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मासूम

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सैम (समीर) अपने बिस्तर पे सोया हुआ था और अपने ऊपर वाले छत की दीवार को गौर से देख रहा था, उसकी आँखें उस दीवार से शायद कुछ सवाल पूछ रही थी।

"सो जाओ बच्चों" ये कहके हरी चाचा ने कमरे की सारी बत्तियाँ बुझा दी और कमरे से चले गए।

(ये अनाथ आश्रम है यहाँ के भी कुछ कानून होते हैं, इस दुनिया में सबको अपना घर कहाँ नसीब होता है। रात को १० बजे हमेशा बत्तियाँ बंद हो ही जाती है।)

सैम ने आवाज सुनी लेकिन वो उस दीवार को इतनी गौर से देख रहा था कि उसने वो आवाज अनसुनी कर दी जैसे कुछ हुआ ही नहीं। अंधेरे की वज़ह से वो रंगीन दीवार भी किसी काले पर्थ के पीछे छुप गई थी। सैम कुछ देर उस दीवार को देखने के बाद अपनी आँखें बंद करके सो गया।

रात का वक़्त हो रहा था एक बच्चा काफी रो रहा था। उसकी माँ उसे चुप कराने की कोशिश में जुटी हुई थी, लेकिन बच्चा न जाने कब से रोए जा रहा था। कौनसी माँ अपने बच्चे का रोना बर्दाश्त कर सकती है, माँ तो बस माँ होती है, ममता का सागर होती है। जब सारी तरकीबें आजमाने के बाद भी बच्चे का रोना बंद न हुआ तो माँ ने लोरी गाना शुरू कर दिया।

"आयेगी निंदिया अँखियों के घर

ले जायेगी निंदिया सपनों के घर

सपने तुझे लेके उड़ जायेंगे

परियों की दुनिया में ले जायेंगे।"

उस माँ की आवाज में जो ममता भरी मीठास थी उसमें वो रोती हुई आवाज कहाँ गुम हो गई, पता ही नहीं चला और धीरे धीरे बच्चा ख़ामोश हो गया। दोनों उस लोरी में खुदको इस तरह भुला चुके थे कि लोरी सुनते सुनाते ही सो गए।

"सैम, सैम उठ जल्दी, सैम ७ बजे गए हैं। आज इतवार है, हमें देखने कुछ माता-पिता आने वाले हैं सैम।

सैम को जैसे ही माता-पिता आ सकते हैं सुनाई दिया वो सपने से उठकर हकीकत में आ गया और बबलू को देखने लगा।

"क्या हुआ,सैम" (बबलू ने ये पूछा क्युंकि उसने सैम की आँखों में पानी की कुछ बूंदें देखी थी।)

"कुछ नहीं, हमें जल्दी से तयार हो जाना चाहिए।" सैम ने कहा।

और दोनों कमरे से बाहर चले गए और जाते जाते सैम ने मन ही मन कहा, "माँ लोरी अच्छी थी।" मैं कल फिर आऊँगा।


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