प्रिज़्म
प्रिज़्म
बात कुछ 90 के दशक की है | मैं केंद्रीय विद्यालय (हिंडन एयर फ़ोर्स) में बारवीं कक्षा में था, विज्ञान वर्ग का छात्र | विज्ञान में बहुत ही ज्यादा रूचि थी इसलिए ग्यारहवीं में विज्ञान को चुना | रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान खूब भाता पर भौतिकी में ज़रा हाथ तंग था | पल्ले ही नहीं पड़ती थी |खूब दिमाग लगा लिया पर भौतिकी का भ भी बहुत कठिनाई से समझ आता था | बड़ी दुविधा में पड़ गया की हे भगवान यदि इस भौतिकी के कारण बोर्ड परीक्षा में नंबर अच्छे नहीं आए तो अच्छे कोलेज में दाखिला लेना मुश्किल हो जाएगा |
हमारे इस डर को साकार रूप देने के लिए भगवान ने भौतिकी के एक नए अध्यापक श्री मोहन शर्मा जी को भेज दिया हमारी कक्षा को पढ़ाने के लिए | हमने सोचा चलो अच्छा है पहले वाले सर से कुछ समझ नहीं आता था शायद इनसे बात जाए |
पर इतनी आसानी से सब सुलझ जाए तो हम मंझे हुए खिलाडी थोड़े ही कहलायेंगे |
किताब पढ़ने पर लगता था की अक्षर नाच रहे हैं मानो कह रहे हों की हमारा भेद पाओ तो जाने, रही सही कसर इन नए अध्यापक जी ने पूरी कर दी | पढ़ाने के अलावा वे सब समझाते जैसे बोर्ड की परीक्षा है कोई खेल नहीं , एन सी ई आर टि की किताब का हर सवाल करना, पेपर उसी में से बनेगा | हम तो ढूँढते ही रह जाते की तीन- चार पन्नो के लेसन में से क्या पढ़ें और क्या छोडें और सवाल तो तीन या चार ही होते, सोचा अगर इसी में से पेपर आता तो हर बच्चा प्रथम न आ जाता |
हमेशा हर किसी से यही सुना बोर्ड की परीक्षा है ऐसी वैसी नहीं एन सी ई आर टि किताब को किताबी कीड़े की तरह चाट डालो।
पेपर बाहर से आएगा , साधारण बात नहीं है। परीक्षा से ज़्यादा तो अध्यापकों व रिश्तेदारों का डर रहता की कब कौन सामने से कटाक्ष का वार करदे।
फिर भी पढ़ते जा रहे थे आगे बढ़ते जा रहे थे इस आस में की अपना भी नम्बर आएगा भाई, भौतिकी कोई हउआ थोड़े ही है जो ऐसे ही डरते रहें।
भाई तै कर लिया हमने भी की अच्छे नम्बर लाके ही दिखाएंगे अब चाहे जो हो जाए।
तो शुरुआत की एक अच्छे ट्यूटर की तलाश से।
पता चला की हमारे इलाके के भौतिकी के सबसे योग्य व विख्यात एक शिक्षक हैं कौशिक सर।
उनसे पढ़ पढ़ कर बच्चे आई0 आई0 टी0 में टॉप करते हैं, कमाल का पढ़ाते हैं वे।
हम भी पिताजी के साथ पहुँच गए वहां। सूखे हुए से , बिलकुल ही पतले से, अच्छे खासे लंबे , अधेड़ उम्र के, चेहरा पतला सा, कुछ अधपके से बाल और चेहरे पे गज़ब का विश्वास।
उन्हें देखकर लगा भाई अनुभवी दिखते हैं, शायद इनसे कुछ बात बन जाए।
अब तो भाई अपनी भी नैया पार लगेगी और हम अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण हो जाएंगे।
अगले ही दिन से सुबह-सुबह 5 बजे तैयार होकर निकल पड़े अपनी साइकिल पर बस्ता उठाये क्योंकि वहां से सीधे फिर स्कूल निकलना होता था।
पहला दिन , पहला बैच, हम सबसे पहले पहुंचे थे, बड़ी ख़ुशी हुई मानो वर्ल्ड कप जीत लिया हो, सोचा सर जी खुश होंगे। पर वे बोले 10 मिनट पहले ? ज्यादा फालतू का समय है क्या तुम्हारे पास ? हम बेचारे अपना सा मुँह लिए नीचे सर करके बैठ गए। तब सर बोले अरे कोई बात नहीं बेटा हम तो मजाक कर रहे थे बाकी कोई नहीं अब आ गए हो तो अच्छे से परिचय दो और इतने बाकी बच्चे आएं तब तक अपनी समस्या बताओ की क्या समझ नही आता भौतिकी में ?
उनके इस व्यवहार से थोड़ा अच्छा लगा और हमने समय रहते अपनी समस्या बता दी की भौतिकी का भ समझना भी हमारे लिए एवरेस्ट चढ़ने सामान है ।हमने बताया की एक नए अध्यापक आएं हैं भौतिकी के स्कूल में वो पढ़ाने से ज़्यादा डराने का काम करते हैं।
सर जी ओम्स लॉ, थंब रूल, प्रिज्म , ग्लास स्लैब, कौन कब मोशन में है ?, इन सब ने दीमाग की नसें हिला डाली हैं।
सर बोले अच्छा तो ये बात है , तुम्हारा केस थोडा कठिन है पर कोई बात नहीं थोड़ी मेहनत करोगे तो काम बन सकता है।
सच में ऐसा लगा मानो डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो।
अब और बच्चे आने लगे थे, कोई गाड़ी से कोई मोटर साइकिल से, लग रहा था मानो सारे अमीर यहीं पढ़ने आते थे।
सर ने पढ़ाना शुरू किया, शुरुआत हुई चैपटर लाइट से, सर पढ़ा रहे थे प्रिज्म।
और कुछ सवाल कराये, सारे ही बच्चे मानो मंझे हुए खिलाडी हों लाइट चैप्टर के , क्या फटाफट सवाल कर रहे थे, क्या धड़ाधड़ सब सवाल हल कर रहे थे। जाने क्या क्या पूछ रहे थे । उन सबके बीच में हमने चुप रहना ही ठीक समझा।
थोडा बहुत समझ आया और बाकी बार बार हांजी सर हांजी सर कह कह कर यही दिखाया की सब समझ आ गया। पर वो प्रिज़्म में क्या दिखाना चाह रहे थे ये कुछ समझ नहीं आया।
बड़ा अच्छा लग रहा था उसमे देखते हुए, उधर की चीज़ इधर दिख़ाइ देती थी, अकेले में उसे उठा कर अपने आस पास की चीजें देखीं। हैरानी हुई की क्या खूब बनाया है किसी ने , कितना अच्छा लगता है इससे देखते हुए। फिर लगा की इतना मुश्किल बनाने की क्या ज़रूरत है किसी भी कांसेप्ट को जबकि इतना आसान है इससे देखना।
ऐसे भी तो देख सकते हैं, क्यों आल पिंस लगा कर नीचे बैठ कर आँखें घुमा कर देखना।
खैर हमे तो यही समझ आया की प्रिज़्म में से इधर उधर की चीजें सामने दिखती हैं।
आज अपनी उप्लब्धि पर गर्व हो रहा था की आज का कांसेप्ट तो कुछ समझ में आया।
फिर सोचा की अभी तो नए वाले भौतिकी के सर भी हैं स्कूल में, कुछ तो वो भी सिखाएंगे ही।
तो थोडा उनसे सीख लेंगें।
आज सर ने सब बच्चों को लाइट चैप्टर के प्रैक्टिकल के लिए लैब में बुलाया।
एक लंबी सी टेबल और उस पर एक लंबा सा लकड़ी का फट्टा।
बीच में एक स्टील की मोटी सी पेंसिल(needle),
पता नहीं कैसे उसे आगे पीछे खिस्काया और न जाने कौनसा लेंस लगाकर वो क्या दिखा रहे थे।
कभी कहते झुककर एक आँख बंद करके ध्यान से देखो आज के बाद सीधे फाइनल प्रैक्टिकल में पुछा जाएगा।
कभी कहते देखो पेंसिल उल्टी दिख रही है, कभी सीधी, कभी बड़ी, कभी छोटी, हे भगवान क्या है ये सब। क्यों एक छोटी सी पेंसिल का कीमा निकाला जा रहा है ?
जब कुछ समझ नहीं आया, कुछ नहीं दिखा तो हिम्मत करके सर से पुछा, सर दिख नहीं रहा।
वे पास आये और बोले देखो यहाँ से देखो ध्यान से, दिखा ?
नहीं सर..
अरे नहीं दिखा ??(बड़े ही गंभीर स्वर में)
सर दिख गया, सर आ गया समझ में,
फिर सर ने दिखाया प्रिज़्म... आ हा हा मज़ा आ गया... अब आइ कोई अपने मतलब की चीज़ जिसके बारे में हमे कुछ तो पता था।
सर ने दो पॉइंट्स लगाकर कहा देखो इन्हें प्रिज़्म में से,
हम झुके और झुक कर देखा, सामने खड़े सर, बगल में खड़े बच्चे, सर की टेबल , कुर्सी सब दिख रहे थे बस उन पॉइंट्स को छोड़कर, सर ने पुछा दिखा ?
सर ....थोड़ा थोड़ा दिख रहा है....
एइ ध्यान से देखो...दिखा ????
हांजी सर दिख गया... सर दो पॉइंट्स दिख गए... साफ़ साफ़ दिख रहे हैं।
डर के मारे झूठ ही बोल दिया, सोचा कल ट्यूशन में समझ लेंगें।
हम लट्टू बन चुके थे जिसे हमारे दो शिक्षक और भौतिकी मिल कर नचा रहे थे
फिर अगले दिन ट्यूशन ...अरे बाप रे ये सब क्या है... यहाँ तो हल्के फुल्के प्रश्न करना मुश्किल था और ये सारे बच्चे तो ऐसे ऐसे प्रश्न लेकर बैठे थे जिनको झेल पाना अपने बस की बात नहीं थी।
इन सबके आई0 आई0 टी0 लेवल के प्रश्नो के बीच हमारा प्रिज़्म तो कहीं खो ही गया बेचारा।
ये सिलसला यूँ ही चलता रहा और हम लट्टू की तरह नाचते रहे जब तक परीक्षा नहीं आ गयी।
खैर भौतिकी में 65 अंक आए और हम उत्तीर्ण हो गए।
बाकी सभी सब्जेक्ट्स में 75 से ऊपर अंक आए थे।
पर ये अभी तक समझ नहीं आया था की सर प्रिज़्म में क्या दिखाना चाह रहे थे।
ये सिर्फ मेरी नहीं मेरी ही तरह और न जाने कितने बच्चों की कहानी होगी।
आज जब मैं स्वयं शिक्षक हूँ 7वीं से लेकर 9 वीं तक के छात्रों को पढ़ाता हूँ। तो बहुत मेहनत करके एक एक चीज़ बच्चों को समझाने का प्रयत्न करता हूँ।
आज प्रिज़्म हाथ में है।
बच्चों को प्रैक्टिकल करके दिखाना है,
और आज मुझे गर्व है की मैं अपने बच्चों को ठीक से समझा सकता हूँ।
आज उस बच्चे को भी सही से सीखना है जो मुझे काफी प्रिय है, एक महीने पहले ही हमारे विद्यालय में आया है अपने पिता के अकस्मात तबादले की वजह से।
भौतिकी में रुचि तो बहुत है पर समझने में तनिक कठिनाई होती है उसे।
मेरा प्रिय शिष्य
- कपिल शर्मा , श्री मोहन शर्मा जी का पुत्र।
आज मैंने अपने बच्चों को बताया की मैंने सीख लिया है की मेरे शिक्षक मुझे उस दिन क्या दिखाना चाह रहे थे।आज मैंने उन्हें अपनी कहानी सुनाई और कहा वो जब चाहें बेझिझक मुझसे पूछ सकते हैं वो सब जिसमे भी उन्हें कठिनाई महसूस हो।