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Mukta Sahay

Inspirational

5.0  

Mukta Sahay

Inspirational

उपहार नहीं तुमसब का साथ चाहिए

उपहार नहीं तुमसब का साथ चाहिए

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सुबह से ही फ़ोन बजा जा रहा है। अनु जी शुभकामनाएँ लेते और सभी को धन्यवाद करते फूली नहीं समा रही हैं।और ख़ुश हों भी क्यों ना उनकी शुभेक्षा रखने वाले इतने लोग जो हैं। दरअसल अनु जी का आज साठवाँ जन्मदिन है। पवन जी अपनी पत्नी के जन्मदिन पर सारी चीज़ें उनकी पसंद की करना चाहते हैं। खाने से लेकर कपड़े तक और घर के सजावट से लेकर मेहमानों तक सब कुछ अनु जी के पसंद के अनुसार।

अनु और नमन जी अकेले ही रहते हैं। पाँच बच्चे हैं। बच्चे बड़े हो गए हैं और अपने नौकरी के सिलसिले में अलग अलग शहरों में रहते हैं। हर साल गर्मी की छुट्टियों में आना होता है बच्चों का और इस समय का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं दोनो पति पत्नी। पर मन तो चाहता है, हर बार पिछली बार से कुछ ज़्यादा।

अपनी शादी की सालगिरह , अनु जी और नमन जी के जन्मदिन पर , तीज-त्योहार पर मन के एक कोने में आस होती है कि पाँच बच्चों में से कोई एक आ जाए तो ऐसे मौक़े पर कुछ रौनक़ हो जाए।

ख़ैर नमन जी की तैयारियाँ ज़ोरों से चल रही थीं। कभी केक का ऑर्डर पता कर रहे थे तो कभी सजावट वाले को जल्दी आने को कह रहे थे।

नमन जी ने सुबह के नाश्ते में उपमा और दोपहर के खाने में अनु जी के पसंद के कढ़ी चावल बनवाए। खाना खाने के बाद अब समय था शाम की तैयारियों का। नमन जी बेसब्री से शाम का इंतज़ार करने लगे। कभी घड़ी देखते , कभी दरवाज़े पर नज़र जाती। अनु जी इतने साल साथ रही हैं नमन जी के तो उनकी हर हरकत के पीछे की बात भाँप लेती हैं। सुबह से दौड़ भाग करते बासठ वर्ष के नमन के शरीर की थकान को तो कोई भी देख सकता था , किंतु हृदय की पीड़ा तो बस हृदय के क़रीबी को ही समझ आती है, सो अनु जी से अब नहीं रहा गया। वह बोल ही पड़ी , नमन जी अब साँस भी ले लो , थोड़ा आराम कर लो। मैं किसी के आने की आस में नहीं बैठी हूँ । आप हम साथ हैं बस यही मेरे लिए अनमोल है। और बच्चों की कमी ना महसूस हो इसके लिए सुबह से ही नाहक परेशान हो रहे हो आप। देखो थक के चूर हो गए हो। चेहरा सूखा जा रहा है।

तभी दरवाज़े की घंटी बजती है , कुरियर वाला केक ले कर आया था साथ में एक कार्ड भी था, बड़े बेटे ने माँ को जन्मदिन कहा था। अभी केक को दोनो देख ही रहे थे कि तभी फिर घंटी बजी तो नमन जी ने कहा ये मेरा वाला केक होगा। लेकिन नहीं ये था तो केक ही, पर छोटी बेटी की तरफ़ से साथ में एक साड़ी भी थी। नमन जी अपने केक का इंतज़ार कर रहे थे और पाँच पाँच केक आ गए पर नमन जी वाला केक नहीं आया। कुछ उदास से हो गए थे अब नमन जी । तो ऐसे में अनु जी ने कहा "ये क्या सुंदर मुखड़ा बनाए बैठे हो। कटूँगी तो मैं तुम्हारा वाला ही केक, ये तो तुम्हें पता ही है। कितने बजे लाने को बोला है केक वाले को केक ?" नमन जी ने कहा "छः बजे कहा है ।" अनु जी ने कहा "ये लो अभी तो चार भी नहीं बजे और तुम दिल छोटा किए बैठे हो। अच्छा क्या इन्ही कपड़ों में केक काटेंगे! चलो ठीक से तैयार हो मुझे केक जो कटवाना है तुम्हें। मैं भी तैयार होती हूँ।"

अनु जी ने नमन जी के पसंद की साड़ी पहनी, जूड़े में उनके ही पसंद का फूल लगाया , शादी वाले गहने पहने और बाहर बैठक में आई । इधर नमन जी भी नीले रेशमी कुर्ता और सफ़ेद पजामा पहन का अनु जी के इंतज़ार में बैठे थे। दोनो की नज़रें एक दूसरे से हट ही नहीं रही थी। दोनो एक दूसरे को निहार रहे थे। अब समय था की भागा जा रहा था दोनो पुरानी बातें याद कर के खुश हो रहे थे। केक भी आ गया। नमन जी मेज़ पर केक को निकाल कर बाक़ी तैयारियाँ कर रहे थे और अब फिर उनकी नज़र दरवाज़े पर किसी को दूँढ़ रहीं थीं। अनु जी की जिज्ञासा अब बौखलाहट में बदल रही थी कि अब ये किसका इंतज़ार कर रहे हैं। पाँचो बच्चों से तो सुबह ही बात हुई है और किसी ने भी आने की बात नहीं कही है। "नमन जी क्या नज़रें दरवाज़े पर गड़ाए हो, केक आ गया है , अब ना कुछ आने को बचा है ना ही किसी को आना है, " थोड़ी झुँझलाहट में अनु जी ने कहा। "मैं ये दरवाज़ा ही बंद कर देती हूँ।" अनु जी दरवाज़े की तरफ़ बढ़ती हैं। 

नमन जी मूस्कुराते हुए अनु जी को देखते हैं और कहते हैं "अच्छा जैसे की तुम्हें सब पता है।" दरवाज़े पर पहुँच कर अनु जी को उनके घर कि तरफ़ आते कुछ लोग नज़र आते हैं ,गौर से देखने पर अनु जी उन्हें पहचान लेती है कि ये तो उनके और नमन जी के वे साथी जो सुबह टहलने और योगा क्लास में मिला करते थे। बड़ा सा फूलों का गुलदस्ता लिए वे सभी अंदर आते हैं।

अनु जी को अब सारा माजरा समझ में आता है। आँखें भर आती हैं उनकी। नमन जी से कहती हैं "ये है तुम्हारा सुंदर उपहार तुम्हारे साठवें जन्मदिन का, पसंद आया। ज़िंदगी हर बार नया नज़रिया देती है जीने का। जितनी जल्दी समझ लो उतना ही अच्छा है। हम सभी एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं।"

केक काटा जाता है, पूराने गाने बजाए जाते हैं , साठ सावन देख चुके कुछ नौजवानों के पैर भी थिरकने लगते हैं तो फिर सभी नाचने भी लगते हैं। गाने बजाने के बीच खाना पीना शुरू होता है। तभी अनु जी को मँझली बेटी का फ़ोन आता है। पूछती है "माँ केक मिला! सभी का केक काटा! फ़ोटो भी नहीं भेजा अभी तक तुमने।" अनु जी कहती हैं, "अभी हमारे दोस्त आए हैं और पार्टी चल रही है सो फ़ुरसत ही नहीं मिला फ़ोटो भेजने का। पार्टी ख़त्म होते ही सारे फ़ोटो भेजती हूँ। केक तो मैंने नमन जी का लाया वाला काटा है और साड़ी भी उनकी ही पसंद की पहनी है। तुम लोगों ने जो केक और उपहार भेजे हैं, उन्हें सहेज कर रखा है। जो जब आएगा उसका केक काटा जाएगा और उसके साथ ही उपहार खोला जाएगा, पार्टी की जाएगी। अच्छा अब रखती हूँ सभी खाने पर मेरा इंतज़ार कर रहे हैं।"

नमन जी पीछे खड़े बाते सुन रहे थे और फिर दोनो आँखो ही आँखों में बातें करके अपने दोस्तों के पास चले जाते हैं।



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