माँ, अगर उसकी जगह मैं होती तो?
माँ, अगर उसकी जगह मैं होती तो?
"हेलो कौन ?"
"अरी ओ, वकील साहिबा..हम कौन बोल रहे हैं इसकी परवाह मत कर, तू बस अपनी जिंदगी के बारे में सोच, लगता है अपने जीवन से प्यार नहीं है तुझे। पहले भी समझाया था आज फिर आखिरी बार समझा रहे हैं कि ये कोर्ट कचहरी में चल रहे मुक़दमे को बंद कर दे नहीं तो ठीक नहीं होगा, ना तेरे लिए और ना तेरे घर वालों के लिए। शायद तू भूल गई है कि क्या हाल हुआ था तेरी उस सहेली का, बस अब समझ जा और संभल भी" कहते हुए फोन काट दिया।
"कौन था ऋतु ?" माँ ने आँखों व दिल में बसे हुए डर के साथ धीमी-सी कंपकपाती हुई आवाज में पूछा। लेकिन ऋतु फोन पर मिली धमकी से बिना डरे व अपने निडर मन में आत्मविश्वास भरे हुए तपाक से बोली “अरे माँ, आप तो जानती हो ना फिर क्यों पूछती हो हर बार ? और हर बार की तरह इस बार भी मैं यही कहूँगी कि तुम बेवजह परेशान ना हो वो डरपोक लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि अगर ऐसा ही होना होता तो बहुत पहले हो चुका होता। बस तुम भगवान से दुआ करो कि मैं उसे जल्द ही इंसाफ दिलवाने में सफल हो जाऊँ।" इतना कहते हुए अपनी माँ के गालों को प्यार से छू कर आत्मविश्वास से भरी हुई ऋतु ने माँ के मन का डर खत्म करते हुए उन्हें चाय बनाने को कह खुद लग गई जल्दी से मुकदमे की फाइल को एक नजर देखने में।
पता ही नहीं चला ऋतु फ़ाइल देखते-देखते कब अतीत में डूबती हुई उस भयानक दिन में पहुँच गयी जब शाम को कोर्ट से घर जाते समय पैदल थोड़ी दूरी तय करने के बाद एक वैन की धीमी होती रफ्तार और ऋतु से कुछ कदम की दूरी पर वैन का दरवाजा खोल अंदर बैठे कुछ हैवानों द्वारा सड़क पर फेंकी हुई एक लाश-सी बेजान बनी लड़की, जिसके तन पर पूरे कपड़े भी ना थे। जिस्म मानों चीलों द्वारा अपनी भूख शाँत करने के लिए नोंच-नोंच कर खून से लथपथ हुआ अधमरा--सा।
कुछ मिनटों के लिए तो ऋतु की सोच से सब बाहर था कि आखिरकार यह क्या हुआ है ? लेकिन जल्दी ही जब होश आया और दौड़ कर गयी तो अपने सामने उसी के घर में झाड़ू पोछा का काम करने वाली आंटी की बेटी सोनिया को पाया। कई बार देखा था ऋतु ने सोनिया को अपने घर में उसकी माँ के साथ बस कभी ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी, लेकिन आज ना जाने क्यों ऋतु का सोनिया का दुःख देखते ही अपनापन-सा जागृत हो गया था। शायद एक औरत दूसरी औरत का दुख ज्यादा अच्छे से समझ पाती है और यहाँ तो भयंकर अपराध हुआ था और सोनिया की गंभीर हालत देख रूह कांप उठी थी ऋतु की।
काफी हिम्मत कर व लोगों की मदद से ऋतु सोनिया को हॉस्पिटल तो ले गयी पर बचा ना पाई। सोनिया की माँ यह खबर सुनते ही टूट चुकी थी, यह जानकर कि उसके पड़ोस में रहने वाले दरिंदो ने उसकी बेटी के साथ दुष्कर्म किया था तब भी कुछ करने में असमर्थ थी वह। काफी दिन बीतने के बाद उसकी माँ काम पर लौटी थी तो ऋतु को देखते ही मन में आशा की किरण जगी की ऋतु उसकी सोनिया को इंसाफ दिलवा सकती है। ऋतु भी यही चाहती थी कि ऐसे राक्षसों को सजा जरूर मिलनी चाहिए, इसीलिए उसकी माँ के लाखों बार मना करने के बावजूद भी वह यह केस लड़ने के फैसले पर अड़ी रही।
तभी अचानक से माँ द्वारा ऋतु के कंधे पर हाथ रख उसका नाम एक दो बार पुकारने से वह वर्तमान में आ पहुँची। और जल्दी से मुक़दमे की फ़ाइल ले कर मंदिर में माथा टेक माँ से मिलकर जाने ही लगी, कि माँ घबराए हुए मन से बोल पड़ी, "अब जो होना था सो हो गया सोनिया के साथ कोई बदल तो नहीं सकता ना, तू अपनी ज़िद छोड़ क्यों नहीं देती। उन धमकी भरे फ़ोन कॉल्स से तुझे नहीं तो मुझे बहुत डर लगता है, अभी मैं बोलती हूँ सोनिया की माँ से क्या पूरी दुनिया में तुझे मेरी ही बेटी मिली थी यह केस लड़वाने के लिए, और भी तो वकील हैं जाकर उनसे गुहार लगाए, मैं कह रही हूँ कि अब तू यह केस नही लड़ेगी।"
ऋतु जानती थी कि अगर इसका जवाब गुस्से में दिया गया तो बात सँभलने के बजाय और बिगड़ जाएगी इसीलिए उसने प्यार से माँ का हाथ पकड़ा और बोली "माँ, क्या हो गया तुम्हें, तुमने ही तो गलत के खिलाफ लड़ना सिखाया और आज तुम ही पीछे हटने को कह रही हो, वो भी बस फ़ोन कॉल्स की धमकियों से डर कर। सोनिया की माँ उसके लिए इंसाफ चाहती हैं, अगर सोनिया की जगह मैं होती तो शायद आप भी वही करते जो उन्होंने किया।" ऋतु इसके आगे कुछ बोलती माँ की आँखों में आँसू आ गये। शायद वो समझ गई थी कि केवल सोचने भर से उसकी रूह कांप गयी, तो सोनिया की माँ का उनकी बेटी को ऐसे देख क्या हाल हुआ होगा, और आज भी वो किस अवस्था से गुजर रही होगी।