हस्तांतरण
हस्तांतरण
अच्छी भेंटपूजा के साथ नाच-गाने का मजा लेने के लिए रमेश सपरिवार आए हुए थे। सभी लोगों के बीच बैठे नवनीतलालजी ने प्रसन्न मुद्रा में हाथ जोड़ लिया।
उन का पुत्र अपने ससुराल वालों को नेक के कपड़े दे रहा था। सभी के बीच वे नीचे मुँह कर के बैठे थे। यह बात रमेश को उन के स्वभाव के विपरीत लगी।
उसे याद आया। नवनीतलालजी ने कहा था, ''बेटा ! तेरी मौसी चाहती है कि समय के साथ सत्ता का हस्तांतरण पुत्रों में हो जाना चाहिए।''
''लेकिन मौसाजी, अभी तो आप सभी काम धंधा सम्भाले हुए हैं, ''रमेश ने कहा तो वे बोले थे, ''बेटा ! समय का यही तकाजा है।''
तभी विचारमग्न रमेश को उसके पुत्र ने झंझोड़ दिया, ''पापाजी ! हर बार की तरह आप को और हमें भी कपड़े मिलेंगे ? आप सलहज है।'' उस ने पूछा।
'' नहीं नहीं बेटा !,'' रमेश अब तक नवनीतलालजी की स्थिति भाँप चुका था। सत्ता के साथ परिस्थिति बदल चुकी थी। वह बोला, ''अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। मुझे कुछ नहीं चाहिए।''
''मगर, मुझे तो अब बहुत कुछ चाहिए।'' रमेश अपने पुत्र की इस सुगबुगाह को अंदर तक महसूस कर रहा था।'' तो क्या उसे भी नवनीतलालजी की तरह बनना पड़ेगा।'' यह सोच कर वह अपने पुत्र को खोजी निगाहों से परखने लगा।