रिश्ता
रिश्ता
"अरे ये तो छिपकली है !"
उसने अभी उस पर ध्यान नहीं दिया था वर्ना उसे वहाँ देख कर शायद उसके हाथ से चाय की ट्रे ही छूट जाती।
"शुभ्रा बेटे बैठ जाओ।" उस की माँ ने मीठी आवाज में कहा।
बैठते ही उसने ने उसे देखा तो आँखों की पुतलियाँ विस्मित हो फ़ैल गयी।
"इस मेंढ़क के लिए ही इतनी देर से सज धज रही थी क्या !"
उसके बाद सभी लोग इधर उधर की बातें करते रहे।
आखिरकार सब को ध्यान आया की उन दोनों की भी अकेले में बात होनी चाहिए।
एकांत होते ही दोनों एक दूसरे की तरफ देख हँस पड़े।
" यार मेंढक तेरी उस मेंढकी का क्या हुआ ?"
"वही यार जो शायद तेरे वाले का हुआ होगा।"
इतने सालों बाद वो मिले थे की बातें ख़त्म ही नहीं हो रही थी।
"अरे बच्चों अब बाहर भी आ जाओ !" घरवाले उन्हें बेहद देर तक एक साथ कमरे में देख खुश भी थे और बेचैन भी।
"तो क्या हाँ कह दें बाहर सब को ?" उस ने पूछा।
"हाँ। चलो नया चलन निकालें छिपकली और मेंढक के विवाह का !" वो बोली।
"अरे यार वो तो तुम्हे पसंद करता था पर तुम मुझे घास नहीं डालती थी इसलिए यूँ ही चिढ़ाने के लिए ये नाम रख दिया था। "
वो अब पहले से ज्यादा आत्मविश्वासी हो गया था।
"कोई नहीं मैंने भी तो बदला ले लिया था न। याद है कॉलेज की टीचर्स तक तुम्हे मजाक में मेंढक कहने लगे थे। " वो हँस पड़ी।
बस फिर वो दोनों उस कमरे से शुभ्रा और दीपक बन बाहर निकले। हाँ अब भी कभी पति-पत्नी के बीच में लड़ाई या चुहुल हो तो फिर से वो मेंढक और छिपकली ही बन जाते हैं।