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Madhuri Chheda

Abstract

4.9  

Madhuri Chheda

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मेरी बहू सिंड्रेला

मेरी बहू सिंड्रेला

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मालती की बन्द पलकों पर से अँधेरे की चादर सरकने लगी और उजाले ने थपकी दी। कानों में पक्षियों की चहचहाट गूँजने लगी। मालती ने आँखें खोली तो देखा कि एक खुशनुमा सुबह बाहें पसारे, उससे गले मिलने आतुर थी। मालती खुशी से खिल उठी थी। आज से उसकी जिंदगी एक नया मोड़ लेने वाली थी। उसने अपने रेशमी गाउन का बेल्ट बांध, पैरों को स्लिपर में डाला, नयी सुबह की नयी चाय बानाने चल पड़ी। उसके पैरों में एक नयी थिरकन और एक नया जोश था। उसे यह सोचकर आश्चर्य होने लगा कि क्या ये वही पुराने पैर हैं, जो घिसट घिसटकर चलते थे, जिनमें मानो जान ही नहीं थी। आज तो जैसे पैरों में पंख लग गये हों। सिर्फ पैर ही क्यों, सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखूनों तक सब कुछ बदल गया है। अट्ठावन पार कर चुकी स्कूल की एक रिटायर्ड टीचर मालती आज एक प्रतिष्ठित एज्युकेशन ट्रस्ट के डायरेक्टरशिप की पोस्ट जॉइन करने जा रही है। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रिटायर होने के बाद भी उसकी कोई उपयोगिता रह जाएगी।

मालती की बेटी शादी के बाद अमेरिका चली गयी थी। बेटे की जब शादी हुई तो शादी के बाद उसकी पोस्टिंग सुदूर दक्षिण में हो गयी, तब मालती अकेले होते ही अपने आपको बूढ़ा होता हुआ महसूस करने लगी थी। मालती के पति एक गम्भीर, कम बोलने वाले और अन्तर्मुखी व्यक्ति थे। वे घर में होते हुए भी मानो नहीं थे। उस खामोश घर में मालती के लिए किसी तरह के उछाह, एक्साइटमेंट या आवेग जैसा कुछ नहीं था। एक आम मध्यवर्गीय औरत की तरह वह भी महसूस करती कि अब क्या, अब तो मैं बूढी हो गयी हूं। बस किसी तरह दिन काटने हैं। कुछ करने को बचा नहीं है अब। तो यह थी जिंदगी से हारी हुई मालती! सिर पर आधे सफेद, आधे काले खिचड़ी बाल, शरीर पर बेतरतीब लपेटी हुई साड़ी, पैरों के नाखूनों में भरा मैल और पोर पोर में बेजारी और थकन, जिंदगी से हारी हुई, हताश। और जो हमेशा इस खयाल से आतंकित हो उठती थी कि रिटायर्ड होने के बाद क्या होगा? कभी वह सोचती कि इससे तो अच्छी थी हमारी पुरानी संयुक्त परिवार की व्यवस्था- जहां एक बूढी होती हुई औरत अपने नाती-पोतों की परवरिश करते हुए, अचार, बड़ी और पापड़ बनाते हुए जिंदगी बिता देती थी। उसे पता ही नहीं चलता था कि कब मौत आकर दरवाजे पर खड़ी हो गयी है ! पर अब तो ज़माना ही बदल गया है। नौकरी ख़त्म तो जिंदगी ख़त्म, आप बस एक फालतू चीज। यह थी मालती की यातना।

कि . कि अचानक ही उसकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया। नवविवाहित बेटा जो सुदूर दक्षिण में नौकरी कर रहा था, उसे कंपनी ने तीन महीने के लिए विदेश भेज दिया। अकेली बहू क्या करे? पति के साथ जाना संभव नहीं था। उसने फोन पर सास को बताया, मम्मी! शादी के बाद आपके पास रह नहीं पायी हूं, तो सोचती हूं इस मौके का फायदा उठाऊं और भागकर आपके पास चली आऊं! मालती को अपार आश्चर्य हुआ। मालती के लिए यह अनहोनी थी, कोई और बहू होती तो अपने मायके चली जाती। सास के साथ रहना कौन चाहता है आज?

और लो आ गयी बहू! आते ही पैर छूने के बजाय उसने सास के गले में बाहें डाल दीं -  ओ ओ ओ मम्मी! हम दोनों आपको कितना मिस करते थे!

मालती सिटपिटा गयी ! उसकी समझ में नहीं आया कि पैर ना छूने पर नाराज होना चाहिए या गलबाहियां डालने के लिए खुश होना चाहिए! वह बहू का मुँह देखती रह गयी। पर बहू के आने से घर में रौनक आ गयी थी। बहू प्रिया बड़ी खुश मिजाज थी। पंछी की तरह चहचहाती रहती। घर भर में तितली की तरह उड़ती फिरती। कभी अचानक पीछे से आकर गले में बाहें डाल देती! कभी गोद में सिर रखकर सो जाती। मालती सोचती रह जाती ये कैसी बहू है! पर सच तो यह था कि उसे भी यह सब बहुत अच्‍छा लगता था।

एक दिन मालती खाना बना रही थी कि अचानक आकर प्रिया ने गैस बंद कर दी और अनाउंस किया कि मम्मी चलो आज मेटिनी शो देखेंगे और फिर खाना भी बाहर ही खायेंगे। मालती ना-नुकुर करती रही पर प्रिया ने मनुहार करके उसे मना ही लिया। इसी तरह कभी वो मालती को गली के नुक्कड़ तक गोलगप्पे खाने ले जाती, तो कभी रात दस बजे उसका मूड होता आइसक्रीम खाने का। मालती सोचती कैसे छोटे छोटे सुखों से वह वंचित थी अब तक! इतने मनुहार से न तो कभी पति ने सैर करवायी थी न बेटे ने और न ही बेटी ने! पति हमेशा डराते रहते, - सड़क पर बिकनेवाली चीजें खाने से पेट बिगड़ जाएगा, आइसक्रीम खाने से गला खराब होगा, केक खाने से डायबिटीस हो जाएगी। जब कि प्रिया हर बार कहती, खाओ मम्मी, खाओ, कुछ नहीं होगा। कुछ होगा तो दवा खा लेंगे। पर सचमुच कुछ नहीं हुआ। एक दिन प्रिया मालती को खींचकर ब्युटी पार्लर ले गयी। मालती ना ना करती रही। अरे ये बुढ़िया ब्युटी पार्लर जाकर क्या करेगी, बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम की तरह मुझे जोकर बनाकर ही छोड़ोगी क्या। पर प्रिया कहाँ सुनने वाली थी! उसने तो मम्मी का कायाकल्प ही कर दिया- ब्लीच, फेसिअल, मेनीक्योर, पेडीक्योर कराकर बालों को डाय भी करा लिया। मालती शर्म और संकोच से गड़ी जा रही थी। लोग क्या सोचेंगे, बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम! पर प्रिया ने उसकी एक न चलने दी। इतना ही नहीं, वहां से वह उसे एक बुटिक में भी ले गयी, उसे एक खूबसूरत सलवार-सूट पहनने पर मजबूर किया। मालती ने कभी कल्पना भी न की थी कि वह किसी दिन सलवार-सूट भी पहनेगी। पर प्रिया ने जब उसे आईने के सामने खड़ा किया तो वह अपना प्रतिबिंब देखकर अवाक रह गयी। वह नहीं जानती थी कि सलवार-सूट में वह इतनी यंग और सुंदर भी दिख सकती है। खुशी के आवेग से वह रो पड़ी तो प्रिया घबरा गयी कि क्या उसने कुछ गलत कर दिया? और वह सॉरी कहकर माफी मांगने लगी, तो उसे बाहों में भरकर मालती बोल उठी- अरे पागल लड़की! तू नहीं जानती कि तूने तो मेरी जिंदगी ही बदल दी है।

प्रिया ने अनजाने ही सही, अपने व्यवहार से मालती को अहसास कराया कि इस उम्र में भी जिंदगी इतनी खूबसूरत हो सकती है। अब प्रिया के प्रति अपनत्व महसूस करने लगी थी और एक दिन उसने अपनी समस्या प्रिया के सामने रखी कि कैसे वह रिटायरमेंट के बाद अपने को अकेला और फालतू महसूस करने लगी है। तो प्रिया ने उसके सामने अनंत संभावनाओं के द्वार खोल दिए।

देखो मम्मी! आप तो बुनाई-कढ़ाई की इतनी चीजें जानती हैं, तो अपना एक हस्तकला केंद्र शुरू कर दें, जहां अनपढ़, गरीब महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा सके और उनके द्वारा बनायी गयी चीजों को बाजार में बेचा जा सके। उन औरतों के लिए आय का एक साधन बन जाएगा और आपका समय सृजनशील कामों में बीतेगा। आप नहीं जानती आज इन चीजों की कितनी डिमांड है। अगर आप ये न करना चाहें तो अपना तो यह घर इतना बड़ा है कि यहां एक ऐसा चिलड्र्न सेंटर शुरू कर सकती हैं, जहां उन बच्चों को संस्कारित किया जा सके जिनके मां-बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है। मम्मा आपका तो गला इतना मीठा है कि आप अपना एक म्युजिक ग्रुप शुरू कर सकती हैं। मालती मंत्रमुग्ध होकर प्रिया की बातें सुन रही थी। उसने इन बातों के महत्त्व को कभी जाना ही नहीं था। वह नहीं जानती थी कि महिलाएँ अपनी जिन विशेषताओं और कलाओं को केज्युअली लेती हैं, वे आज के उपभोक्तावादी जमाने में व्यवसाय के स्रोत बन चुके हैं। आज उसे पता चला कि उसके भीतर अनंत संभावनाएं मौजूद हैं, वह चाहे तो कितना कुछ कर सकती है। वह अभी सोच ही रही थी कि वह कहाँ से शुरू करे, कि उसे एक शिक्षा-संस्थान से बुलावा आया। शिक्षा-क्षेत्र में उसके लंबे अनुभव से परिचित एक ट्रस्ट ने अपने शिक्षा-संस्थान में डिरेक्टरशिप स्वीकार करने का आमंत्रण दिया। और आज मालती की डिरेक्टरशिप का पहला दिन है और तैयार होते-होते वह सोच रही है कि यदि प्रिया न आयी होती तो क्या जिंदगी का यह नया पन्ना खुला होता!


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