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Manoranjan Tiwari

Crime Drama Tragedy

3.8  

Manoranjan Tiwari

Crime Drama Tragedy

किन्नर कथा

किन्नर कथा

8 mins
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एक अच्छा-खासा, चलता-फिरता आदमी (पुरुष), जो दौड़ सकता है, भाग सकता है, मगर वह दौड़ता नहीं, जरुरत पड़ने पर भागता भी नहीं, जैसे 'महवारी' के दिनों में हो और आधुनिक 'पैड' भी इस्तेमाल नहीं करता हो । दोनों जांघों को आपस में सटा कर बैठता है, चलते समय अजीब तरह से लहरा कर चलता है, और बातों में ऐसी नाजो-नजाकत की आप सोच में पड़ जाते हैं कि इतनी नाजो-नजाकत से तो आज-कल कोई लड़की भी बात नहीं करती है, फिर ये कौन से ग्रह का आया प्राणी है जिसमें सब कुछ एक हद से ज्यादा दिखता है । चेहरे पर दुःख नहीं, दर्द नहीं मगर एक बेचारगी चप्पा है। पुरुष होकर भी शायद स्त्रैण होने की बेचारगी, या खुद को ना पुरुष समझ पाता है ना स्त्री, इसकी बेचारगी। सर के बाल बहुत लम्बे कर लिए है उसने, वह अपने बालों को इतना प्यार करता है, जितना शायद कोई स्त्री भी नहीं करती होगी । दिन-भर वह अपने बालों को सवाँरने / धोने में लगा रहता है । अगर कोई उसे उपहार देता है तो वो बहुत खुश होता है। कपड़े भी लड़कियों वाले पहनता है, क्रीम, लिपस्टिक, पावडर, तेल, अच्छे साबुन, शैम्पू उसके लिए अनमोल उपहार हैं । दाढ़ी, मूँछ और सीने पर बाल है, मगर उसे इन बालों से असुविधा होती है, उसका बस चले तो वह इन सभी गैर जरुरी बालों को हमेशा के लिए साफ़ कर दे । मगर ऐसी कोई तकनीक के बारे में उसे जानकारी नहीं है, मज़बूरी बस रोज सुबह उठते ही उसका पहला काम यही होता है, वह तल्लीनता से अपने सभी अनचाहे बालों को साफ़ करने में लग जाता है । कोई घंटे भर अनचाहे बालों की सफाई और चिकनाई प्रदान करने के उपरांत उसका अगला कार्यक्रम सर के बालों में सैम्पू लगाने का होता है, कभी-कभी वो नहाता नहीं है, मगर बालों को जरूर धोता है, फिर तेल-फुलेल, क्रीम पाउडर इत्यादि लगाने में और लगा कर तैयार होने में उसे दो घंटे लगते हैं, ये तेल-फुलेल, पावडर- शैम्पू, साबुन-क्रीम और उसके खाने-पीने का इंतजाम वे लोग करते हैं जो उसे हमेशा अपने पास बैठा कर रखते हैं, और उसके साथ सोते हैं । संकोच और झिझक से सिमटा रहता है हर वक्त, सिर्फ कुछ करीब बने लोगों से धीमी आवाज में बात करता है, उनके साथ ही खाता- आप कहेंगे इसमें आश्चर्यजनक तो कुछ भी नहीं है, ऐसा ही तो होते है किन्नर, मगर यहाँ एक पेंच है।

किन्नर होते होंगे ऐसे मगर वह एक किन्नर नहीं है, पुरुष है और किन्नर बन कर रहने के लिए मजबूर है।बक्सर केंद्रीय कारागार में इस शख्स से मिलना मेरे मन को सवालों से बेचैन किये जा रहा था, मैं जानना चाहता था कि वो ऐसा क्यों है? यहाँ कैसे पहुँचा है? लेकिन वह मुझे अपने आस-पास देखते ही खिसक लेता है, जैसे मेरे चेहरे पर ऐसा कुछ लिखा है जो वह पढ़ लेता है, वह नहीं चाहता कि उसके जीवन की परतें उखाड़ी जाएँ, मैं भी नहीं चाहता उसे परेशान करना, मगर मेरे मन में तमाम सवाल हैं जो मुझे बेचैन किये हुए हैं । मैं उससे नफ़रत करता हूँ शायद, पर फिर भी उसमें कुछ है जो मेरे मन में जिज्ञासा उत्पन्न करता है। किसी ने उसे बताया होगा कि मैं लिखने-पढ़ने वाला आदमी हूँ, अपनी दुनिया में मस्त रहता हूँ । एक दिन जब मैं कारागार के पुस्तकालय से तीन-चार किताबें हाथ में लिए अपने कक्ष की तरफ जा रहा था, तभी मैंने उसे पीपल के पेड़ के पास अकेले बैठा देखा, चेहरे को उसने घुटनों में डाल रखा था, और ऐसा लग रहा था जैसे रो रहा हो, मैंने पहले तो सोचा की निकल जाता हूँ मगर फिर मन में एक दयाभाव जैसा महसूस हुआ और पास जाकर मैंने उसके सर को छूकर पूछा, 'क्या हुआ? आज तो अकेले बैठे हो तुम, कैसे?' उसने अपने चेहरे को ऊपर उठाया तो देखा कि उसकी आँखे आंसुओं से भीगी हुई हैं, उसने बताया कि 'कोई साथ देने वाला नहीं है बाबू, मुझे यहाँ से निकलना है बाबू, किसी तरह कोई जुगाड़ लगा कर मुझे यहाँ से निकलवा दो, मैंने कुछ भी नहीं किया है।' फिर मैं उसके पास बैठ गया और मेरे मन के सवाल अपने आप मेरे होठों तक आते गए, और जो कहानी उसने अपने जीवन की सुनाई उसे सुन कर मैं स्तब्ध रह गया।

साऊथ परगना जिला, पश्चिम बंगाल का रहने वाला यह शख़्स बिहार में मधेपुरा से लेकर बक्सर जिला तक पहुँचा है। इसका नाम महेश है। यह जब आठ-दस साल का होगा तभी किसी ने इसे इसके गाँव से बहला-फुसला कर लाया और लाइन होटल चलने वाले के हाथ बेचा दिया था। बचपन में वह सुन्दर बच्चा रहा होगा, रंग उसका गोरा है और नैन-नक्स भी सुन्दर हैं , शायद इसलिए ही उसे बेचा गया होगा और खरीदने वाले ने पैसे भी खर्च किया होगा उसे पाने के लिए, लेकिन उस समय से लेकर अभी छत्तीस साल का हो चुका महेश एक हाथ से दूसरे हाथ में बेचा जाता रहा है। जिस तरह की घटनाएँ उसके साथ घटी हैं वह दिल को दहला देने वाली हैं। एक आठ-दस साल के बच्चे को अप्राकृतिक यौनाचार के लिए मजबूर करना और धीरे-धीरे उसे इसी कुकृत्य के लिए अभ्यस्त कर देना समाज के कुरूपता को दर्शाता है, साथ ही उसके साथ घटी हुई घटनाओं को आज के सन्दर्भ में देखते हुए ऐसे हजारों बच्चे जो अपने घर से गायब हो जाते हैं, उनके साथ क्या-क्या होता होगा यह सोच कर मन कांप उठता है। एक बच्चे को ऐसी दुनिया में रखना की हाथ-पैर होते हुए भी उस दुनिया से बाहर उसे कोई और दुनिया नहीं दिखे, उसे एक लड़के से बदलकर लड़कियों वाले हाव-भाव अपनाने में कितना समय लगा होगा? कितने पीड़ादायक एहसासों से गुजरना पड़ा होगा? यह सब सोच कर मैं अपने नज़रों में ही शर्मिंदा महसूस करने लगा, क्योंकि अभी जब मैंने उससे बात नहीं किया था, मेरे मन में उसके प्रति घृणा का भाव था, मेरे जैसे समाज में ना जाने कितने लोग होंगे जो ऐसे महेशों को देख कर उनसे घृणा करते हैं / उसका मजाक उड़ाते हैं, मगर कोई भी ऐसे लोगों के जीवन में घटी दर्दनाक घटनाओं से परिचित नहीं होता ।

मैंने बातों का सिलसिला जारी रखा मगर सभी बातों को तो नहीं बता पाता है वह क्योंकि जो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को ही भूल गया हो, उसे और क्या-क्या याद रह सकता है । घर-परिवार होगा कहीं, पैदा करने वाले माँ-बाप भी होंगे, मगर भूल चूका है वह अपने परिवार को, जो उसे खरीद लेता है वही उसका मालिक /उसका उस्ताद होता है, उसका गुरु / उसका भगवान होता है। वह काम करता है, मगर उसके काम करने की मजदूरी नहीं मिलती, बस खाना-पहनना और उसी उस्ताद के साथ सो जाना, इतनी सी ही है उसकी जिंदगी। वह अपने उस्ताद से कितना प्यार करता है, बताने में उसे कोई संकोच नहीं, उसकी बातें इश्क़ को एक नई ऊँचाई प्रदान करती है, और हमारे जैसे लोग सोच में पड़ जाते हैं कि 'क्या सच में हमने कभी सच्चा इश्क़ नहीं किया?' 'क्या सच में हम अपने महबूब में रब को देखने से महरूम रह गए?' वह इश्क़ को बिल्कुल एक अलग ही तरह से परिभाषित करता है, जैसे महान कवियों ने / लेखकों ने कभी सोचा होगा, बावजूद इसके कि वह जानता है की उसके उस्ताद ने उसे ख़रीदा है पैसा देकर और जरूरत पड़ने पर बेच भी देगा। फिर उसका मालिक / उसका उस्ताद / उसका महबूब / उसका सबकुछ कोई और होगा। क्या वह अपने पहले के महबूब को कभी याद करता है? पूछने पर झेंप जाता है, और अंत तक जवाब नहीं देता, जैसे कोई गूढ़ रहस्यों वाली स्त्री हो। विडम्बना यह है कि, उसे समझाया नहीं जा सकता कि वह एक चलता-फिरता इंसान है, उसे कोई बेच नहीं सकता, कोई खरीद नहीं सकता, कोई उसे खाने-पहनने को देता है तो उससे काम करवाता है, उसका मेहनताना है। मैंने कोशिश की , उसे समझाया कि वह चाहे तो इतना ही मेहनत करके वह पैसे कमा सकता है, और पैसे बचा कर अपना एक परिवार, एक घर बना सकता है। मैंने उसे बताया कि पुलिस पकड़ सकती है उसके उस्ताद को अगर वह शिकायत दर्ज करता है तो, क्योंकि इक्कीसवीं सदी है यह और देश में इस तरह इंसानो को बेचना -खरीदना ज़ुर्म है। मैंने उसे भड़काया भी कि छोटे-छोटे बच्चों की तस्करी होती है, मज़बूर बच्चे कुछ नहीं कर पाते, मगर तुम तो जवान हो, तुम्हे कोई बेचता है तो तुम्हे कुछ मिलता भी नहीं, फिर भाग क्यों नहीं जाते, दिल्ली, सुरत, मुम्बई कहीं, मगर सब सिफ़र! वह अपने महबूब से जुदा होने के नाम से ही रोने लगता है। वह किन्नर नहीं, पुरुष है, जिसका पुरुषार्थ चूक गया है।

बिहार में शराबबंदी के बाद अपने उस्ताद के लिए उत्तर प्रदेश से शराब लेकर जा रहा था, पुलिस ने पकड़ लिया है, अब उस्ताद अपने घर पर और यह जेल में पड़ा हुआ है, यहाँ जेल से बाहर निकलने के लिए ज़मानत लेने वाला कोई चाहिए, इस जेल में जिस व्यक्ति का ज़मानत देने वाला कोई नहीं होता उसका अपराध कुछ हो या ना हो उसका जेल से बाहर निकलने का रास्ता बंद हो जाता है, ऐसे कई कैदी इस जेल में है जिन्होंने अपने अपराध की सजा को विचाराधीन कैदी की तरह ही काट लिया है, और फिर भी वे वर्षों से इस जेल में पड़े है, क्योंकि ऐसे लोगों के लिए जेल सबसे मुफीद जगह है, जहाँ दो वक्त का खाना तो मिलता है ना, रहने को छत तो है ना। मेरे बहुत समझाने के बाद महेश अपने परिवार से मिलने के लिए मुझे एक पत्र लिखने को बोला, मगर उसे अपने गाँव का पिन न. याद नहीं है, मुझे नहीं पता कि उसका पत्र उसके माँ-पिता तक पहुँच पाएगा या महेश अपनी आगे की जिंदगी भी इसी तरह नए गुरु-उस्तादों के साथ गुजार देगा। अब महेश को शायद अपने परिवार की याद आई है, अब शायद वह अपने परिवार से मिलना चाहता है।।


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