इसकी माँ का इलाज भी करवाऊँगा |"

"ये तो बड़ी अच्छी बात है साहब। इस बच्चे की तो तकदीर ही बदल जाएगी। पता नहीं किस पापी ने इस बेचारी के साथ ऐसा घिनौना काम किया है !" - उस दुकानदार ने खुश होते हुये कहा।इतने मे वहाँ भीड़ जमा हो गई, सारी बातें समझकर लोग उस पुरुष की तारीफ करने लगे |

इतने मे उस बाजार का एक बड़ा दुकानदार वहाँँ पहुच गया, भीड़ देखकर वह भी आ गया था। सारा मामला सुनकर वो गुस्से से चिल्लाने लगा –

"वाह साहब ! भला आप क्यो बच्चेको गोद लेंगे ? हमलोग मर गए है क्या ! बच्चे को मैं पालूंगा |"

उसकी बाते सुनकर सब लोग दंग रह गए | लोगो ने कहा –

"ठीक है भाई साहब, अगर आपको भी इस बच्चे को गोद लेना था तो पहले कहाँँ थे ? इतने दिनों से ये पागल औरत अपने नाजायज बच्चे को लेकर इधर उधर भटक रही थी, तब तो आपने इसकी कोई सुध नहीं ली | अब जब कोई अच्छा आदमी इन दोनों की मदद करने को आगे आया है, तो आप भी बड़े समाजसेवी बनने लगे है|"

मगर वो दुकानदार किसी की बात सुनने को राजी नहीं हुआ, मामला थाना तक पहुंंच गया, पुलिस ने आकर दोनों के बीच सुलह कराने की कोशिश की मगर दोनों अपनी - अपनी ज़िद पर अड़े थे |

वहाँँ पूरा बाजार ही जमा हो गया, सबने उस सभ्य आदमी की तरफदारी की और फैसला सुनाया कि इन दोनों को पुलिस की निगरानी मे पूरे कागजी कार्यवाही के साथ सभ्य आदमी को ही दिया जाए |

अपनी बात न बनती देख वो दुकानदार ज़ोर - ज़ोर से चिल्लाने लगा,

"अरे आप लोग मेरी बात क्यो नहीं समझ रहे है ! इस बच्चे का बाप मै ही हूँ, इसलिए ये बच्चा मुझे ही चाहिए |"

उसकी बात सुनकर हर कोई सन्न रहा गया, हर कोई उसे कोसने लगा। सबने उसकी इस करतूत के लिए उसे क्या - क्या नहीं कहा !

"अब बस भी करो सब लोग ! हाँँ, मै मानता हूँ मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हुआ है, आप लोग इसके लिए मुझे जो सजा देना चाहे मुझे मंजूर है। मगर मुझे मेरे बच्चे को मुझे लेने दीजिए।"

लेकिन समाज ने उसकी कोई बात नहीं मानी और उन दोनों को पुलिस की निगरानी मे उस सभ्य आदमी को सौंंप दिया गया |


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