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S Saxena

Inspirational

4.5  

S Saxena

Inspirational

IAS की कहानी

IAS की कहानी

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एक बार की बात है। एक 21 साल की लड़की रोते हुए अपने पिता के पास आई। कहने लगी कि मेरा जिंदगी से विश्वास उठ गया है। मैं रोज-रोज की झंझावतों से उब गई हूं। जिस भी काम में हाथ डालती हूं वो होता ही नहीं। पढ़ने बैठती हूं तो पढ़ने में मन नहीं लगता। लिखने बैठती हूं तो हाथ साथ नहीं देते। भविष्य को लेकर मैं परेशान हूं। कुछ दूसरा करना चाहती हूं तो पहले वाले काम में मन लगा रहता है। मैं किसी भी काम में अपना शत प्रतिशत नहीं दे पा रही हूं। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं। ऐसी मुसीबतों को रोज-रोज झेलने से अच्छा मर जाना


बेटी की सारी बातों को उसका 55 साल का पिता बड़ी गौर से सुनता रहा। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस बेटी की परवरिश उसने इतने लाड़-प्यार से की है, मुसीबतों के सामने वो इस कदर टूट जाएगी। उसे लगा की उसके संस्कार में कही ना कही कमी रह गई है। कुछ देर तक सोचने के बाद उसे एक आइडिया आया है। आज वो अपनी बेटी को जिंदगी का वो पाठ पढ़ना चाहता था जिसे उसने अबतक बचा कर रखा था। ये वो अंतिम पाठ था जिसके बाद उसकी बेटी की जिंदगी बदलने वाली थी।


वो अपनी बेटी का हाथ पकड़कर सीधा किचन में ले गया। एक हाथ में आलू और दूसरे हाथ में फ्री में रखा अंडा लिया। फिर दोनों को 5 फीट की ऊंचाई से गिरा दिया। होना क्या था। आलू उछलकर दूसरी तरफ चला गया और अंडा फूट गया। उसकी बेटी ये सब बड़ी गौर से देख रही थी। वो बोली पापा आप क्या कर रहे हैं? पिता चुप रहा फिर उसने गैस पर दो पतीले चढ़ाए। एक में जमीन पर गिरा वो आलू डाला और दूसरे में फ्रीज से नया अंडा निकालकर। कुछ देर तक दोनों को उबलने दिया


फिर उसने आलू और अंडे को बाहर निकाल लिया। इसके बाद उसने एक पतीले में फिर से पानी चढ़ाया। अपनी बेटी से बोला कि इसमें चाय की पत्ती डालो। बेटी को समझ में नहीं आ रहा था कि पिता आखिर कर क्या रहे हैं? वो कहना क्या चाहते हैं? लेकिन इस उम्मीद में कि कुछ अच्छा होने वाला है वो चुपचाप पिता की बातों को मानती रही। चाय की पत्ती से भरे दो चम्मच उसने उबलते हुए पानी में डाल दिया। पानी के साथ चाय उबलने लगी। कुछ ही देर में पतीले में से पानी गायब हो गया अब उसमें चाय पूरी तरह से घुल चुकी थी। पिता ने बेटी से पूछा ये क्या है बेटी ने कहा चाय। पिता मुस्कुराने लगे।

 

पिता ने बेटी के सिर पर हाथ रखा। और फिर जो बातें उन्होंने कही उसने उसकी जिंदगी बदल दी। पिता बोले कि "बेटी हमारी जिंदगी भी इन्हीं आलू, अंडे और चाय की तरह हैं। कुछ देर पहले तक जिस आलू को अपनी अकड़ पर घमंड था वो गर्म पानी में जाने के बाद मुलायम हो गया मतलब उसने गर्म पानी के आगे सरेंडर कर दिया अपना असली स्वरूप छोड़ दिया। जिस अंडे को लोग संभालकर फ्रीज में रखते थे वो गर्म पानी में जाने के बाद सख्त और ठोस हो गया। यानी कि वो भी गर्म पानी के आगे टिक नहीं पाया और उसने भी सरेंडर करते हुए वही रूप धारण कर लिया जो गर्म पानी ने उसे दिया। जबकि चाय की पत्ती ने संघर्ष किया। उसने गर्म पानी के आगे सरेंडर नहीं किया। और देखो क्या हुआ गर्म पानी को हार माननी पड़ी। इस बार पानी ने ही अपना स्वरूप बदल लिया। दो चम्मच चाय की पत्ती अब दो कप चाय बन चुकी है। दुनियावालों को पानी नहीं दिख रहा, सिर्फ चाय दिख रही है।"


पिता ने बेटी से कहा "अब कुछ समझी। पतीले में ये जो गर्म पानी है उसे मुसीबत समझो। जो झेल गया वो चाय की तरह विजेता बनेगा और नहीं झेल पाया वो गर्म पानी रूपी मुसीबत में अपना सबकुछ खो बैठेगा। जबतक आलू और अंडे का गर्म पानी से पाला नही पड़ा था वो खुद को सर्वशक्तिमान समझते थे, लेकिन मुसीबत क्या आई उन्हें अपनी औकात पता चल गई। उन्होंने अपना असली स्वरूप ही खो दिया। हार मान ली। और हारता वही है जो संघर्षों से डरता है।"


किसी भी कंपटिशन की तैयारी कर रहे अभ्यार्थियों के लिए जिंदगी का हर पल मुसीबतों से भरी है। जब तक सफलता नहीं मिलती दुनिया उन्हें नकारा ही समझती हैं। वो चाहे दिन-रात पढ़े या फिर सोएं। दुनिया को इससे मतलब नहीं। मतलब है तो बस इससे कि रिजल्ट में नाम है कि नहीं। अगर आप भी रोज की मुसीबतों से डर गए तो फिर आपका अंजाम भी आलू और अंडे की तरह होगा। कुछ दिन बात आप भी नाकारा हो जाएंगे। दुनिया बोलेगी की तुम तो गधे हो और आप उसे मान लेंगे। और मन ही मन कहने लगेंगे कि वाकई मैं तो गधा ही हूं। आलू और अंडे की तरह आप भी अपना स्वरूप खो बैठेंगे। और उसी स्वरूप में पहुंच जाएंगे जिसमें दुनिया आपको देखना चाहती है। यानी गधा। आप माने या ना माने मां-बाप को छोड़कर बाकि पूरी दुनिया आपको तबतक गधा ही मानती है जबतक आप सफल नहीं हो जाते हैं। बस कहती नहीं हैं।


तो दुनिया की नजर में भले ही आप गधे हों लेकिन खुद को चाय की पत्ती समझिए। मुसीबतों से लड़ने का जज्बा पैदा किए। रणनीति बनाइए। चक्रव्यूह को भेदने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दीजिए। दुनिया वाले कुछ दिन तक आपको गधा समझेंगे लेकिन जब संघर्षों से लड़कर आप कुंदन बन जाएंगे तो यहीं दुनिया वाले कहने लगेंगे कि मैं तो पहले से जानता था कि आज नहीं तो कल ये लड़का/लड़की कुछ बड़ा करेगा। 

सारी मुसीबतें उसी तरह से आपके सामने सरेंडर कर देंगी जैसे कि चाय की पत्ती के सामने पतीले में रखे पानी ने कर दिया। और एक बात और मुसीबतों से लड़ कर ही विजय हासिल होती है, बचकर तो बुजदिल निकलते हैं। सोच बदलों, जिंदगी बदलो।


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