वास्तविक लक्ष्य
वास्तविक लक्ष्य
मनुष्य को अपने वास्तविक लक्ष्य का निर्णय कर पाने में सक्षम होना चाहिए। समस्या ये है कि मनुष्य द्वंद से कैसे बचे। इतनी सारी विचारधाराओं में कैसे अपने मन को नियंत्रित करे, सामंजस्य कैसे बैठाए ? सामने वाले व्यक्ति के गलत विचारों को कैसे बदले ? ये बंटवारे पूर्ण विचार, समाज में बुराईयों का प्रोत्साहन कर रहे हैं। मनुष्य को स्वार्थ से परिपूर्ण कर रहे हैं। बुराईयां, अच्छाई पर हावी होने को जैसे तैयार सी बैठी हैं, और इसका कारण अच्छाई का कमजोर होना है। अधिकतर, हम देख सकते हैं कि जो अच्छाई और सच्चाई का साथ देता है, ईमानदार होता है, उसका शरीर कमजोर होता है। इसके विपरीत बेईमान, झूठा, चरित्रहीन एवं अन्य बुराईयों से लबरेज व्यक्ति अपेक्षाकृत, अधिक बलवान होता है। इसलिए वो अपने विचारों के द्वारा दूसरों पर अधिक तीव्रता से हावी हो जाता है।
अच्छाई को अगर बुराई पर विजय प्राप्त करनी है तो अच्छाई को मजबूत बनना पड़ेगा, अच्छाई के लिए कट्टर बनना पड़ेगा, एकाग्र बनना पड़ेगा। या यूँ कहें कि "एक हाँथ में ज्ञान और दूसरे में तलवार" लेकर चलना पड़ेगा।
तब जाकर कहीं मनुष्य अपने वास्तविक लक्ष्य 'मनुष्यता' की ओर अग्रसित हो सकेगा।