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स्त्री होने के अर्थ...

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 प्यारी माँ सस्नेह प्रणाम


कई बार हम सामने बैठकर अपनी भावनाओं को इतना खुलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं जितना उन्हें पत्र में लिख कर कर पाते हैं। इसलिए इस स्मार्टफोन के जमाने में भी मैं तुम्हें पत्र लिख रही हूँ। बचपन से ही देखती आई हूँ तुम पति की सच्ची संगिनी, घर की कर्तव्य शील बहू, बच्चों की स्नेहशील ममतामयी माँ और इन सबसे ऊपर एक कर्मठ व्यक्तित्व की स्वामिनी हो।


ढेर सारे रिश्तो की भीड़ में उम्र भर से तुम न जाने कितनी ही भूमिकाओं का निर्वाह बहुत आत्मीयता और अपनेपन, लगन से करती रही हो। लेकिन तुम्हारा सबसे अच्छा गुण जिसने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है वह है अपनी सारी व्यवस्थाओं, व्यस्तताओं और सभी भूमिकाओं को पूरी जिम्मेदारी से निभाने के पश्चात भी अपने अंदर के व्यक्ति को, अपने अंदर की स्त्री को भी पूरा मान-सम्मान देना। तभी तो तुम घर-परिवार, सास-ससुर, पति, बच्चों, नाते-रिश्तेदारों के पूरे कर्तव्य हंसते हुए पूरे मन से निभा पाई क्योंकि तुम्हारे अंदर की स्त्री अपने आप में संतुष्ट थी, सुखी थी।


तुममें पढ़ने और कुछ न कुछ नया सीखते रहने की सतत लगन है। जहां बाकी औरतें अपने आप के लिए समय न मिल पाने के क्षोभ और क्रोध में अपनी जिम्मेदारियों को भी ठीक से नहीं निभा पाती थी, वह अपना सम्मान भी नहीं रख पाती और उस हीनता बोध और कुंठा में दूसरों का अपमान करते हुए भी मैंने उन्हें देखा है। वही मैंने देखा कि तुमने हमेंशा अपने व्यक्तित्व में एक गरिमामयी संतुलन बनाए रखा। जो स्वयं का सम्मान करता है वह कभी किसी और का अपमान कर ही नहीं सकता। जो अपने कर्तव्यों को पूरी इमानदारी से निभाता है उसके मन और आत्मा में एक दिव्य संतुष्टि होती है। वहीं संतोष तुम्हारे संपूर्ण व्यक्तित्व में है।


धीर-गंभीर, सकारात्मक, संतुष्ट और आनंदित। तुमसे ही मैंने अपने अंदर की स्त्री की आवाज को सुनना और उसकी इच्छाओं को मान देना सीखा। "स्व" का सम्मान करना सीखा। कर्तव्य के साथ ही अधिकारों के प्रति जागरूक होना सीखा। तुमने ही बताया जो अपने कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाते हैं वही वास्तव में अपने अधिकारों के प्रति भी सचेत रहते हैं। स्त्री सुखी संतुष्ट तो परिवार सुखी। जीवन को उसके सम्पूर्ण आनंद में जीना। जब भीतर आनंद हो तो बाहर भी आनंद ही छलकता है और तुमने सदा अपने आसपास के लोगों पर, वातावरण में आनंद ही बरसाया।


मुझे हमेंशा अपना आशीर्वाद और मार्गदर्शन देती रहना कि तुम्हारी तरह तुम्हारी बेटी भी एक संतुलित व्यक्तित्व की स्वामिनी बनकर घर समाज और स्वयं के साथ न्याय कर पाए। दूसरों को कुछ अच्छा देने के साथ ही खुद को भी खुश रख पाए।


तुम्हारी बेटी


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