सरिता
सरिता
ऐसा मधुर स्वर जिसे कोई भी सुने तो आसक्त हो जाये ऐसी चाल जो प्रचण्ड चले तो गुनाह और मद्धम सी चले तो गुणगान हो जाए, जिसके तेज को देखकर समस्त लोको के स्वामी भी एकाग्रचित होकर उसी के हो जाये जिसका प्रवाह सुन हृदय में तेज कंपन हो जाये और जब शीतल पवन चले तो उसके निर्मल जल से टकराती हुई जो ठंडी सी लहर उठती है हृदय के तार को द्रवित कर एकाकार हो जाए ...वाह कौन है ये माँ (उत्साह से लवरेज प्रश्न ) बेटी ने किया।
माँ ने गहरी सांस लेते हुए उसे सरिता (नदी) की आत्मकथा को अपने खूबसूरत अंदाज़ में सुनाने का ज़िम्मा ले ही लिया की एक नदी बता रही है उसके उद्गमता का रहस्य
मेरी आवश्यकता इस पृथ्वी पर तब महसूस हुई जब कालांतर से ही तप के प्रभाव से प्रभावित ये धरा जलरहित होकर अस्तित्व से विहीन थी जहाँ एक भी जीव जंतु प्राणी स्वछंदता की ओर नही था जीवन संकट की बागडोर पर था जहाँ वृक्ष तो कतई नही एक तिनका भी सांस नही ले पा रहा था समस्त पृथ्वी हाहाकार से अपना उध्दोष प्रकट कर रही थी तपस्या के प्रभाव से इस कलयुग में प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव को स्थापित करने के लिए मेरा जन्म हुआ है मेरी उत्पत्ति का कोई ठोस सबूत नही है नही विज्ञान इसका सटीक विश्लेषण कर पायेगा मैं अजीत अनुपम अलंकारी हूँ मै परोपकारिता से सुसज्जित दिव्य परमावतारी हूँ मै शून्य से अनन्त में समायी हुई एक निधि हूँ मैं जीवो को आश्वस्त करती एक विधि हूँ मैं पापो और दुराचारों को क्षण में दूर करती संहारिणी हूँ।
मैं व्याकुल हृदय में खुशी भर दूँ ऐसी अनन्य सेविका हूँ वर्षो से पूजी हुई भविष्य के आनंददायी क्षणों तक पूजी जाऊंगी मेरा जन्म सेवा के लिए हुआ जितना भी सम्भव होगा सिद्ध कर दिखलाऊँगी।
क्या वाकई माँ नदी इतनी परोपकारी है बेटी ने फिर एकटक नज़रों से माँ से पूंछा -हाँ बेटा नदी बहुत परोपकारी है निस्वार्थ सेवा देकर हम सभी को निश्छल भाव से सेवा करने को प्रेरित करती है ,माँ ने बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- चल अब हम उस जीवन की अधारी हमारी माँ की पूजा करते हैं ....खुशी खुशी बेटी पूजा हेतु जाने लगी शायद अब उसे नदी के वास्तविक स्वरूप की जानकारी मिल चुकी थी।