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HARSH TRIPATHI

Crime Drama Thriller

4  

HARSH TRIPATHI

Crime Drama Thriller

श्री कृष्ण-अर्जुन -- भाग-४

श्री कृष्ण-अर्जुन -- भाग-४

40 mins
399




अगले दिन शाम को अपने दफ्तर से लौटते वक़्त, दामाद नंदन अग्रवाल, पाठक जी के घर पर आये।

"आइये, आइये नंदन!....बैठिये बैठिये।" दामाद का स्वागत करते हुए पाठक जी ने कहा। रजनी देवी भी वहीँ बैठी हुई थीं। नंदन ने अंदर आते ही दोनों के चरण छूकर अभिवादन किया, और आशीर्वाद लिया। रजनी देवी को कम से कम इतनी तो समझ थी ही कि गीतिका से नफरत को वह नंदन के आगे ज़ाहिर नहीं करतीं थीं।

नंदन ने पाठक जी से दिल्ली यात्रा और तबियत, डॉक्टर आदि के बारे में पूछा जैसे कोई भी हमेशा पूछता ही है। पाठक जी ने भी वैसे ही जवाब दिए जैसे दिए जाते हैं "..नहीं, नहीं, ज़्यादा परेशानी की बात नहीं है,...लेकिन अब देखिये, बुढ़ापा तो आ ही गया है....शरीर बताता ही रहता है हमें, डॉक्टर ने भी यही कहा है....ज़्यादा दौड़-भाग, तनाव , ये सब मना ही किया है.......और अब तो चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। क्या कर सकते हैं?....गीतिका पहले से ही काफी काम देख रही थी, अब उस पर बोझ थोड़ा और बढ़ जायेगा।" औपचारिक दुआ-सलाम के बाद रजनी देवी वहाँ से उठ कर रसोई में चाय वगैरह का इंतज़ाम देखने चली गयीं। ससुर-दामाद, घर परिवार और इधर-उधर की बातें कर रहे थे। चाय रख कर रजनी देवी चली गयीं , गीतिका से जुड़ी कोई बात वह सुनना नहीं चाहतीं थीं , और पाठक जी इसको समझते भी थे।

चाय की चुस्कियों के बीच पाठक जी ने नंदन से पूछा , "कहिये नंदन , कैसे आना हुआ?"

"आप तो जानते ही होंगे,....वो रसूलपुर निंदौरा वाली बात......वो बढ़ रही है।" नंदन से गंभीरता से कहा।

"अच्छा , तो वहाँ किसानों की तादात बढ़ रही है क्या ?"

" पिछले १० दिन से तो ज़्यादा किसान थे नहीं इन सब में......मुश्किल से ८-१० जन रहे होंगे , लेकिन कुछ दिन हुए, आपकी पार्टी का वो लीडर,....कृष्णा बाबू का लड़का,..क्या नाम है उसका ?.....हाँ, विजय न?...वो वहाँ गया था , और सुना है कि उसने वहाँ अच्छी-खासी चर्चा की है। और उस दिन के बाद से हर दिन लगातार गिनती बढ़ती जा रही है। अब लगभग ३५-४० किसान बैठ रहे हैं , और आज कई के परिवार वाले भी आ गए थे। इस से बड़ी समस्या हो रही है। "

"मतलब?"

"ये तो आपको पता ही होगा कि लंदन की बहुत बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी 'फोटॉन इंफोटेक' यहां बहुत बड़ा इन्वेस्टमेंट ला रही है।"

पाठक जी मुस्कुराकर बोले "ज़ाहिर सी बात है , पता ही होगा। सांसद हूँ मैं क्षेत्र का,.......लगभग १००० करोड़ का प्रोजेक्ट है न वो?"

"जी, इतनी इन्वेस्टमेंट एक बार में हमारे यहाँ आज तक कभी आयी नहीं है, साउथ में ज़रूर आयी है लेकिन अपने यहां तो ये अपनी तरह का पहला और सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। इस धरना-प्रदर्शन की वजह से इस प्रोजेक्ट के आगे मुश्किल खड़ी हो जाएगी। फिर दुनिया भर के इन्वेस्टर्स में बड़ा ग़लत मैसेज जाएगा, और हमारे यहां के इन्वेस्टमेंट क्लाइमेट पर बहुत बुरा असर होगा........जो ऑलरेडी प्रॉब्लम फेस कर रहा है। पहले ये बाबरी डेमोलिशन, फिर इतने बड़े पैमाने पर खूनी दंगे-फसाद,.....इन्होने वैसे ही हम कारोबारियों का बहुत नुक्सान किया है। अब ये एजिटेशन, ये और दिक्कत करेगा अगर इसको रोका नहीं गया तो। इंडिया की ग्रोथ इन्वेस्टमेंट के ज़रिये ही होनी है और इस तरह के एजिटेशन से इन्वेस्टमेंट और भी हैम्पर हो जायेगा। "

पाठक जी सुन रहे थे। थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले "देखिये नंदन जी , बुरा मत समझियेगा , लेकिन आप कारोबारियों की एक बुरी आदत है......अभी तक हमने यही देखा है , कि आप लोग ज़मीन बेचने वाले गरीब आदमी को मुआवज़ा देने के वक़्त पीछे हट जाते हैं। आपको सस्ती ज़मीन चाहिए, सस्ते वर्कर चाहिए, अच्छा बिजनेस चाहिए, लेकिन ज़मीन का मुआवज़ा देने के टाइम पर आप लोगों की नियत बिगड़ जाती है। ऐसा थोड़ी होता है?...आप वाजिब पैसे देकर देखिये, ऐसा कुछ नहीं होगा।"

"आपको क्या लगता है कि हम लोग ज़मीन के सही पैसे नहीं देते?....ऐसा नहीं है पापा , आज तक हमारी कंपनी के एक भी प्रोजेक्ट में ऐसी दिक्कत नहीं हुई है, असल में समस्या तब ज़्यादा बड़ी हो जाती है जब वो किसी भी कीमत पर ज़मीन खाली करने को तैयार नहीं होते, यहां पर यही होता दिख रहा है। और आपकी पार्टी का वो लीडर उनको और भड़का रहा है .......अब ये न कहियेगा कि प्रोजेक्ट की जगह बदल लें , वो जगह इस प्रोजेक्ट के लिए बिलकुल फिट है। "

"क्यों?, आप लोग कहाँ से आ गए इसमें?" पाठक जी ने पूछा।

"कुछ और बात भी है " नंदन ने कहा।

"क्या?"

"दरअसल इंडिया एक इमर्जिंग मार्केट है पापा.......आई.टी. नॉलेज पार्क में उनका इन्वेस्टमेंट ७०० करोड़ रुपये का ही होगा, बाकी के ३०० करोड़ से वो यहां के रियल एस्टेट बिजनेस में किसी बड़ी,नामी फर्म के साथ पार्टनरशिप में उतरना चाहते थे , जिसके लिए उन्होंने टेंडर निकाला था। हमने भी पार्टिसिपेट किया था उसमे और वो टेंडर हमें मिल भी गया है।"

पाठक जी को जैसे बिजली का करंट लगा, वो चौंक कर बोले "क्या?.....क्या कहा आपने?.....मतलब आपकी कंपनी में भी वो ३०० करोड़ लगा रहे हैं?" इस डील के बारे में पाठक जी को कोई जानकारी नहीं थी।

"जी, बात यही है।"

"तो आप मुझसे क्या चाहते हैं?"

" यही कि ये एजिटेशन ख़त्म हो जाये, किसान पैसा लें और ज़मीन छोड़ दें। .........और वो विजय, वो अपना मुँह बंद रखे। " नंदन ने बिलकुल सीधे तरीके से अपनी बात कही।

पाठक जी अपने मन में मामले की बारीकियाँ समझ रहे थे।

नंदन ने फिर न जाने क्या सोच कर अचानक ही कहा "अब पापा........ज़्यादातर किसान उसमे मुसलमान ही तो है।"

पाठक जी ने प्रश्नवाचक निगाहों से नंदन की ओर देखा और कुछ कठोर स्वर में बोले "क्या मतलब?.....ये क्या बोल रहे हैं आप?....अरे, किसान तो किसान होता है नंदन,...इसमें हिंदू किसान और मुस्लिम किसान कहाँ से आ गए? उस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी ज़ाहिर तौर पर ज़्यादा है, इसलिए हो सकता है धरने में मुसलमान किसान ज़्यादा भी हों.......लेकिन मैं आपको बताऊँ नंदन, उस एरिया के बारे में जानता हूँ मैं......अगर वहाँ ४० लोग बैठे हुए हैं तो शर्तिया उसमे २० हिंदू किसान होंगे। और हर किसान जिसकी ज़मीन जाएगी, उसको मुआवज़ा तो देना ही होगा, फिर चाहे हिंदू किसान हो या मुस्लिम किसान।"

नंदन चुप-चाप सुन रहे थे।

"मेरा आपको यही कहना है कि इसको आप इस दृष्टि से बिलकुल न देखें , ये एप्रोच पूरी तरह अनुचित है।" पाठक जी ने साफ़ तौर पर कहा। उन्ही किसानों के वोट से अब तक वह और उनकी पार्टी सभी चुनाव जीतते आये थे , ये बात पाठक जी के दिमाग में थी, फिर बाबरी मस्जिद विंध्वंस के बाद हर एक कदम फूँक-फूँक कर रखने की ज़रूरत भी थी।

नंदन ने पूछा "...तो क्या करें फिर?"

"थोड़ा मुझे विस्तार से बताइये, प्रोजेक्ट कहीं और नहीं लगा सकते क्या?" पाठक जी ने पूछा।

"नहीं पापा , उसके पीछे वजह है ,....निंदौरा , कानपुर-लखनऊ-अकबराबाद हाई वे पर है, और अकबराबाद तथा लखनऊ के लगभग बीच में ही है। अकबराबाद से वह जगह करीब ५० किलोमीटर तो लखनऊ से भी ७० किलोमीटर ही है। लखनऊ से कानपुर भी ७०-७५ किलोमीटर ही है। इस वजह से तीनों जगह से काम करने वाले प्रोफेशनल्स वहाँ आराम से आ-जा सकेंगे। कानपुर से भी १५० किलोमीटर ही होगा मैक्सिमम.....फिर आगे आने वाले वक़्त में अकबराबाद और लखनऊ, कानपुर तीनों में काफी डेवलपमेंट होने वाली है, कई इंजीनियरिंग कॉलेज , पॉलीटेक्निक कॉलेज और भी खुलेंगे इन तीनों जगह। इस वजह से निंदौरा आई.टी. पार्क में काम करने वाली कम्पनीज़ को डायरेक्ट बेनिफिट होगा। फिर लखनऊ कैपिटल है पापा,....कैपिटल के नज़दीक रहकर बिजनेस करने के अपने फायदे हैं ही......सभी चाहते हैं ऐसा,.....जो इन्वेस्टर १००० करोड़ रुपये लगा रहा है, वो ऎसी जगह पर बिजनेस सेट करना चाहेगा ही......कम्पनीज़ को इस आई.टी. पार्क में बुलाने में कोई मेहनत नहीं करनी होगी। अकबराबाद-लखनऊ-कानपुर के बीच एक बेहतरीन इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की शुरुआत हो सकता है ये आई.टी. पार्क,.......और फिर काफी सस्ती ज़मीन उस एरिया में मिल भी रही है, ये भी तो एक बात है, जिसको इग्नोर नहीं कर सकते,....कानपुर, लखनऊ के इर्द-गिर्द इतनी सस्ती ज़मीन नहीं है।" नंदन ने असरदार तरीके से अपनी बात रखने की कोशिश की।

पाठक जी को नंदन की बात समझ आ रही थी , उन्होंने कहा "ठीक है, मैं देखता हूँ इसमें कि क्या हो सकता है। अगर विजय वहाँ गया है तो काफी कुछ जानकारी इकठ्ठा कर के लाया भी होगा , वो आदमी सतही काम करता ही नहीं।"

नंदन ने 'हाँ' में सिर हिलाया।

पाठक जी ने कहा फिर "नंदन, एक मशविरा देता हूँ आपको, ....गीतिका और विजय साथ पढ़े हुए हैं यूनिवर्सिटी में, ग्रेजुएशन के दौरान.....पुराने दोस्त हैं दोनों। आप गीतिका से बात कीजिये कि वह विजय से बात करे। क्या पता कुछ बीच का रास्ता निकल ही आये। "

नंदन ने फिर 'हाँ' में सिर हिलाया।

फिर दोनों के बीच कुछ और बातें होतीं रही, इतने में खाने का वक़्त हो चला था। भोजन करने के बाद नंदन ,पाठक जी और रजनी देवी के पैर छूकर जाने लगे, और पाठक जी फिर उनको छोड़ने गेट तक आये। नंदन ने कहा "पापा,...थोड़ा देखिएगा प्लीज़!" पाठक जी ने उनको चिंता न करने को कहा। नंदन ने कार स्टार्ट की और निकल गए।


२-३ दिन बाद याद आयी तो नंदन ने सुबह नाश्ते पर गीतिका से पूछा "यार एक बात बताना थोड़ा....पिताजी बोल रहे थे कि वह जो कृष्णा बाबू का लड़का है....गीतिका जानती है उसको?...तुम लोग यूनिवर्सिटी में साथ पढ़े हो? "

गीतिका ने कहा "कौन?.....विजय न?....हाँ, हाँ, बिलकुल। मैं जानती हूँ उसको, दोस्त है मेरा। घर पर भी तो उसका काफी आना-जाना है। अभी हफ्ते भर पहले मिला होगा वो शायद मुझसे घर के गेट पर ही , मैंने पूछा तो बोला कि मम्मी ने बुलाया था उसको किसी काम से।.......क्यों ?...अचानक से विजय कहाँ से दिमाग में आ गया सवेरे-सवेरे ?"

नंदन ने कहा "नहीं, कुछ ख़ास नहीं,....वह लड़का पार्टी के काम में काफी एक्टिव रहता है शायद ? , पापा बता रहे थे "

"हाँ , इस तरह का एक्टिव वह आज का नहीं है......ग्रेजुएशन से ही देख रही हूँ उसको,......स्टूडेंट कम और एक्टिविस्ट ही ज़्यादा था वो.....मगर कमाल की बात है, कि पढ़ाई में भी काफी बेहतर था विजय। "

"क्लासमेट थे क्या तुम लोग?....किस टाइम?"

"हाँ, हम क्लासमेट थे ग्रेजुएशन में। एक्चुली हमारे तीन में से दो सब्जेक्ट्स सेम थे , सोशिओलॉज़ी और इकोनोमिक्स,......तीसरा उसका पोलिटिकल साइंस था, मेरा हिंदी लिटरेचर,....तो हम दो सब्जेक्ट्स के क्लासेज एक साथ करते थे। तभी से एक-दूसरे को जानते हैं, फिर कृष्णा अंकल की फैमिली से हमारे काफी अच्छे, घर जैसे टर्म्स हैं ही,...तो ,ये है बात।"

नंदन ने कहा "गीतिका , तुमसे एक हेल्प चाहिए। "

"कहिये। "

नंदन ने गीतिका को पूरी बात तफसील से बताई। उनकी ३०० करोड़ की डील दांव पर लगी थी। विजय ने वहाँ जाकर उन किसानों के प्रदर्शन को और धार दे दी थी , नंदन इसको रोकना चाह रहे थे।

"तो आप मुझसे क्या चाहते हैं?"

"ये कि अगर हो सके, तुम फुर्सत से समय निकाल सको , तो विजय से प्लीज़ बात करो, और उसको समझाओ कि ये इन्वेस्टमेंट कितनी ज़रूरी है इस निराशाजनक माहौल में,....इन्वेस्टमेंट क्लाइमेट वैसे ही खराब चल रहा है, इस पर ये सब होना ठीक नहीं है। और फिर.......हमारी कंपनी और बिजनेस का भी तो सवाल है....३०० करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट के साथ-साथ में फोटॉन जैसी कंपनी से नाम जुड़ना, बहुत बड़ी बात है गीतिका। हमारा नाम कई गुना बढ़ जायेगा पूरे मार्केट में,...लखनऊ से दिल्ली और लंदन तक भी शायद। "

गीतिका कुछ देर चुप रही, फिर नंदन की और देख कर लम्बी सॉंस छोड़ते हुए मुस्कुरा कर बोली "...इट्स टफ।"

"क्यों ?"

"टफ बिकॉज़ ही इज़ ए मार्क्सिस्ट,........लेफ्टिस्ट आदमी है वो.......काफी टेढ़ा है। "

नंदन चुप थे।

गीतिका ने बोलना जारी रखा "ग्रेजुएशन से ही ऐसा है वो......इट्स ए हार्ड नट टु क्रैक.....उसको समझाना मुश्किल काम है, अजीब सा ज़िद्दी है विजय। "

"फिर तुम किस मर्ज़ की दवा हो?" नंदन ने मुस्कुराकर कहा। वह आगे बोले " उसको बोलो कि आदमी को प्रैक्टिकल होना चाहिए, रिजिड होना ठीक नहीं है.....रशिया अभी-अभी टूटा है.....मार्क्सिस्म हैज़ बीन ए फेलियर। "

गीतिका ने कहा "दैट इज़ द प्रॉब्लम नंदन!.....ही इज़ नॉट प्रैक्टिकल। वह अभी भी उसी आइडोलॉजी को लेकर बैठा हुआ है। आई विल ट्राई फॉर यू डेफिनेटली,.....लेकिन उम्मीद कम ही होगी।

फिर गीतिका ने पूछा "लेकिन ये बताओ, कि किसान अगर वहाँ से हटाए गए, उनकी ज़मीनें गयीं , तो फिर वो जायेंगे कहाँ?....इस पर सोचा है कुछ?"

"कहीं और दे देंगे उनको ज़मीन और घर। "

"कहाँ?"

"अरे किसी जगह दे देंगे, पहले ये इशू तो सॉल्व हो " ,नंदन झल्लाकर बोले।

गीतिका के चेहरे पर फिर मुस्कान खेल गयी। वह बोली "देखो, तुम्हारे पास मेरे सवाल का जवाब है नहीं, यही बात विजय या कोई भी तीसरा आदमी पूछेगा तो मैं क्या बोलूंगी?......मतलब ये तो बड़ी सीधी सी बात है नंदन कि वे लोग जहां इतनी पीढ़ियों से रहते, खेती करते आ रहे हैं, वो जगह छोड़ने में उनके सामने बहुत बड़ी चुनौती तो होगी ही।"

नंदन ने कहा "इसीलिए तो तुमसे कह रहा हूँ,....तुम दोनों बात करोगे तो शायद कोई बीच का रास्ता निकल जाये। "


एक रात कृष्णा बाबू के ड्राइंग रूम का टेलीफोन बजने लगा था। कृष्णा बाबू ने फोन उठाया "हैलो!"

दूसरी तरफ वैभव था "जी अंकल जी ,प्रणाम!"

"खूब खुश रहो बेटा। और बताओ , कैसे फोन किया?"

"अंकल जी , आपसे मिलना था, कुछ बात करनी थी , मैं कब आऊं पार्टी ऑफिस ?"

"बेटा मैं ही आ जाऊंगा घर , भाभी जी से मिले भी थोड़ा वक़्त हो ही गया....कल तो लखनऊ जा रहा हूँ, ३ दिन बाद आऊंगा , तब मिलता हूँ। "

"जी अच्छा , प्रणाम!"


कुछ दिनों के बाद जब सुबह ११ बजे अपनी मोटरसाइकिल पार्टी ऑफिस की पार्किंग में लगाकर , विजय ऑफिस के अंदर दाखिल हुआ तो उसे सुखद आश्चर्य हुआ , गीतिका पहले से ही ऑफिस में बैठी हुई थी और अखबार पढ़ रही थी। विजय ने मज़ाक किया "ओह माई गॉड!!......एम.एल ए. मैडम इन पार्टी ऑफिस!!....वो भी सुबह सुबह?" गीतिका ने अखबार मेज पर रखा और मुस्कुराते हुए बोली "तुम भी यार न.... शुरू हो गए सुबह-सुबह ही?"

"अरे!...बात ही ऐसी है, गीतिका मैडम अपने हाईकोर्ट चैम्बर की बजाय पार्टी ऑफिस में ?....सरप्राइज़िंग न?...इज़ंट इट?"

"नो, इट इज़ नॉट सरप्राइज़िंग। अपने कॉलेज के दोस्त से मिलने तो मैं आ ही सकती हूँ, और फिर पापा के काम से आती रहती हूँ मैं यहां,...सो इट्स नॉट ए सरप्राइज़। "

"अच्छा!...तो सुबह-सुबह ये करम हमारे ऊपर हुआ है?"

" बिलकुल, आप ऐसा ही समझिये। "

" चलिए, बड़ी ख़ुशी हुई जानकर,......अब तो खैर आना-जाना लगा ही रहेगा न !!" विजय ने फिर टांग खींची।

"विजय , अब बस भी करो यार !" गीतिका ने हॅंस कर कहा।

फिर विजय ने पूछा "चाय?"

"ऑफकोर्स।"

विजय ने प्यून श्यामसुंदर को आवाज़ दी "श्यामसुंदर जी , दो अच्छी सी चाय ला दीजिये।"

फिर विजय ने पूछा "कैसे आना हुआ आज इधर ?"

गीतिका ने सीधे बात शुरू की "वो रसूलपुर निंदौरा,.....जहां पिछले कुछ दिन पहले गए थे तुम...... क्या केस है वहाँ का?"

"केस तो क्या होना, एक काफी बड़ी ब्रिटिश सॉफ्टवेयर कंपनी है फोटॉन इंफोटेक , वो लोग वहाँ एक आई.टी. पार्क लगाना चाह रहे हैं....किसानों का कहना है कि वह काफी अच्छी , उपजाऊ ज़मीन है, और काफ़ी फसल देती है, उसको छोड़ने को वे तैयार नहीं हैं। इसी बात को लेकर धरना शुरू हुआ है वहाँ।"

"तुम्हे क्या लगता है?"

"सीधी सी बात है , किसान अपनी जगह बिलकुल सही हैं। "

"क्यों सही हैं?"

"मतलब?"

"मतलब ये , कि इंडस्ट्री तो ज़रूरी है न इंडिया के रूरल एरियाज के डेवलपमेंट के लिए ?.....अब इंडस्ट्री हवा में तो लगेगी नहीं। "

"मैं कहाँ कह रहा हूँ कि इंडस्ट्री न लगे?...ऑफकोर्स इंडस्ट्रीज़ बहुत ज़रूरी हैं रूरल एरियाज में.......लेकिन इंडस्ट्री कहाँ लग रही वहां ?....आई.टी. पार्क इज़ ऑन द कार्ड्स देयर , विच इज़ ऑफ नो यूज़ फॉर रूरल पॉपुलेशन। "

"क्यों?...जॉब्स आएंगी वहाँ , बहुत सारी दूसरी एक्टिविटीज़ भी शुरू हो सकेंगी। "

विजय ने मेज पर हाथ मारते हुए कहा "काहे की जॉब्स?...काहे की एक्टिविटीज़?..कुछ नहीं मिलेगा उनको।"

इतने में श्यामसुन्दर चाय लेकर आ गया और मेज पर चाय रख कर वापस जाने लगा।

गीतिका ने बात आगे बढ़ाई "...क्यों?"

विजय थोड़ी देर तक चुप रहा, फिर अचानक वापस जाते श्याम सुन्दर को रोका "श्यामसुंदर जी, सुनियेगा थोड़ा,.."

गीतिका समझ नहीं पायी थी। इतने में श्यामसुंदर पास आ गया और बोला "जी भैया जी?"

विजय ने गीतिका की ओर देखा फिर प्यून से पूछा "श्यामसुंदर जी, कम्प्यूटर चला लेते हैं आप? , बस थोड़ा-बहुत ही ?"

श्यामसुंदर हँस कर बोला "मज़ाक कर रहे हैं भैया जी?.....ये मशीन तो आज तक हम छुए भी नहीं हैं , टी.वी. में ज़रूर देखा है , छोटा सा टीवी जैसा होता है वो , और लोग तेजी से खटर-पटर करते हैं उस पर, जैसे यहां ऑफिस में टाइपराइटर,.....लेकिन टाइपराइटर में टीवी जुड़ा नहीं होता भैया जी, और उसमें कागज़ लगाने की जगह होती है .....कम्प्यूटर में टीवी जुड़ा देखा है हमने, लेकिन उसमें कागज़ नहीं लगाया जाता जैसे टाइपराइटर में लगता है। "

गीतिका सुन रही थी। विजय ने श्यामसुंदर को जाने का इशारा किया और वह चला गया।

"....इसलिए मैं कह रहा हूँ कि किसान सही हैं। " विजय ने गीतिका से कहा।

"क्या मतलब?"

"मतलब ये गीतिका कि वहाँ ज़्यादातर किसान और उनके बच्चे भी, श्यामसुंदर जी की तरह हैं जो कंप्यूटर या आई.टी. के बारे में कुछ नहीं जानते। ऐसे लोगों को आई.टी. पार्क में कौन सी जॉब्स मिलेंगी? आई.टी. सेक्टर हाई-स्किल्ड लोगों को जॉब्स देता है गीतिका , किसानों के पास कोई ऐसी स्किल नहीं है, वो सिर्फ एक स्किल जानते हैं कि खेतों में अनाज कैसे पैदा हो और छोटी चाय-पानी की दुकान, छोटा कोई ढाबा या किराना स्टोर कैसे चलाया जाये। इनके पास कोई कंप्यूटर साइंस ,आई. टी. ,या कंप्यूटर एप्लीकेशन की डिग्री या डिप्लोमा नहीं है जो ये उस आई.टी. पार्क के काम आ सकें......अगर वहाँ इनको कोई नौकरी मिली भी, तो चाय-पानी पिलाने की ही मिलेगी। ये खेती कर सकते हैं और छोटी-मोटी दुकान चला सकते हैं, और यह तो वे लोग ऑलरेडी कर ही रहे हैं। फिर उस आई.टी. पार्क से इनका क्या फायदा ?.....अगर सच में जॉब्स की बात की जाए तो वहाँ कोई आयरन-स्टील फैक्ट्री , कोई कार या मोटरसाइकिल बनाने की फैक्ट्री , या सबसे ज़रूरी ,कोई फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट खोली जाए., इन सभी में लोअर स्किल वाले लोगों को भी काफी जॉब्स मिल सकती हैं। और फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट में तो इनके अनाज-सब्ज़ी, दूध अच्छे दाम पर बिकेंगे और खराब भी नहीं होंगे।"

गीतिका सुन रही थी।

विजय ने आगे कहा "..फिर एक और ज़रूरी बात, निंदौरा की ज़मीन काफी अच्छी है। किसान बता रहे थे कि वे साल में तीन फसलें तक ले लेते हैं। ऐसी अच्छी ज़मीन पर आई.टी. पार्क उनके लिए घाटे का सौदा होगा। अगर आई.टी. पार्क लगाना है तो किसी बंजर, ऊसर, या अपेक्षाकृत कम उपजाऊ ज़मीन पर लगना चाहिए , और अकबराबाद में ऐसी ज़मीन ज़रूर मिल जाएगी। हाँ, अगर यहां कोई दूसरी मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्री लगाई जाये , तब ज़रूर बात अलग हो जाएगी,.....लेकिन इस आई.टी. पार्क से उनका नुक्सान हो जायेगा , इतनी अच्छी ज़मीन भी जाएगी, और जॉब्स की तो बात ही मत करो।"

"कोई बीच का रास्ता निकल सकता है क्या ?.....जिस से इन्वेस्टर्स का भी नुक्सान न हो और किसानों का भी न हो , क्योंकि विजय, बाबरी मस्जिद डेमोलिशन के बाद इन्वेस्टमेंट की हालत बड़ी खराब हो गयी है , इस बात से तो इंकार नहीं कर सकते तुम। फिर आने वाला वक़्त आई.टी. सेक्टर का ही तो है , इंडिया में कम्युनिकेशन और कनेक्टिविटी रेवोल्यूशन लाना है तो इस तरह के कई आई.टी. पार्क की ज़रूरत तो होगी ही। साऊथ में १९९० से ही वो इस पर काम कर रहे हैं, हम वैसे ही ४ साल पीछे हैं। "

"साऊथ की बात अलग है गीतिका, वहाँ कुछ सिलेक्टेड एरियाज को छोड़ दिया जाये,....डेल्टा रीजन और डेक्कन का कुछ हिस्सा.....तो ज़मीन कोई बहुत ज़्यादा अच्छी है नहीं वहाँ , यहां इंडो-गैंजेटिक प्लेन है, ज़मीन औसतन ठीक है।"

"बट विजय, मेरे ख़याल से तो ऐसे स्टिक होना तो ठीक नहीं है यार!....मार्क्सिस्म हैज़ नॉट यील्डेड मच बेनिफिट फॉर दीज़ पुअर पीपल एक्रॉस द ग्लोब,...फिर रशिया को देखो,...इट हैज़ बीन प्रूवेन कैटोस्ट्रॉफिक!"

"अरे नहीं यार! मार्क्सिस्म की बात ही नहीं है इसमें,.....तुमको कभी फुर्सत मिले तो वहाँ जाना एक बार.....यू विल सी इट।"

फिर दोनों दोस्त इसी तरह से विचार-विमर्श करते रहे। काफी समय के बाद दोनों मिले थे और कॉलेज के दिनों की तरह चर्चा कर रहे थे , जिसमे समय का पता ही नहीं चला। दोपहर में १ बज गए थे। विजय ने घड़ी देखी , और गीतिका से कहा "यार!...बहुत वक़्त हो गया ,नेतराम चौराहे पर तुम्हारे साथ खाना खाये,....चलो आज वहीं खाना खाते हैं। "

नेतराम चौराहा का नांम सुनकर गीतिका बड़ी खुश हुई और कहा "बिलकुल अभी चलो!"

थोड़ी देर बाद, विजय की मोटरसाइकिल पर दोनों नेतराम की दुकान पर पहुंचे और अंदर बैठ कर पूड़ी-सब्ज़ी का आर्डर किया। कॉलेज के दिनों में ये उनकी सबसे प्रिय जगह थी जहां दोस्तों के साथ वे आते थे और पूड़ी-सब्ज़ी का लुत्फ़ उठाते थे। वैसे भी नेतराम की पूड़ी-सब्ज़ी पूरे अकबराबाद में मशहूर थी।

शाम को गीतिका जब वापस आयी तो काफी खुश लग रही थी। इतने दिन बाद विजय से मिली थी और, बिना किसी औपचारिकता के, बिलकुल कॉलेज के अंदाज़ में बेफिक्री से उन्होंने खूब बातें कीं और नेतराम में खाना भी खाया। इतना अच्छा उसे काफी दिन के बाद लगा था।


लखनऊ से आने के बाद एक दिन सुबह कृष्णा बाबू , पाठक जी के घर पहुंचे। वैभव अभी अपने दफ्तर गया नहीं था। पाठक जी बाहर निकल रहे थे जब कृष्णा बाबू को देखा "अरे कृष्णा बाबू! आप यहां ? इस समय?" कृष्णा बाबू ने हाथ जोड़कर कहा "जी, वो वैभव बेटे ने किया था फोन कुछ रोज़ पहले,मिलने के लिए , आज मैं समय निकाल के आया हूँ। " पाठक जी ने विस्मय से एक बार वैभव की ओर देखा और फिर कृष्णा बाबू से कहा "वैभव ने किया था फोन?" , तभी पीछे से रजनी देवी की आवाज़ आयी "हाँ, मैंने ही करवाया था , कृष्णा भाई साहब से मिले काफी समय हो गया था , मैंने सोचा मिल लेंगे।" पाठक जी ने यह सुनकर कृष्णा बाबू से कहा "के.पी. कॉलेज में एक गोष्ठी है कृष्णा बाबू, उसी में जा रहा हूँ , थोड़ा जल्दी में हूँ वर्ना मैं भी बैठता आप के साथ आराम से।" कृष्णा बाबू बोले "कोई बात नहीं पाठक जी, आप जाइये " पाठक जी तेज़ी से अपनी गाड़ी में बैठ के निकल गए और कृष्णा बाबू घर के अंदर चले गए।

डेढ़ घंटे बाद लगभग कृष्णा बाबू भी बाहर आ गए , साथ में रजनी देवी और वैभव भी आये थे। कृष्णा बाबू ने उनको दुआ-सलाम किया और अपनी गाड़ी में बैठ कर पार्टी ऑफिस के लिए निकल गए।


रात में नंदन ने भोजन के बाद गीतिका से पूछा "गीतिका, तुम मिली थी उस से.....विजय से?"

"हाँ"

"क्या बात हुई?....तुमने बताया क्या कि वहां हमारा भी स्टेक है ?"

"नहीं , ऐसा मैंने कुछ नहीं बोला " फिर जो बात हुई थी , गीतिका ने सब साफ तरीके से नंदन को बताई और कहा "मुझे पर्सनली लगता है कि वह गलत नहीं बोल रहा है। "

"मतलब?"

"यार जो पॉइंट्स उसने उठाएं हैं, काफी जेनुइन हैं। तुमको नहीं लगता ?"

"अब जो इंडस्ट्री लग रही है वो लग रही है न , दूसरी इंडस्ट्री कहाँ से लाएं?.....एक तो पहले से ही मामला खराब हुआ पड़ा है, कोई आ नहीं रहा है।" नंदन ने परेशान होकर कहा।

"नंदन, आई थिंक, हमें वहाँ जाकर देखना चाहिए, लोगों से बात करनी चाहिए।"

"जैसे?"

"यार, विजय को छोड़ो,...हमारी कंपनी है, हमारे इंट्रेस्ट हैं, मुझे लगता है एक बार तो हमें जाना चाहिए निंदौरा। "

"अनपढ़ और जाहिल लोगों से बात करने का क्या फायदा है गीतिका?...वो भी मुसलमानों से?....इट वुड बी ए टाइम-वेस्ट ओनली।"

"अरे!....मुसलमान कहाँ से आ गए इसमें?...यार वो सब किसान है,....और अगर अनपढ़ और जाहिल हैं भी तो भी उनसे बात करनी चाहिए, उनकी बात सुननी चाहिए,....दे आर आवर ओन पीपल नंदन। हम उनकी ज़मीन ले रहे हैं, उनको उनके घर से बेदखल कर रहे हैं। आखिर हम लोग तो अनपढ़ नहीं हैं न!" गीतिका ने प्रतिवाद किया। विजय ने इस बात पर गुस्से में कहा "तुम्हे जाना हो तो ,तुम जा के देख लो,...गंवार, देहाती भुच्च हैं सब वहाँ, तुम्हारी एक बात नहीं सुनेंगे।" गीतिका ने हँस कर कहा "नंदन , मिलना तो चाहिए उनसे, अब चाहे जैसे हों वो।"

फिर गीतिका ने तय किया कि एक बार जा कर वह उन लोगों से मिलेगी ज़रूर।दिल्ली की पिछली कार्यकारिणी की बैठक में तय हुआ था कि अब से हर २ महीने पर एक बार कार्यकारिणी की लम्बी बैठक होगी। अब इस महीने की मीटिंग के लिए, उज्जवल बाबू, कृष्णा बाबू पार्टी, विजय ऑफिस में बैठ कर तैयारी कर रहे थे।गीतिका ने अपने घर से विजय को पार्टी ऑफिस में फोन किया। श्यामसुंदर ने उठाया था फोन, बोला "विजय भैया मीटिंग में बिज़ी हैं, अभी कुछ देर में ही बात हो पायेगी।विजय ने मीटिंग से आकर वापस फोन किया तो पता ये चला कि गीतिका निंदौरा जाना चाहती थी, वह भी जल्दी। नंदन ने जाने से मना कर दिया था इसलिए उसने विजय को फोन किया था। विजय ने अगले दिन उनको पार्टी ऑफिस आने को कहा। गीतिका पार्टी ऑफिस अगली सुबह १० बजे ही पहुंची ,विजय चलने को तैयार हुआ, और अपनी मोटरसाइकिल निकाली। गीतिका ने कहा "पार्टी की गाड़ी से चलें यार! अपनी गाड़ी क्यों निकाल रहे हो?" विजय ने हँस कर कहा कहा "पार्टी में कई लोगों को मेरे निंदौरा आने-जाने से दिक्कत है, इसलिए मैं ऐसे ही चल रहा हूँ। " गीतिका ने कहा "कोई बात नहीं, चलो। शाम तक जल्दी वापिस आना है, बेटी घर पर वेट करती है मेरा, और शिकायत भी करती है। " फिर मोटरसाइकिल निंदौरा की तरफ चल पड़ी। शाम को ६-७ बजे तक गीतिका वापस अपने घर आ गयी थी। नंदन ने फिर डिनरके बाद अपने कमरे में गीतिका को पूछा "निंदौरा गयी थी यार तुम आज?...क्या हुआ?"

गीतिका ने गंभीरता से कहा "नंदन, तुमको भी जाना चाहिए था मेरे साथ, यू शुड सी इट!.....ये आई.टी. पार्क से उन लोगों का ज़्यादा नुक्सान हो जाएगा यार। वहाँ सच में ऐसी सिचुएशन नहीं है कि आई.टी. पार्क लगाया जाये।" फिर नंदन को गीतिका ने पूरा वृत्तांत सुनाया और यह भी बताया कि उसने खुद लोगों से बात की है और विजय को बिल्कुल चुप रहने को कहा था, अतः वह कुछ भी नहीं बोला। नंदन इस बात से काफी परेशान हो गए थे।


तय समय पर ३ गाड़ियों में तीनों नेता लखनऊ के लिए निकल गए थे, वहाँ से दिल्ली जाना था। आगे वाली गाड़ी में उज्जवल बाबू और उनके कुछ लोग थे, बीच में कृष्णा बाबू और सबसे पीछे वाली गाड़ी में कुछ लोगों के साथ पाठक जी थे। वे लोग ऊंचाहार के आगे एक गाँव में थे , जब एक रेलवे फाटक बस तुरंत ही बंद हुआ था और उनकी गाड़ियां खड़ी हो रहीं थीं। आस-पास कोई और गाड़ी नहीं थी। ठीक इसी समय पाठक जी की सबसे पीछे खड़ी गाड़ी में एक भीषण धमाका हुआ और पूरी गाड़ी प्लास्टिक के खिलौने जैसी हवा में उछल गयी थी। विस्फोट इतना तेज़ था कि, आगे खड़ी दोनों गाड़ियों के शीशे बुरी तरह टूट गए, थोड़ी देर तक किसी को कुछ समझ ही नहीं आया था। उसके तुरंत बाद अपने होश संभाल कर , कृष्णा बाबू और उज्जवल सिंह जी अपनी गाड़ियों से निकले और ज़ख़्मी होने के बाद भी पाठक जी की गाड़ी की ओर चिल्लाते हुए दौड़े। गाड़ी आग की लपटों में धधक रही थी। इतना धुंआ हो रहा था कि सूरज भी स्याह नज़र आ रहा था। अपनी बड़ी कोशिशों के बाद भी वे दोनों पाठक जी को देख भी नहीं पा रहे थे।

ठीक इसी वक़्त ३-४ मोटरसिकलें पीछे से आयीं , जिस पर प्रत्येक पर २-२ नक़ाबपोश युवक बैठे हुए थे , उन सभी ने अचानक कृष्णा बाबू और उज्जवल सिंह पर तड़ातड़, अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू की। कुछ पलों तक गोलियां चलाते रहने के बाद , वो लोग जितनी तेज़ी से आए थे, उसी तेज़ी से अचानक निकल भागे।

इतना सब इतने कम समय में होने से आस-पास के दुकान वाले और गाँव के लोग हतप्रभ थे। ये सब उनकी कल्पना से भी परे था। हिम्मत करके कुछ नवयुवक आये जिन्होंने ज़मीन पर औंधे मुँह गिरे, दो शरीरों को उठाया , जिसमे एक में तो कोई हरकत नहीं थी, दूसरा इंसान साँसें ले रहा था। उज्जवल सिंह किसी तरह ज़िंदा बच पाए थे जबकि कृष्णा बाबू का शरीर शांत पड़ गया था....दोनों को ही नज़दीकी अस्पताल की ओर लेकर लोग भागे। पाठक जी की गाड़ी में अभी भी लपटें निकल रही थीं और इंसानी गोश्त की बदबू आ रही थी, उस गाड़ी के अंदर जाने की हिम्मत किसी की न हुई। कुछ दूसरे नौजवानों ने नंगे पैर ही नज़दीकी पुलिस थाने की ओर दौड़ लगा दी थी। थोड़ी देर में थाने से पुलिस पार्टी आ गयी।

स्थानीय अस्पताल में अल्प संसाधनों से सिर्फ इतना किया जा सका था कि उज्जवल सिंह लखनऊ तक ज़िंदा पहुँच जाएँ । कृष्णा बाबू को भी लखनऊ ही ले जाया जाने लगा हालाँकि उनका शरीर निष्क्रिय पड़ा हुआ था।

ऊंचाहार से लखनऊ, अकबराबाद और दिल्ली तक ये खबर पहुँचने से हड़कंप मच गया, जो जहां था वहीँ सदमे में पड़ गया। देश के सबसे बड़े प्रदेश की राजनीति के शलाका पुरुष और रूलिंग पार्टी के भीष्म पितामह पर ही भरी दोपहरी में भयानक आतंकी हमला हुआ था। गाड़ी में बैठे दूसरे लोगों के शवों के साथ पाठक जी का भी शव निकाला गया , उन शवों की हालत ऐसी ख़राब थी कि शव पहचाने भी नहीं जा रहे थे, मालूम होता था कि तंदूर में सिझे गोश्त के टुकड़े हों। पाठक जी और कृष्णा बाबू के घर फोन किया जा चुका था और दोनों घरों से परिजन, साथ में उज्जवल बाबू के घर वाले ,लखनऊ के लिए निकल गए थे। लखनऊ में सीधे पी.जी.आई. के इमरजेंसी वार्ड में उज्जवल सिंह और कृष्णा बाबू को ले जाया गया जबकि पाठक जी और दूसरे लोगों के शवों को इसी अस्पताल में बर्निंग वार्ड के लिए ले जाया गया। अस्पताल के बाहर बिलकुल अराजकता का माहौल था और पार्टी के दूसरे नेता और कार्यकर्ता बेहद परेशान थे। करीब डेढ़ घंटे बाद अस्पताल से बुलेटिन जारी हुआ कि पाठक जी और कृष्णा जी की मृत्यु अस्पताल लाने से पहले ही हो चुकी थी, जबकि उज्जवल बाबू की हालत नाज़ुक मगर स्थिर थी और उनके ऊपर डॉक्टरों की एक पूरी टीम काम कर रही थी। इतना सुनते ही कार्यकर्ताओं में भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा और अस्पताल परिसर में हाहाकार और दुःख का माहौल व्याप्त हो गया। पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को कातर स्वर में बिलख-बिलख कर रोते देखा जा रहा था।

गाड़ियों के एक काफिले के साथ गीतिका, नंदन, वैभव और विजय ने अस्पताल में प्रवेश किया, उनकी गाड़ियां पोस्ट-मॉर्टम सेंटर के बाहर आकर रुकीं। कार्यकर्ता काफी हताश थे और रो रहे थे। बीच-बीच में नारे भी लगा रहे थे। सभी लोग लाल, नम आँखों के साथ गाड़ियों से बाहर निकले। विजय और गीतिका को देख कर कार्यकर्ताओं में जोश आ गया था और उन्होंने और तेज़ आवाज़ में नारेबाजी शुरू कर दी। देखने वाले, इस दुःख और नारेबाज़ी में भी पैटर्न देख रहे थे, पहले पाठक जी और गीतिका के नाम के नारे लगते थे , उसके तुरंत बाद कृष्णा बाबू और विजय के नाम का उद्घोष होता था, कभी-कभी उज्जवल बाबू का नाम भी कोई ले लेता था लेकिन पूरी नारेबाजी में श्रमशक्ति पार्टी और वैभव पाठक का नाम कहीं नहीं था।

लाशें लेकर सभी लोग बाहर आये, नारों का शोर और ज़्यादा बढ़ गया। पुलिस को भीड़ को काबू करने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी। दूरदर्शन और कुछ-एक प्राइवेट चैनल के लोग पूरी कवरेज कर रहे थे। शवों को बड़ी बस में रखा गया जिसमे दोनों परिवार के सदस्य चढ़ गए। तभी विजय ने चालक को कहा "थोड़ा इमरजेंसी वार्ड पर ले लेना, उज्जवल बाबू भर्ती हैं वहाँ।" बस इमरजेंसी वार्ड पर खड़ी हुई तो, विजय , वैभव उतर कर वार्ड के अंदर गए , गीतिका अत्यंत दुखी थी, वह बस से नहीं उतरी। उज्जवल बाबू के बच्चों ने अकबराबाद जाने से मना कर दिया जिस पर विजय और वैभव ने सहमति व्यक्त की। कुछ मिनटों के बाद वे दोनों वार्ड से बाहर आये और बस में वापस चढ़ गए और भारी नारेबाजी करते कार्यकर्ताओं के बीच से धीरे-धीरे राह बनाती , अकबराबाद के लिए निकल गयी, साथ में पार्टी नेताओं और अन्य व्यक्तिओं जिसमे कार्यकर्ता भी थे, बस के पीछे हो लिए। दोनों दिग्गजों की अंतिम यात्रा में हर कोई शामिल होना चाहता था।

अकबराबाद में पार्टी ऑफिस पर भारी भीड़ जमा थी। लखनऊ से खबर आ गयी थी पुलिस के पास कि डेड बॉडी लेकर बस पार्टी ऑफिस ही जाएगी जिस से ज़्यादा लोग वहाँ आ सकें। देर रात , लगभग १ बजे के आस-पास बस पार्टी ऑफिस में दाखिल हुई, तो हृदय-विदारक माहौल था। कार्यकर्ता दूर दूर से अभी भी पहुँच रहे थे और रोये जा रहे थे।

ज़रूरी रिवाजों को पूरा करने के बाद ऑफिस के हॉल में दोनों नेताओं के शव सफ़ेद चादर व तिरंगे में लपेट कर बराबर में रखे गए थे और जनमानस के द्वारा श्रद्धांजलि देने का सिलसिला रात से ही शुरू हो गया था। अकबराबाद पुलिस और जिला प्रशासन का कड़ा इम्तेहान था ये। उनके पास ३ राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के आने की भी सूचना आ चुकी थी। दिल्ली से कई मंत्री भी अकबराबाद के लिए निकल चुके थे। गीतिका किसी से कुछ भी नहीं बोल रही थी, और केवल आंसू बहाये जा रही थी, उसका चेहरा बिलकुल पत्थर जैसा हो गया था। कारण भी था, मायके में सिर्फ पाठक जी एक थे जो उस से स्नेह रखते थे। उसका एकमात्र सहारा समाप्त हो गया था। विजय लगातार भाग-दौड़ में ही था ,उस पर सुस्ताने का वक़्त नहीं था। पार्टी ऑफिस के लोगों ने आज पहली बार शायद ,वैभव को दुखी और काम करते हुए देखा था।

अगले दिन दोपहर में दोनों के शव इनके परिवार वालों को सौंप दिए गए। विजय जैसे ही कृष्णा बाबू के शव को लेकर जार्जटाउन स्थित आवास पर पहुंचा , माहौल अत्यधिक ग़मगीन हो गया था। विजय ने लोगों से व्यवस्था बनाने का अनुरोध किया जिस से अंतिम संस्कार जल्दी किया जा सके। इधर, पाठक जी का शव लेकर बेटा वैभव घर आया, तो देखा कि पत्नी बीना और उसके घर वाले भी आ गए हैं। बीना अपनी सास रजनी देवी को संभालने की कोशिश कर रही थी , जिनका रो-रो कर बुरा हाल था। उन्होंने कल से ही कुछ खाया नहीं था जबकि मधुमेह की मरीज़ थी वह और लगातार रोने से उनकी तबियत भी खराब हो रही थी। वहाँ जल्दी से बाकी रिवाज पूरे किये जाने लगे जिस से कृष्णा बाबू के साथ ही पाठक जी का अंतिम संस्कार किया जा सके। दोनों ने ही अपनी यात्रा साथ ही आरम्भ की थी, अब साथ ही समाप्त कर रहे थे।

शाम ५ बजे जब दोनों हस्तियों की शव यात्राएं, प्रदेश के पुलिस व प्रशासन के दिग्गज अधिकारियों की उपस्थिति में ; जिन्हे ये नेता नाम से जानते थे , फूलों से लदे पुलिस के खुले ट्रकों में ,दुखी कार्यकर्ताओं के उत्तेजक नारों के बीच निगम बोध घाट के लिए निकलीं, तो अकबराबाद का ट्रैफिक जहां का तहाँ ठहर गया। जो जहां था , वहीं रुक गया। इतना विशाल शव यात्रा जुलूस शहर ने आखिरी बार कब देखा था , पुराने लोगों को भी याद नहीं आ रहा था। पूरे रास्ते भर इमारतों की छतों और बालकनियों से लोग पुष्प वर्षा कर रहे थे। ७ किलोमीटर का रास्ता तय करने में ६ घंटे लग गए। लगभग रात ११ बजे के आस-पास दोनों के बेटों ने पुलिस द्वारा बंदूकों की सलामी के बीच उनकी चिताओं को मुखाग्नि दी। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री ,राज्यपाल, केंद्र सरकार के कई मंत्री तथा बड़ी संख्या में समर्थक, ख़ासतौर पर दूर दराज़ से आये किसान इस दौरान मौजूद रहे। हिंदू धर्म में महिलाएं शमशान नहीं जातीं लेकिन गीतिका ,नंदन के साथ अंतिम यात्रा और मुखाग्नि में लगातार बनी रही।

अगले दिन समाचार आया कि दोनों नेताओं के सम्मान में रसूलपुर निंदौरा के किसानों ने धरना स्थगित कर दिया था। प्रदेश सरकार ने भी घोषणा की थी कि हत्यारों को किसी भी कीमत पर गिरफ्तार किया जाएगा और बेहद सख्त सज़ा दी जायेगी।


तेरहवीं वगैरह से निवृत्त होने के बाद विजय ने फिर से पार्टी ऑफिस जाना शुरू किया था। पिछले कुछ दिन में वैभव भी ऑफिस आया था और ४-५ घंटे रुका भी था। इस दर्दनाक हादसे को २० दिन बीते होंगे, जब एक दिन रोज़ की तरह विजय ऑफिस में था, उसी समय पुलिस की तीन जीपें, सायरन बजाती हुई ऑफिस के परिसर में दाखिल हुईं। पार्टी ऑफिस में लोग चौंक गए ,क्योंकि पार्टी ऑफिस में कभी पुलिस ऐसे नहीं आयी थी। दरोगा साहब उतरे और तेज़ी से कुछ इंस्पेक्टरों और सिपाहियों के साथ ऑफिस के अंदर गए। इस से ऑफिस में हलचल मच गयी। विजय कोलाहल सुन कर बाहर निकल रहा था जब रास्ते में ही दरोगा ने उसको रोक लिया।

दरोगा ने एक कड़क काग़ज़ विजय के हाथ पर रखते हुए कहा "आपके खिलाफ अरेस्ट वारंट है विजय जी "

विजय एकदम से हतप्रभ रह गया "क्या?...क्या बकवास कर रहे हैं आप?....मेरा अरेस्ट वारंट ?"

"जी"

"जुर्म?"

"पाठक जी की ह्त्या का आरोप आप पर लगाया है उनके घर वालों ने.........बेटे वैभव पाठक ने कल ही आपके खिलाफ रिपोर्ट की है और आपको कसूरवार बताया है"

ये विजय के लिए ही नहीं, वहाँ मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के लिए अविश्वसनीय खबर थी। विजय ने दरोगा से कहा "मै अपने वकील से बात कर लूँ?"

"जी"

फिर विजय ने अपने विश्वस्त वकीलों, एडवोकेट साहनी और एडवोकेट यादव जी को फोन किया और फिर पुलिस के साथ चलने को तैयार हुआ। पुलिस के साथ बाहर आकर, पुलिस की जीप में बैठना; यह पल न तो विजय, न ही पार्टी में किसी ने सोचा था, लेकिन आज सबकी आँख के सामने और खुद विजय के साथ ऐसा हो रहा था। पार्टी का सबसे भरोसेमंद युवा नेता ,सबकी आँखों का तारा और प्रचार समिति का प्रमुख , जेल जा रहा था वह भी पार्टी के संस्थापक और प्रदेश के शिखर पुरुष श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद पाठक की ह्त्या के आरोप में।

यह खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी और अपने दो शीर्षस्थ नेताओं की ह्त्या का सदमा झेल रही पार्टी और पार्टी कार्यकर्ताओं को इस खबर ने तोड़कर रख दिया था। जितने मुँह उतने तरह की बातें शुरू हो गयीं थीं। पहले से ही पार्टी में गुट बने हुए थे लेकिन पाठक जी की शख्सियत ने इसे ढक कर रखा था। उनकी निर्मम हत्या और उनके परिवार द्वारा कृष्णा बाबू के बेटे विजय पर आरोप लगने से यह आवरण हट चुका था। लेकिन एक बात किसी को समझ नहीं आ रही थी कि विजय जैसा व्यक्ति अपने ही पिताजी की हत्या की साजिश क्यों रचेगा ?..... ये सब काम, कुछ समय के लिए लोग वैभव के समझ सकते थे परन्तु विजय?

एडवोकेट साहनी और यादव जी तुरंत सिविल लाइन्स थाने पहुंचे और दरोगा से कहा कि विजय को फंसाया जा रहा है, उसने खुद अपना बाप खोया है। परन्तु दरोगा ने स्पष्ट कहा कि मैजिस्ट्रेट के आगे जब पेश किया जायेगा, तब आप लोग अपनी बात तफ्सील से रखियेगा , अभी हम इनको छोड़ नहीं सकते।

पहले से ही दुःख के सागर में डूबी गीतिका के लिए यह खबर सदमे से कम नहीं थी। वह सोच भी नहीं पा रही थी कि जिस विजय के साथ वह अभी कुछ वक़्त पहले निंदौरा गयी थी, जिसे वह यूनिवर्सिटी के समय से जानती थी वह विजय ऐसा भी हो सकता था। वह बार बार अपने मायके में बदहवास ,रोती हुई रजनी देवी के मुँह से यही सुन रही थी "...पाठक जी ने उसको एम.पी. या एम.एल ए. का टिकट नहीं दिया, अध्यक्ष नहीं बनाया ,...इसी वजह से वह खा गया मेरे घर परिवार को,....मार दिया पाठक जी को।" मीडिया में भी सबसे ज़्यादा यही खबरें आ रहीं थीं। समाचार पत्र षडयंत्र की इन खबरों से भरे हुए थे। उन सभी के अनुसार, विजय पार्टी में अपनी लगातार उपेक्षा से आहत था और पाठक जी को सबक सिखाने हेतु तलाश में था। पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के नतीजे से वह अत्यधिक क्षुब्ध था और यह निश्चित समझ लिया कि पाठक जी के रहते हुए वह पार्टी में आगे की ओर नहीं बढ़ सकता था , जिसके कारण उसे एक ही रास्ता नज़र आया कि पाठक जी को रास्ते से हटाना ही होगा।

लेकिन एक बड़ा,और विचित्र सवाल जो सबके ज़ेहन में था कि क्या विजय ने पाठक जी और उज्जवल सिंह के साथ-साथ अपने पिता कृष्णा बाबू को भी ख़त्म करने की तैयारी की थी?.....अगर ऐसा था तो फांसी से विजय नहीं बच सकता था। क्या राजनीतिक पद और प्रतिष्ठा की महत्वाकांक्षा में वह इतना अँधा हो सकता है कि पिता तुल्य पाठक जी ,जो सदा उसके काम की तारीफ ही किया करते थे, उनके साथ ही वह अपने ही पिता की भी हत्या करवाए? ये बात तब और पक्की हुई जब विजय को मैजिस्ट्रेट की अदालत से भी ,उसके काबिल वकीलों की पूरी कोशिशों के बाद भी ज़मानत नहीं मिली।

गीतिका ने थोड़ी देर के लिए सोचा कि वह विजय से जेल में जा कर मिलेगी लेकिन उसके मन में विजय के लिए इतनी नफरत भर चुकी थी कि वह उसे देखते ही गोली मारना चाह रही थी.....मिलने का तो कतई सवाल ही नहीं उठता था।

कुछ दिनों के बाद यह खबर भी आयी कि इस बीच विजय को शहर से बाहर स्थित सेंट्रल जेल में भेज दिया गया जहां दुर्दांत अपराधी रखे जाते थे। उसके बाद भी एक पेशी हुई थी, और उसमे भी उसको ज़मानत नहीं मिली थी। उसके वकील अब हाईकोर्ट में रिट दाखिल कर चुके थे मगर अभी तारीख नहीं मिल पायी थी।


एक-आध महीने ही बीते होंगे, सिविल लाइन्स और जार्जटाउन थाने की संयुक्त टीमें एक शाम ,दल-बल के साथ वैभव पाठक के ऑफिस में दाखिल हुईं। उस समय अपने दोस्तों के साथ वह वहाँ ताश खेल रहा था। सिविल लाइन्स के दरोगा ने उसके हाथ पर एक सफ़ेद काग़ज़ रखते हुए कठोर स्वर में कहा "आपके नाम अरेस्ट वारंट है वैभव पाठक"

"क्यों?"

वजह पूछने पर पता चला कि विजय की पत्नी ,छाया मिश्रा ने वैभव पर यौन शोषण का अति गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में कहा है कि पति विजय राज मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद, वैभव पाठक लगातार उनकी पत्नी छाया मिश्रा पर अपना घर बेच देने का दबाव बना रहे थे। वह उस घर को तथा उसके आस-पास के घरों को गिराकर उस ज़मीन पर प्लॉटिंग करना चाह रहे थे। उन्होंने शुरुआत उसी घर से करने की योजना बनाई थी जिसकी ख़ास वजह थी। अपने ससुर कृष्णा प्रसाद मिश्रा की मृत्यु, तथा अपने पति विजय राज मिश्रा की अति संगीन मामले में गिरफ्तारी के बाद वह घर में अकेली वयस्क सदस्य रह गयीं थीं, जो अपनी ३ साल की छोटी बेटी के साथ उस घर में रहती हैं। वैभव पाठक ने उनकी इस मज़बूरी और इस असामान्य परिस्थिति का लाभ उठाया और उनका यौन शोषण किया तथा इस काम के लिए अपने दिवंगत पिता के नाम व रुतबे और उनकी हत्या से उपजी सहानुभूति का भी गलत इस्तेमाल किया। फिर यह भी बात थी कि कृष्णा बाबू जैसी बड़ी हस्ती का घर हथियाने के बाद उस पूरे एरिया में वैभव का विरोध करने की ताक़त किसी में नहीं थी। अपनी रिपोर्ट में छाया मिश्रा ने अति कठोर कानूनी धाराओं का उल्लेख भी किया था। यौन शोषण वैसे भी अति गंभीर अपराध है जिसमे ज़मानत की संभावना लगभग न के बराबर ही थी। पुलिस वैभव के दफ्तर से ही उसे उठाकर थाने ले गयी।

यह खबर जब रजनी देवी को पता चली तो उनके पाँव से ज़मीन खिसक गयी थी। बेटे की रंगीनमिजाजी से तो वह खूब वाक़िफ़ थीं लेकिन पाठक जी की मृत्यु के डेढ़-दो माह के अंदर ऐसी भी स्थिति आ जाएगी ये नहीं सोचा था। क्या उनका लड़का इतना कमीना हो गया था कि सामने कौन है, यह भी नहीं देखा?......कृष्णा बाबू, जिन्होंने पाठक परिवार के लिए अपना सब कुछ दे दिया ,उन्ही की बहू पर बुरी नज़र डाल दी इसने?......प्लॉटिंग के लिए पूरे अकबराबाद शहर में केवल यही एक जगह मिली थी ?.... यौन शोषण अति गंभीर आरोप की श्रेणी में आता है जिसमे आसानी से ज़मानत भी नहीं मिल पाती है, इस सूअर ने ये भी नहीं सोचा ?

वकीलों के साथ रात में लगभग १०-११ बजे रजनी देवी थाने पहुंची, वकीलों ने काग़ज़ दिखाया और वैभव से मुलाक़ात की इजाज़त मांगी जो पुलिस ने दे दी। माँ जैसे ही लॉकअप में वकीलों के साथ दाखिल हुई , उनको देख कर बेटा खड़ा हो गया। माँ और वकीलों के साथ पत्नी बीना दिखाई नहीं दे रही थी। रजनी देवी इतने भयंकर गुस्से में थीं कि उन्होंने कुछ भी बोलने से पहले , अपनी चप्पल निकाली और वैभव पर पिल पड़ीं। उनके मुँह से वो गालियां निकलीं जो आज तक उनकी ज़बान से तो कभी नहीं सुनी गयीं थीं, और वह भी अपने बेटे के लिए ,जिसे वह हमेशा बचाती, और उसकी गलतियों पर पर्दा करती आयीं हैं ?....कभी नहीं। उनके वकीलों और थाने के दूसरे कर्मचारियों ने उन्हें किसी तरह रोका और उनके, वकीलों, तथा वैभव के बैठने के लिए लॉकअप में ही कुर्सियां लगायीं और दरोगा ने मिलने का समय २० मिनट दिया। उसने कहा "मैडम , इस तरह लॉकअप में कुर्सी लगवाना तो अलाऊ नहीं है बिलकुल,...लेकिन आपकी उम्र और पाठक जी का ख्याल करते हैं हम। कुर्सी लगवा दे रहें हैं लेकिन २० मिनट से ज़्यादा अलाऊ नहीं करेंगे मैडम,...कोई सीनियर अफसर या पत्रकार या फोटोग्राफर आ गया तो समस्या हो जाएगी।" वकीलों और रजनी देवी ने दरोग़ा का आभार व्यक्त किया और २० मिनट में ही मुलाक़ात ख़त्म करने की रज़ामंदी की।

वैभव अपराधी की तरह माँ ने आगे सिर नीचे किये बैठा था। उस कोठरी में हर कोई खामोश था और वकील, वैभव और रजनी देवी को देखे जा रहे थे। कोठरी में केवल वृद्ध, बीमार रजनी देवी की सांस फूलती हुई सुनाई दे रही थी। पुलिस का एक सिपाही पानी लेकर उनके बगल खड़ा हुआ था। थोड़ी देर बाद जब वह शांत हुईं तब उन्होंने उसके हाथ से पानी का गिलास पकड़ा और वकीलों ने उसे बाहर जाने का इशारा किया। वैभव ने हिम्मत करके पूछा "बीना नहीं आयी?", पानी का घूँट पीते हुए रजनी देवी ने उत्तर दिया "तुम्हारे करम ऐसे हैं, कि कोई नहीं आएगा तुम्हारे साथ। मेरी ही किस्मत ऐसी है कि हर बार मुझे ही आना पड़ता है। बुढ़ापे में ये दिन भी देखना पड़ेगा, मैंने कभी नहीं सोचा था वैभव।" वैभव चुप बैठा सुन रहा था।

माँ ने फिर पूछा "क्या है ये सब?" , वैभव कुछ नहीं बोला। वकीलों ने कहा "देखिये वैभव जी !....हम लोग आपकी मदद करने ही आये हैं, लेकिन ये हम केवल तब कर पाएंगें अगर आप हमें सब कुछ सच-सच, और साफ़-साफ़ बता देंगें। बिना सच जाने हम कुछ नहीं कर सकते।" रजनी देवी फिर गुस्से में बोलीं "अरे कमीने, तेरी आँखें फूट गयीं थीं?....सामने दिखा नहीं तुझे कुछ?" ,वकीलों ने उनको चुप कराया। वैभव ने बड़ी मुश्किल से कहा "मैंने,....मैंने,....नहीं किया कुछ।" रजनी देवी फिर बोलीं "...हाँ, तो यहां रात को ११ बजे हम तफरीह करने आये हैं न?....अरे नीच ,थोड़ा सोच कि शुगर है मुझको,...और कितनी मौतें मारेगा तू इस बूढ़े शरीर को?...इस उम्र में माँ को कुछ आराम तो दे नहीं सका तू, कम से कम कष्ट तो मत दे ?" ,वकीलों ने फिर उसको शांत किया और वैभव को फिर से पूछा कि क्या बात वास्तव में है। वैभव ने रोते हुए और कुछ हकलाते हुए कहा "वकील साहब,...मैं सच कह रहा हूँ,.....मैंने,....कुछ नहीं,......मतलब,......जो कुछ भी......मतलब,.....जो कुछ भी हमारे बीच हुआ....वो पूरी तरह से.....एक दूसरे की मर्ज़ी.....से हुआ.....मैं सच कह रहा हूँ।" , फिर वह चुप हो गया और रोने लगा। ये सुनकर वकील सन्न रह गए और रजनी देवी ने सिर पीट लिया ,"क्या कहा तुमने?...एक दूसरे की मर्ज़ी से हुआ था?....चांडाल, कमीने,....." , और वह फिर से चप्पल लेकर वैभव के ऊपर बरस पड़ी। वकीलों ने फिर उनको किसी तरह शांत करके कुर्सी पर बैठाया। वह बुरी तरह से दुखी थीं और रो रहीं थीं। थोड़ी देर तक वहाँ कोई कुछ नहीं बोला, वकील एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे। थोड़ी देर बाद रजनी देवी चुप हुईं और खुद पर नियंत्रण करते हुए पूछा "बताओ,...क्यों हुआ ऐसा?....ऐसी भी क्या आग लगी थी तुमको?...हॉस्टल वगैरह में तो जाते ही रहते थे तुम?" वैभव ने रोते हुए कहा "उसने मुझसे कहा था कि वह अपने पति से नाखुश है.....उसका पति और उसके तौर-तरीके उसको पसंद नहीं थे। विजय घर की जगह गाँव-देहात में ज़्यादा समय बिताता था। फिर मेरी पत्नी भी तो ३ साल से मेरे साथ नहीं रहती थी.....आखिर मेरी भी तो....कुछ ज़रूरतें हैं.....इसीलिए ऐसा हो गया।" माँ हैरान होकर सब सुन रही थी। वकीलों ने पूछा "फिर जब सब कुछ जानते-समझते हुए हुआ, तो उसने आप पर यौन शोषण का आरोप कैसे लगाया है?......यौन शोषण समझते हैं न आप?....ज़ोर-ज़बरदस्ती से, बिना महिला की मर्ज़ी के उसके साथ यौन सम्बन्ध बनाना,......ज़मानत भी नहीं है इसके लिए वैभव जी,....और उसने बहुत संगीन इल्ज़ामात और बड़े कठोर सेक्शंस लगाए हैं आपके ऊपर , और इस कानून की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि अपने आप को निर्दोष साबित करने की ज़िम्मेदारी मर्द की ही है, मतलब आपकी ही है। औरत के लगाए चार्जेस इसमें हमेशा अदालत सही मानकर चलती है। और एक बात सुनिए आप दोनों लोग.......गलती से भी अब उस औरत छाया मिश्रा को एक मामूली सी भी खरोंच नहीं आनी चाहिए वरना उसकी सब बातें सही हो जाएँगी और आप पूरी उम्र लॉकअप में ही रहेंगें। तो अगर ऐसा कुछ आप दोनों के दिमाग में चल रहा हो तो प्लीज़ मत कीजियेगा। हम लोग ही कुछ करते हैं।" माँ-बेटे ने इस पर सहमति जताई।

पिछले डेढ़-दो महीने में जो कुछ हुआ था, उस से श्रमशक्ति पार्टी के आगे बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया था। अभी कुछ वक़्त पहले तक लगभग अजेय समझी जाने वाली पार्टी केवल २ महीने में ही अस्तित्व के लिए संघर्ष करती लग रही थी। बात केवल एक लोकसभा सीट और एक विधानसभा सीट के खाली होने भर की नहीं थी। बात यह थी कि पार्टी को एक सूत्र में बाँधने वाले दो सबसे बड़े तत्व, पाठक जी, और कृष्णा बाबू जा चुके थे और तीसरा व्यक्ति यानि उज्जवल बाबू अस्पताल में जीवन और मृत्यु से जूझ रहे थे। यद्यपि उनकी तबियत में लगातार सुधार की खबरें आ रहीं थीं और अब वह आई.सी.यू. से भी बाहर आ गए थे लेकिन पार्टी गतिविधि में कतई शामिल नहीं हो सकते थे। और फिर उज्जवल बाबू पार्टी का प्रभावशाली चेहरा जनमानस के बीच कभी माने नहीं गए। लोगों के बीच जो लोकप्रियता और प्रभाव पाठक जी, कृष्णा बाबू का था वैसा उज्जवल बाबू का सिरे से नहीं था। उनके नाम पर वोट नहीं था और उनके आसरे पार्टी चुनाव नहीं लड़ सकती थी। फिर उनकी विधानसभा सीट भी खाली ही हो जाएगी जिसे भरना भी ज़रूरी होगा।

एक दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी थी कि दो दिग्गजों की हत्या के बाद जिन लोगों के हाथ में पार्टी की कमान दिए जाने की कल्पना की गयी थी ,वे लोग भी बेहद गंभीर आरोपों में जेल में थे। विजय के ऊपर इस तिहरे हत्याकांड के मुख्य दोषी होने का आरोप था तथा स्वयं पाठक परिवार ने ही यह आरोप लगाया था, वहीं कृष्णा बाबू की बहू ने वैभव पर यौन शोषण का गंभीर मुक़दमा दर्ज किया था। निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा और विधानसभा की खाली हुई सीटों पर उपचुनावों की नोटिफिकेशन कभी भी आ सकती थी। अब ऐसे हालात में पार्टी का अगला कदम क्या हो, इस पर चर्चा करने के लिए कुछ अन्य नेताओं ने कार्यकारी अध्यक्ष गीतिका पाठक से पार्टी कार्यकारिणी की आपात बैठक बुलाने का आग्रह किया साथ ही उन्होंने पार्टी के कामों में गीतिका को और भी ज़्यादा सक्रिय होने की सलाह दी। अतएव पार्टी कार्यकारिणी की आपात बैठक अकबराबाद में एक हफ्ते बाद बुलाई गयी थी।

पार्टी कार्यकारिणी की कई महत्वपूर्ण निर्णय किये गए। गीतिका को सर्वसम्मति से पार्टी का नया अध्यक्ष चुना गया और आगामी चुनावों से सम्बंधित समस्त फैसले लेने का पूर्ण अधिकार पार्टी अध्यक्ष को दिया गया। दिवंगत पाठक जी की शहर केंद्रीय लोकसभा सीट पर पार्टी ने वरिष्ठ नेता उज्जवल सिंह को उतारने का निर्णय बरकरार रखा जबकि कृष्णा बाबू की फूलपुर विधानसभा सीट पर पार्टी के एक अन्य नेता दुर्गा प्रसाद यादव का नाम तय किया गया। झूंसी-जगतपुर विधानसभा सीट से गीतिका पाठक पार्टी की दावेदारी पेश करेंगी। दुर्गा प्रसाद यादव को ही पार्टी की चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया गया और कृष्णा बाबू के सुपुत्र विजय राज मिश्रा को पार्टी से निष्काषित कर दिया गया।


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