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Neha Agarwal neh

Abstract

1.1  

Neha Agarwal neh

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"कलयुग की सावित्री"

"कलयुग की सावित्री"

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अस्पताल के कमरे के बाहर चहलकदमी करते लोगों को देख कर कोई भी बता सकता था कि वो प्रतीक्षा कर रहे है अपने परीवार में आने वाले नये मेहमान की।
तभी कमरे से बाहर आती डाक्टर को देखकर सब लपक कर उनके पास पहुंच गए। डॉक्टर मुस्कुरा कर बोली।
"बधाई हो अम्मा जी लक्ष्मी आयी है तुम्हारे घर"
"सच क्या सच कह रही हो आप डॉक्टर साहिबा? जा बेटा भाग कर जा और कम से कम पांच किलो लड्डु लेकर आ आज सबका मुंह मीठा कराउगी मैं तो "
यह सुन डॉक्टर हैरान हो कर बोली।
अम्मा जी कौन सी मिट्टी से बनी हो आखिर रोज़ देखती हूं बेटी की खबर सुन मुंह लटक जाता है लोगों का और आप सबको मिठाई बांट रही है।"

"सही बोली आप डाक्टर साहिबा पर खुद भी तो औरत के रुप में जन्म लिया था ना जब पैदा हुयी दो महीने तक मेरे बापू ने मेरा मुंह तक ना देखा।जब भी यह बात मेरी मां मुझे बताती थी अजीब सा दर्द उभर आता था उनकी आंखों मे बस अपनी बहु को उस दर्द से बचाना चाहती हूं।"

बेटी के घर आने के बाद भी दादी के लाड़ प्यार मे कोई कमी नहीं आयी थी दादी ने बहुत दुलार से अपनी पोती का नाम रखा ।

                "" मुग्धा ""

सच मैं बहुत सोच समझ कर ही यह नाम रखा था दादी ने वो ऐसी ही थी जो उसे देखता बस मुग्ध हो जाता।

दादी की देख रेख और मां के प्यार ने मुग्धा को सिर्फ रुप का ही नही गुणों का भी धनी बना दिया था।

और एक कहावत ही शायद उसी के लिए बनी थी। सोने का चम्मच मुंह में लेकर पैदा होने वाली। क्योकी जहां उसके जन्म से पहले उसके बापू का व्यापार डगमग डगमग चल रहा था वो ही व्यापार मुग्धा के जन्म के बाद दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करने लगा था।

दिन बीतते गए और फिर वो दिन भी आया जब इस सोनचिरईया को बाबुल के आंगन से उड़ जाना था। बहुत सी दुआओं के साथ मुग्धा बाबुल के आंगन को सूना कर पी के देश चल पड़ी।

नयी जिन्दगी के पहले ही कदम पर लडखड़ा गई मुग्धा।जिससे शादी तय हुई जिसके साथ फेरे हुए वो तो सामने सासू मां के साथ स्वागत के लिए खड़ा था तो कौन था वो जो पहलू में खड़ा था।
घबरायी हुयी मुग्धा को देखकर वहाँ उपस्थित लोगों की हंसी ही नहीं रूक रही थी। किसी तरह अपनी हसीं को रोककर सासु मां बोली।

"ना ना परेशान मत हो बेटी यह सब तेरे देवर अमित की शरारत है। कितना बोला इसको कि तुम्हें बता देते है अमित और सुमीत दोनो जुडवा है। कोई भी नहीं पहचान सकता कि कौन सुमीत है और कौन अमित। पर नही इसको को सरप्रायज देना था ना अपनी भाभी को अब तुम ही सम्भालों अपने लाड़ले देवर को।"

तभी पीछे से इकलौती नन्द चहक उठी ।

"भाभी बी केयरफुल सुमित भैया को पहचानने में कभी धोका मत खा जाना ।"

और मुग्धा सच में हैरान परेशान सी सोच में पड़ गई।

"अगर सच मे वो पहचान ही नहीं पायी सुमीत को, या दोनों भाइयों ने मिलकर कोई शरारत करी तो, उफफफ क्या करू मैं भगवान जी कैसा गोरखधन्धा है यह इसी सोच विचार के चलते पहली ही रात अपना सारा डर कह बैठी मुग्धा सुमीत से "

उसकी बात सुन धीमें लफ्जों से मुग्धा से बोला सुमीत ।

कितनी भोली हो तुम मुग्धा जरा सी देर में क्या क्या सोच लिया अच्छा सुनो अमित सगा भाई है मेरा थोड़ा शरारती है पर दिल का बुरा नहीं परेशान मत होना कभी जिन्दगी में भी वो तुम्हे परेशान नहीं करेगा रही बात मुझे पहचानने की तो उसका भी हल है मेरे पास हमारा एक कोडवर्ड होगा।जिससे तुम्हे कोई परेशानी नही होगी मुझे पहचानने में अब तो खुश ना "

"और फिर सच में दिल से मुस्कुरा दी मुग्धा यह सोच कर कि भगवान ने कितना अच्छा जीवन साथी दिया है उसे जिस बात को लेकर सुबह से परेशान थी वो कैसै चुटकी मे हल कर दी वो समस्या सुमीत ने "

अगले दिन से मुग्धा के नये जीवन की शुरूवात हूई यूं ही हसते गाते कब तीन महीने गुजर गये किसी को पता भी ना लगा। अब तो मुग्धा के आंगन मे भी नया फूल खिलने वाला था।

पर एक दिन जैसे ही सुमीत खाना खाने बैठा एक फोन आ गया। और जब सुमीत वापस लौटा तो यह देखकर हैरान था कि खाने के पास एक बिल्ली मरी पड़ी थी। किसी ने सुमित को मारने की कोशिश की पर क्यों घर मे कोई भी यह समझ नहीं पा रहा था।

फिर कुछ दिन और सरके। और फिर वो रोज जैसी ही शाम थी पर जाने क्यों आज सुबह से ही मुग्धा का दिल घबरा रहा था। जिसे वो अपना वहम मान कर बार बार अपने दिल को बहला लेती थी।

पर आज शायद अनहोनी का ही दिन था। शाम धीरे धीरे रात में बदल रही थी पर सुमित का कुछ अता पता नहीं था। और उपर से सितम यह कि उसका फोन भी बन्द आ रहा था। तभी एकाएक मुग्धा का फोन घनघना उठा ।किसी का अस्पताल से फोन था। सुमित ICU  में था।किसी बड़े वाहन से टक्कर हुयी थी सुमित की बाइक की।

पर भगवान की बहुत मेहर रही मुग्धा पर कि सुमित खतरे से बाहर था। आज तीन महिने के बाद सुमित घर आया था। मुग्धा ने पूरा घर बिल्कुल दुल्हन सा सजा रखा था।

कुछ दिन के बाद सुमित काफी हद तक अच्छा हो चुका था।अब तो वो अकेले चहलकदमी भी करने लगा था। आज करवाचौथ की रात थी। सुमित मुग्धा के संग तीसरी मजिल पर चादं का इन्तजार कर रहा था। तभी मुग्धा सुमित से बोली।

"ओह सुनिये जी मैं गलती से अपना औढना तो कमरे में ही भूल गयी। आप दो मिनट रुको मैं जल्दी से उसे लेकर आती हूँ।"
पर मुग्धा अपने कमरे तक भी नहीं पहुंच पायी थी तभी सुमित के दिल दहलाने वाली चीखों को सुन वो नगें पाव छत पर भागी। उपर जाकर देखा तो सुमित कहीं नही था।

आज शायद किस्मत मुग्धा पर मेहरबान नहीं थी। तभी मुग्धा को अपनी सास की आवाज सुनायी दी वो उसे जल्दी से नीचे बुला रही थी।
बदहवास सी मुग्धा जब नीचे पहुंची तो सास उसकी बलाये लेती हुयी नहीं थक रही थी।
वो मुग्धा को गले लगा कर बोली।

तू सच मैं बहुत भाग्यवान है तेरी ही किस्मत से तेरा सुहाग हर बार मौत के मुंह से वापस आ जाता है आज ही देखो अचानक से एक र्टक आया जो की गद्दो से भरा था एक खरोंच भी नहीं आयी सुमित को।"

व्रत तो पूरा हो गया पर इस रोज रोज के हादसो ने तोड़ कर रख दिया था मुग्धा को।

उस रात नींद उसकी आखों से कोसो दूर थी। दिल घबराने पर पर जब वो रसोई से पानी लेने गई तो अमित के कमरे से आती आवाज में अपना नाम सुनकर मुग्धा के कदम उसके कमरे के आगे ही थम गये।
अमित अपने दोस्त से बात कर रहा था।

"बस बहुत हो गया यार हर बार वो सुमित बच जाता है। क्या क्या नहीं किया मैंने पर सब बेकार, नहीं रह सकता मैं मुग्धा के बिना, जबसे उसे देखा है ना पागल हो गया हूं मैं, और वो सुमित सिर्फ तीन मिनट बड़ा है वो मुझसे पर मां हर चीज पहले उसे देती है आखिर बड़ा है ना वो पर अब और नहीं कल का दिन उसकी जिन्दगी का आखरी दिन होगा।"

तभी आंधी की तरह मुग्धा अमित के कमरे मे पहुची और चिल्ला कर बोली ।
"बस अब औऱ नही बहुत कर ली तुमने अपनी मनमानी"

मुग्धा की आवाज सुनकर पूरा घर वहाँ आ गया ।यह देखकर अमित ने सुमीत पर गन तान दी। तभी मुग्धा उन दोनों के बीच आ गयी। और इन तीनों की छीना छपटी मैं गन चल गई। जो कि अमित को लग गयी। अमित को अपनी करनी का फल मिल गया औऱ मुग्धा कलयुग की सावित्री बन कर अपने सत्यवान को यमराज से वापस ले आयी।


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