पछतावा
पछतावा
रत्ना तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। मां की बहुत मन्नत और पूजा पाठ के बाद एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम मनोहर रखा गया और रत्ना, मनोहर के बाद पैदा हुई। भरा पूरा परिवार था। घर में दादी - दादा और रमाकांत की पत्नी कमला और उनके ये पांच बच्चे।
मनोहर के होने के बाद रमाकांत उसे अपने सीने से लगाए फिरते थे, अपने पास बिठाना, उसे खिलाना, ये उनकी दिनचर्या में शामिल हो गई थी। साल दो साल का हुआ तो उसे अपने साथ सुलाने भी लगे, सारा दुलार उसी को करते। उनका मानना था कि लड़के हमारे वंश को आगे बढ़ायेंगे, ये लड़कियां तो इक दिन ब्याह कर अपने घर चली जाएंगी इसलिए लड़कियों से कोई खास लगाव नहीं था उन्हें।
छोटी होने के कारण रत्ना भी अपने पापा का सानिध्य पाने हेतु उनके आस - पास मंडराती रहती और वो उसे वहां से भगा देते। बाजार से कुछ खरीद कर भी लाते तो सिर्फ मनोहर के लिए, रत्ना को तो बिलकुल नहीं देते। रत्ना जब कुछ बड़ी हुई तो पापा का प्यार पाने के लिए मनोहर की नकल करने लगी लेकिन सफल न हो सकी।
दिन बीता, साल बीते, मनोहर और रत्ना बड़े हो गए। इकलौता होने के कारण मनोहर की सारी फरमाइशें पूरी होती, कभी किसी चीज की जरूरत नहीं भी होती, लेकिन अगर मनोहर को वो सामान चाहिए होता तो रमाकांत उसे दिलाते। कमला देवी कहती भी कि लड़का बिगड़ जाएगा, इतनी ढ़ील मत दो। तो उनकी बात अनसुनी कर देते।
समय बीता बड़ी लड़की का ब्याह कर दिया। बारहवीं पास करने के बाद रमाकांत ने मनोहर का दाखिला इंजीनियरिंग कॉलेज में डोनेशन देकर कराया। बाहर जाने के बाद कुछ ग़लत संगत से मनोहर बिगड़ने लगा और काॅलेज जाने की बजाय दोस्तों के साथ घूमता, पब और बार में जाता। धीरे-धीरे शराब और सिगरेट का आदि होने लगा।
इधर रत्ना काॅलेज पूरा करके बैंकिंग की तैयारी करने में जुट गई, मन तो उसका भी इंजीनियर बनने का था लेकिन उसे पता था कि पापा उसे इंजीनियरिंग नहीं पढ़ायेंगे। रत्ना पढ़ाई में अच्छी थी जबकि मनोहर औसत था। मनोहर हर साल फेल होने लगा जबकि रत्ना ने पहले ही प्रयास में बैंक पी॰ ओ॰ की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।
रमाकांत ने रत्ना का विवाह एक अच्छे खाते-पीते परिवार में कर दिया। इधर मनोहर की स्थिति दिन ब दिन खराब होती गई। जब भी फोन करता किसी न किसी बहाने बस पैसों की फरमाइश करता। मनोहर के साथ के सभी बच्चों का काॅलेज से प्लेसमेंट भी हो गया जबकि मनोहर बड़ी मुश्किल से फर्स्ट इयर की परीक्षा उत्तीर्ण कर सेकेंड ईयर में गया।
बेटी नाम रौशन करती जा रही थी और बेटा बहुत मुश्किल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर घर लौट आया। कोई कामकाज नहीं करता और पापा के पैसे उड़ाता। अब रमाकांत जी को भी बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी। उन्होंने ने सोचा कि शादी कर दी जाए शायद उससे जिम्मेदारी का एहसास हो लेकिन शादी के बाद भी मनोहर का वही हाल रहा। उसकी जीवन संगिनी नैना भी उसी के जैसी मिल गई थी। दोनों पापा के पैसों पर जमकर अय्याशी करते। रमाकांत ने सोचा जीते जी उसका भविष्य संवार दूं इसलिए एक दुकान खुलवा दिया। उस पर भी वो टिक कर नहीं बैठता। कुछ दिन बाद दोनों पति-पत्नी मिलकर धोखे से सारी संपत्ति अपने नाम करवा ली और मां-बाप को दर - दर भटकने छोड़ दिया।
रत्ना उन दोनों को घर ले आयी लेकिन आज रमाकांत अपनी बेटी से आंखें नहीं मिला पा रहे थे। कितनी हीन भावना से बेटी को देखा था और आज वही उनकी नय्या पार लगा रही है। उन्हें अपनी सोच पर बहुत पछतावा हुआ। बिटिया से क्षमा मांगी और रत्ना जो पिता के पर्याय की भूखी थी, उसे तो जैसे सारा संसार ही मिल गया।