झूठ खुल ही जाता है
झूठ खुल ही जाता है
मैंने सुना कि मम्मी कॉरीडोर में किसीसे कह रही थी: “...झूठ हमेशा खुल ही जाता है।’
और जब वह अन्दर कमरे में आई तो मैंने पूछा: “मम्मी, इसका क्या मतलब है कि “झूठ हमेशा खुल ही जाता है ?”
“इसका मतलब ये है कि अगर कोई बेईमानी करता है, तो कभी न कभी इस बारे में पता चल ही जाता है और तब उसे शर्मिन्दा होना पड़ता है, और उसे सज़ा मिलती है,..”
मम्मी ने कहा। “समझ गए ?...चल, सो जा !”
मैंने दाँतों पे ब्रश किया, लेट गया, मगर सोया नहीं, बल्कि पूरे समय सोचता रहा, ‘ऐसा कैसे होता है कि झूठ खुल जाता है ?’ और मैं बड़ी देर तक नहीं सोया, मगर जब आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी, पापा काम पर जा चुके थे और मैं और मम्मी अकेले थे। मैंने फिर से दाँत ब्रश किए और नाश्ता करने लगा।
पहले मैंने अंडा खाया। ये तो फिर भी बर्दाश्त हो गया क्योंकि मैंने सिर्फ उसकी ज़र्दी बाहर निकाल ली और छिलके समेत सफ़ेदी के इतने बारीक-बारीक टुकड़े कर दिए कि वह दिखे ही नहीं, मगर इसके बाद मम्मी पूरी प्लेट भरके सूजी का पॉरिज लाई।
“ये भी है !” उसने कहा “बिना बहस किए !”
मैंने कहा: ”बर्दाश्त नहीं कर सकता ये सूजी का पॉरिज !”
मगर मम्मी चिल्लाने लगी: “देख, तू किसके जैसा हो गया है ! बिल्कुल दुबले-पतले खूसट बूढ़े जैसा ! खा तुझे अपनी सेहत बनानी होगी।”
मैंने कहा: “वो मेरे गले में अटक जाता है !”
तब मम्मी मेरी बगल में बैठ गई, कंधे पकड़ कर मुझे सीने से लगाया और बड़े प्यार से पूछा: “क्रेमलिन जाना चाहते हो ? चलो, हम-तुम जाएंगे ?”
वाह, क्या बात है...क्रेमलिन से ज़्यादा ख़ूबसूरत कोई और जगह मुझे मालूम ही नहीं है। मैं वहाँ हथियारों वाले हॉल में गया था, त्सार-तोप के पास खड़ा था, और मुझे यह भी मालूम है कि ईवान-ग्रोज़्नी कहाँ बैठता था। वहाँ और भी मज़ेदार चीज़ें हैं इसलिए मैंने मम्मी को फ़ौरन जवाब दिया: “बेशक, क्रेमलिन जाना चाहता हूँ ! बहुत जाना चाहता हूँ !”
तब मम्मी मुस्कुराई: “तो, पहले ये पूरी पॉरिज ख़त्म कर ले, फिर जाएँगे। तब तक मैं थोड़े बर्तन धो लेती हूँ, इतना याद रख तुझे पूरा का पूरा खाना है !” और मम्मी किचन में चली गईं।
मैं पॉरिज के साथ अकेला रह गया। मैंने उसे चम्मच से हिलाया, फिर उसमें नमक डाला, चख के देखा – ओह, खाना नामुमकिन है ! तब मैंने सोचा कि हो सकता है इसमें शक्कर कम हो गई हो ? शक्कर छिड़क दी, चखा...अब तो ये और भी बुरा हो गया। मुझे तो पॉरिज अच्छा ही नहीं लगता, मैं कहता तो हूँ।
ऊपर से वह इतना गाढ़ा था, अगर वह थोड़ा पतला होता, तो दूसरी बात थी, मैं आँखें बन्द करके पी जाता। अब मैंने पॉरिज में गरम पानी डाल दिया. फिर भी वह चिपचिपा, फिसलन भरा और बेहद बुरा ही रहा, उलटी आ रही थी। ख़ास बात ये थी कि जब उसे मैं निगल रहा हूँ तो मेरा गला जैसे सिकुड़ रहा है और पॉरिज को बाहर धकेल रहा है। ख़तरनाक, अपमानजनक ! मगर क्रेमलिन तो जाना है ना ! और तब मुझे याद आया कि हमारे यहाँ मूली का अचार है। ऐसा लगता है कि मूली के अचार के साथ हर चीज़ खाई जा सकती है ! मैंने अचार का पूरा डिब्बा पॉरिज में उड़ेल दिया मगर जब मैंने थोड़ा सा चखा तो मेरी आँखें मानो ऊपर चली गईं, साँस रुक गई, और मैं शायद अपने होश खो बैठा क्योंकि मैंने प्लेट उठाई, जल्दी से खिड़की के पास भागा और पॉरिज को रास्ते पर फेंक दिया. फिर फ़ौरन वापस आकर मेज़ पर बैठ गया।
तभी मम्मी आ गई। उसने प्लेट की ओर देखा और ख़ुश हो गई: “ओह, डेनिस, प्यारा डेनिस, अच्छा बच्चा डेनिस ! पूरी पॉरिज ख़तम कर ली ! तो, उठ, कपड़े पहन, वर्किंग मैन, हम क्रेमलिन घूमने जाएंगे !” और उसने मेरी पप्पी तभी दरवाज़ा खुला और कमरे में पुलिस वाला आया, उसने कहा: “नमस्ते !” और उसने खिड़की के पास जाकर नीचे देखा, “और ये पढ़े लिखे लोग है“आपको क्या चाहिए ?” मम्मी उसकी ओर देखती रही और सख़्ती से पूछा.
पुलिस वाला अटेन्शन में खड़ा था.
“आपको शर्म आनी चाहिए ! सरकार आपको नया घर देती है, सारी सुविधाओं के साथ और, साथ ही कूड़ा डालने की पाइप भी देती है और आप हैं कि हर तरह की गन्दगी ऐसे बाहर फेंकते हैं..."
“इलज़ाम मत लगाइये, मैं कुछ भी नहीं फेंकती।"
“आह, नहीं फेंकती हैं ?” पुलिस वाले ने ज़हरीली हँसी से कहा और कॉरीडोर वाला दरवाज़ा खोलकर चिल्लाया: “पीड़ित व्यक्ति !”
और कोई अंकल हमारे घर में घुसा, जैसे ही मैंने उसकी ओर देखा, मैं फ़ौरन समझ गया कि अब क्रेमलिन नहीं जाऊँगा।
इस अंकल के सिर पर हैट थी और हैट के ऊपर हमारा पॉरिज। वह हैट के बिल्कुल बीचों-बीच पड़ा था, गहरे वाले गड्ढे में, और थोड़ा सा हैट की किनार पर भी था, जहाँ रिबन होती है, थोड़ा सा कॉलर के ऊपर, और कंधों पर, और बाएँ जूते पर. जैसे ही वह अन्दर घुसा, लगा हकलाने:
“ख़ास बात ये है कि मैं फोटो खिंचवाने जा रहा था... और अचानक ये लफ़ड़ा...पॉरिज...स् स् ...सूजी का...गरम, और ऊपर से हैट से होकर और...जला रहा है...अब मैं अपना..फ् फ् फोटो कैसे भेजूँ, जब मैं पूरा पॉरिज में लथपथ हूँ ?”
अब मम्मी ने मेरी ओर देखा, और उसकी आँखें हरी हरी हो गईं, जैसे गूज़बेरी, ये पक्का इस बात का लक्षण है कि मम्मी को बड़ा ख़तरनाक गुस्सा आया है।
“माफ़ कीजिए, प्लीज़,” उसने धीरे से कहा, “प्लीज़ इजाज़त दीजिए, मैं आपको साफ़ कर देती हूँ, इधर आ जाइए !”
और वे सब कॉरीडोर में चले गए। और जब मम्मी वापस आई, तो मुझे उसकी तरफ़ देखने में भी बड़ा डर लग रहा था. मगर मैंने हिम्मत बटोरी, उसके पास गया और बोला: “हाँ, मम्मी, तुमने कल सच ही कहा था। झूठ हमेशा खुल ही जाता है."
मम्मी ने मेरी आँखों में देखा। वह बड़ी देर तक “अब ये बात तुझे ज़िन्दगी भर याद रहेगी !” और मैंने जवाब दिया:
“हाँ।”