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Abhishek Saran

Inspirational

4.2  

Abhishek Saran

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काश

काश

4 mins
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प्यारे पापा,

हमनें आजादी के 71 साल पूरे कर लिए है। आज के दिन अपने घर कैप्टन अनिल के नाम बहुत ख़त आये हैं और उनके साथ आई हैं, देश के विभिन्न हिस्सो से मिठाइयॉं और फल जिनमें कलकत्ता के रसगुल्ले, कश्मीर के सेब, कर्नाटका से काजू और राजस्थान से तिल्ली के लाडु शामिल हैं।

आज सुबह जब में अपने घर के ऊपर, आपके कहे मुताबिक़, उस तिरंगे को लहराकर मम्मा के साथ राष्ट्रगान गाना शुरू कर ही रही था कि कहीं से हमारे सूर को सहारा मिला, नज़रे जरा सी घुमाई तो देखा सारा शहर आज छत के ऊपर है, वो आपके जिगरी पंडितजी, वो हँसमुख मौलवी जी जो आजकल शाईरी भी करने लगे हैं, वो गुरविंदर जिसे आप चड्डा चड्डा कह के चिढाते थे, उनके साथ उनका 6 साल का प्यारा सोनू भी है जो अभी भी नींद में लग रहा है, शायद उसे नींद की आजादी चाहिए है। खै़र पुरे शहर में उस वक्त एक ही गान था, एक ही जश्न था, मैं ज़रा हैरान थी मगर खुश थी।

फिर दोपहर को जब में गली में निकली तो आज किसी ने मुझ पर फब्तियॉं नहीं कसी, किसी ने मेरे कपड़ों को छोटा नहीं कहा, किसी ने मेरी तरफ बुरी नज़र से भी नहीं देखा, सभी के होंठों पर आज जय हिंद था, सभी का हाथ आज ललाट को इशारा कर रहा था, सभी की नज़रों में आज सम्मान था, इज़्ज़त थी, मैं ये बदलाव देख के सहम गई, आँखो के किसी कोने से आँसुओं ने अपना रस्ता ढू्ंढ लिया। ये दूसरी बार हुआ जब अपनी ही गली में ही मेरे आँसू गिरे थे।

पहली बार तो आप ही ने रुलाया था, आज से 4 साल पहले, जब आप आये थे, उस दिन आपके हाथो में हमेशा की तरह चोकलेट्स नहीं थी, न हीं आप हमेशा की तरह चल रहे थे, ना हीं गली के मोड़ पे आपने उस दिन मुस्करा के मुझे गोदी में लिया था बल्कि उस दिन तो आपको ही कुछ लोग कंधों पे उठाकर चल रहे थे मानो आप भी अचानक मेरी तरह बच्चे बन गये हो। मैं उस दिन बहुत डर गई थी, मॉं ने मुझे अपने आंचल में छुपा तो लिया था मगर उस दिन तो वो भी बच्चो की भाँति रो रही थी। उस दिन मैंने मम्मा को पहली बार रोते देखा था, सचमुच मैं उस दिन बहुत डर गई थी मगर कुछ समझ नहीं पाई थी, हॉं, इसी गली में गला फाड़ के रोई बहुत थी।

और फिर शाम को जब में बाजार गई तो किसी ने मुझसे चिढ़कर बात नहीं की, किसी ने गलत जवाब नहीं दिया, सबने मुस्करा के मुझे जवाब दिया, मुझको ही नहीं, आज सब के साथ ऐसा ही सलूक हो रहा था, इतना प्यारा, इतना अज़ब गज़ब , सच में कितने अच्छे बन गये हैं ना अपने शहर के लोग, पापा !

और पता है पापा !, जब आज मैं वापस आते हुए लेट हो गई ना तो किसी ने मेरे अकेलेपन का फ़ायदा नहीं उठाया, किसी ने मेरे पास से होके बाइक को नहीं घुमाया बल्कि कुछ ने तो मुझे ये भी कहा कि बेटी / बहन तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं हैं , नाहीं तेज चलने की ज़रूरत है, ये तुम्हारा अपना ही शहर है, सच में, आज पहली बार ना, पापा ! मैं बिना किसी डर के , झूम के, गा के चल रही थी !

सच में पापा ! आज पहली बार, मुझे अच्छा सा, एक प्यारा सा सपना आया, आज पहली बार बेखौफ़ होके सोई थी मैं।

हॉं, ये ऐसा पहली बार हुआ था आज़ादी के इन 70 सालों में, आज जब ये सब हुआ तो मम्मा ने कहा कि आज तेरे पापा का ख़्वाब पुरा हो गया, आज आपकी आत्मा आज़ाद हो गई है, इस घर की मुंडेर से। इसलिए, कैप्टन अनिल ! अब आपको डरने की जरूरत नहीं है, अब आपका देश एक नये युग में प्रवेश कर चुका। अब आप निश्चिंत हो के सो सकते हैं, अब इस देश का नया भविष्य, नई पीढ़ी जो जग गयी है, बदल जो गया है आपका प्यारा देश, जिसके लिये आप कुरबान हुए थे।

जय हिंद! कैप्टन पप्पा

आपकी प्यारी बेटी, प्रिया !


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