आओ सखी चुगली करें
आओ सखी चुगली करें
आज शाम टेबल पर एक बड़ा सा लिफाफा पड़ा हुआ दिखा। लिफाफे को उठाया तो ऊपर अपना ही नाम लिखा पाया। उलट- पुलट कर प्रेषक का नाम पता देखने की कोशिश की तो एक कोने में कुछ दिखता सा और कुछ छिपता सा एक नाम दिखा " अखिल भारतीय चुगली महासभा " । इस नाम को पढ़ते ही हमारी बांछें खिल गयीं। आखिरकार हमारे पास भी इस सम्मानित संस्था का एक पत्र आया ।
बिना देर किए लिफाफा फाड़ कर देखा, एक छोटी सी चिट थी जिसमे हमे चुगली गोष्ठी हेतु आमंत्रण मिला था साथ ही हमें इस संस्था का सदस्य भी स्वीकार कर लिया गया था।
चुगली गोष्ठी की तरफ से चुगली करने हेतु निमंत्रण मिलने पर हम बहुत खुश हुए। आखिर कई दिन से दिल मे तमन्ना थी इस समूह में शामिल होने की। एक महिला अगर इस चुगली सभा मे शामिल न हो सके तो इससे शर्मनाक बात क्या हो सकती है! हालांकि चुगली तो स्त्री- पुरुष- बच्चे सभी करते हैं मगर चुगली का ताज तो हमेशा महिलाओं के सिर पर ही सजता है।
अच्छे से अच्छी सभा व्यर्थ हो जाती है अगर वहां कुछ चुगली न हो। बिना चुगली वाले समारोह बिल्कुल ऐसे फीके लगते हैं जैसे पकवान तो मनोयोग से पकाया गया मगर उसमे नमक नहीं डाला गया।
यूँ तो चुगली को बड़े- बुजुर्ग त्याज्य कहते हैं मगर चुगली दिल के लिए एक बहुत अच्छी दवा का काम करती है और दिमागी सुकून की इससे अच्छी खुराक आज तक नही बनी। चुगली के बाद ,चुगली करने वाली के चेहरे पर जो चमक आती है उसके आगे महंगे से महंगा फेशियल भी बेकार है।
बहरहाल,वर्षों की तमन्ना आज यूँ पूरी हो जाएगी ये सोचा न था। अब तो मैं भी सबको शान से कह सकूंगी कि मैं भी चुगली सभा की सदस्य हूँ। मुझे वो दिन याद आ गए जब महिलाएं मेरे आते ही अपनी चुगली गाथा छिपाने लग जाती थी कि कहीं इस रास का स्वाद मेरे मुँह न लग जाए और मेरे पूछने पर बड़े भोलेपन से कहती थी,' हम तो ऐसी तेरी मेरी चुगली से दूर रहते है बहन'।
हुहह! जल मरेगी अब जब मैं उनको ये पत्र दिखाकर बताऊंगी, सोचते हुए मैंने उस चिट को जब आंखों के आगे लहराया तो और कुछ भी लिखा था जो संस्था के नियम थे।
पहला और एकमात्र नियम था कि आपको दिन में एक बार चुगली करना अनिवार्य होगा।
इसमें कौन सी बड़ी बात है, कर लूंगी!", ये सोचकर मैं कुर्सी पर आराम से बैठकर उस प्रशस्ति पत्र जैसे लिफाफे को देखने लगी। अचानक ध्यान आया कि कल की गोष्टि के लिए कुछ तैयारी तो कर लूं! ऐसी चुगली करुँगी कि सबकी बोलती बंद हो जाए क्योंकि फर्स्ट इम्प्रेशन इज़ द लास्ट इम्प्रेशन।
गर्व से तनकर मैं शीशे के सामने खड़े होकर खुद को देखने लगी। आज से पहले मेरे चेहरे पर इतना आत्मविश्वाश कभी नही दिखा था। आंखे बिना गुलाबजल के बिल्कुल साफ चमकदार दिख रही थीं। मैं खुद पर इतरा ही रही थी कि तब तक मेरे अक्स ने कहा कल की गोष्ठी की तैयारी तो कर लीजिए मोहतरमा!
"ओह हाँ, भाइयों और बहनों... अरे नहीं इस सभा में पुरुष तो शामिल है ही नहीं तो फिर केवल बहनों! हम सभी आज इस चुगली गोष्ठी में अपनी चुगलखोरी की कला का प्रदर्शन करने आयें है। मैं भी आज आपके आगे कुछ कहना चाहती हूँ, वो ये ...।", कहते - कहते मैं अटक गई। क्या कहा जाए। चुगली किस तरह करनी चाहिए! इसका भी कुछ व्याकरण - नियम तो होगा! शुरुआत कैसे करें।
अब तो मेरे पसीने छूटने लगे। ऐसा लगा परीक्षा में बैठने के पहले ही परिणाम की घोषणा हो गई। मन ही मन खुद पर गुस्सा आया। जब घर की महिलाएं, सहेलियाँ इस चुगली रस का आस्वादन करते थे तब मैं किताबों में अपनी आंखें फोड़कर अपना समय बर्बाद कर रही थी।
हाय! अब किससे ये कला सीखूं।
स्कूल - कॉलिज कहीं भी तो इस कला को विषय के रूप में नहीं पढ़ाया गया जबकि जासूसी भी चुगलखोरी के बिना असम्भव है। कित्ते फायदे है इसके ! प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक का लगभग पूरा इतिहास इसी की नींव पर टिका है फिर भी इसे विषय के रूप में पढ़ाने की जिम्मेदारी किसी ने नहीं समझी।
शायद गूगल बाबा पर मेरी समस्या का समाधान हो, ये सोचकर झट लेपटॉप पर उनकी सहायता के लिए निवेदन किया मगर अफसोस, इस मामले में उनका ज्ञानकोष भी खाली था।
अब क्या करूँ? किससे सीखूं? नाम तो कई याद आ रहे हैं, उनको ही फोन लगाकर गुरु मान शिक्षा लेती हूँ । यदि आपके पास भी चुगलखोरी से सम्बंधित कुछ जानकारी हो तो मुझे अवश्य बताएं। मैं तब तक फोन मिलाती हूँ आखिर गाल पे हाथ धरे बैठने से तो कुछ नहीं होगा न।