जीवन की परिभाषा
जीवन की परिभाषा
भरा-पूरा परिवार, चार बहनें, एक भाई, माँ-बाप के साथ सुखमय जीवन। बचपन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता। बच्चों का बचपन, जवानी, पढ़ाई-लिखाई, करियर इन सब के बीच में बच्चे कब बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।
चारो बहनें व भाई की पढ़ाई पूरी हो गयी। भाई पिता के व्यापार में लग गया। अब माँ-बाप की ज़िम्मेदारी थी कि सबकी अच्छे घरों में शादी हो जाये। ईश्वर ने सब कुछ अच्छा किया और एक-एक कर के चारो बहनें अच्छे घरों में ब्याह दी। भाई की भी अच्छे घर परिवार से लड़की मिल गयी।
वक्त कैसे बीता पता ही नहीं चला। सब भाई-बहनो के बच्चे हुए और देखते ही देखते बड़े हो गए। सब अपनी ज़िम्मेदारियाँ बखूबी निभा रहे थे।
जीवन तो एक चक्र है, माँ-बाप बूढ़े हो गए, पिताजी बीमार रहने लगे। एक तो बुढ़ापा ऊपर से बीमारी, काफी मुश्किल समय आ गया। सब भाई-बहनो ने एक जुट हो कर पिता की सेवा की, इलाज करवाया परन्तु काल का चक्र तो रुकता नहीं, पिताजी का बीमारी के चलते देहांत हो गया। ऐसा लगा की सारा परिवार बिखर गया। जिन माँ-बाप ने अपने बच्चों को माला की तरह पिरो कर रखा था, टूट कर बिखर गया और उसका कारण था पैसा। जब तक पिताजी थे, सारा काम एवं जायदात सँभालते थे। उनके मरते ही सब भाई-बहनो की निगाहें पैसों पर आ गयी । रिश्ते को टूटते बिखरते देर नहीं लगती। वही हुआ सबको अपनी पड़ी थी, सब अपने घर में अच्छे थे पर पैसों की चाह बिखेर दिया। रिश्तों के बीच में पैसा आ गया। रिश्तों की मर्यादा सब भूल गए थे। ऐसा लगा रिश्ते इतने खोखले कैसे हो सकते हैं। उस माँ की तो सोचो जो समझ नहीं पा रही थी कि इस तरफ जाऊँ या उस तरफ। जो परिवार एक खुशहाल परिवार माना जाता था, वह टूट कर बिखर गया।
माँ-बाप बच्चों की परवरिश में पूरा जीवन लगा देते हैं पर औलाद बिखेरने में सिर्फ एक पल लगाती है। इसे जीवन की कड़वी सच्चाई कहे या कुछ और, समझ से बाहर है इस जीवन को समसझना। क्या इसी को जीवन की परिभाषा कहते हैं?