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लव योर सेल्फ मम्मा

लव योर सेल्फ मम्मा

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किचन में मीनू के लिए मठरियाँ तलती अनुभा की आँखें बार-बार भर आ रही थीं,लेकिन मीनू के आसपास मंडराते रहने के कारण वह अपने आपको जब्त कर लेती और आँसुओं को आँखों में ही रोक लेती।मीनू भी अपनी माँ की मनोदशा समझकर सुबह से ही उसे अकेला नहीं छोड़ रही थी।किसी न किसी बहाने हर दो मिनट बाद किचन में आ जाती।मीनू को पुणे के मेडिकल कोलेज में एडमिशन मिला था।कल वे लोग पुणे के लिए रवाना होंगे और चार-पाँच दिन वही रहकर मीनू का एडमिशन, रहने-खाने की व्यवस्था करके अनुभा और शैलेन्द्र वापस आ जाएँगे. 

और यही बात अनुभा के मन में दर्द की लहर बनकर उठ रही है। जन्म से अब तक, पूरे अठारह बरस तक मीनू को कभी आँखों से क्षण भर को भी दूर नही होने दिया अनुभा ने और अब..। अब एकदम से दो-चार दिन नही पाँच साल मीनू इतनी दूर रहेगी।अनुभा के लिए ये दर्द बर्दाश्त से बाहर था। इकलौती बेटी का अपने से अलग हो जाना। अठारह बरस से जिस मीनू के इर्दगिर्द अनुभा की सुबह-शाम, दिन-रात हर पल बंधा हुआ था, आँख खुलते ही मीनू का टिफिन बनाना तो रात में सोते समय उसे दूध का गिलास थमाना। दिन भर भी वह मीनू के बारे में ही सोचती, आज उसके लिए खाने में क्या बनाऊं, पढ़ते समय क्या करूँ की वह कम्फर्ट रहे।

शैलेन्द्र तो अपने व्यवसाय में इतने व्यस्त रहे कि घर-परिवार के लिए समय कम ही निकाल पाए, क्या करें उनकी भी मजबूरी है जिसके लिए अनुभा ने कभी कोई शिकायत नही की।लेकिन उसके जीवन का केंद्र मीनू बन गयी।अनुभा ने अपना सारा समय, सारा नेह सबकुछ मीनू के नाम कर दिया।अब वही उससे दूर चली जाएगी जो पिछले वर्षों में बेटी से सखी बन गयी थी।कितनी करीब हैं दोनों, मन का हर भाव, हर सुख-दुःख आपस में बाँटती है।यही पीड़ा उसके कलेजे को चीर रही है।मठरियाँ बनाने के बाद वह शकरपारे बनाने लगी।चिवड़ा तो पहले ही बन चुका था।अनुभा को लग रहा था कि क्या बनाये और कितना बनाये ताकि मीनू को वहाँ खाने-पिने की कोई दिक्कत न हो।

“अरे मम्मा इतना सारा ये सब क्या बना रही हो।सुबह से लगातार खड़ी हो किचन में ,

चलो अब रेस्ट करो थोडा प्लीज।बहुत हो गया.” मीनू ने आखिर गैस बंद कर दी और हाथ पकड़कर अनुभा को कमरे में ले आई।

“बनाने दे रे।अब तू चली जाएगी तो किसके लिए बनाउँगी।तब तो रेस्ट ही रेस्ट है.” कहते हुए बहुत रोकने पर भी अनुभा की आँखे छलक ही गयीं।

“ओ मम्मा तुम इतनी दुखी रहोगी तो मेरा तो मन ही नहीं लगेगा वहाँ.” मीनू उसके कंधे पर सर रखते हुए बोली।

“तू मेरी चिंता मत कर तू बस अपनी पढ़ाई और भविष्य पर ध्यान दे।” अनुभा आँखे पोंछते हुए बोली।

“कैसे चिंता न करूं? आपने आज तक मेरे लिए इतना कुछ किया और मैं आपको ऐसे दुःख में छोड़ जाऊं?” मीनू उदास स्वर में बोली।

“वो तो मेरा कर्तव्य है बीटा।तेरे अलावा मेरा है कौन जिससे प्यार करूँ, जिसे दुलार दूँ, जिसकी चिंता करूँ।” अनुभा ने उसके गाल थपथपाते हुए कहा।

“एक और भी व्यक्ति है जिसे आपने अपने स्नेह से, प्रेम से वंचित कर रखा है।आपने सारा प्यार, सारा ध्यान मुझ पर, घर पर और पापा पर लुटा दिया और उस व्यक्ति को हमेशा अनदेखा करती रहीं, उसकी खुशियों की तरफ आपने कभी ध्यान नही दिया।” मीनू बोली।

“क्या? ये तू क्या कह रही है।कौन है वह?” अनुभा आश्चर्य से बोली।

“आओ मैं आपको उससे मिलवाती हूँ.” कहते हुए मीनू ने उसे उठाया और ले जाकर आईने के सामने खड़ा कर दिया।

“ये क्या है?” अनुभा ने असमंजस से पूछा।उसे कुछ भी समझ में नही आया।

“वो व्यक्ति आप खुद हो। हमारी खुशियों के लिए आपने हमेशा अपनी इच्छाओं को इग्नोर किया।अपने अंतर का सारा प्यार हम पर लुटा दिया, अपने लिए कुछ नही रखा।तभी आज मेरे जाने से आप एकदम से अकेला सा महसूस कर रही हो।जबकि आप अपने प्यार की सबसे पहली हकदार हो, आपका पहला फर्ज़ अपने आपको खुश रखना है.” मीनू अनुभा के कंधों पर हाथ रखकर बोली।


“सभी माएं ऐसी ही होती हैं बेटा।तुम कोई मुझसे अलग हो क्या? तुम्हे प्यार करके ही मैं तो निहाल हूँ।तुम खुश रहो बस।” अनुभा स्नेह से बोली।

“जैसे आप मुझे खुश देखना चाहती हैं वैसे ही तो मैं भी अपनी माँ को खुश देखना चाहती हूँ न, हमेशा हँसते हुए देखना चाहती हूँ। सो प्लीज लव योर सेल्फ मम्मा।अपने आपको समय दीजिये अब, अपनी कम्पनी एन्जॉय कीजिये।अपनी रूचि का वो सब काम कीजिये जो इतने साल आप मेरी परवरिश में व्यस्त रहने की वजह से कर नहीं पायीं।” मीनू ने कहा।

“ठीक है बाबा ” अनुभा मुस्कुराकर बोली.

“एंड प्रोमिस मी, आप अपना पूरा ध्यान रखेंगी और मेरी मम्मा को को खुश रखेंगी।जब मैं छुट्टियों में घर आऊँ तो मुझे आँखों में आँसू भरी हुई उदास मम्मा नहीं चाहिए।मुझे ऊर्जा से भरी, हँसती-मुस्कुराती मम्मा चाहिए ओके।” मीनू बोली।

“ओके बेटा आय प्रोमिस यू।” अनुभा ने कहा।

“देट्स लाइक माय स्वीट मम्मा ” मीनू अनुभा के गले लगते हुए बोली “अब आप आईने में खुद को देखते हुए मुस्कुराने की प्रेक्टिस करिये तब तक मैं चाय बनाकर लाती हूँ।" 

मीनू चाय बनाने किचन में चली गयी।अनुभा कुछ देर खुद को आईने में देखकर मीनू की कही बातें सोचने लगी।फिर उसने अपने आँसू पोंछ लिए।“लव योर सेल्फ मम्मा।” किचन से मीनू की आवाज आई।अनुभा मुस्कुरा दी।“जरुर बेटा।थैंक यु सो मच।मैं पूरी कोशिश करूँगी कि जितना प्यार जीवन में तुझे किया उतना ही प्यार खुद से भी करके तेरी मम्मा को खुश रख सकूँ ताकि तुझे तेरी मम्मा हमेशा हँसती-मुस्कुराती मिले।”

“थैंक यू मम्मा।” चाय की ट्रे टेबल पर रखकर मीनू ने अनुभा के गले लगते हुए कहा।





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