साब! मेरे बचपन का क्या मोल दोगे।।।
साब! मेरे बचपन का क्या मोल दोगे।।।
टाटा जम्मू तवी एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय को चिढ़ाते हुए अपनी ही धुन में चल रही थी। इसी क्रम में एक बार फिर से ये वैसे स्टेशन पर रुकी जहाँ पर इसका ठहराव तो नहीं था लेकिन मेरी आँखें ठहर गई। जैसे ही ट्रेन रुकीं स्कूल यूनिफार्म में कुछ बच्चे हाथ में खजूर और जामुन लेकर लपके। कितने का दिया? मेरी सीट के बगल में बैठे सज्जन ने पूछा । दस रुपये का एक पैकेट। मैंने उस मासूम की आँखों में झाँकने की कोशिश की, मानो कह रही हो ले लो न साब। तभी मेरी नज़र एक ऐसे बच्चे पर पड़ी जिसके लिए दो प्लेटफार्म के बीच की पटरी पर खड़ी ट्रेन के पास आना थोड़ा मुश्क़िल हो रहा था। मगर अन्य सभी साथियों को खजूर बेचता देख वह अपनी हाइट के करीब की गहराई को कूद कर ट्रेन के पास आया। दस रुपये में आधा किलो खजूर या जामुन यह देखकर कुछ लोगों ने खरीदा भी। जमशेदपुर में तो जामुन बीस रुपऐ का पाव भर मिलता है। पर कुछ लोगों को यह भाव भी महँगा लग रहा था। 5 रुपये का दोगे, प्लास्टिक की थैली से मुट्ठी भर जामुन निकाल कर जैसे-तैसे मुँह में ठूँसते हुऐ एक अन्य सज्जन ने पूछा । ट्रेन खुल गई थी और बच्चे के हाथ में उसकी पूँजी भी नहीं थी। वह ट्रेन के साथ ही चलने लगा। जब उसे लगा कि वह और तेज नहीं भाग सकता तो उसने हामी भरी। 5 रूपऐ का सिक्का चलती ट्रेन से उछालते हुऐ और आधी कीमत पर खरीदारी कर सीना फुलाते वो सज्जन अपनी सीट पर बैठ गऐ। जिन बच्चों के फल बिके थे वो चहक रहे थे पर उस सबसे छोटे बच्चे के हाथों में अब भी खजूर और जामुन की थैली थी। उसके फल नहीं बिके यह सोचकर मेरा मन कचोट रहा था। मुझे अब लग रहा था कि कैसे भी यह ट्रेन रुक जाती और मैं भाग कर उसके फल खरीद लेता। इस दौरान किसी और ट्रेन के आने का सिग्नल हुआ और सभी बच्चे उधर की ओर भागे। वो नन्हा बच्चा भी ख़ुद को सँभालते हुऐ उधर की ओर लपका। मैंने मन ही मन यह सोचकर कि इस बार कोई उसके फल खरीद ले जैसे ही अपनी आँखें बंद की लगा मानो वो बच्चा सामने खड़ा है और पूछ रहा है " साब मेरे बचपन का क्या मोल दोगे".
मैंने झटके से अपनी आँखें खोली। स्टेशन ओझल हो गया था।.....