सिर्फ तुम्हारी
सिर्फ तुम्हारी
कितने वर्षों बाद, फिर उसी ट्रेन में हूँ जो तुम्हारे शहर से होकर निकलेगी। जैसे जैसे स्टेशन पास आ रहा है, धड़कनें बढ़ती जा रही हैं।
उठ कर ट्रेन के दरवाज़े के पास आ गई, यहाँ से ठीक से देख पाऊँगी। हमेशा ऐसा ही तो होता है। तुम्हें खोजती रहती हूँ, हर आते-जाते शख्स में, तेजी से गुजरती मोटर साइकिल में। पहला प्यार जो थे तुम मेरा और आखिरी भी।
आज सुबह बरबस ही मेरे हाथ पीले सूट की तरफ बढ़ गए थे, तुम्हारा पसंदीदा रंग अब भी हमेशा रहता है मेरे पास।
चार साल साथ काम करते-करते हम काफी करीब आ गए थे, आदर्श जोड़ी के रूप में देखे जाते थे हम। घर में भी बता चुकी थी। पर धीरे-धीरे छोटे-मोटे झगड़े होने लगे, सोचा सबके होते हैं पर आहत हुई थी उस दिन जब तुमने एक सहकर्मी को लेकर मुझ पर उंगली उठाई थी। उस दिन तुम्हारे पास से लौट आई थी मैं, कोई सफाई भी नहीं दी, प्यार भरोसे का ही दूसरा नाम है। माँ को शादी के लिए मना कर दिया और सबसे दूर कर लिया खुद को, पर तुमसे दूर कभी ना हो पाई। हाँ तुम्हारे पास लौटना भी मुमकिन ना था मेरे लिए।
गाड़ी स्टेशन पर रुक गई, स्टेशन की चहल-पहल, भागमभाग के बीच मेरी नज़र नीली शर्ट में तुम्हे ढूँढ रही है, ज़रूर पहनते होंगे तुम वो रंग अभी भी, मेरा पसंदीदा रंग था वो।
ट्रेन चल पड़ी, स्टेशन पीछे छूट गया, तुम नहीं दिखे। दिखते भी कैसे !
पता भी कहाँ था तुम्हें की मैं आ रही हूँ।
कभी बताया ही नहीं।