अनपढ़ होते हुए भी जीवनभर हाड़तोड़ मेहनत कर उसने अपने बच्चों को क़ामयाबी के शिखर तक पहुँचा दिया था। अपनी व्यस्तता और उसकी अनपढ़ता के कारण बच्चे उसे अपने पास नहीं रखते थे।
जीवन के अंतिम पड़ाव पर वह अकेलेपन से उकता कर, अनन्त यात्रा के लिए पोटली उठा चलने को तैयार हुआ तो, आज कुछ सहयोगी हाथों ने उसका रास्ता रोक लिया। ये हाथ संबंध से तो उसके नहीं थे, लेकिन उसके मानवीय और सहयोगी स्वभाव के कारण अनेकों बार उससे मदद पा चुके थे।