सिर्फ़ एक घण्टा तुम्हारे साथ
सिर्फ़ एक घण्टा तुम्हारे साथ
वो बिताना चाहती है
किसी भी साल के किसी भी महीने का सिर्फ़ एक घण्टा तुम्हारे साथ
वो घण्टा जिसमे उसके माँग टीके से लगाकर
पाँवों के बिछुवे तक शामिल हों
तुम्हारी नज़रें हो और उसके सारे दर्द
जो अनदेखे रहे आये
किसी सुप्त ज्वालामुखी से
अब फूटना चाहते है
लावे की शक़्ल में
सुबह दोपहर शाम रात में से चुन लो
कोई से भी एक वक़्त का सिर्फ़ एक घण्टा
जगहँसाई कराने के लिऐ
जो पूरा जीवन सौंप आये थे तुम उसे
उसमें से बचे वक़्त का सिर्फ एक घण्टा
तुम्हारे घुँघराले चमकीले घने बालों के घूमर में अटका उसका एक पल
अभी भी वहीँ पड़ा है
वही तकाज़ा करना चाहती है वह
सूद समेत लौटा दो
चली जायेगी वह चुपचाप
लेकर अपनी आन बान शान
पूरे सम्मान के साथ
तुम बुद्ध हो या राम हो
तुम कृष्ण हो दुष्यन्त
वह नहींं पालती कोई भरम
यशोधरा,सीता,राधा या शकुन्तला होने का
तुम अपना बुद्धत्व अपने पास रखो
लौटा दो उसका एक पल
वह नहींं लटकाना चाहती तुम्हेंं
पिंजरे में सूऐ सा
तुम मुक्त हो और उसे भी मुक्ति चाहिऐ
तुम्हारे नाम की ज़ंजीर से
ताकि जी सके वह
एक हाड़ मास रक्त मज़्ज़ा से बनी स्त्री की तरह
वह देवी नहींं होना चाहती
स्त्री ही रहना चाहती है