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हक

हक

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"नमस्ते सर"


"बैठिए, वरुण की माँ ने मुझे बताया कि आपने वरुण से विवाह का निर्णय लिया है"


"सर, ये निर्णय वरुण का भी है"


"जानता हूँ मैंं, देखिये सुधा, वरुण की माँ ने यही नाम बताया था आपका"


"जी, सुधा ही हूँ मैं"


"वरुण का पिता होने के नाते मैं आपसे कहना चाहूँगा कि आर्थिक ,समाजिक प्रतिष्ठा और जाति के मामले में आप दोनो के बीच बहुत असमानताये है। वरुण और आप दोनो ही पढ़े लिखे, उँचे पद पर कार्यरत है। कहीं भविष्य में आपको अपने निर्णय पर अफसोस तो नहीं होगा। अच्छे से विचार कर ले। आपने माता पिता से अनुमति ली?"


"जी, उन्हे कोई एतराज नहींं"


"अरे उन्हे क्या एतराज होगा, बेटी उच्च कुल, सम्पन्न परिवार में जायेगी"


"सर मुझे अपनी जाति से कोई शिकायत नहींं। अगर अपने माँ पिता को चुनने का हक ईश्वर ने इन्सान को दिया होता, तो कोई गरीब नहीं होता, छोटी जाति का नहीं होता। ईश्वर ने इन्सान को, मेहनत कर योग्य इन्सान बनने का हक जरुर दिया है। उसका उपयोग किया है मैने"


चुप्पी छा गई कमरे मेंं।


थोड़ी देर में मुस्करा कर वरुण के पिता बोले "मुझे भी ईश्वर ने एक हक दिया है। अपने घर की लक्ष्मी चुनने का। सुधा, मेरा और वरुण की माँ का आशीर्वाद लो।


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