मन के जीते जीत है
मन के जीते जीत है
छोटी छोटी बोध कथाएं भी कभी कभी बड़ा संदेश दे जाती हैं। समय और परिस्थिति को पहचान कर अपना मनोबल बनाए रखना चाहिए।
एक तलवारबाज तलवार चलाने में बड़ा निपुण था। सब जगह उसका नाम और प्रसिद्धि थी। उसका एक स्वामिभक्त नौकर था। एक बार नौकर की किसी गलती पर उसका मालिक नाराज़ हो गया और बोला कि मैं अभी तुम्हारी जान ले सकता हूँ तलवार के एक वार से। पर तुम्हें एक मौक़ा देता हूँ, ये तलवार पकड़ो और मेरे साथ लड़ो। तुम निहत्थे को मैं नहीं मारना चाहता।
नौकर घबरा गया ,कभी उसने तलवार चलायी नहीं थी। वह काँपने लगा। और बोला मुझे ऐसे ही मार दीजिए, मैं तलवार चलाना नहीं जानता।
पर पहलवान अपनी बात पर अड़ा रहा। तो नौकर ने उससे थोड़ा समय माँगा और अपने गुरु के पास गया। गुरू से उसने अपनी समस्या बतायी।
गुरू ने कहा "तुम्हारे पास समय नहीं है। जो मौक़ा तुम्हें मिला है उसमें अपनी पूरी शक्ति लगा दो। यदि तुम मौक़े पर नहीं उठते हो तो तुम्हें आज ही मरना होगा अपने स्वामी के हाथों । तुम्हारे पास दूसरा मौक़ा नहीं है। इसी मौक़े पर सारी शक्ति लगा दो और तलवार हाथ में पकड़ लो।"
नौकर अपने स्वामी के पास गया और कहा, "ठीक है मैं तलवार लेकर लड़ूँगा।" उसने तलवार हाथ में ली और पूरी शक्ति उसमें झोंक दी प्रहार करने में। उसने इतनी तेज़ी और फुर्ती से प्रहार किया कि मालिक संभल नहीं सका, वह नीचे गिर गया। मालिक से नौकर ने कहा कि "मैं तुम्हें मारूँगा नहीं, अपनी हार स्वीकार कर लो।" मालिक हार चुका था नौकर ने उसे छोड़ दिया। नौकर की बुद्धि जाग गई , उसने नौकरी छोड़ दी और अपने गुरु के पास चला गया।
जो भी परिस्थिति सामने आए उससे हारना नहीं है ,भागना नहीं है, अपनी पूरी शक्ति से उसका मुक़ाबला करना है तो जीवन में फूल खिलते देर नहीं लगती। साहस से समय पर अपनी पूरी शक्ति लगा कर काम करना है , यही सफलता की कुंजी है।