विरोध
विरोध
हवाएं भी जैसे ज़हर उगल रही थी गर्मी के भयंकर दिन, लू की लपट से बेहाल सविता अपने ममत्व का हर बार गला घोंट रही थी ,वो उदासीनता के गहरे अवसाद में हर दिन एक दारुण दुखी स्वर से इधर उधर खेलते बच्चे को प्यार से सराबोर होकर पुचकारती रहती थी ,वो दिन और रात कुछ भी नही बोलती ,आँखे भी रो -रो कर सूज गयी थी आंखों से आंसू भी शायद इतने निकल चुके थे ,की अब सूखी आंखों में दुख और पीड़ित एहसास के सिवाय कुछ भी नही था ।
कब से सविता तू ऐसे ही बैठी है न कुछ बोलती है न कुछ गुनगुनाती है एकटक होकर तू क्या देखती रहती है ऐसा दिव्यांशी ने पूछा
कुछ देर बाद होश संभालने के बाद सविता ने बताया उसके ऊपर पाप चढ़ा है 4 बच्चियों के कत्ल का इल्ज़ाम है उस पर....जघन्य अपराध हो गया है कन्याभ्रूण हत्या हुई है एक बार नही 4 बार दिव्यांशी ।
न सास सुनती है न ही ससुर ,न पति सुनते है हर कोई उसे आए दिन प्रताड़ित करते है ,घरेलू अत्याचार करते है हर बार कानून के खिलाफ जाकर कन्याभ्रूण हत्या करवाते है
जिससे शरीर भी मेरा दुर्बल हो गया है मुझमे जीने की कोई आश नही बची है ,मैं तो बस मेरी प्यारी बेटी हिमांशी के लिए जीती हूँ नही तो कबकी मर जाती ,वैसे भी एक जिंदा लाश ही तो हूँ मै, केवल कब्र तक जाना ही तो बचा है ।बस अब बहुत हो गया दिव्यांशी मुझे बचालो
परेशान हो गयी हूं अब अगले पाप से बचा लो मुझे कल फिर यदि पता चला कि मेरी कोख में बच्ची है तो वो फिर से फूल जैसी बच्ची को मार डालेंगे हा वो मार डालेंगे ,
किसी भी तरह तुम मुझे पुलिस स्टेशन तक पहुँचाओ ,वो आज रात में ही हॉस्पिटल के बहाने बगीचे में मिलने वाली थी फिर सबसे बचकर वो दिव्यांशी के साथ पुलिस तक पहुँचती है और जो ज़्यादती उसके साथ हुई उसका पुरजोर विरोध करती है और पुलिस की सहायता से अपने पति ,ससुर ,सासु को कानून के हवाले करती है
वास्तव में अबॉर्शन जैसे घिनोने कार्य को अंजाम देने से पूर्व क्या एक बार भी दिल नही पसीजता क्यूं ऐसे कुकृत्य में देश के कुछ लोग लालचवश आ जाते है हमारे आसपास यदि ऐसा कुछ घटित होता है तो हमें उसका विरोध करना चाहिए ।