परवरिश
परवरिश
राहिल और तसनीम अपनी ज़िंदगी पुर सकून तरीक़े से गुज़र रहे हैं। उनकी इस छोटी सी दुनिया की रौनक़ बेटी है, उन दोनों ने बेटी असमा की परवरिश बचपन में, अपने घर में काम करने वाली, आंटी से इज़्ज़त से पेश आना, उसने देखा था अम्माँ और बाबा किसी भी ज़रुरतमंद आ जाता तो कभी ख़ाली हाथ नहीं जाता था, जो राहिल और तस्नीम से बनाता उसकी मदद करते, वही आदतें आसमाँ में क़ुदरती आ गई थीं।
वक़्त कब गुज़र जाता है, पता ही नहीं चलता। आज राहिल और तस्नीम असमा के घर आए हुए हैं और असमा की बड़ी बेटी की दसवीं सालगिरह पर आए हुएं हैं। दोनों नवासियां बड़ी ख़ुश हैं, मोहब्बत, ख़ुलुस से पेश आती हैं। उनके घर आने वाली मौसी हो या कहीं रेडलाइट पर मांगने वाले बच्चों से पेन, या कुछ भी बेचते दिखते तो समीर और बच्चियां फौरन ख़रीद लेते हैं और उन चीज़ों को इकठ्ठा करके पास अनाथ आश्रम में ज़रुरत मंद बच्चों में बांट आते हैं। "असमा और समीर" का कहना रेडलाइट वाले बच्चों को भीख मांगने से बचाना है। हमारे ख़रीदने से पैसे मिल जाते हैं। ज़रुरतमंद बच्चों को पेन, पेन्सिल छोटेमोटे खिल्लोने पा कर ख़ुश हो जाते हैं।
आज असमा अपने घर के काम से फ़ारिग हो कर केक बेक कर रही थी, वो केक आर्डर पर बनाती है, होम्स बेकर के तौर पर। तस्नीम ने असमा से पूछा क्या❓ कोई आर्डर है केक का उसने कहा नहीं अम्माँ , ये केक तो मैं अपनी मेड "सुजाता के बेटे" मनीष" का बर्थडे है उसके लिए बना रही हूँ। तस्नीम थोड़ा सा मुस्कुराती हैं
आसमाँ पूछती है क्यों मुस्कुरा रही है आप देखो न आज तुम्हारी मेड ने छुट्टी भी कि है सारे घर के काम निपटा कर तुम उसके बेटे के लिए केक बना रही है, वो क्या हे न अम्माँ जबसे मैंने केक का काम स्टार्ट किया है, तब से मैंने तय किया है "सुजाता के दोनों बच्चों के बर्थडे का केक बनाकर, ख़ुद देकर आती हूँ उसके घर बच्चे बड़े ख़ुश हो जाते हैं। अम्माँ वो कहाँ इतने मंहगे ख़रीद पाते हैं। बेकरी से बस मुझे भी सुकून मिलता है। उन बच्चों की बर्थडे पर थोड़ी सी ख़ुशी दे कर, सुजाता और उसके घर के लोगों को थोड़ी सी ही सही मैं कुछ कर पाती हूँ उन लोगों के लिए जो मुझसे जुड़े हैं, मेरे घर में काम करते हैं, वो भी बहुत अहम है, मेरे घर के मेम्बर जैसे हैं।
तस्नीम ने गहरी सांस ली और अल्लाह का शुक्र अदा किया। हमारी बेटी की परवरिश, अच्छी हुई।
मेरी नातिन भी यही अच्छी आदतें सीखेंगी।" असमा और समीर से।
असमा की मेड सुजाता एक दिन तस्नीम अकेली थी तो ऐसे ही इधर-उधर की बात चल रही थी तो कहती है मम्मी जी आपकी "बेटी "यानि दीदी बहुत अच्छी है। अभी इस ही महिने मेरे दोनों बच्चों का बर्थडे आता है दीदी हमेशा केक बना कर देने आती है । और समीर भय्या भी बहुत अच्छे है। जब कभी छुट्टी वाले दिन मैं चाय नहीं बना पाती हूँ तो ख़ुद मेरे लिए चाय चढ़ा देते हैं दीदी काम में लगी होती है तो। आप क़िस्मत वाले हो ईश्वर ने इतने अच्छी बेटी और दामाद दिये हैं।