वड़वानल - 50
वड़वानल - 50
सरदार पटेल ने मौलाना आज़ाद के सुझाव के अनुसार अरुणा आसफ़ अली से सम्पर्क स्थापित किया।
‘‘आज के अख़बारों में छपी ख़बर के अनुसार आप नौदल के विद्रोह का नेतृत्व करने वाली हैं ऐसा ज्ञात हुआ है। क्या यह सच है ?’’ पटेल ने पूछा।
‘‘कल और अभी कुछ घण्टे पहले सैनिकों के प्रतिनिधि मुझसे मिले थे। उनका संघर्ष केवल कुछ स्वार्थप्रेरित माँगों के लिए ही नहीं है। उन्हें आज़ादी चाहिए। आज करीब नब्बे सालों बाद सैनिक फिर एक बार स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे हैं। वे जाति, धर्म, वंश... सब कुछ भूलकर एक हो गए हैं। मेरा ख़याल है कि यदि कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया तो उनका संघर्ष सफ़ल होगा। मैंने उनका साथ देने का निश्चय किया है।’’ अरुणा आसफ अली ने अपनी राय बताई।
‘‘कांग्रेस का स्वतन्त्रता प्राप्ति का मार्ग अहिंसक है, और ये सैनिक हिंसा के मार्ग पर चलेंगे। कांग्रेस को इनका साथ नहीं देना चाहिए ऐसा मेरा मत है।’’
अरुणा आसफ़ अली का निर्णय सुनकर परेशान हो गए सरदार पटेल ने दृढ़ता से कहा।
‘‘ये सैनिक अब तक तो अहिंसा के मार्ग पर ही जा रहे हैं। अगर हमने इनका मार्गदर्शन नहीं किया, उनका साथ नहीं दिया तो मुझे डर है कि सैनिक असहाय होकर कहीं हिंसा का मार्ग न अपना लें। यदि ऐसा हुआ तो परिस्थिति हाथ से बाहर निकल जाएगी।’’ अरुणा आसफ़ अली ने स्पष्ट शब्दों में कहा।
‘‘मुझे कुछ ही देर पहले ज्ञात हुआ है कि हिन्दुस्तान को स्वतन्त्रता देने बाबत चर्चा करने और योजना बनाने के लिए तीन मन्त्रियों के शिष्ट मण्डल की नियुक्ति की घोषणा भारतमन्त्री ने इंग्लैण्ड के दोनों सभागृहों में की है। नौका अब किनारे लगने के आसार नज़र आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में...।’’
सरदार पटेल को बीच ही में रोकते हुए अरुणा आसफ़ अली ने पूछा, ‘‘आज तक ऐसी कितनी समितियाँ नियुक्त की गईं ? उनका परिणाम क्या निकला ?’’
‘‘इस बार परिस्थिति अलग है। आज लेबर पार्टी सत्ता में है। चुनावों से पहले हिन्दुस्तानी नेताओं से हुई चर्चाओं में उन्होंने घोषणा की थी कि सत्ता में आने पर वे हिन्दुस्तान को स्वतन्त्रता दे देंगे। आज देश के भीतर भी स्थिति ख़तरनाक हो चुकी है। ऐसी हालत में शान्ति बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। व्यापारी और उद्योग जगत् ने भी इस तरह की विनती की है।’’ पटेल ने कहा। अरुणा आसफ़ अली बेचैन हो गईं। सरदार का उद्देश्य वे समझ गईं।
‘‘विद्रोह करने से पहले सैनिकों ने कांग्रेस को विश्वास में नहीं लिया और न ही उससे सलाह–मशविरा किया।‘’ सरदार ने दूसरा तर्क प्रस्तुत किया। यह तर्क लाजवाब नहीं है, इसका सरदार पटेल को यकीन था।
‘‘ऐसा नहीं कह सकते।’’ वे उफन पड़ीं। ‘‘मौलाना आजाद से ये सैनिक कराची में मिले थे। उन्होंने क्या किया? उनकी शिकायतें दूर करने के कौन–से प्रयास किये ? उन्होंने सैनिकों को अपने विश्वास में क्यों नहीं लिया? नौदल में इससे पहले सात–आठ विद्रोह हो चुके हैं, दिसम्बर से तलवार के सैनिक स्वतन्त्रता के नारों से दीवारें रंग रहे हैं। कांग्रेस ने इसकी कोई दखल क्यों नहीं ली ? हमने आज तक इस शक्ति को नज़रअन्दाज ही किया है। आज ये सैनिक अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़े हैं , और हम उनकी सहायता न करें, यह मुझे अच्छा नहीं लगता।’’ वे तैश से बोलीं।
‘‘वे सैनिक हैं, ये बात आप मत भूलिये। सैनिकों को अनुशासन में ही रहना चाहिए। सेना में मनमानी किसी भी सरकार को रास नहीं आती। आज अगर हमने इन विद्रोहियों को समर्थन दिया और कल स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद आपको रक्षा मन्त्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी जाए और सैनिकों ने छोटे–मोटे कारण से यदि विद्रोह कर दिया तो उसका विरोध कैसे करेंगी ? उस समय आपकी स्थिति क्या होगी इस पर विचार कीजिए।’’ पटेल ने भविष्य की झलक दिखलार्ई।
‘‘स्वतन्त्रता कोई छोटा–मोटा कारण नहीं है। भविष्य में यह कारण रहेगा ही नहीं और तब अन्य किसी कारण से विद्रोह हुआ तो मैं कार्रवाई करने में पीछे नहीं हटूँगी।’’ अरुणा आसफ़ अली ने जवाब दिया।
‘‘सैनिकों ने राजनीतिक माँगें और उनकी अपनी माँगें एक कर दी हैं। सैनिकों को राजनीति में दखल नहीं देना चाहिए। वे सिर्फ अपनी माँगों पर ध्यान दें।’’ पटेल आसफ़ अली को परावृत्त करने के लिए एक–एक तर्क दे रहे थे।
‘‘वे सैनिक हैं तो क्या हुआ? सबसे पहले वे इस देश के नागरिक हैं। आज़ादी के लिए संघर्ष करना हर नागरिक का कर्तव्य है। सैनिक यही कर रहे हैं। यदि उन्होंने यह नहीं किया तो वे गद्दार कहलाएँगे।’’ अरुणा आसफ़ अली का तर्क लाजवाब था।
एक पल को पटेल खामोश हो गए। अब क्या तर्क दिया जाए इसका विचार कर रहे थे। दूसरी ओर से दुबारा ‘हैलो’ की आवाज़ आई तो वे वास्तविकता में वापस आए और उन्हें आज़ाद के फ़ोन की याद आई।
‘’सुबह कांग्रेस अध्यक्ष, आज़ाद का फ़ोन आया था। उन्होंने मुझे आपसे सम्पर्क करने के लिए कहा था। वर्तमान स्थिति में कांग्रेस तटस्थ रहे ऐसा उनका मत है। कल वे लॉर्ड एचिनलेक से मिलने वाले हैं। हम कांग्रेस के निष्ठावान सैनिक हैं। हमें कांग्रेस के आदर्शों का पालन करना चाहिए। अध्यक्ष की सलाह पर आप गम्भीरता से विचार करें।‘’ पटेल ने फ़ोन रख दिया।
सैनिकों को दिया गया वचन भंग करना अरुणा आसफ अली को बहुत बुरा लग रहा था। वे कशमकश में पड़ गईं।
जहाज़ों पर रुके हुए सैनिक, रास्तों पर नारे लगाते घूम रहे सैनिक, अरुणा आसफ़ अली ‘तलवार’ पर आने वाली हैं यह पता चलने पर वापस लौट रहे थे।
‘‘हमने ये जो विद्रोह किया है उसके बारे में उनकी राय क्या होगी ?’’ ‘नर्मदा’ का ब्रार गिल से पूछ रहा था।
‘‘अरे, वे जब यहाँ आ रही हैं, इसका मतलब वे हमारी ओर ही होंगी!’’ गिल ने जवाब दिया। ‘‘उनकी राय हमारे बारे में अच्छी ही होगी।’’
‘‘वे हमारा साथ देंगी इसका मतलब कांग्रेस का भी साथ मिलेगा और हमारा संघर्ष सफल होगा। हमें स्वतन्त्रता मिलेगी।’’ ब्रार का चेहरा प्रसन्नता से दमक रहा था।
ऐसे ही विचार ‘तलवार’ में आने वाले हर सैनिक के मन में उठ रहे थे।
बादलों से ढँका आसमान अब सूना हो गया था। चटकती धूप थी। सैनिकों के मन उत्साह से लबालब थे। उत्साह से भरे सैनिक ‘तलवार’ के परेड ग्राउण्ड पर जमा हो रहे थे। जब भी किसी जहाज़ से सैनिक आते, उनका स्वागत नारों से किया जाता; वे एक दूसरे के गले लग रहे थे। पंजाबी सैनिकों का एक गुट ‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला’ ऊँची आवाज में गा रहा था; मराठी सैनिकों का गुट क्रान्ति की जय–जयकार कर रहा था। समूचा वातावरण चैतन्यमय हो उठा था, और सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी को यह डर सता रहा था कि‘‘इन सैनिकों को खाली रखना ठीक नहीं। 'Empty mind is devil's workshop' यह बात झूठ नहीं है। सैनिक यदि बेकाबू हो गए तो परिस्थिति गम्भीर हो जाएगी।’’ गुरु ने कहा।
‘‘अब इन्हें दें तो क्या काम दें! भाषण सुन–सुनकर भी ये सैनिक उकता जाएँगे...’’ बोस ने कहा।
‘‘इन्हें कहीं उलझाना ही चाहिए। यदि हमने अनुशासित जुलूस निकाला तो अपनी एकता और अनुशासन हम जनता को दिखा सकेंगे। साथ ही हमारे संघर्ष के कारणों का भी उन्हें पता चलेगा।’’ खान ने सुझाव दिया।
‘‘इन सैनिकों को काबू में कैसे रखा जाए ?’’ पाण्डे ने पूछा।
‘‘ ‘तलवार’ के सैनिकों पर हमारा पूरा नियन्त्रण है। हम इन सैनिकों को बीच–बीच में लगा दें। हम - सेंट्रल कमेटी के सभी सदस्य और जहाजों के हमारे विश्वसनीय प्रतिनिधि - जुलूस वाले सैनिकों पर नज़र रखेंगे। यदि कोई गड़बड़ी करता हुआ या अनुशासन भंग करता हुआ दिखाई दे तो उसे नियन्त्रित किया जा सकता है; यदि एकाध सैनिक हंगामा मचाने की कोशिश करे तो उसे समय पर ही रोका जा सकता है।’’ मदन का सुझाव सभी ने मान्य कर लिया। सैनिकों से अपील की गई कि वे अनुशासन में रहें।
तीन–तीन की कतारों में सबको फॉलिन किया गया। जहाज़ों और नौसेना तलों के हिसाब से सैनिकों की गिनती की गई, और पन्द्रह हज़ार सैनिकों का जुलूस शुरू हो गया। आने वाले और रास्ते में मिलने वाले सैनिक शामिल हो ही रहे थे।
सफ़ेद झक् यूनिफॉर्म में नि:शस्त्र सैनिकों का यह जुलूस मुम्बई के रास्तों पर आगे सरक रहा था। सैनिकों के हाथ में तिरंगा था, चाँद–तारे वाला हरा और क्रान्ति का प्रतीक, हँसिया–हथौड़े वाला लाल झण्डा था। नारों के कारण सारा वातावरण देशप्रेम की भावना से मन्त्रमुग्ध हो गया था।
‘‘हिन्दू–मुस्लिम एक हों।’’ इस नारे की सहायता से वे सबको यह बता रहे थे कि यदि हिन्दू–मुस्लिम एक हो गए, तभी सम्मानपूर्वक स्वतन्त्रता मिलेगी। जुलूस के पहले और अन्तिम सैनिक के बीच की दूरी करीब–करीब एक मील थी। कहीं भी गड़बड़ी नहीं थी, अनुशासनहीनता नहीं थी। सैनिक रास्ते के एक ओर से चल रहे थे। देखने वाले भी उनके साथ अपने आप ही नारे लगा रहे थे। सैनिकों का यह अनुशासित जुलूस कुलाबा–चौपाटी से फ़्लोरा फाउंटेन तक जाकर उसी अनुशासन से ‘तलवार’ पर वापस आया।
‘‘चलो, छूटे! जुलूस शान्तिपूर्वक गुज़र गया!’’ दास ने कहा।
‘‘बीच में जब म्यूज़ियम के पास वे गोरे सिपाही लाठियाँ पटकते हुए आगे आए तो मेरा दिल धक् से रह गया। ऐसा लगा, कि यदि दो–चार हिन्दुस्तानी सैनिक चिढ़कर बाहर निकल आए और हल्ला बोल दिया तो... यदि हमारे संघर्ष को हिंसा का धब्बा लग गया तो...’’ पाण्डे के चेहरे पर राहत का भाव था।
‘‘जुलूस से यह तो यकीन हो गया कि सैनिक हमारे नियन्त्रण में रहेंगे, अहिंसा का मार्ग आसानी से छोड़ेंगे नहीं।’’ दत्त ने कहा।
अरुणा आसफ़ अली ने घड़ी की ओर देखा। साढ़े तीन बजे थे। ‘ ‘तलवार’ पर जाने की तैयारी करनी चाहिए, ’ वे पुटपुटाईं।
‘यदि कांग्रेस के अध्यक्ष और सरदार पटेल जैसे नेता इस संघर्ष से दूर रहने का निश्चय कर चुके हैं, तो क्या मेरा उन्हें समर्थन देना उचित होगा? ’’ विचार–चक्र तेज़ी से घूमने लगा।
‘‘कल, यदि मैं अथवा आसफ़ अली, सचमुच ही रक्षामन्त्री बनते हैं तो...मेरा न जाना ही ठीक रहेगा।’’
दूसरा मन पूछ रहा था, ‘सैनिकों के प्रतिनिधियों को मैंने वचन दिया है, उसे तोड़ दूँ... कारण क्या बताऊँ? सैनिकों को यदि मार्गदर्शन प्राप्त हुआ तो यश दूर नहीं, आज़ादी दूर नहीं, मगर...’’
मन दुविधा में था।
फ़ोन की घण्टी बजी। एक मिनट वे शान्त बैठी रहीं। ‘क्या जवाब दूँ ? ये सैनिकों के प्रतिनिधियों का ही है।’’ फ़ोन बजे जा रहा था। उन्हें ऐसा लगा मानो फ़ोन उनका इम्तहान ही ले रहा है। कुछ नाराज़गी से ही उन्होंने फ़ोन उठाया.
''Police Commissioner Butler speaking.''
''Aruna Asaf Ali. here.''
‘‘मैडम, मैसेंजर के साथ मैंने आपको एक ख़त भेजा है, जो आपको थोड़ी देर में मिल ही जाएगा। मगर चार बजे से पहले आपको सूचित किया जाए ऐसा आदेश प्राप्त होने के कारण ही मैंने फ़ोन किया।’’ बटलर पलभर को रुका।
‘‘पत्र किस बारे में है ? ’’ शान्तिपूर्वक उन्होंने पूछा।
''Madam, you are debarred from taking part in Public meeting. आज चार बजे आप ‘तलवार’ के सैनिकों से मिलने वाली हैं। आपकी इस मुलाकात पर पाबन्दी लगा दी गई है। यदि आपने उनसे मिलने की कोशिश की तो आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी।’’ बटलर ने धमकीभरे सुर में कहा और फ़ोन बन्द कर दिया।
अरुणा आसफ अली बेचैन मन से बैठी रहीं। कुछ भी करने को उनका मन ही नहीं हो रहा था।