स्कूल के दिन
स्कूल के दिन
मैं खुश हूं अपनी जिंदगी से और अपने काम से। मैं एक विद्यालय में जाने वाला छात्र हूं। यह बचपन के दिन ना सच में बहुत खूबसूरत होते हैं । मेरे विद्यालय का नाम कैंब्रिज पब्लिक स्कूल है और मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता हूं। और साथ ही साथ मैं अपने वर्ग का कप्तान हूं। मुझे बहुत अच्छा लगता है जब मेरे वर्ग के छात्र मेरे सहयोग में खड़े होते हैं। मेरा साथ देते हैं। ऐसा नहीं है कि मैं उनके खिलाफ रहता हूं। मैं भी उनका सहयोग करता हूं। सच कहूं तो शिक्षकों की बात को ना मानकर अपने दोस्तों को बचाता हूं। जैसे कि यदि किसी शिक्षक ने गृहकार्य दिया और किसी छात्र ने उसे बनाकर नहीं लाया, तो मैं उस छात्र को पिटाई खाने से बचा लेता हूं।
स्कूल में मेरे कई अच्छे दोस्त भी हैं जिनमें से एक है- गरिमा जोशी। शायद हम दोस्ती की दहलीज को पार कर रहे हैं। क्योंकि हम ना जाने कितने वादे भी कर चुके हैं कि हम जिंदगी भर साथ रहेंगे। मुझे पता है शायद यह करना गलत है। यह उमर अपनी जिंदगी बनाने का है पर फिर भी मन नहीं मानता। मन करता है पुरी दिन उसी के साथ गुजार दूं। और भी मेरे कई दोस्त हैं जिनके साथ मैं क्लासेज बंक किया करता हूं। किन्हीं शिक्षक का होमवर्क नहीं कंप्लीट है तो उनसे झूठ बोलकर बचने की कोशिश करता हूं। खेल खेल में गिरने के बाद अपने आंसुओं को भी बहाता हूं। कुछ दिन पहले की बात है मेरा सबसे करीबी दोस्त जिसका नाम संजीव था, वो खेल के मैदान गिर गया। जिसके कारण उसके दाहिने पैर का हड्डी टूट चुका है। वो क्षण ऐसा था कि उसको रोते देख मेरी भी आँखों में आँसू आ गए थे। उसको हिम्मत देने की बजाय मैं खुद थरथरा रहा था कि शिक्षक इसे तो डांटेंगे ही साथ ही साथ मुझे भी पीट देंगे। लेकिन अभी वो अपने घर पर सुरक्षित है। उसके दाहिने पैर पर प्लास्टर हो चुका है।