खबरों वाली दुकान
खबरों वाली दुकान
व्यस्तताओं के कारण कभी कभार गांव जाना होता है और यकीन मानिए जिस प्रकार किसी न्यूज चैनल पर अगली पिछली खबरें मिल जाती हैं वैसा ही काम गांव के हज्जाम की दुकान मेरे लिए कर देती हैं। कभी उसे नाई की दुकान कहते थे अब उसका अपडेट वर्जन हेयर कटिंग सेलून हो गया है। हेयर के स्पेलिंग चाहे हीयर पढ़े जा रहे हो, पर बड़ी बात ये है कि गांव के सबसे तेज न्यूज चैनल की जगह यही है, यही है, यही है।
इस दुकान की स्थापना कल्ली नाई मतलब कालूराम नाई ने की थी। शुरुआती दिनों में ये एक ओपन मतलब खुले आसमान के नीचे गांव की एक धर्मशाला की दीवार से सटी दुकान थी। शीशा हजामत करने वाले के हाथ मे दे दिया जाता और कल्ली नाई ग्राहक को अपने सामने अपने जैसी मुद्रा यानि उकड़ू बैठा लेता। बीच बीच मे कल्ली अपनी पोजिशन बदल लेता। दाढ़ी बनवाओ चाहे बाल कटवाओ। होम सर्विस भी थी उसकी। गांव के बड़े ठाकुर जिमिंदार, बाबू लोग की हजामत उनके घर जाकर भी करता। शरीर के गुप्त भागों के बाल जहां तक उसे आज्ञा होती, भी काट देता। किसी के बच्चे का मुंडन संस्कार हो, ब्याह की चिठ्ठी देने जाना हो, कल्ली को बुलाया जाता। फिर उसके बच्चे भी उसके काम मे हाथ बंटाने लगे। सरपंच और गांव के लोगो ने कल्ली को दस बाई दस की पक्की जगह दे दी। कल्ली की दुकान अब छत, कुर्सी, बड़े शीशे और खुशबूदार क्रीम, फिटकरी, कैंची, उस्तरा, इलेक्ट्रिक मशीन से सुसज्जित हो गई। कुछ अखबार भी वहां पाए जाने लगे। बैठने के लिए एक बेंच डाल दिया गया। समय बदलता रहा, ब्याह की चिट्ठी वाले काम से नाई बाहर हो गए, कल्ली भी अपने बेटों के साथ अपनी दुकान में व्यस्त हो गया। नई उम्र के लौंडे नए फैशन के बाल कल्ली के बेटों से कटवाते। बूढ़े बुजुर्ग कल्ली संभालता। यूं कल्ली अब कटिंग का काम कम ही करता था। चश्मा भी उसके लग गया था। उसका ज्यादा काम तो दुकान में पड़े बेंच पर बैठकर बाबू लोगो की अखबारी चर्चा सुनना था या गांव की कोई नई घटना और किससे लोगी के साथ शेयर करना होता।
कल्ली की दुकान के आगे से दो लाठियों को दाएं बाएं पकड़े बूढ़ा हीरा गुजरा। उसे आंखों से भी कम दिखता था। वो गाता हुआ जा रहा था, ' हरि के भजन बिना जिया नही जाय'। वो अक्सर यही भजन गाते गांव की गलियों से गुजरा करता था।
मैंने कल्ली की दुकान में बैठे बैठे कल्ली को साथ बैठे ग्राहकों से बात करते सुना।
"टाइम टाइम की बात है, एक समय दीवारे फांदता था ये हीरा। अब देखो।"
"हां भाई अपने कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है सबको।"
"चोर था पक्का, फिर साले को इश्क का भूत चढ़ गया।"
"हां, अब भैया पराई औरत को रात बिरात मसाज सेवा देने जाओगे तो इतना तो भुगतना ही पड़ेगा।"
'पर साला था शिकारी, जैल सिंह की बहू पता नही कब कैसे पटा ली। कहते हैं शीतल माता मंदिर के मेले में ही नैन मटक्का लड़ा और फिर बिस्तर तक पहुंच गया।'' बीड़ी पीते एक बुजुर्ग ने जैसे स्वाद लेकर कहा।
"फिर अंजाम देख लो, उस दिन दिसम्बर के महीने की अमावस वाली रात थी। कड़क सर्दी। जैल सिंह रात को खेत मे पानी देने गया था, और ये हीरा दीवार फांदकर उनके चुबारे पर चढ़ गया। वहीं जैल सिंह की बहू आ गई। बस अभी काम बीच मे ही था। जब अडोस पड़ोस की छत से जैल सिंह ने अपने भाइयों बेटों के साथ धर दबोचा। लाठियों से पीट पीट कर अधमरा कर दिया और टांगे तोड़कर हीरा के दरवाजे के आगे फेंक गए। "
"हाँ भाई, बहुत मारा इसे, ऊपर से चोरी का इल्जाम लग गया। पुलिस थाने में इसका नाम दर्ज था ही। वो दिन और आज, अब देखो लंगड़ाता हुआ हरि भजन गाता है। कोई पूछता है कि टांग कैसे टूटी तो कहेगा बोरवेल वाले कुएं में गिर गया था काम करते करते। "
"हरामी है एक नम्बर का, सुना है अब भी चोरी का मौका मिले तो टलता नही।'
"अच्छा, अब भी !"
"हां हां बिल्कुल, रज्जु मिस्त्री के बेटे की शादी थी। हलवाइयों के पास जाने कब पहुंच गया और धीरे से घी का डिब्बा कम्बल में लपेटकर जा रहा था कि हलवाइयों ने पकड़ लिया। लगा मिन्नते करने, गिड़गिड़ाने, हलवाइयों ने भगा दिया।"
"हम्म ये तो हाल हैं।" सब हसने लगे।
अब कल्ली की दुकान में एक और परिवर्तन हुआ। अम्बेडकर की फोटो लग गई, काशीराम और बहुजन समाज पर चर्चा शुरू ही गई। कुछ कामरेड बूढो ने गांव के धार्मिक कामों पर निशाना लगाना शुरू कर दिया। कल्ली का एक लड़का इस बहस में ज्यादा भाग लेने लगा। बात बढ़ी तो गांव के ही कुछ लोगों ने शहर से एक नौजवान नाई को बुलाकर एक और दुकान खुलवा दी। रात बिरात धार्मिक जगह पर इक्कट्ठे होकर एक समूह ने कल्ली की दुकान से बाल न कटवाने का प्रण लें लिया।
कल्ली को इन सब बातों का पता चला, वैसे उसे कुछ बूढ़े बुजर्गों ने समझाया भी था कि कल्ली अब समय बदल गया है। राजनीति किसी को इक्कठे बैठे नही देख सकती। कोई हाथी पर सवार है तो कोई रथ पर बैठा है, हम गांव की परंपरा और प्यार काहे खराब करें पर कल्ली तो अब एक विशेष पार्टी का मेम्बर बन गया था। उसे न जाने किसने ये बताया कि सविंधान नाम की एक किताब में बहुत कुछ लिखा है। सबके अधिकार होते है। सब समान होते हैं।
अब गांव में नाई की दो दुकाने थी। नया नाई जिसका नाम बबलू बम्बई वाला था, नए स्टाइल से बाल काटता था। कल्ली के बेटे भी नए स्टाइल से बाल काटते थे पर बबलू के बारे में एक टैग जुड़ गया था कि वो बम्बई से काम सीक कर आया है। सलमान शाहरुख जो स्टाइल चाहिए वही बनाता है। उसके पास बालों को घुंघराले करने, रंगीन बनाने और बूढ़ों को जवान बनाने वाली कला आती थी। गर्म हवा से बालों को सीधा तिरछा करने वाली मशीन थी।
सारे गांव के लौंडों लपाडों और टीनेजर में बबलू स्टाइल की धूम थी। उसकी दुकान में हीरों हेरोइन के रंगीन पोस्टर, फिल्मी मैगजीन और बालों के अलग अलग स्टाइल वाले अंग्रेजी पोस्टर थे। लोग बाग आते और उससे मन मुताबिक बाल कटवाते। बबलू जैसे उन्हें सुंदर बनाने की कोशिश करता वे मान जाते। किस्से बबलू की दुकान पर भी थे पर वह किस्से थे लड़के लड़कियों के, मजनुओं के। कॉलेज ओर बस मालिजों के बीच होती लड़ाइयों के। बबलू की दुकान में एक टेपरिकार्डर भी था जिसमे नए फिल्मी गीत बजते। लड़को को पूरी आजादी थे कि वो अपना मन पसंद गाना लगवाकर बाल काट सके। बबलू की दुकान अच्छी चल रही थी। कल्ली की दुकान पिट रही थी। उसके एक लड़के ने तो इस बखेड़े से पीछा छुड़ाकर शहर जाकर अपनी दुकान खोल ली। दूसरा लड़का राजनीति में एक लोकल नेता का पी ए बन बैठा। प्रचारक भी बना। पार्टी तो अपना प्रभाव ज्यादा नही जमा सकी पर कल्ली का लड़का पार्टी बदलता है और अंत मे पत्रकार बन गया। मैट्रिक पास था पर समाचार पत्र को अच्छे विज्ञापन दिलवा कर लोकल सवांदाता बनने में सफल हो गया।
कल्ली का छोटा बेटा कुछ सालों बाद शहर से लौट आया और उसने बबलू का असिस्टेंट बनकर उसकी दुकान में ही कटिंग का काम शुरू कर दिया। दुकान में बड़े जिमिंदार से ब्याज पर पैसा लेकर निवेश किया। दुकान का दरवाजा शीशे के लग गया। अंदर दीवार के एक कोने में टीवी लग गया जिस पर सात दिन फिल्मी गाने चलने लगे।
अब दुकान में गाने थे, अखबार था। क्रीम की महक थी और चटखदार किस्से थे।
बबलू की दुकान पर लोग अपने अपने किस्से सुनाते या मोबाइल पर बात करते हुए और आपस मे बहस करते हुए जो सूचनाएं वहां बिखेरते उन्हें बबलू बड़ी कमाल की कला से जुटा लेता और आगे आने जाने वालों में ट्रांसफर कर देता। सुना है अब कल्ली का बड़ा लड़का जो पत्रकार था वो भी बबलू की दुकान पर आकर बाल कटवाने लगा था। उसने विज्ञापन जुटाने और दीवाली दशहरे पर अखबार को बड़ा सप्लीमेंट देने के चलते विवादित बहसों को विराम दे दिया था और गांव शहर के लोगों के साथ प्यार और आदर से मिलने जुलने लगा था। कल्ली दामे से ग्रस्त था। और घर पर ही खटिया पर पड़े खांसता खांसता अपनी अंतिम सांस गिन रहा था। उसकी दुकान बंद हो गई थी। और पंचायती जगह होने की वजह से अब उसे अब ताला लगाकर छोड़ दिया गया था।
अब गांव जाता हूँ तो बबलू बॉम्बे सैलून का सड़क किनारे लगा बोर्ड जैसे विकसित गांव की तस्वीर दिखता है। कौन मरा, कौन पैदा हुआ, कौन विवाह कर रहा है, कौन घर से भाग गया है, कौन किसके घर मे घुसा, कौन किसके साथ अवैध संबंधों में हैं, कौन इलेक्शन में जीत रहा है और जीत गया तो वो क्या उखाड़ लेगा या क्या करवा देगा ये सब आपको बबलू बॉम्बे वाले की दुकान से पता चल सकता है। इस दुकान पर आपको खबरों का कॉम्बो पैक मिलेगा।