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मंझधार

मंझधार

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"फेसबुक पर अब तो रोज स्टेटस डालता है, बहुत खुश है, हो भी क्यों नहीं। सारी टीम वहीं तो है उसके स्कूल मेट्स की, कहता है- पापा मैं तो यहां बेकार में अपना समय बर्बाद कर रहा था, अब यहाँ कैनेडा में आकर लगता है कि कुछ न कुछ तो हो ही जायेगा।" दोस्त मुस्कुराते हुए बताने लगा। उसका बेटा छह महीने पहले केनेडा चला गया था।

करता भी क्या, कोई ऑप्शन ही नहीं रही। अच्छा खिलाड़ी था, बीटेक भी अच्छे नम्बरों से की थी पर प्राइवेट सेक्टर में कितने धक्के खाने के बाद भी कम सेलरी और बेकार की मगजमारी ने उसे थका दिया था। वो मानसिक तौर पर परेशान रहने लगा। उसके साथ पढ़ने वाले मित्र तो आखिरकार कैनेडा जाकर सेटल हो गए थे। कितनी बार उसे फोन करते, "राजिंदर यार यहाँ आ जाओ, वर्क कल्चर है, इज्जत है, अनुशासन और नियम कानून भी लोग मानते हैं। बाकी नागरिकों को सब सुख सुविधाएं भी खूब मिलती है। अपने देश मे तो भारी टैक्स देने के बावजूद भी लाखों परेशानियां हैं।"

इधर राजिंदर अपने माँ बाप का इकलौता लड़का था, उसे हमेशा अपने माँ बाप को अकेले छोड़ने की चिंता रहती। वो पंजाब से था पर पंजाब में बीटेक वालों के लिए नौकरी कहाँ, उसे बेंगलोर आना पड़ा। घर और माँ बाप की चिंता उसे कहीं न कहीं परेशान करती। कम्पनी भी पूरा लहू निचोड़ती, छुट्टी बड़ी मुश्किल से मिलती। दूरी तो थी ही, कौन वो एक दिन में मिल कर लौट सकता था।

इस बार जब राजेन्द्र घर आया तो पिता जी ने उसकी चिंता देखी। उन्होंने महसूस किया कि बेटा अपना शरीर और मानसिक शांति गंवा रहा है।

"बेटे देखो हम तो तेरी खुशी में ही खुश है तो चिंता मत कर, अगर यहां काम सेट नहीं है और तेरे दोस्त तेरे लिए कैनेडा में सेटलमेंट देख रहे हैं तो तू चला जा। साल छह महीने में अपनी सेटलमेंट कर ले। फिर हम भी वीजा अप्लाई कर देंगे और तेरे साथ ही चल कर रहेंगें। हमारा सब कुछ तो तू ही हैं। बस, हम सब इकठ्टा रहे। क्या देश और क्या परदेश। जहां मन को शांति हो, वहीं सब कुशल मंगल है। तेरे दोस्त रमेश के पापा-मम्मी भी वही सेटल है, हमारे भी अच्छे मित्र हैं, वो रह सकते हैं तो क्या हम न रह पाएंगे और फिर हम भी तो जरा फौरन-वौरन घूम ले। हम भी फेसबुक पर तेरे साथ स्टेटस डाल कर थोड़ा रुआब दिखाए लोगों को।"

पिता ने बेटे को प्रोत्साहन देते हुए कहा।

राजिंदर खुश था कि परिवार भी साथ रहने को तैयार है। उसने अगले ही दिन कनाडा की कम्पनी में अप्लाई किया। वेब कैम से इंटरव्यू दिया और महीने में उसका कॉल लेटर आ गया। उसका दोस्त भी उसी कम्पनी में मैनेजर था। एक महीने बाद कैनाडा चला गया।

आज उसके पिता एक समारोह में मिले तो हाल चाल पूछ लिया।

"राजिंदर तो अब शाम को वहां के फुटबॉल क्लब में भी जाता है, खेल में भी अच्छा तो था ही। उसके स्कूल के तीन साथी भी वही टीम में हैं। अच्छी पट रही है, कह रहा था, अब हम दोनों के लिए एप्लीकेशन लगा दी है। तीन चार महीने तक वीजा हो जाएगा फिर चले जायेंगे।" उसके पिता प्रसन्नता से बता रहे थे।

मुझे उनकी आँखों मे एक विछोह भी महसूस हुआ। जब उन्होंने कहा, "जिंदगी भी कितनी अजीब है, आदमी को कहाँ-कहाँ ले जाती है, तुम सब याद आया करोगे।"


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