कश्मकश [ भाग 8 ]
कश्मकश [ भाग 8 ]
"मुझे क्यों बचाया ?"
रिया बिलखते हुए बोली,
"अब मेरे जीवन का कोई अर्थ नहीं है।"
"ईश्वर की दी हुई इस अनमोल भेंट का इस तरह से अपमान नहीं करते।"
- मैडम ने उसे प्यार से समझाया।
"एक राक्षस ने मेरे जीवन को तबाह कर दिया है। मेरी उम्मीदें, मेरे सपने...सबको मेरी आबरू के साथ तहस - नहस कर दिया है। अब मैं जी कर क्या करूँगी ?"
"किसी और के कुकर्मों की सज़ा अपने आप को क्यों दे रही हो रिया ?"
"इसलिए क्योंकि मैंने अपना सम्मान खो दिया है। अब मैं इस समाज को क्या मुँह दिखाउंगी ? मेरे माँ - बाबा पर मैं एक कलंक बन गयी हूँ। अब मुझे नहीं जीना..."
"क्यूँ रिया, जो हुआ उसमें तुम्हारा क्या कसूर ? तुमने जानबूझ कर कुछ गलत तो नहीं किया। गुनाह जिसने किया है उसकी सज़ा भी उसी को मिले। ये भला कैसा न्याय हुआ कि जो दरिन्दा अपने आनन्द के लिए बलप्रयोग से लड़की को विवश कर उसका भोग करे वह समाज में सीना तान कर घूमे। और बेचारी लड़की जिसका कोई दोष नहीं उसे ये समाज अपमानित कर अपने प्राणों की आहूति देने को मजबूर कर दे।"
"मैं टूट चुकी हूँ। अब मुझसे और सहन नहीं होता। वो घिनौनी यादें..."
- रिया ने अपना सिर पकड़ लिया। उसे उस हादसे की रात के स्मरण से ही चक्कर आना शुरू हो जाते थे।
"अब वो रात मेरे जीवन पर हमेशा के लिए छा गयी है। जाने कितनी बार मुझे वासना के उस भयानक आतंक से गुज़रना पड़ेगा..."
"लो पानी पी लो।"
रिया को पानी का गिलास पकड़ाते हुए मैडम बोली। कुछ क्षणों के उपरान्त रिया बेहतर महसूस करने लगी।
" अब ठीक हो ?"
मैडम ने उसके हाथ से गिलास लेते हुए कहा,
"अपने आप में इतनी हिम्मत पैदा करो कि उन परछाईयों से तुम लड़ सको। स्त्री कोई उपभोग की वस्तु नहीं है कि कोई भी हैवान आए और अपनी प्यास बुझाकर चुसी हुई गुठली की तरह उसका अस्तित्व ही मिटाकर चला जाए। हमें कोई भी कभी भी नहीं तोड़ सकता जब तक कि हम स्वयं हार न मान ले। नारी को शक्ति का स्वरूप माना जाता है। परन्तु हम स्वयं अपने आप को कमज़ोर मान लेते हैं। उसका एक कारण शायद यह है कि पुरूष का शारीरिक बल स्त्री से अधिक है। शायद यही डर हमें अपने आपको कमज़ोर मानने पर विवश कर देता है। पर ऐसा नहीं है रिया, यह सिर्फ हमारा वहम है।"
"आप के लिए यह कहना आसान है क्योंकि आपको उस तकलीफ़ का आभास ही नहीं जिससे मैं गुज़र चुकी हूँ।"
"ऐसा तुमसे किसने कहा ? मेरे साथ जो हुआ वो तो कहीं ज़्यादा भयानक था। तुम्हे पीड़ा देने वाला तो केवल एक था न...मेरा भोग तो न जाने कितनों ने किया। तुम्हें तो कष्टों से केवल दो ही दिन में मुक्ति मिल गयी। मुझ पर हुई यातनाओं का सफ़र तो काफ़ी लम्बा चला।"
रिया ने अचम्भित होकर मैडम की ओर देखा। उसे समझ में नही आ रहा था कि आखिर मैडम क्या कह रही थी। मैडम ने उसकी अवस्था को भाँप लिया और अपनी आप बीती सुनाने लगी।
"मेरे पिता एक गरीब किसान थे। हमारे गाँव मे हर महीने शहर से एक व्यापारी आता था। मेरे पिता ने उससे बहुत सारा कर्ज़ लिया था। जब वे कर्ज़ चुका न पाए तो उस व्यापारी ने मुझसे शादी करने का प्रस्ताव रखा। मैं उस समय केवल सोलह साल की थी पर उसकी बात मान लेने के अलावा मेरे परिवार के पास कोई और रास्ता न था। मुझसे विवाह करके वो मुझे शहर ले आया। पर उसकी मन्शा कुछ और ही थी। वह हनीमून के बहाने मुझे शहर के एक 5 स्टार होटल ले आया। रात को उसने मुझसे किसी बड़े आदमी के पास जाकर उसे खुश करने को कहा और मैंने मना कर दिया। इस पर उसने मुझे मार - मार कर अधमरा कर दिया। मैं फर्श पर पड़ी दर्द से कराह रही थी। उसने मुझे उठाया और पानी पिलाया। पर उसने पानी में कुछ नशे की गोलियाँ मिलायी थी। मुझे चक्कर आने लगा। वह मुझे उठाकर अपने क्लायिन्ट के कमरे मे छोड़ कर चला गया। एक धुन्धला - सा चेहरा मेरी ओर बढा। मुझे डर लग रहा था पर नशे की गोलियों ने मुझे सुन्न कर दिया था। मैं न चीख सकती थी न ही अपना बचाव कर सकती थी। धीरे - धीरे बेसुध होता मेरा तन उसके हाथों में खिलौना बनकर रह गया जिसके साथ वह मनचाही कामक्रीड़ा कर सकता था।
अगले दिन होश आया तो मुझे एक असहनीय पीड़ा का अहसास हुआ। साथ ही अपनी नग्नता का बोध भी हुआ। वह मुझे यूँ फेंक कर चला गया था जैसे कोई माँस को चूस कर अवशिष्ट फेंक देता है। उस दिन मैं बहुत रोयी पर ये तो सिर्फ शुरूआत थी।
वह मुझे दिनभर एक फ्लैट में कैद रखता। रात को शराब के नशे मे धुत होकर आता और मेरे साथ मारपीट करता। फ़िर मेरे मुँह में ज़बरदस्ती नशे की दवा की शीशी उड़ेल देता। उसके साथ एक स्त्री भी आया करती थी। वह मेरा मेकअप करती और ऐसे वस्त्र पहनाती जो तन ढकने से ज़्यादा उजागर करते थे। फिर या तो वो मुझे कहीं बाहर ले जाते या किसी को फ्लैट में बुला लेता, कभी एक व्यक्ति तो कभी पूरा गिरोह मेरे तन से अपनी प्यास बुझाता।
एक दिन इसी तरह ड्रग्स देकर कर वो लोग मुझे राका सेठ के बँगले पर ले गए। मेरी हालत देख कर वे समझ गए कि मुझे यहाँ ज़बरदस्ती लाया गया है। वे मेरे होश में आने का इन्तज़ार करने लगे। अगले दिन सुबह मुझे उस कठिन पीड़ा का अहसास न हुआ जो अक्सर होता था। बिस्तर से उठी तो राका सेठ सामने ही खड़े थे। मेरे तन पर कपड़े नाम मात्र के ही थे। मैं अपनी बाँहो में सिकुड़ने लगी तो उन्होंने अपना गाऊन मुझे पहना दिया।
"परिस्थितियों से लड़ कर अपने आप को स्वतन्त्र करने की हिम्मत अपने अन्दर पैदा करो।" - उन्होने कहा।
"पर मैं कहाँ जाउंगी ? इस अनजान शहर में मेरा कोई नही।"
"चाहो तो मेरे बिज़नेस मे शामिल हो जाओ। कहने को स्मग्लर हूँ। पर मेरे कुछ उसूल है। बेईमानी का काम भी ईमानदारी से करता हूँ।"
मैं सोच मे पड़ गयी तो वे बोले,
"सोच के बताना स्लीपिंग ब्यूटी।"
मैडम के कहे वो दो शब्द रिया के मन मे बिजली की तरह कौंध गए। रोहित भी उसे स्लीपिंग ब्यूटी ही बुलाता था।
"बस तब से मैं उनके साथ हूँ।"
पर रिया के कानो मे मेडम की बातें नही पड़ रही थी। उसे चक्कर आया और वह बेहोश हो गयी।
"बानो ! ज़रा मेरा फ़ोन ले आओ।"
- रिया को पलंग पर लिटा कर मैडम ने कहा।
"अरे...इसे क्या हुआ ?"
"तुम डाॅक्टर को फोन करो।"
बानो ने नम्बर मिलाकर मेडम को दिया।
"डाॅक्टर, रिया के टेस्ट के रिज़ल्ट्स आ गए क्या ?"
"ओह..." मेडम ने पलंग पर पड़ी रिया की ओर मुड़ कर कहा। उनके मुख पर चिन्ता का भाव था।