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जल्दबाज कालू

जल्दबाज कालू

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  एक बंदर था। नाम था कालू । पर दिल का बहुत साफ़ था ।

हमेशा लोगों की सहायता करता था।पर कालू की एक बुरी आदत थी । हर काम को जल्दबाजी में करने की । इससे अक्सर उसके काम बिगड़ जाते । वह दुखी हो जाता।

एक दिन वह बैठा सोच रहा था कि कैसे अपनी इस आदत को बदले। उसी समय उसे

भालू पीठ पर कुछ लकड़ियां लेकर जाता दिखा । कालू को लगा कि इसकी सहायता करनी चाहिये । वह कूद कर भालू के सामने पहुंचा,“लाइये दादा मैं ये लकड़ियां पहुंचा दूं।”

भालू थक गया था । उसे लगा कालू की मदद ले लेनी चाहिये।उसने लकड़ियां उसे दे दीं। कालू ने कहा,“दादा आप आराम से आइये । मैं आपकी ये लकड़ियां लेकर आगे चलता हूं।”और वह लकड़ियां लेकर तेजी से आगे बढ़ चला।

थोड़ा आगे एक जंगली नाला था । नाले का बहाव भालू की गुफ़ा की ओर था । कालू

बंदर ने सोचा---“क्यों न मैं लकड़ियां नाले में डाल दूं । पानी के साथ बह कर गुफ़ा तक पहुंच जाएंगी । मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी।”

बस उसने कालू की लकड़ियों का गट्ठर नाले में डाल दिया।नाले का बहाव तेज था।

लकड़ियां तेजी से बहने लगीं । उनके पीछे पीछे कालू ने भी दौड़ लगा दी पर कालू बहुत तेज नहीं दौड़ पा रहा था ।लकड़ियां आगे बह गईं । कालू ने सोचा कि भालू की गुफ़ा आने तक तो मैं इन्हें पकड़ लूंगा।                            

कालू बहुत तेज उछला । बहुत तेज दौड़ा । पर वह पानी के बहाव के साथ नहीं दौड़ सका । लकड़ियां भालू की गुफ़ा से आगे बह गयीं । कालू उन्हें नहीं पकड़ सका । वह उदास होकर गुफ़ा के सामने बैठ गया।

 कुछ ही देर में वहां भालू भी आ गया । कालू बंदर को उदास देख उसने  पूछा,“क्या हुआ।”

 कालू ने उसे पूरी बात बताई । भालू हंस पड़ा । उसने कालू को समझाया,“जल्दी में काम बिगड़ जाते हैं । अपने काम आराम से किया करो।”

बात कालू को समझ में आ गई।उसने उसी दिन से जल्दबाजी की आदत छोड़ दी।

                       

 

 


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