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Sudha Adesh

Inspirational

4.1  

Sudha Adesh

Inspirational

ऐसा मजाक उचित नहीं

ऐसा मजाक उचित नहीं

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विवाह का स्वागत समारोह था...अनिमेष और अपराजिता मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत करने में लगे हुए थे। बेमेल जोड़े को देखकर लोगों में कानाफूसी प्रारंभ हो गई थी...। अनिमेष की पारखी नजरों से लोगो के चेहरे पर छाया व्यंग्य छिपा न रह पाया। उसे डर था तो सिर्फ इतना कि ये बातें अपराजिता के कानों में न पड़ जायें किन्तु अपराजिता को उसी निश्चल मुस्कान के साथ मेहमानों का स्वागत करते देख वह निश्चिंत हो गया।        

लगभग तीन हफ्ते पूर्व ही उनका विवाह हुआ था। एक हफ्ता अपने रिश्तेदारों के साथ व्यतीत करने के पश्चात् वे मधुयामिनी हेतु ऊटी चले गये थे। दिन रात पंख लगाकर उड़े जा रहे थे पर कभी तो समय को रूकना पड़ता ही है , यही उनके साथ भी हुआ। खुशियों के पलों को अपनी स्मृतियों में सहेजे जब अनिमेष काम पर लौटा तो उसके मित्रों ने भी पार्टी की माँग कर डाली। वस्तुतः उनका विवाह पैतृक निवास पर हुआ था। विवाह में उसके एक दो मित्रों के अतिरिक्त अन्य कोई सम्मिलित नहीं हो पाया था अतः उनकी भावनाओं का सम्मान करने के लिये उसे इस स्वागत समारोह का भी आयोजन करना पड़ा।

अनिमेष एक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था...गोरा रंग, लंबा एवं छरदरा बदन, मधुर एवं सौम्य स्वभाव के कारण वह किसी को एक ही नजर में आकर्षित कर लेने में सक्षम था किंतु अपराजिता दोहरे बदन की, सांवले रूप रंग की सामान्य कदकाठी की नवयौवना थी। इसके बावजूद उसके मुख पर आत्मसंतोष, संपन्नता, शालीनता की वैभवपूर्ण मुस्कान सुशोभित थी जो सभी को आकर्षित कर रही थी किंतु फिर भी वह कहीं से अनिमेष के अनुरूप नहीं लग रही।

अनिमेष के कई मित्रों का मत था कि श्री रामचंद्रजी तो अपने माता-पिता की आज्ञा को शिरोधार्य कर सिर्फ चौदह वर्षो के लिये वन को गये थे पर कलियुग के इस श्रीराम ने दहेज लोलुप अपने माता-पिता के सामने अपनी सारी कामनायें गिरवी रख दी हैं। बलि का बकरा बन गया है बेचारा...।

अनिमेष इन सब आक्षेपों को नजरअंदाज कर अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ प्रत्येक आने जाने वाले मित्रों से अपराजिता का परिचय करवा रहा था और अपराजिता भी उसके हर इशारे पर मर मिटने को तैयार प्रतीत हो रही थी।

पार्टी समाप्त होते-होते रात्रि के ग्यारह बज गये थे। लगभग सभी मेहमान चले गये थे। अनिमेष के चार पाँच अभिन्न मित्र ही बचे थे। उन्होंने साथ बैठकर खाना प्रारंभ किया। हँसी मजाक का जो दौर प्रारंभ हुआ, वह समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था कि वेटर ने आकर होटल बंद करने की सूचना दी तब आभास हुआ कि बहुत देर हो गई है, अब घर चलना चाहिये। अपराजिता नई नवेली होते हुए भी सबसे ऐसे घुल मिल कर बातें कर रही थी कि लग ही नहीं रहा था कि वह सबसे पहली बार मिल रही है।

यह दुनिया भी अजीब है, कोई बात हो या न हो किंतु आलोचक बाल की खाल निकालने को आतुर रहते हैं। यही कारण था कि बाहर निकलते हुये अनिमेष के मित्र पाल ने अचानक फुसफुसा कर कहा, ‘ यार,तू तो चढ़ गया सूली पर, कहाँ तू कहाँ वह, कुछ तो देखा होता।’

‘हाँ यार, तू बीबी लाया है या मोटी...।’ वह कुछ कह पाता तभी वर्मा बोल उठा। 

आगे के शब्द उनकी हँसी में दब कर रह गये। अनिमेष ने सकपका कर अपराजिता को देखा। उसे श्रीमती सुजाता पाल और रीता वर्मा से हँस-हँस कर बातें करते देख उसने संतोष की साँस ली।

वह चाहता तो पाल और वर्मा पर अपना आक्रोश प्रकट कर सकता था...आखिर क्या हक है उन्हें उसकी पत्नी के बारे में ऐसा कहने का....पर अपराजिता के सामने ऐसा वैसा कहकर तमाशा खड़ा नहीं करना चाहता था अतः चुप रह गया। एकाएक उसे अपने इन मित्रों से वितृष्णा सी हो आई जो उसकी भावनाओं के साथ उसकी नवविवाहिता पत्नी का भी सम्मान नहीं कर पा रहे हैं। 

अपराजिता चाहे जैसी भी हो, अब उसकी पत्नी है। वह उसके साथ जबरदस्ती नहीं वरन् समस्त सामाजिक रस्मों को निभाकर आई है...फिर जब उसे या उसके घर वालों को उसके रंगरूप पर कोई आपत्ति नहीं है तो इनको ऐसी बातें करने का क्या हक है ?

यह सच है कि अपराजिता दुनिया के मापदंडो के अनुसार खूबसूरत नहीं है। माना उसका शरीर बेडौल है पर उसकी जो अदा उसे भाई थी वह थी उसकी बड़ी-बड़ी आँखें, चेहरे पर खेलती निरंतर मुस्कान, खनकती हँसी तथा उससे भी अधिक उसका सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर पूर्ण आधिपत्य वरना लड़कियों को उसने सदा गहने, कपड़ों और खाने के संबंध में ही बातें करते पाया है       विवाह के लिये उसकी सहमति मिलने पर उसके पिताजी ने पुनः उसे अपने निर्णय पर विचार करने को कहा था...। यहाँ तक कि उसकी बहन आकांक्षा ने उसे अपने निर्णय पर अटल पाकर इस बेमेल विवाह पर अपनी नाक मुँह सिकोड़ते हुये कहा था, ‘ दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज है।’

दीदी, एक स्त्री होते हुए, एक स्त्री के लिये आप ऐसा कैसे कह सकती हो...? हर स्त्री का अपना एक सौन्दर्य होता है....शायद इसी सौन्दर्य ने मुझे आकर्षित किया है। अगर ऐसा ही था तो पहले आप लड़की देख लेतीं अगर आप सबको पसंद आ जाती तो फिर मुझे दिखाते...। दीदी, बिना किसी विशेष कमी के किसी को देखकर मना करना क्या उस लड़की के प्रति अन्याय नहीं है…? जहाँ तक मोटापे का प्रश्न है, वह तो कुछ कसरतों द्वारा कम भी हो सकता है....फिर जब जीवन मुझे उसके साथ बिताना है तो किसी अन्य को आपत्ति क्यों ?’ अनिमेष ने दीदी की बात सुनकर किंचित क्रोध से कहा था                ‘ यह लड़की पूरी जादूगरनी है। पता नहीं क्या जादू कर दिया है उसने आप पर जो एक ही मुलाक़ात में आपको दीवाना बना दिया है।’ उसकी बातें सुनकर दीदी ने मुँह बनाकर कहा।        अनिमेष को अपनी बहन की सोच पर हैरानी हुई थी...आखिर एक स्त्री ही, एक स्त्री की दुश्मन क्यों बन जाती है ? इसके बावजूद उसे इस बात की खुशी थी कि उसके माँ पिताजी ने उसके निर्णय एवं सोच का स्वागत किया था। 

अपराजिता साइकोलोजी में एम.ए. कर रही थी। इस वर्ष उसका अंतिम वर्ष था। सदा प्रथम आने वाली अपराजिता चाहती थी कि परीक्षा के पश्चात् उसका विवाह हो किन्तु उसके दादाजी जो रोगशैया पर अंतिम साँसे गिन रहे थे, उनकी इच्छा थी कि उनके जीवनकाल में ही उनकी पोती का विवाह हो जाये। यह बात और है कि विवाह के पश्चात उनकी रूकती साँसों में जान आ गई थी। परीक्षा में लगभग तीन महीने बाकी थे अतः आते वक्त वह अपनी किताबे भी साथ ले आई थी। अनिमेष के आफिस जाते ही वह पढ़ाई में जुट जाती थी जिससे कि शाम का समय वह उसके साथ बिता सके।

अनिमेष के आफिस से आते ही कभी मूवी, कभी कहीं बाहर घूमने जाने का कार्यक्रम बन जाता, फिर वहाँ से किसी होटल में खाकर ही लौटते...। अपने मित्रों के बार-बार बुलाने पर भी वह उनके घर यह सोचकर जाना टालता रहता कि कहीं फिर कोई अप्रिय बात न कह दे। एक बार तो वह चुप रह गया पर शायद दुबारा कुछ बोलने पर वह अपनी जुबान पर काबू न रख पाये...उसके रूख पर कुछ मित्रों ने रोष भी जताया था पर वह यह कहकर टालता रहा अभी अपराजिता परीक्षा की तैयारी कर रही है, अतः निकलना ही नहीं चाहती।

अपराजिता के अनुसार पढ़ाई के अतिरिक्त खाना और सोना ही उसके मुख्य शौक हैं अतः शरीर के रखरखाव पर उसने कभी विशेष ध्यान ही नहीं दिया। इकलौती संतान होने के कारण बिजनिसमैन पिता ने उसकी सभी जायज नाजायज मांगे पूरी की थीं। बढ़ते मोटापे तथा खाने के अपराजिता के शौक पर माँ टोकती तो उसके पिता कहते,‘ खाने के लिये कभी टोका मत करो मेरी बेटी को , तुम्हें क्या मालूम अन्न के लिये कितने लोग तरसते हैं...पता नहीं कैसी किस्मत लेकर आई है...कम से कम जब तक हमारे पास है तब तक उसे अपने सारे शौक पूरे कर लेने दो।’                

अपराजिता के पिता को अनिमेष के बारे में अपने मित्र दयानंद से पता चला था। बेटी के विवाह के लिए चिंतित अपराजिता के पिता रामनाथ अनिमेष के घर आने का समाचार सुनकर अपनी बेटी का रिश्ता लेकर उसके घर आये। अनिमेष के आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर उन्हें लगा कि उन्होंने यहाँ आकर भूल की है, शायद यहाँ रिश्ता न हो पाये किंतु फिर भी उन्होंने ऊपरी मन से दूसरे दिन लड़का-लड़की की मुलाकात का समय निश्चित कर लिया।

अपराजिता को देखकर अनिमेष के माता-पिता सरला और दिनेश ने अपने पुत्र की इच्छानुसार इस संबंध की स्वीकृति दी तो रामनाथ जी को यह सोचकर अत्यंत आश्चर्य हुआ कि साधारण रूप रंग वाली उनकी कन्या में उन्होंने ऐसा क्या देखा कि अपने आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी पुत्र के लिये उनकी पुत्री का हाथ स्वीकार कर लिया। फिर सोचा कि उन पर लक्ष्मी की कृपा शायद इस संबंध की स्वीकृति का कारण हो या उनकी पुत्री के भाग्य में ही इतना सुदर्शन वर लिखा है। एक छोटी सी मुलाकात में ही अपराजिता भी अनिमेष इतना प्रभावित हुई कि उस जैसा पति, सहचर और सखा पाकर गर्वोन्मुख हो उठी थी।

अपराजिता के पिता को सुखद आश्चर्य हुआ जब वर पक्ष की ओर से कोई डिमांड नहीं रखी गई...उनकी यह सोच कि उन्होंने उनकी लड़की को, उनके ऊपर लक्ष्मी की कृपा के कारण पसंद किया, गलत सिद्ध हो गई थी। यही कारण था कि उन्होंने विवाह में कोई कमी नहीं रखी थी। सभी बरातियों की खूब आवभगत की गई तथा सभी बारातियों को विदाई में एक-एक गिन्नी दी जिसके कारण सभी बाराती अत्यंत खुश हुए थे। सच बात तो यह थी कि बहू से भी ज्यादा लोग विवाह में हुई सजावट, स्वागत सत्कार का ही जिक्र कर रहे थे।  

पंद्रह दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। अपराजिता का छोटा भाई धीर उसे आकर ले गया। अनिमेष का जीवन फिर नीरव हो चला था...यद्यपि मित्रों के कटाक्षों ने उसे घायल कर दिया था पर रहना तो उसे उनके ही साथ था। वह अपने मित्रों को चाहकर भी नहीं समझा सकता था कि वास्तव में अपराजिता मानसिक रूप से अत्यंत ही सुलझी, नये से विचारोंयुक्त विदुषी महिला है, अत्यधिक मोटापे के अतिरिक्त अपराजिता किसी बात में किसी से कम नहीं है...। सच तो यह है कि उसे अपराजिता के बाह्य सौन्दर्य की अपेक्षा आंतरिक सौन्दर्य ने मोहित किया है...। उस पर अपराजिता को अपनाने के लिये न तो अपने माता-पिता की तरफ से कोई दवाब पड़ा था और न ही ससुराल वालों की तरफ से धन का लालच दिया गया था। यह बात और है कि अपनी पुत्री की खुशी के लिये उसके माता-पिता ने दिल खोलकर खर्चा किया था....पर दुनिया वालों को किसी की पसंद और नापसंद से क्या मतलब है उसे तो सिर्फ व्यंग्य करने और हँसी उड़ाने का बहाना चाहिये।   

देखते-देखते तीन महीने बीत गये। आज अपराजिता को आना था। वह उसे लेने स्टेशन गया। मन में हर्ष और विषाद के मिले जुले लक्षण थे। हर्ष इसलिये था कि उसकी प्रियतमा...उसकी पत्नी आ रही है और विषाद इसलिये कि कहीं किसी के कटाक्ष पर वह मासूम कली मुरझाने न लगे।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालना ही श्रेयस्कर है। मनुष्य को शारीरिक सौन्दर्य की अपेक्षा गुणों से सम्मान मिलना चाहिये....वह सुनता रहा शायद इसीलिये लोग सुनाते रहे। अब यदि किसी ने कुछ भी कहने की चेष्टा की तो वह तुरंत ही टोक देगा चाहे वह उसका अभिन्न मित्र ही क्यों न हो ? पत्नी के मानसम्मान की रक्षा करना उसका दायित्व है...इस दृढ़निश्चय के साथ मन के बवंडर को शांत करने का प्रयास कर रहा था कि ट्रेन के आने की सूचना मिली। 

ए.सी. कोच उसके सामने आकर ही रूकी। वह डिब्बे में चढ़ने ही वाला था कि धीर सामान लेकर उतरा। उसके साथ उतरी दुबली पतली महिला को देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया। वह महिला और कोई नहीं, उसकी अपराजिता थी...सुगठित देह, साँवलेपन में भी मुख पर अद्वितीय सौन्दर्य छाया हुआ था।

‘जीजाजी घर नहीं चलना क्या ?’ उसको विमुग्ध अपराजिता को निहारते देख धीर ने कहा।

‘हाँ....क्यों नहीं...।’ अनिमेष अपराजिता पर से नजरें हटाते हुये बोला। 

अपराजिता उसके मनोभावों को समझकर शर्मसार हो गई। कायाकल्प के बारे में जब उसने अपराजिता से पूछा तो उसने कहा कि वास्तव में विवाहोपरान्त ही उसे सुगठित शरीर सौष्ठव का महत्व समझ में आया अतः यहाँ से जाने के पश्चात् उसने हैल्थ क्लब ज्वाइन कर लिया। पढ़ाई के साथ-साथ कुछ कसरतें तथा खाने पर मन के अंकुश ने उसके स्वप्न को साकार कर दिया।

धीर के जाने के कुछ दिन पश्चात् अपराजिता के आग्रह पर उसने पाल और वर्मा को सपरिवार खाने पर आमंत्रित किया। इस पार्टी को सफल बनाने के लिये उसने पाकशास्त्र का पूरा ज्ञान बिखेर दिया। तरह-तरह के व्यंजन....पनीर बटर मसाला, मलाई कोफ्ता, खोया मटर, दही बड़ा, स्वीट डिश में फ्रूट क्रीम, तरह-तरह के सलाद इत्यादि...

अपराजिता को देखकर उसके मित्र आश्चर्यचकित रह गये। सुजाता पाल मजाक में कह उठी,‘ लगता है हमारी बहन पति वियोग में दुबली हो गई।’

‘ कुछ भी कहो, रूप निखर आया है। ’ कहते हुये सुजाता की बात का समर्थन रीता वर्मा ने भी कर दिया।

खाना खाकर वे सब खाने की प्रशंसा किये बिना रह नही सके। पूरी पार्टी की आकर्षण का केंद्र अपराजिता ही थी और उसकी प्रशंसा सुन-सुनकर अनिमेष आत्म विभोर हो रहा था।

आखिर विदा की बेला भी आ गई। विदा के समय वर्मा के अभिवादन के उत्तर में अपराजिता बोली,‘ क्यों भाई साहब, आपके मित्र बीवी ही लेकर आये हैं, मोटी काली भैंस तो नहीं...।’

प्रश्न सुनकर वर्मा के साथ-साथ अनिमेष और अन्य सभी चौंक गये...रीता वर्मा का सिर जहाँ शर्म से झुक गया वहीं निरूत्तर और असहाय स्वर में वर्मा ने कहा,‘ क्या आपने सुन लिया था भाभी ....? सारी भाभी....वह तो मैं मजाक कर रहा था।’

‘ भाई साहब, क्या आप भी मजाक कर रहे थे....?’ अपराजिता ने वर्मा के निकट खड़े पाल की ओर देखकर कहा।

अपराजिता की बात सुनकर सुनकर पाल भी सकपका गया। वहीं उसकी पत्नी रीता क्रोध से उसकी ओर देखने लगीं।   

‘ आपके लिये वह मजाक होगा पर आपके उस एक वाक्य ने मेरी जिंदगी बदल दी।’ कहकर वह चिरपरिचित अंदाज में हँस दी। 

फिर थोड़ा रूक कर बोली,‘ भाई साहब, मैं आप दोनों को अपमानित नहीं करना चाहती थी, सिर्फ यह अहसास दिलाना चाहती थी कि इंसान का बाह्य रंग रूप, कद काठी तो ईश्वरीय देन है....मानव निज प्रयत्नों द्वारा जन्मप्रदत्त विकृतियों मे परिवर्तन अवश्य ला सकता है किंतु उसको इंगित करते हुए किसी को मानसिक पीड़ा पहुंचाने वाला कटु सत्य अनजाने में भी कभी किसी को भी नहीं कहना चाहिए। '                

‘ भाभीजी, माफ कर दीजिए....दरअसल वह मैंने मजाक में कहा था...।’ दोनों के मुँह से एक साथ निकला।

' ऐसा मजाक क्यों भाईसाहब , जो दूसरे के दिल को छलनी कर दे। मैंने आपके शब्दों को अपनी ताकत बनाकर स्वयं में बदलाव कर लिया पर सब शायद ऐसा न कर पाएं...अवसादग्रस्त होकर अगर कोई अतिवादी कदम उठा लें तो दोषी कौन होगा ?

श्री पाल और वर्मा जहाँ अपने कहे पर पछता रहे थे वहीं सुजाता और रीता का सिर शर्म से झुका जा रहा था। वे सभी चले गये थे पर अनिमेष सोच रहा था....जो बात वह स्वयं नहीं कह पाया वही बात उसकी पत्नी ने कितने खूबसूरत तरीके से कह दी...। उसे महसूस हो रहा था कि पत्नी के रूप में अपराजिता को पाने का उसका फैसला गलत नहीं था। एकाएक उसे अपने फैसले पर गर्व हो आया और उसने अपराजिता को अपने अंक में ले लिया। 


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