काल गणना
काल गणना
चाय का कप रखा ही था कि भोला ने कुरियर से आया लिफ़ाफ़ा दिया। पढ़ते ही एक वज्रपात सा हुआ... कोर्ट से मकान खाली करने का नोटिस मिला था.. दस दिन की अवधि दी गई थी ..कोई मि० मेहता आ रहे हैं रहने के लिए।
कैसे कर सकता है मेरा बेटा ऐसा मेरे साथ ?.. पिछली बार आया था तब बोल रहा था," पापा आप लोग भी रूस आ जाइए मेरे पास... यहां कब तक अकेले रहेंगे ?
कहते हुए उसने एक कागज़ आगे कर दिया था, "पापा इस पर भी दस्तख़त कर दीजिए जिससे वीजा की जरूरी औपचारिताएँ समय रहते पूरी कर ली जाए।"
सामने टँगी घड़ी की टिक-टिक मुझे समय की गति से भी तेज चलती हुई महसूस हुई और वह मुझे अपने साथ बहाती हुई उस क्षण में ले गई .... जब चारपाई पर बैठे हुए बाबूजी और ताऊजी शाम की चाय पी रहे थे और मैं वहीं खड़ा उनको बाध्य कर रहा था, "यहां का सब दुकान, खेत मेरे ही नाम होना चाहिए।"
मैं मेरे सहोदर, चचेरे भाई जो सब बाहर हैं उनको एक फ़ूटी कौड़ी भी देने के पक्ष में नहीं था।
मेरे उन्मादी मस्तिष्क के लोभ भरे निर्णय से घर के शांत वातावरण व एकता को बचाने की कवायद में यह हवेली ताऊजी ने मेरे नाम कर दी थी तथा बाऊजी और वे खुद ...मेरे अन्य भाइयों के पास रहने के लिए चले गए थे।
मैं इतने सालों से इसी दम्भ में जी रहा था कि जो समय को मुट्ठी में कर लेता है वही बादशाह होता है।
परन्तु आज.... आने वाले तूफान के कदमों की आहट मात्र से ही इस सर्द मौसम में भी मैं पसीने-पसीने हो गया था।
मेरी सोच ही मुझे कचोट रही है, "क्यों भूल गया था मैं ? जीवन में लालच, लोभ व ईर्ष्या रूपी जो कीचड़ है वही एक दिन दलदल का रूप ले लेगा और समय का गति चक्र मुझे उसी में गर्दन तक धंसा देगा। अब घड़ी की प्रत्येक टिक-टिक नश्तर बन कर मेरे दग्ध हृदय को चीरती हुई महसूस हो रही थी।