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एक बार मां कह दे

एक बार मां कह दे

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"सोमु रूक जाओ बेटा मम्मी को कितना परेशान करोगे, सुनो तो" रोमा तेजी से दौड़ी पर सोमू कहां रूकने वाला था वो तो तेजी से भागा। एक बार पलट कर पीछे देखा रोमा को देख उसने अपनी स्पीड तेज कर दी। अब वह बार- बार पीछे देख कर दौड़ लगा रहा था। वह छत की मुंडेर के पास पहुंचने ही वाला था।रोमा चीखी बेटा, देखो आगे मत जाना नीचे गिर जाओगे। सोमू पीछे मुड़ा रोमा को देख मुस्कुराया और अचानकमुंडेर से टकराया- मम्मा कहते हुए नीचे लुढक गया। सोमु रोमा की चीख निकल गई। वह हडबडा कर उठ बैठी "हाय राम यह कैसा सपना था- अभी तो उसे घर भी नहीं लाये और यह सपना राम जाने क्या होने वाला है।" उसके माथे पर पसीने की बूंदे छलछला आयीं ,दिल की धड़कनें तेज हो चली थी। वह अपने आप को संयत करने का प्रयास करने लगी। "राम जी जीवन कोई खुशी नहीं दी है अब तक जिंदगी की एक भी तमन्ना पूरी नहीं होने दी। अब जब एक खुशी पाने जा रही हूं तो कोई विघ्न मत डालना भगवान, उसने भगवान से प्रार्थना की।"

वापस सोने की काफी कोषिष की पर सपने के बाद नींद रूठ ही गई। सुनो, उसने पास में सोए मुनिंदर को उठाने की कोशिश की।पर रोमा की समस्या से अंजान वो नींद की आगोश में ही खोया रहा। रोमा ने दो -तीन बार उठाने की कोशिश की और फिर चुपचाप लेटकर सुबह होने का इंतजार करने लगी।

सुबह उसने मुनिंदर को सपने के बारे में बताया तो उसने हंसकर कहा," तुम भी रोमा कितनी बार कहा है ज्यादा मत सोचा करो। देखो आज हमलोग जाकर अपने पसंद का बच्चा ले आयेंगे न। फिर क्यों चिंता कर रही हो।"

"वही तो मैं कह रही हूं कि उसे कुछ हो न जाए"। रोमा बोली

"फिर वहीं पागलपन की बातें इन सब फालतु बातों को छोडो और बीस मिनट में तैयार हो जाओ हम अभी ही चलेगें।"रोमा जल्दी से तैयार गई।


अनाथ आश्रम में उनका औपचारिक स्वागत हुआ। मुनिंदर वहां पहले आकर बात कर चुके थे तब भी वहां की मैनेजर बच्चे को कैसे रखेंगे। डॉक्टर ने क्या कहा। अपना बच्चा हो गया तो। आपकी मेडिकल रिपोर्ट कहां है जाने कैसे- कैसे फालतू सवाल कर रही थी। ये नहीं हो रहा था उससे की जल्दी से बच्चों से मिलवाए- रोमा ने सोचा। उसे उबासी लेते और अनमनी होते देख उसने टोका धैर्य रखिए मैडम ये सब औपचारिकता किए बिना हम किसी को बच्चा नहीं दे सकते। हमारे लिए एक- एक बच्चा बहुत कीमती है हम उन्हें अपने बच्चे की तरह ही रखते हैं।

खैर थोडी देर के बाद रोमा अंदर गई। सारे बच्चे एक रूम में बैठ कर टीवी देख रहे थे। रोमा छोटा बच्चा चाहती थी ताकि वो रोमा को आसानी से अपना सके।

"देखो बच्चों तुमसे मिलने कौन आया है।" मैनेजर की आवाज सुनकर सभी बच्चे पीछे मुड़े। "नमस्ते" समेतस्वर उभरा।रोमा और मुनिंदर ने भी मुस्कुरा कर नमस्ते किया।

चलो सभी बच्चे बाहर आंगन में आ जाओ, उनकी आवाज पर किसी ने चूं- चपड़ नहीं किया सब एक- एक कर बाहर आ गए। अंत में रोमा भी बाहर आई। सभी चुपचान किसी आदेश के इंजार में खड़े हो गए। रोमा का दिल भर आया। कितने भोले हैं ये बच्चे, और कितने प्यारे भी, इनमें से किसी एक को चुनना कितना कठिन है वह सोच ही रही थी कि मुनिंदर ने इशारा किया, इनसे बातें करो और देखो अपने लिए कौन सा सही रहेगा।


एक बार फिर रोमा का हृदय कचोट उठा, जो हमें पसंद नहीं आयेगा वो तो अपनी नियती भुगतने को अभिश्प्त होगा न। पर जल्दी ही उसे अपने विचारों से बाहर आना पडा। मुनिंदर एक बच्चे को बुलाकर उसका नाम पूछ रहे थे। साथ ही रोमा की ओर देखकर पास आने का इशारा भी किया। रोमा जाकर उसकी बगल में खड़ी हो गई।

"अभिजीत" उसने फीकी मुस्कान के साथ कहा। "मुनि मुझे न वो डॉल जैसी लड़की बड़ी प्यारी लग रही है।" उसने धीरे लगभग मुनिंदर के कान में कहा।

" हां, पर हमें यहां भावनाओं में नहीं बहना है। लड़कियां अच्छी होती हैं। पर अब मैं घरवालों और रिश्तेदारों के और ताने नहीं सुनना नहीं चाहता। पहले ही काफी कुछ सुन चुके हैं हम। अब अगरलड़की ले गए यहां से तो फिर हंगामा मच जायेगा। लडका गोद ले लेंगे तो दुबारा वारिस के रूप में लडका गोद लेने की झझट से बच जायेंगे। समझ रही हो न मेरी बात।" उसने थोडा नर्म होकर कहा।

"हूं।" रोमा ने सर्फ इतना ही कहा, मन के अंदर कुछ दरक गया। पर क्या करती। कदम - कदम पर मन काटूटना तो है ही। पहले जब बच्चे नहीं थे तब सुनती और सहती आयी ही है। अब अनाथालय का बच्चा ले जाकर जीवन भर सुनने की तैयारी हो ही जायेगी। वो खैर है कि प्राकृतिक दोष मुनिंदर का ही है वर्ना जाने क्या हाल हुआ होता। मुनिंदर इतना होने के बाद भी लोगों के तीर का निशाना अक्सर उसे ही बना देता है। अगर दोष सिर्फ उसका होता तो शायद उसे सूली पर लटका दिया जाता। आंसू केघूंट पीकर उसने सभी बच्चों पर एक नजर डाली। फिर बोली "तुम्हें यही पसंद है न तो इसे ही ले चलो।"

"क्यों तुम्हें पसंद नहीं है। देखो तो सही इसका चेहरा हम से ही मिलता है। रंग भी गोरा है। इसे देखकर सब यही समझेंगे यह हमारा ही बच्चा है।" उसने अभिजीत की ओेर देखकर कहा।

अभिजीत जाने उनकी बातों को किस रूप में ले रहा था। उसने दोनों की ओर एक- एक बार देखा और नजरें झुका लीं।

दूर खड़े बच्चों के बीच खुसर- फुसर होने लगी। अभिजीत ने उनकी ओर बड़ी बेबसी से देखा।

"तो ठीक है न हम इसे ही गोद ले लें। चलो अब कागजी कार्यवाई पूरी कर दें।"मुनिंदर की बात सुनकर रोमा ने एक नजर बाकी बच्चों पर डाली जो बड़ी हसरत से उसे देख रहे थे।

"मैडम हो गया," मुनिंदर ने कहा।

"कौन,अभिजीत"?

"जी मैडम।"

"बड़ी अच्छी बात है। बडा प्यारा बच्चा है। चलिए आफिस में बैठकर बात करें।" उन्होंने कहा और आफिस की ओर मुड़ गईं।

"हां, तो आपलोग अभिजीत को गोद लेना चाहते हैं।"

"जी हां, उसके बारे में जो भी इंफारमेंशन हो हमें दे दीजिए", मुनिंदर ने कहा।

"वो साढे पांच साल का है। जब डेढ साल का था तब यहां आया था। उसके माता पिता के बारे में कोई जानकारी हमारे पास नहीं है। अभी वह केजी -2 में पढ़ रहा है। वह बहुत शांत है शरारतें नहीं करता है पर हंसमुख है। एक बार में ही किसी से भी दोस्ती कर लेता है। आप उसे ले जायेंगे तो आप लगेगा ही नहीं कि वो नया- नया आपसे जुड़ा है। काफी प्यारा है वह अभी छोटा है तब भी अपने साथ वाले बच्चों का बडा ध्यान रखता है। छोटे बच्चों को गोद में बिठाकर खाना खिलाता है। बातें भी खूब करता है। आप ये फार्म भर दीजिए मैं उसे बुलवाती हूं।" कहते हुए उन्होंने घंटी बजाकर बाई को बुलाया, "जाओ जाकर अभिजीत को ले आओ।"

आज शायद मेरी बारी है। जो लोग आए थे, उन्हें इतने सारे बच्चों में से सिर्फ मैं ही क्यों पसंद आया। अगर मुझे ले गए तो मैं अपने भाई-बहनों के बिना कैसे रहूंगा। जो भी आता है उसे सिर्फ एक बच्चा क्यों पसंद आता है? सबको क्यों नहीं ले जाते लोग? वो अंकल तो मुझे अच्छे नहीं लगे? बोल रहे थे हमारे जैसा दिखता है, ऐसा कैसे हो सकता है मैं तो गोलू का भाई हूं न। गोलू के जैसा ही दिखूंगा। मुझे अपने साथ जाने को बोलेंगे तो कह दूंगा सबको ले जायेगे तभी जाउंगा नहीं गोलू को तो ले ही जाउंगा, आंगन के कोने में खड़े होकर वह सोच ही रहा था कि मुन्नी बाई ने उसके सिर पर हाथ फेरा। वहचिहुंक गया। मुन्नी बाई को देखकर बोला। "अरे अम्मा आप हो।"

"हां, चल तुझे दीदी बुला रही हैं।" उसने हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा।

"मुझे नहीं जाना है वह जमीन पर बैठ गया।"

"बेटा, आज तेरे भाग्य खुल गए और तू है कि जाना ही नहीं चाहता। जानता है भगवान ने तेरे मम्मी - पापा को भेजा है यहां। अब तु अपने घर चला जायेगा। कभी- कभी हम सबसे मिलने आएगा।" मुन्नी बाई ने उसे फिर से खींचा और आफिस की ओर चली।

अभिजीत सिसकने लगा।

"देखिए आ गया आपका बेटा। अभिजीत देखो तुम्हारे मम्मी -पापा आए हैं बेटा। इनके पैर छुओ।" मैंनेजर ने हंसते हुए कहा।

"नहीं, मेरे मम्मी- पापा तो तारा बन गए हैं। आकाश में चमकते हैं।" अभिजीत ने सिसकते हुए कहा।

"नहीं बेटा। एकदिन तुम भगवान जी से प्रार्थना कर रहे थे न, कि वो तुम्हारी मम्मी को लौटा दें। इसलिए भगवान जी ने लौटा दिया। वे उसके पास आ गई।"

वह वैसे ही गुमसुम खड़ा रहा।रोमा ने आकर उसे थामा, "आंटी सच कह रही हैं। बेटा मैं ही तुम्हारी मम्मी हूं। आजा अब घर चलें।" रोमा ने कहा तो अभिजीत ने एक बार सिर से पैर तक उसे निहारा और बोला, "नहीं।"

"अभिजीत तुम तो अच्छे बच्चे हो न। अच्छे बच्चे जिद नहीं करते हैं।" मैनेजर ने कहा। फिर मुनिंदर से बोली, "यह मान जाएगा। शुरू- शुरू में ऐसा होता ही है। चलिए तब तक इसका सामान पैक करा देते हैं।"

"अरे सामान की क्या जरूरत हम तो इसके लिए हर चीज नई खरीदेंगे। आप तो बस इसे बिदा कीजिए", मुनिंदर ने बीच में ही कहा।

"मैंम जरूरत के सामान तो खरीद ही लेंगे, यहां की चीजें दूसरे बच्चों के काम आऐंगी।। पर अभिजीत से पूछ लीजिए, वह अपने साथ क्या ले जाना है वो सारी- चीजें दे दे दीजिए।" रोमा ने कहा। फिर अभिजीत से बोली" बेटे तुम अपने खिलौने या कपडे अपने घर ले जाना चाहते हो तो उसे ले आओ।"

रोमा तुम भी अब वो पुराने खिलौनों का क्या करेंगा। मुनिंदर ने टोका।

"ओहो तुम भी समझते नहीं हो। हम उसका घरछुड़ा रहे हैं। बच्चों को अपने खिलौने से बडा लगाव होता है। इसे ले जाने दो न।"  गाडी में दो पैकेट पड़े हैं उसे ले आओ। रोमा समझाती हुई बोली।

"मैं नहीं जाउंगा, मैं नहीं जाउंगा" मन ही मन दुहराता हुआ अभिजीत अपनी जगह ही बैठा रहा।

"चलो अभिजीत गोलू बुला रहा है।" मुन्नी बाई ने कहा।

गोलू का नाम सुनते ही वह दौड कर अंदर चला गया। गोलू आराम से टीवी देख रहा था। अभिजीत आकर उसकी बगल में बैठ गया, यही देखने के लिए बुला रहे थे, गोलू।तभी मुन्नी बाई की आवाज सुनाई दी। "सब बच्चों ध्यान से सुनों आज भगवान ने अभिजीत के मम्मी - पापा को भेजा है। आज वो हम सबसे दूर अपने घर चला जायेगा, सब लोग इसे विदाई दे दो।"

सारे बच्चे टीवी देखना छोड अभिजीत की ओर देखने लगे। और उसे लगा जैसे उसने कोई पाप किया हो। वह कहना चाह रहा था मैं कहीं नहीं जाउंगा। पर आवाज अंदर ही रह गई, बाहर तक आई ही नहीं।

"देखो बच्चों मैं सबके लिए क्या लाई हूं।" रोमा ने पैकेट खोला और सभी को एक - एक मिठाई और पेंसिल रबर देने लगी। "आप अभिजीत की मम्मी हैं?" गोलू ने मिठाई लेने से पहले सवाल पूछा।

"हां, बेटा।"

"इसे हमारे पास कभी- कभी ले आइयेगा, वो मेरा सबसे अच्छा भाई है," वह रोने लगा।

फिर तो आंसूओं का बांध टूट गया। गोलू अभिजीत समेत कई बच्चे रोने लगे। एक पन्द्रह- सोलह साल कीलड़की ने आकर कहा, "आंटी अभिजीत रात को उठकर पानी जरूर पीता है, इसके कमरे में रख दीजिएगा। इसे गाजर का हल्वा, खिचडी और समोसे बहुत पसंद है। यह कार्टून भी देखता है और पिक्चर भी। दूध भी इसे पसंद है पर यहां रोज तो मिलता ही नहीं है। फिर थोडा रूक कर बोली इसे ड्राइंग करना बहुत पसंद है। इसकी ड्राइंग बुक ले जाइयेग और इसके पास जो छोटी कार है उसे भी ले जाइये।" मेरा अच्छा भाई कहकर उसने अभिजीत को गले लगा लिया।

रोते अभिजीत को वहींलड़की गोद में लेकर आयी औरगाड़ी में बिठाया। रोमा उसे लेकर पीछे बैठी।

कभी - कभी ले आइये, जब तीसरी बार यही गुहार सुनाई दी तो मुनिंदर ने कहा," मैडम मैं चाहता हूं कि यह हमारा बनकर रहे। यहां आता रहेगा तो दिल से हमारा बेटा कभी नहीं बनेगा। इसलिए मैं इसे लेकर नहीं आ सकूंगा।"

"जी , जैसा आप ठीक समझे। बेटा तो आपका है ही।" उन्होंने इतना ही कहा। और गाड़ी चल पड़ी।

भागने से कुछ नहीं होगा, घरवालों ने रोका भी नहीं और इनके साथ भगा दिया। अब चुपचाप बैठना पडेगा, वह रोमा की गोद से छिटकर दूसरी खिडकी के पास बैठ गया और बाहर देखने लगा।डसकी आंखो में अपने प्रति रोश था उसे बाहर ले जाया जा रहा है और वह कुछ कर भी नहीं पाया। एक आइस्क्रीम पार्लर के बाहर मुनिदंर नेगाड़ी रोकी और रोमा को बोला "इसके लिए कौन सी आइसक्रीम लेना ठीक रहेगा।"

"इससे ही पूछ लेते हैं अभी हमें इसकी पसंद भी नही मालुम है" कहते हुए रोमा ने दो तीन बार पूछा पर वह चुपचाप बाहर ही देखता रहा। हारकर उसने कहा, ऐसा करो, चॉकलेट फ्लेवर ले लो वह सभी बच्चों को पसंद होता है। मुनिंदर ने एक फैमिली पैक लिया और आगे बढ गया। घर पहुंचा तो अभिजीत बिना कुछ बोलेगाड़ी से उतर गया। गेट से अंदर आकर चुपचाप खडा हो गया। अरे वाह बेटा तुम तो अपने आप आ गए बड़ी अच्छी बात है। अच्छे बच्चे अपने घर को पहचान लेते हैं चलो अंदर चले तुम अपना घर देख लो। इसके बाद रोमा उसका हाथ पकड़ कर अंदर ले आई। वह लगभग घिसट कर अंदर आया और वैसे ही पीछे- पीछे चलता रहा। अपनी खुशी के बीच रोमा ने ध्यान नही नहीं दिया कि वह खुद नहीं चल रहा है बल्कि उसे खिंचना पड़ रहा है और यह भी नहीं कि सबकुछ देखकर वह जरा भी खुश नहीं हुआ और न ही रोमा की किसी बात का जवाब ही दे रहा था। 

शा हो गई पर वह कुछ भी खाने को तैयार नहीं हुआ। मुनिदंर तो बाजार जा चुका था पर रोमा की रूलाई निकल आई जाने ईष्वर किस दिन का बदला दे रहा है कि अपनी संतान ही नहीं हुई। और जब इसे गोद लिया है तो वह भी उसे अपनाने को तैयार नहीं।

"बेटा, मैं ही तेरी मम्मी हूं,तू अपनी मम्मी की बात नहीं मानेगा, अपने पंसद की आइसक्रिम या चाकलेट खा ले।" उसने रोते हुए कहा।

"नहीं, आप मेरी मम्मी नहीं हो। मेरी मम्मी भगवान के पास चली गई है। मुझे अपने घर जाना है।" अभिजीत भी रोने लगा।

"बेटे मुझे भगवान ने ही भेजा है।" रोमा ने बहलाने की कोशिश की।

"नहीं मेरी मम्मी तारा बन गई है और जो तारा बन जाते हैं वो वापस नहीं आते हैं" अभिजीत ने जाने कहां से सुनी बात बताई।

'नहीं बेटे लोगों को गलत फहमी हो गई थी मैं तारा नहीं बनी थी। तभी तो देखों तो तुम्हारी आंखें बिल्कुल मेरी तरह हैं",रोमा ने आस नहीं छोडी थी।

"मैं नहीं जानता, मैं नहीं खाऊगा, मुझे अपने घर जाना है" वह फिर मचला।

"बेटा तुम कहां जाओगे, तुम्हारा घर यहीं है। देखना अभी थोडी देर में पापा तुम्हारी पसंद की ढेर सारी चीजें लेकर आयेंगे।" रोमा ने फिर कोशिश कीं।

"नहीं मुझे आपसे बात नहीं करनी है। आप झूठ बोलती हैं" उसने मुंह फेर लिया और जोर - जोर से रोने लगा।

रोमा घबरागई जल्दी से मुनिंदर को फोन किया। दस मिनट के अंदर मुलिंदर वापस आ गए। "अरे मेरे बेटे को क्या हुआ है। देखो तो पापा क्या लाएं हैं उसेन पैकेट रखते हुए कहा।"  पर अभिजीत ने मुंह फेर लिया।" बेटा देखा बेटा , एक बार देखो तो सही", मुनिंदर ने कोशिश की।

 वह धीरे-धीरे पास आ गया और बोला आप मुझे मेरे घर पहुंचा देगें- उसने भोलेपन से पूछा।

"पहले तुम कुछ खाओंगे तब ही कोई बात होगी", मुनिंदर ने मौका नहीं गवायां।" ठीक है,' उसे पहली बार मुनिंदर अच्छा लगा। उसने खुद ही थोडी सी आइसक्रीम निकाली और जल्दी- जल्दी खाने लगा।

"अरे यार ये तो गलत बात है एक तो तुम अकेले - अकेले खा रहे हो उपर से इतनी जल्दी में क्यों हो। आराम से स्वाद- लेकर खाओ।"

उसने कोई जवाब नहीं दिया पर स्पीड थोडी कम कर दी।

"अब चलिए, उसने आइसक्रीम खत्म करते ही कहा।"

"कहॉ? "मुनिंदर ने ऐसे कहा जैसे कुछ मालुम ही नहीं हो।

"मेरे घर , सेवा सदन में आपने प्रॉमिस किया था आपके चलना ही पडेगा।" "बेटा ऐसा है कि बच्चों को बाहर जाने से पहले अपनी मम्मी से आज्ञा लेनी पडती है। आप पहले जाकर उनसे पूछ लीजिए जो वो कहें वही करना होगा।" मुनिंदर ने समझान के अंदाज में कहा।

 "नहीं मेरी मम्मी तो कोई नहीं है। मुझे बस अपने घर जाना है।"

"आप मुझे मेरे घर पहुंचा दीजिए।" उसने जिद की उसके चेहरे पर ठगे जाने के बाद दिखने वाली लाचारी थी पर उसने हिम्मत नहीं हारी था।

'कुछ खाया इसने" , तभी रोमा आ गई।

' हां, तुम्हारे बेटे ने आइसक्रीम खाई है और अब यह बाहर जाना चाहता है' मुनिंदर ने कहा।

"हां, अभिजीत कहां चलना है बेटे," उसने खुश होते हुए पूछा।

"अभिजीत मत कहो , रोमा, यह नाम इसे कुछ भूलने ही नहीं देगा, इसका नाम मुनिरोम रख देते हैं। प्यार से मुनि भी पुकार सकते हैं। बड़ा अच्छा नाम सोचा है तुमने। चलो मुनि घुमने चलते हैं।" उसने अभिजीत से कहा।

"नहीं मेरा नाम अभिजीत है।" वह उसने चीख कर कहा।

" अच्छा चला।" रोमा ने उसका हाथ पकड लिया वह चुपचाप चलने मुनिंदर ने चाइल्ड पार्क के सामनेगाड़ी रोकी। पार्क देखकर वह रोने लगा, मुझे घर जाना है। अपने घर। फिर तो रोमा और मुनिंदर की सारी कोशिशें बेकार हो गईं। वह नीचे नहीं ही उतरा। हार कर उसने घर की ओर गाड़ी मोड़ दी।

 पर वह वहां भी उतरने को तैयार नहीं हुआ। एक ही रट थी उसकी मुझे अपने घर जाना है।रोमा उसे मनाती रही। अपने प्यार की और ईश्वर की दुहाई देती रही।

"तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आता है। तब से कह रही हूं पर तुम अपनी जिद पर ही अड़े हो। बार - बार बता रहे हैं कि हमने तुम्हें गोद लिया है अब हम ही तुम्हारे मम्मा पापा है। पर तुम हो कि कुछ समझने को तैयार ही नहीं हो। चुपचाप नीचे चलो।" मुनिंदर ने जोर से डांटा।

वह सहम गया, और एक पल को रोना भी भूल गया। तभी मुनिंदर ने उसे उठाया और सीधे बेडरूम में लेकर आया। उसे बिस्तर पर बिठाते हुए बोला अगली बार तुम रोए तो मैं बहुत पीटूंगा।वह फिर रोने लगा, रेनु दीदी मुझे आकर बचा लो।रोमा का कलेजा मुंह को आ गया। उसकी रूलाई देख उसे लगा, आश्रम ही छोड़ आएं इसे जहां इसकी खुशी हो वहीं रहे।उसने उसे गले लगाने की कोशिश की। पर वह छिटक कर दूर हट गया। रोमा का मन दुखी हो गया। उसने मुनिंदर से कहा, लगता है इसे वहीं पहुंचाना होगा। यह तो हमारे साथ रहने को तैयार ही नहीं है।


"तुम भी पागल हो। इसकी जिद पर जाने लगे तो दुनिया में कोई भी बच्चे को गोद ही नहीं ले पाएगा। इसे थोड़ा रोने दो। एक दो दिन में ठीक हो जायेगा। इसके सामने वहां का नाम भी मत लिया करो। सेवा सदन इसका बीता हुआ कल था हम इसके आज और आने वाले कल है। इसे पुराने दिनों की याद न आए इसिलिए तो इसका नाम भी बदल दिया है। तुम इसके साथ इमोशनल मत बनो।"

और अब तुम जाकर खाने- पीने की की तैयारी करो। रोमा का दिल उसे छोडकर जाने का नहीं हो रहा था पर मन मसोस कर चली गई। रोमा के जाते ही मुनिंदर भी कमरे से बाहर आ गया और बैठक में बैठकर अखबार पढ़ने लगा।मुनिंदर ने जो कपडे लाकर दिए थे वे वेड पर ही रखे थे अभिजीत ने उनको लात मारकर गिरा दिया। पहले तो रोता रहा फिर चुपचाप लेटकर अपने दोस्तों और दीदीयों को याद करने लगा। उसे कब नींद आ गई जान भी नहीं सका।

रोमा का मन न खाना बनाने में लगा न खाने में। खाना खाकर वह दूध लेकर आयी , सोचा था उसे किसी तरह मना लेगी पर निराषा ही हाथ लगी अभिजीत तो सो चुका था। वह उसकी बगल में लेट गई और सोचने लगी जाने कब वह उसे अपनाएगा।

सुबह उठते ही अभिजीत ने अपने घर जाने की जिद शुरू कर दी। रोमा उसे मनाते- मनाते परेशान हो गयी। मुनिंदर आफिस जा चुका था। अभिजीत न कुछ खा रहा था और न ही कोई बात सुन रहा था। रोमा ने सेवासदन में फोन किया और मुनिंदर की स्थिति बताते हुए बोली मैं उसे लेकर आ रही हूं। उसने अभिजीत को उठाया और बोली चलो कपड़े बदल लो हमलोग सेवा सदन चलेंगे।अभिजीत तुरंत उठ कर बैठ गया- "चलिए।"

कपड़े तो बदल लो।

"नहीं मैं ऐस ही जाउंगा", उसने जिद की।

"अच्छा चलो।" रोमा ने मनाया और उसे लेकर सेवा सदन आ गई। "अभिजीत कोई मम्मी को परेशान थोड़ ही करता है। तुमने तो गंदी हरकत की है, बेटा। मम्मी को सॉरी बोलो", मैनेजर ने उसे समझाते हुए कहा।

"ये मेरी मम्मी नहीं है", उसने तुनक कर कहा।

 "बेटा ऐसा नहीं कहते देखों इतने दिनों के बाद भगवान जी ने तुम्हारी मम्मी को वापस भेजा है। वे समझाती रहीं"। पर अभिजीत ऐसा बैठा रहा गोया उसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा हो।

देखिये रोमा जी, हमें खेद है कि अभिजीत आपको पेरषान कर रहा है। पर जल्दी ही यह आपसे घुल- मिल जायेगा।अभिजीत के आने की खबर सुनकर सभी बच्चे आफिस के दरवाजे के पास आकर खडे हो गए अंदर जाने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी। मुन्नी बाई ने देखा तो आकर बोली अभिजीत से मिलने को सभी बेचैन हैं थोड़ी देर के लिए ले जाउं । फिर आदेश मिलते ही उसे अंदर लेकर अभिजीत को जैसे नया जहान मिल गया। सब उसे घेर कर पूछने लगे - "नया घर कैसा लगा, तेरी नयी मम्मी ने क्या - क्या खरीद कर दिया।" नये घर और मम्मी की चर्चा से अभिजीत उदास हो गया।

"मेरी कोई मम्मी नहीं हैं। मेरा घर तो यही है।' उसने गुस्से से कहा, उसे लगा उसे देखकर सब खुश नहीं है बल्कि उसे भगाना ही चाह रहे हैं।

तभी गोलू आगे आया, तु कितना लकी है तेरे मम्मी - "पापा को भगवान ने भेज दिया। मेरी मम्मी तो अभी भी भगवान के पास ही है। देखना तू कहेगा तो तुझे मिठाई खिलायेंगी और रात को तेरे पास ही सोऐंगी कितना अच्छा लगा होगा तुझे।" उसने अत्यंत उदास और निराश शब्दों में कहा।

सभी बच्चे चुप हो गए जैसे कुछ अनचाहा घट गया। दुख की एक पतली सी लकीर उनके पास से गुजरने लगी।थोडी देर तक तो कोई कुछ नहीं बोला फिर बोली, अभिजीत तुम्हें मम्मी मिली हैं और वो बहुत अच्छी हैं उनकी बात मानना। अभिजीत अब भी चुपचाप खड़ा रहा।तभी मुन्नी बाई वापस आ गई। "चलो बेटा मम्मी बुला रही है।"

"मुझे नहीं जाना है" कह कर वह दौड कर पलंग के नीचे छुप गया। रेनु की मदद से मुन्नी बाई ने उसे बाहर निकाला और आफिस तक ले आयीं।

अधिक दुलार भी बच्चों के लिए घातक हो जाता है। अगर यह आपकी बात नहीं माने या जिद करें तो इसे दो- चार चाटे लगा दिया करें। बाकी बच्चे तरस रहे हैं इसका भाग्य खुला है तो भाव चढ़ गए हैं। वे बडबडाई।

"नहीं, नहीं ऐसा नहीं है। मेरा अभिजीत तो बहुत अच्छा बेटा। इसे कोई क्यों मारेगा।" रोमा ने झट बचाव किया।

गाडी चल पड़ी। लगता है मेरा घर छूट गया। कोई मुझे प्यार नहीं करता है। अब कौन मुझे प्यार करेगा, वह धीरे से सिसकने लगा। मैनेजर आंटी ने भी मारने को कहा है अगर उस घर में मैं मार खाउंगा तो मुझे कौन बचाने आएगा।घर आकर भी वह चुपचाप बैठा रहा, रोमा ने कितना पूछा पर कोई जवाब नहीं दिया न ही खाना खाया। रोमा परेशान हो गई।उसकी समझ में नहीं आया अपने बेटे को कैसे मनाए। अंदर ही अंदर उसे लगने लगा कहीं यह भी उससे बिछड़ गया तो वह क्या करेंगी। नये घर में उसका डरना स्वभाविक ही है पर वह भी अच्छी मां नहीं है जो एक बच्चे को नहीं मना पा रही हूं।   

शाम को जब मुनिंदर वापस आया तो वह रोने लगी लगता है मुझे बच्चों को संभालना नहीं आता है। "अरे ऐसा कुछ नहीं है हमदोनों का ही पहला अवसर है इसका भी पहला अवसर है अभी हमारे साथ अडजेस्ट नहीं कर पाया है एक दो दिन में ठीक हो जाएगा उसने ढाढस बंधाया।"

अभिजीत अपनी जिद पर ही रहा। न खाना खाया न दूध पीया उसके कारण रात को किसी ने खाना नहीं खाया।रोमा अभिजीत की बगल में ही सो रही थी। अचानक देखा अभिजीत रो रहा था, उसने बत्ती जलाई तबतक उसने उल्टी कर दी। रोमा ने मुनिंदर को आवाज दी और पानी लेकर आयी। जल्दी - जल्दी उसकी पीठ सहलाती रही। तब तक मुनिंदर भी आ गया। रोमा रोने लगी देखो न इसे क्या हो गया। बुखार है और यह वोमेटिंग भी कर रहा है।

"तुम घबराओं मत मैं डा. को फोन करता हूं।" दो मिनट के बाद ही आकर बोला ऐसा करो मैं गाड़ी निकालता हूं तुम तैयार हो जाओ हॉस्पीटल चलते हैं।

"हां हां यही ठीक है। चलो"

रोमा एक मिनट में तैयार हो गई। उल्टी बंद हो गई थी पर रोमा अब भी उसका सिर सहला रही थी।गाड़ी में भी वह उसे गोद में ही लेकर बैठी। अभिजीत के दिल को बडा सुकून मिला। ऐसा तो कभी सेवा सदन में भी नहीं हुआ। इस प्यार से वह अभिभूत हो गया। रोमा का रोता और मुनिंदर का परेशान चेहरा देख उसे बुरा लगा। जब डॉक्टर ने कहा घबराने की कोई बात नहीं है। सुबह तक यह एकदम ठीक हो जायेगा तो उसने भी कहा, "हां मम्मी मैं एकदम ठीक हूं।"

"मम्मी कहा तुमने'", रोमा ने चुम्मियों कीझड़ी लगा दी।" बेटा एक बार फिर कहो न देख तेरे पापा भी यहीं हैं।" उसने उसकी पलके चुमते हुए कहा।

"मम्मी पापा को बोलो न मुझे घर जाना है", उसने रोमा से अलग होते हुए कहा।रोमा की आंख फिर से भर गई। दोनों ने उसे एक साथ गोद में उठा लिया।


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