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नन्हीं दोस्त

नन्हीं दोस्त

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बचपन की कई ऐसी यादें होती हैं, वो कभी भूले नहीं भूलती। हम चार -पांच बच्चे हमारे मोहल्ले के सब मिलकर कभी छुपा -छांई, कभी पीडू, कभी एक कोड़ा बनाकर गोल घेरा बना कर सब बच्चे बैठ जाते थे और कोड़ा बदाम छई एक बच्चा दुप्पटे का कोड़ा बना कर दौड़ता है चुपके से किसी एक बच्चे के पीछे डाल देता है। जिस बच्चे के पीछे रहता है वो कोड़े को उठा कर मारने दौड़ता है। 

हाँ मैं वैसे बात कर रही थी अपने उस नन्हीं दोस्त की हम सब खेलते-खेलते आंगन से दरवाज़ों के पीछे छुप जाते थे । हम अपने खेल में मस्त थे तब ही दरवाज़े की लकड़ी की खोह (छेद) में से एक नन्हीं सी गिलहरी का बच्चा गिर पड़ा, उस पर कोई रुंआ नहीं था। हमारे साथ नीलिमा थी उसने मुझे पुकारा रिनी ,यहाँ आ देख ये बच्चा गिरा कोई पैर रख देगा। 

 हम सब बच्चे इकट्ठा हो गए और पहले तो डरे फिर हमें सबसे बड़ेभाई थे उन्होंने उसे हथेली पर रख लिया। अब हम सब बच्चे खेल छोड़कर उस नन्हीं दोस्त की आवभगत में लग गए कोई अपने घर से दौडकर कटोरी में पानी ले आया। 

 कोई दाने में दाल, चावल सब लाने लगे, उसे खिलाने

रवि चला तो रुई ले आया कहने लगा अपन एक छोटी सी डलिया में रुई बिछा कर इसमें रखतें हैं। 

 अब बच्चों की सारी जुगत चालू हो गई। बच्चों को फिक्र हुई उसकी माँ दूर से देख रही है इतने में नीलिमा की मम्मी बाहर आंगन में आती है तो हम सबको डांटती है तुम लोग इस बच्चे को हाथ मत लगाओ, उसकी माँ उसे नहीं अपनाएंगी उसे गिरा देगी, आंटी हमसे वापस उस खोह में रखवा देती हैं। 

हम सब बच्चे दूर बैठकर टकटकी लगा कर देखते रहते हैं इतने में उसकी माँ उस खोह में चढ़ती है थोड़ी देर बाद ही वो हमारे नन्हीं दोस्त को गिरा देती हैं। हम सब नीलिमा की मम्मी के पास जातें हैं और बताते हैं गिलहरी ने अपने बच्चे को फेंक दिया। 

 अब रवि, नीलिमा और राहुल, मै हम सब बड़े अफ़सोस करतें हैं ,अपन ने हाथ लगा दिया ,गिलहरी अब उसे गिरा रही हैं।आंटी सही कह रही थी अब क्या करें । हमें सबसे बड़े राहुल भैया थे उन्होंने कहा अब इस बच्चे को डलिया में रुई बिछा कर रखेंगे, हम ही पालेंगे इस बच्चे को फिर क्या था हम बच्चों को एक टारगेट मिल गया। हम थे तो बहुत छोटे बच्चे , नीलिमा , रवि और मैं हमारी छोटी बुद्धि में ये नहीं आ रहा था कि ये राहुल भैया इसको खिलाएंगे कैसे। 

 अब रात होने को थी पर सब बच्चों को उस नन्हीं दोस्त को छोड़कर जाने को तैयार नहीं सब बच्चों की मम्मी आवाज़ लगाने लगी चलों बच्चों खाने का टाइम हो गया। हम बच्चों को जल्दी-जल्दी खाना खा कर फिर राहुल भैया के घर पहुँच गए। राहुल भैया की मम्मी ने कहा बच्चों घर जाओ मम्मी-पापा नाराज़ होगें। जैसे-तैसे घर तो आ गए नीलिमा, रवि और रिनी बड़ा मन-मसोस कर घर आए। मगर मन वहीं लग रहा था। हमें ये डर लगा था कहीं बिल्ली नहीं उठा ले जाए।, हम सब बच्चे रात भर बैचेन रहें। सुबह होते ही राहुल भैया के घर पर पहुँच गए हमनें *गिलहरी*नन्हीं दोस्त को देख कर सुकून मिला। 

 हम सब स्कूल जाने को निकले राहुल भैया ने उसको टेबल के नीचे बड़ा सा लकड़ी का खोका उस डलिया पर रखकर छुपा दिया बिल्ली वगैरह उसे मार ना दें। 

हम बच्चे सब सरकारी स्कूल में पढ़ते थे राहुल भैया और रवि लड़कों के स्कूल में थे, हम लड़कियों के स्कूल में पढ़ते थे। स्कूल से छुट्टी हुई यूनिफॉर्म चेंज किया और दौड़ लगा दी राहुल भैया के घर गिलहरी नन्हीं दोस्त के पास हम सब सोच में की नन्हीं दोस्त को कैसे कुछ खिलाएं इतने में राहुल भैया की भाभी कल से बच्चों की परेशानी देख रही थी, वो एक कटोरी में दूध लाई और रुई को दूध में भीगो कर गिलहरी के बच्चे का मुंह खोल कर कुछ बूंदें टपका दी उसका पेट बहुत नन्हा सा था भर गया। अब हम धीरे- धीरे उस नन्हीं दोस्त को पालने लगे। गिलहरी माँ तो फिर आई ही नहीं। 

अब नन्हीं दोस्त को उसपर रुंआ आ गया था अब उसकी चंचलता भी आ गई थी,राहुल भैया की भाभी ने अब बताया कि तुम बच्चों अब चने की दाल को में पानी में भीगा कर दूंगी वो इसे खाने को देना ठीक है, ये तुम्हारी नन्हीं दोस्त कुतर-कुतर कर खाने लायक़ हो गई है अब नेचरल तरीके से खाना सिखाना होगा नहीं तो ये जियेगा कैसे। 

अब हमारी नन्हीं दोस्त अच्छीअच्छी हो गई हम सब बच्चों के साथ खेलने भी लगी थी कभी हमारी भीगी हुई दाल आगे के दो पैरों से पकड़ कर कुतर-कुतर का खाती कभी राहुल भैया के कंधे से चढ जाती कभी हम बच्चों की गोद में आ बैठती जब थोड़ी बड़ी हो गई तो पेड़ों पर भी चढ़ जातीं । हम अब बेफिक्र हो गए थे कि उसको अब ढूंढ कर रखने की ज़रूरत नहीं थी जैसे ही खतरा भांजी वैसे फुदक कर कहीं ऊंचाई पर चढ़ जाती। पर हम बच्चों के आसपास ही रहती हम बच्चे भी उसे बहुत चाहते एक दिन वो अपने नए साथियों के साथ कहीं दूर चली गई। हम सब बड़े उदास राहुल भैया की मम्मी ने और भाभी ने हम बच्चों को समझाया अब वो अपने नए दोस में चली गई है वहीं उसका परिवार है, वो तो जीव-जन्तु है। ऐसे ही विचरते रहतें है, तुम लोगों के पास हमेशा थोड़ी रहने वाली थी। 

 इन एक साल में हम बच्चे इतना बदल गए थे एकदम से बड़े हो गए थे। फिर हम भी अपनी पढ़ाई-लिखाई में लग गए मगर हम सब उस नन्हीं दोस्त गिलहरी को याद ज़रूर करते थे।


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